Sunnat Nikaah/सुन्नत निकाह
आज कल हमारे मुआशरे में शादी ब्याह या निकाह करने में मुसलमानो की अक्सरियत ने जो तरीके अपनाएं है वो दीन से बिलकुल हट कर है और इसे देख कर ऐसा बिलकुल नही लगता की ये इस्लामी तरीक़ा या Sunnat Nikaah है या हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का बताया हुवा सुन्नत है ? हम दीन और शरीयत से हट कर इस सुन्नत को दुनियावी रंग दे चुके है! गैर मुस्लिमो के रस्म व रिवाज को निकाह या शादी में शामिल कर चुके हैं , अपना चूके हैं ! और कई सारी खराबियां पाई जाती हैं आइए देखें उन खराबियों को. बड़े ही अफसोस कि बात है की आज कल शादी ब्याह के नाम पर डीजे बजाना और आधे कपड़े पहने हुवे लड़कियों को नचाना आम बात हो गई है और इस बेहयाई वाला नाच को बच्चे बूढ़े जवान और औरतें सभी साथ देख रहे है ! और इस बेशर्मी वाले काम में लाखों रुपए खर्च किए जाते हैं लेकिन किसी गरीब की बेटी का घर नही बसाया जाता !लिहाज़ा ! शरीयत का ख़्याल रखें और Sunnat Nikaah को अपनाएं! बारात का ज़ुल्म यहां देखें वीडियो Read This: Kya Allah Apne bandon ke Liye kaafi nahi एक दूसरी सबसे बड़ी खराबी हमारे मुआश्रे में बारात की है की हम निकाह के दिन लड़की वाले के घर 100 ,150 लोगों को लेकर पहुंच जाते हैं जो की सरासर ज़ुल्म है लड़की वालों पर और इसका इस्लाम में कोई तसौवर नही यानी इस्लाम में यह तरीक़ा जायज नहीं है ! शरीयत में कहीं इसका नाम ओ निशान नहीं है ! Shadi ki gair sharayi rasoomat video dekhen |
निकाह से मुतअ़ल्लिक़ अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान
अल्लाह रब्बुल इज्ज्त इर्शाद फ़रमाता है उन औ़रतों को निकाह़ में लाओ जो औ़रतें तुम्हे पसंद आए।" हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम इर्शाद फ़रमाते है "निकाह मेरी सुन्नत है और फ़रमाते है "बंदे ने जब निकाह़ कर लिया तो आधा दीन मुकम्मल हो जाता है. अब बाकी आधे के लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त से डरे।"
हज़रत महल बिन सअ़द रदी अल्लाहो तआ़ला अन्हो से रिवायत है के नबी ए अकरम (ﷺ) ने इर्शाद फ़रमाया "निकाह करो चाहे महेर देने के लिए एक लोहे की अंगूठी ही हो।
अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है की औरतों को उनके महर खुशी से दे दिया करो इस लिए मर्द पर वाजिब है ही वो यकी़नी तौर पर अपनी बीवी को महर अदा करे और निहायत खुशदिली से अदा करे जिस तरह तोहफ़ा खुशदिली से दिया जाता है! अगर कोई औ़रत अपना सारा महर या इसका कुछ हिस्सा अपनी खुशी से मआ़फ़ कर दे तो इसे हलाल समझ कर खा ले.
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रदी अल्लाहो तआला अन्हो से रिवायत है, सरकार (ﷺ) ने इर्शाद फरमाया ए जवानो जो तुममे से औरतो के हुकुक अदा करने की ताकत रखता है तो वोह जरुर निकाह करे क्यों की यह निगाह को झूकाता और शर्मगाह कि हिफाजत करता है और जो इस कि ताकत न रखे तो वह रोजा रखे क्योंकी यह शकत (वासना) को कम करता है।"
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शरीयत ने निकाह़ को आसान बनाने का हु़क्म दिया है लेकिन उम्म्त ने निकाह़ को मुश्किल और जीना़ को आसान बना दिया है!Sunnat Nikaah करें और निकाह को आसान करें.
निकाह़ से मुतअ़ल्लिक़ जानकारी :निकाह सुन्नते रसूलल्लाह (ﷺ) है
हज़रते आयशा रजि. से रिवायत है कि नबी (ﷺ) ने फ़रमाया:“निकाह़ मेरी सुन्नत है जिसने मेरी सुन्नत (Sunnat Nikaah) पर अ़मल ना किया उसका मुझसे तअ़ल्लुक नहीं।” (इब्ने माजा 1846 बुखारी 5063)
निकाह़ के लग़वी मानी जमा करना, मिलाना, गांठ बांधना और एक दुसरे में दाखिल होने के हैं। और शरई मानी “मियां-बीवी के बीच अ़क़द जिससे वती (सोहबत) करना हलाल” होता है।
अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद रजि. से रिवायत है कि नबी (ﷺ) ने फ़रमाया:
“ऐ नौजवानों की जमाअ़त! तुम में से जिसे निकाह़ करने की ता़क़त हो, उसे निकाह़ करना चाहिये क्योंकि निकाह़ निगाह को बचाने वाला और शर्मगाह को मह़फू़ज़ रखने वाला है। और जिसे निकाह़ की ता़क़त (इस्तेताअ़त) न हो वह रोजों का एहतेमाम करे, इसलिए कि रोज़ा उसके लिए ढाल है।” (बुख़ारी 5066 और मुस्लिम 2517)
निकाह़ के लिए दीनदारी को तवज्जोह दे :
अबु हुरैरा रजि. से रिवायत है कि नबी (ﷺ) ने फ़रमाया:“औ़रत से निकाह़ चार वजहों से किया जाता है –
1. उसके माल की वजह से, 2. उसके खानदान की वजह से, 3. उसके हुस्न व जमाल की वजह से और 4.उसके दीनदारी की वजह से।” तुम दीनदार औरत को तरजीह दो“| (बुख़ारी 5090, मुस्लिम 2681, अबु दाऊद, नसई, इब्नेमाजा और तिर्मिजी)नबी (ﷺ) ने फ़रमाया: “तुम में से जब कोई किसी औ़रत को निकाह़ का पैग़ाम दे, अगर मुमकिन हो तो उसे कुछ देख ले। (मुसनद अहमद और अबुदाऊद 2063-सनद सही है)नबी (ﷺ) ने फ़रमाया- “वली के बगैर निकाह नहीं होता।” (अबुदाऊद 2066, नसई, इब्नेमाजा, तिर्मिजी)नबी (ﷺ) ने फ़रमाया- “जिस किसी औ़रत ने अपने “वली” की इजाजत के बिना निकाह़ किया” उसका निकाह़ बातिल है। (अबुदाऊद 2064) (तिर्मिजी, अबुदाऊद, इब्ने माजा) (सही)मुश्रिका औ़रतों से निकाह़ करना मोमिनों पर ह़राम है। (सूरह नूर-3)बेवा औ़रतों के निकाह़ कर दिया करो। (सूरह नूर-32)
अबु हुरैरा रजि. से रिवायत है, फ़रमाया नबी (ﷺ) ने कि –“बेवा औ़रत का निकाह़ उससे सलाह किये बिना और कुंवारी औ़रत का निकाह़ उससे इजाज़त लिये बिना न किया जाये। कुंवारी औ़रत की इजाज़त “उसका ख़ामोश रहना है।” (बुख़ारी 5136, मुस्लिम 2568)
ख़ुत्बा ए निकाह़ का मतलब
निकाह़ करने वालो के लिए दुआ़
जब कोई निकाह़ करता तो नबी सल्ल. उसे इन लफ़्ज़ों में दुआ़ देते:“बार कल्लाहु ल क व बारक अलैक व जमाआ़ बय न कुमा फी खैर’अल्लाह बरकत अ़ता़ करे और तुम पर बरकत नाजि़ल करे और तुम दोनो को भलाई और ख़ैर पर जमा रखे। (तिर्मिजी /अबु दाऊद 2112/नसई/इब्नेमाजा/अहमद) (तिर्मिजी/इब्ने खजीमा/इब्ने हब्बान ने सही कहा।इब्ने अब्बास रजि. से रिवायत है-नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:“अगर तुम में से कोई अपनी बीवी के पास जाते वक्त यह दुआ़ पढ़े- ” बिस्मिल्लाही अल्ला हुम्मा जन्निबनश शैतान व जन्निबिश् शैतान मा रज़क़ तना” अल्लाह के नाम से – ऐ अल्लाह हमें शैतान से दूर रख और शैतान उस से दूर कर दे जो तू हमे औलाद अ़ता़ करे इस मिलन से उनकी तकदीर में अगर औलाद होगी तौ शैतान उसे कभी नुकसान न पहुंचा सकेगा। (बुखारी 5165/ मुस्लिम 2609)
निकाह़ की फ़ज़ीलत
1. निकाह़ इंसान में शर्म और ह़या पैदा करता है। (मुस्लिम-2517)2. निकाह़ आदमी को बदकारी से बचाता है। (मुस्लिम-2518)3. निकाह़ जिन्सी आलूदगी, जिन्सी हिजान, शैतानी ख्यालात से बचाता है। (मुस्लिम 2518)4. निकाह़ आपसी मोहब्बत और मुरव्वत का बेहतरीन जरिया है। (इब्ने माजा-सही)5. निकाह़ राहत व सुकून हा़सिल करने का सबब है। (नसई- सही और सूरह रूम आयत 21)6. निकाह़ से दीन मुकम्मल होता है। (बैहकी-हसन)7. निकाह़ नस्लें इंसानी के बाक़ी रहने का जा़रिया है। (नसई हसन)8. जो बुराई से बचने की नियत से निकाह़ करे, अल्लाह उसकी मदद करता है। (नसई हसन)
मेहर और उसके मसाइल
हमबिस्तरी की दुआ़ और आदाब
1. इब्ने अब्बास रजि. से रिवायत है कि नबी सल्ल. ने फरमाया –जब तुम लोगों में से कोई अपनी बीवी के पास आने का इरादा करे तो यूं कहे। “अल्लाह के नाम से! या अल्लाह! हमें शैतान से दूर रख और उस से भी शैतान को दूर रख जो तू हमें अता करे।” (बुख़ारी 5165/मुस्लिम 2609)2. नबी सल्ल. ने फरमाया – जब कोई हलाल तरीके (बीवी) से शहवत पूरी करता है तो उसके लिये सवाब है। (मुस्लिम)3. जुमेरात में सोहबत (हमबिस्तरी) करना मुस्तहब (अच्छा) है। (तिर्मिजी-सही)4. बच्चे को दुध पिलाने की मुद्दत में हमबिस्तरी करना जायज है। (मुस्लिम)5. दिन के वक्त हमबिस्तरी करना जाइज है। (बुख़ारी)6. अगर कोई दूसरी बार सोहबत करना चाहे तो (दूसरी) सोहबत से पहले वुजु़ कर ले। (मुस्लिम)7. हमबिस्तरी के बआ़द एक दूसरे की राज़ की बातें औरों पर ज़ाहिर करना मना है।नबी सल्ल. ने फ़रमाया – “क़यामत के दिन अल्लाह के नज़दीक सबसे बुरा वह शख़्स है जो बीवी के पास जाये और बीवी उसके पास आये और फिर वह अपनी बीवी के राज की बातें लोगों को बतलाए।” (मुस्लिम 2617) नबी सल्ल. ने फरमाया – तुम में से हर शख्स हाकिम है और अपनी रअइयत के बारे में जवाब देह है। मर्द अपने घर वालों पर हाकिम है और औरत अपने ख़ाविन्द के घर और उसकी औलाद पर हाकिम है। (बुख़ारी)इसलिये अपनी-अपनी जिम्मेदारियां निभाना दोनों पर वाजिब है।
सुन्नत वलीमा
“वलीमा’‘ का मआनी जमा होने, इकटठा होने के हैं। मिया बीवी चूंकि इकटठा होते हे इसलिए यह खाना वलीमा कहलाता है।1. दावते वलीमा करना सुन्नत है। (बुख़ारी/मुस्लिम-2584/2589)2. दावते वलीमा कु़बुल करना वाजिब है। (मुस्लिम-2595/2605)3. जिस वलीमा में आम आदमियों को न बुलाकर सिर्फ ख़ास लोगों को दावत दी जाये तो वह बदतरीन वलीमा है। (मुस्लिम-2603)4. दावते वलीमा कुबुल न करने वाला अल्लाह और उसके रसूल का नाफ़रमान है। (मुस्लिम-2603/बुख़ारी 5177)5. रिया, (दिखावा) तकब्बूर, (घमण्ड) और बड़ाई ज़ाहिर करने वाले लोगों की दावत में शिर्कत करना मना है। (अबु दाऊद-सही)6. काजी अयाज (रह.) ने इस पर अजमाअ़ नकल किया है कि वलीमे में कमी-बेश की कोई कैद नहीं बल्कि हस्बे ज़रूरत और हस्बे हैसियत वलीमे का खाना बनाया जा सकता हैं, चाहे वह थोड़ा हो या ज़्यादा। (नील अल अवतर 0048260)7. वलीमे की दाव़त दुल्हा-दुल्हन के मिलन से पहले या बाद कभी भी की जा सकती है। (अल फिक्ह अल मजाहिब बर बदल 002 1 33-34)8. दावते वलीमा का मुस्तहिब वक्त चारो फिक्ही मसलकों में निकाह के बाद है।
गौऱ ओ फिक्र करने वाली बात
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Nikaah ye Kaisi sunnat ye kaunsa Islam ?
निकाह* के नाम पर शादी तुम करो और दो तीन सौ बरातियों के खाने का ख़र्चा लडकी के माँ- बाप उठाऐ
यह कौन सी *सुन्नत* है
कौन सा *इस्लाम* है ?❄︎मेहर तुम देते नहीं,
उधार रखकर माफ़ करवा कर हक़ मारना
यह कौन सी *सुन्नत* है
कौन सा *इस्लाम* है ?❄︎शुरुआती सात महीने तक बीवी से पूरे खानदान की नौकरी करवा कर उसे खिदमत का नाम देकर जब डिलिवरी का वक़्त करीब आए तो उसे फिर "मायके" छोड़ आना
कौन सी *सुन्नत* है
कौन सा *इस्लाम* है ?❄︎ ज़्यादातर डिलिवरी सिजेरियन ऑपरेशन से हो रही हैं, पैदा होने वाला बच्चा तुम्हारा और उसका ख़र्चा लड़की के माँ-बाप उठाये यह
कौन सी *सुन्नत* है
कौन सा *इस्लाम* है ?*लोगों* यह डाकुओं और लुटेरों वाली आदतें अपने आप में से निकालो और सुधर जाओ,
और क़ौम के हर तबक़े और हर मां बाप को चाहिए कि वह बारातियों को खाना खिलाने का रिवाज बंद करें और लड़के वालों को भी चाहिए कि वो लड़की के वालिदैन से बकवास फ़रमाइशें बंद करें !!
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Conclusion:
निकाह को आसान बनाएं और Sunnat Nikaah का जो तरीक़ा है उसे अपनाएं और सुन्नत तरीक़े से निकाह किया करें ताकी इसमें बरकत हो लड़के वालों को भी चाहिए कि वो भी कोशिश करें कि मेहर हाथों हाथ दें ! और जहेज़ लेकर या जहेज़ का मुतालबा करके बेटी वालों को मजबूर न करें और न ही बारात लेकर जाए की बाप कर्जदार हो जाए बारातियों का पेट भरने के लिए. सुन्नत तरीक़ा अपनाएं ताकि आप पर अल्लाह की रहमत नाजिल हो और जिंदगी सकून से गुज़रे!
FAQ:
Que: सुन्नत की शादी कैसे होती है?
Ans: सुन्नत की शादी बगैर बैंड बाजा और बारात के सादगी के साथ सुन्नत तरीक़ा से मस्जिद में होती है
Que: मेहर क्या है?
Ans: मर्द निकाह़ के वक्त जो माल, रकम या कोई फायदेमन्द चीज़ औ़रत को दे वह “मेहर” कहलाता है!
मेहर लड़की का हक़ है जिसे लड़की खुद तय करे या फिर वो बाप भाई में से जिसे जिम्मेदारी दे वो तय करे, जहां तक हो सके मेहर को नकद तै करे!
Que:क्या हम माता-पिता के बिना निकाह कर सकते हैं?
Ans: नही ! हम माता पिता के बिना निकाह नहीं कर सकते हैं. निकाह के वक्त किसी ख़ास अपनों का होना जरूरी है! नबी (ﷺ) ने फरमाया- “जिस किसी औरत ने अपने “वली” की इजाजत के बिना निकाह किया” उसका निकाह बातिल है।
Que: बदतरीन वलीमा कौनसा है ?
Ans: जिस वलीमा में आम आदमियों को न बुलाकर सिर्फ ख़ास लोगों को दावत दी जाये तो वह बदतरीन वलीमा है। (मुस्लिम-2603)
Que: सिंपल निकाह कैसे करें?
Ans: सिंपल निकाह सरल और बगैर बैंड बजा के और बगैर जहेज़ लिए करें
सिंपल निकाह करने के लिए निम्नलिखित कदमों का पालन करें:
1. महर (दहेज़) की धनराशि तय करें।
2. दोनों पक्षों की सहमति से निकाह़ की तारीख़ और बाकी मुआ़मलात को तय करें।
3. गवाहों को बुलाए जो निकाह के गवाह बनेंगे।
4. निकाह के दिन महर और निकाह नामा पर दस्तख़त करें।
5. इमाम या क़ाज़ी के सामने दोनों पक्षों को दस्तखत कराएं।
6. गवाहों के सामने दोनों पक्षों ने खुद से निकाह की सहमति देने की पुष्टि करने के लिए हां कहें।
7. इमाम या क़ाज़ी की निर्देशानुसार निकाह का निबंधन करें।
8. निकाह पत्र को साक्षात्कार करें और गवाहों के सामने हस्ताक्षर करें।
9. निकाह का दस्तखत पत्र बनाएं और साक्षात्कार करें।
10. अब आप आपस में हलाल जोड़ी के रूप में प्रमाणित हो गए हैं।
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