Shirk Kya hai /शिर्क क्या है?
Shirk Kya hai |
Shirk Kya hai? Aur Allah farmata hai Imaan walon me aksar log mushrik hote hain.
हक़ीक़त में शिर्क यह है की अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला की ज़ात और सिफ़ात में किसी और को शरीक किया जाए या अल्लाह तआ़ला को छोड़ कर किसी ज़िन्दा या मुर्दे से अपनी मुश्किलों और परेशानियों से निजात पाने के लिए दुआ या इल्तिजा की जाए और मदद के लिए पुकारा जाए यही शिर्क कहलाता है ! और इसे ही अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला ने सूरत लुक्मान में बहुत बड़ा ज़ुल्म कहा है!
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कुछ क़ुरआन की आयतें पेशे खिदमत है गौर से पढें!
Shirk Kya hai?अल्लाह तआला के बेटा और बीवी मानना शिर्क है।अल्लाह तआला का फ़रमान है- "कह दो अल्लाह एक है।" (सूरह इख्लास - 1)एक जगह अल्लाह का फ़रमान है- "वह कहते हैं रह़मान ने किसी को बेटा बनाया है, सख़्त बेहूदा बात है जो तुम गढ़ लाये हो। क़रीब है कि आसमान फट पड़े, ज़मीन चटख़ जाए और पहाड़ गिर जाए इस बात पर कि लोगों ने रह़मान के लिए औलाद होने का दावा किया है ।
ये मानना कि अल्लाह तआ़ला ने अपने नूर से मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैदा किया है शिर्क है
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है- "न उससे कोई पैदा हुआ है।" (सूरह इख़्लास - 3)
किसी मज़ार या किसी पीर से दुआ करने पर औलाद हो जाती है या ये की पीर वली लड़का देने पर क़ादिर हैं
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है- "मुझे दिखाओ कि अल्लाह के सिवा जो लोग है उन्होंने क्या पैदा किया है" (सूरह लुक़्मान - 11)
एक जगह और अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है -
"कह दो अल्लाह ही हर चीज़ का पैदा करने वाला है और वो अकेला ज़बरदस्त है।" (सूरह रअद - 16)
रोज़ी देना या रोज़ी में बरकत देने का इख़्तियार अल्लाह तआला के अलावा किसी और के भी इख़्तियार में है, उनसे मदद मांगी जाए तो रोज़ी में ज़रूर बरकत होगी यह मानना भी शिर्क है।
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है- "अल्लाह ही तो है जिसने तुम को पैदा किया फ़िर तुमको रिज़्क दिया
अल्लाह तआ़ला के लिए कोई मिसाल ब्यान करना जैसा कि जो लोग मज़ारो पर जाते है। जब उनसे पूछा जाए कि तुम लोग क्यों मज़ारो पर जाते हो तो, वो लोग जवाब देते है कि जिस तरह जज से मिलने के लिए वकील से मिलना पड़ता है उसी तरह अल्लाह तआ़ला से मिलने के लिए किसी वली (मज़ार) से मिलना पड़ेगा । यह कहना और इस तरह कि मिसाले देना शिर्क है।
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है - "उसकी कोई मिसाल नहीं ।" (सूरह शुरा - 11)
एक जगह और अल्लाह तआ़ला ने फरमाया है- "लोगो! अल्लाह तआ़ला के लिए मिसालें ना दो, बेशक अल्लाह तआ़ला हर चीज जानता है और तुम नहीं जानते"
अल्लाह तआ़ला को छोड़ कर किसी मज़ार, वली, बुज़ुर्ग को पुकारना उनसे दुआ करना उनसे फ़रियाद करना शिर्क है।
जबकि अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला फरमा रहा है कि वह तो बहुत क़रीब है!
अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है - "ऐ नबी मेरे बन्दे तुमसे मेरे बारे में पूछे तो उन्हें बता दो कि मैं उनसे क़रीब ही हूं। पुकारने वाला जब मुझे पुकारता है तो मैं उसकी पुकार का जवाब देता हूं।" (सूरह बक़रा - 186)
मुझे पुकारो मैं तुम्हारी दुआ कुबूल करूंगा (सूरह मोमिन - 92)
Shirk Kya hai? अल्लाह तआ़ला का और फरमान पढ़िए!
यह मानना कि बग़ैर अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला के हुक्म के कोई भी सिफ़ारिश कर सकता जो चाहे अल्लाह तआ़ला से अपनी बात मनवा सकता है यह शिर्क है।
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है- "कौन है जो उसके दरबार में उसकी इजाज़त के बग़ैर सिफ़ारिश कर सके ?"(सूरह बक़रा - 255)
एक जगह और इरशाद है- "कहो सिफ़ारिश सारी की सारी अल्लाह तआ़ला के इख़्तियार में है।" (सूरह ज़ुमर - 44)
तकलीफ और मुसीबत दूर करने वाले पीर, वली और मज़ार हैं, ये मानना कि अगर फलाँ के नाम का चिराग़ नहीं जलाया या फलाँ के नाम कि फातेहा़ नहीं दिलाई तो मुसीबत और तकलीफ़ आ जायेगी यह भी शिर्क है ।
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है- "और अगर अल्लाह तुमको कोई तकलीफ पहुंचाए तो उसके सिवा उसको कोई दूर करने वाला नहीं। और अगर तुम से भलाई करनी चाहे तो उसके फज़्ल को कोई रोकने वाला नहीं है (सूरह युनूस - 107)
अल्लाह तआ़ला के सिवा किसी और पर भरोसा रखना शिर्क है ।
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है- "कह दो मुझे अल्लाह ही काफ़ी है भरोसा रखने वाले उसी पर भरोसा रखते हैं। (सूरह ज़ुमर - 38)
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अल्लाह तआ़ला के अलावा किसी और के लिए ग़ैब मानना शिर्क है।
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है- "कह दो कि जो लोग आसमान व ज़मीन में है अल्लाह के सिवा ग़ैब की बातें नहीं जानते है। (सूरह नमल - 65)
एक जगह इरशाद है- "और उसी के पास ग़ैब की कुन्जिया है जिनको उसके सिवा कोई नहीं जानता (सूरह अनआम - 59)
Mazar par haazri,Shirk |
तकब्बुर बढ़ाई जताना शिर्क है मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया कि अल्लाह तआ़ला का फर्मान है - "बुजुर्गी मेरा तहबन्द है और बडाई मेरी चादर है, जो कोई इन दोनों में से किसी को छिनेगा तो ज़रूर मैं उसको दोजख़ में जगह दूंगा।" (मुस्लिम बहवाला जमआते हक्का के अकाइद सफ़ा - 73)
शिर्क तो बड़ा जुल्म है !
अल्लाह तआ़ला का फ़रमान है- शिर्क तो बड़ा जुल्म है।" (लुक़्मान - 13)
इस आयत में अल्लाह तआ़ला फ़रमाता है कि शिर्क सबसे बड़ा ज़ुल्म है क्योंकि पैदा करने वाला परवरिश करने वाला, रिज़्क देने वाला, औलाद देने वाला, तमाम नेअ़मत को नाज़िल करने वाला, इन्सान की हिदायत के लिए किताबें नाज़िल फ़रमाने वाला, रसूलो को माबूस करने वाला सिर्फ़ अल्लाह तआ़ला है। इसलिए अल्लाह तआ़ला को छोड़कर किसी और से फ़रियाद करना, मदद मांगना, नज़र नियाज़ करना, उम्मीदें रखना, भरोसा करना, हिदायत के लिए किसी और की तरफ़ देखना, जबकि ये सब सिर्फ़ अल्लाह तआ़ला से होना चाहिये इसलिए ये ज़ुल्म है।
इस आयत में शिर्क को ज़ुल्म बतलाया है। हक़ीक़त में शिर्क ज़ुल्म है, क्योंकि जो भी शख़्स शिर्क करता है वो किसी न किसी तरह अल्लाह तआ़ला की ज़ात या सिफ़ात में कमी बेशी करता है।
ज़ात में कमीबेशी ये है कि किसी रसूल, फ़रिश्ते या इन्सान को अल्लाह तआला का बेटा-बेटी या जुज़ माना जाए। जैसा कि यह कहना कि अल्लाह के नूर से मुह़म्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैदा किया गया। इसका मतलब है अल्लाह तआ़ला का नूर दो हिस्सों में बंट गया एक हिस्सा अल्लाह तआ़ला में दूसरा हिस्सा मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम में यानी अल्लाह तआ़ला के नूर में कुछ कमी आयी। ईसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का बेटा मानना यानी अल्लाह तआला के नुत्फे से ईसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए। इसका मतलब ये हुआ अल्लाह तआ़ला की ज़ात से एक नुत्फा कम हुआ। (अल्लह की पनाह) इसमें ये अक़ीदे रखना अल्लाह तआ़ला की ज़ात में कमी करना है ।
सिफ़ात में कमी से मुराद है कि किसी शख़्स या पीर के लिए ये मानना कि वो औलाद देने पर क़ादिर हैं यानी अल्लाह तआ़ला औलाद नहीं दे सकता। ये अल्लाह तआ़ला में सिफ़ाते ख़ालिक को नहीं मानना है या कमी करना है। किसी पीर या वली के लिए ये मानना कि वो रिज़्क में बरकत देता है, परेशानी दूर करता है मुरादें पुरी करता है । यानी ये काम अल्लाह तआ़ला नहीं कर सकता जबकि ये सब अल्लाह की सिफ़त हैं इसलिये जिसका अक़ीदा ग़ैर से बरकत हासिल करना परेशानी में मदद मांगने का होगा वो यक़ीनन इन सिफ़त को अल्लाह तआ़ला में नहीं मानता। यह मानना की फलाँ सितारे की वजह से पानी बरसा है या पानी नहीं बरसा। पानी बरसाना भी अल्लाह तआ़ला की सिफ़त है। इस तरह जितनी भी अल्लाह तआ़ला में सिफ़त है उनके या किसी एक सिफ़त को दूसरे किसी में मानना अल्लाह तआ़ला कि सिफ़त में कमीबेशी करना है।
इसलिये ऊपर लिखी आयत में शिर्क को ज़ुल्म बतलाया है। क्योंकि इन्सान जाने अन्जाने अल्लाह तआ़ला की ज़ात और सिफ़ात में कमी करता है । इन्सान को शिर्क से बचना चाहिए क्योंकि शिर्क सब गुनाहों से बड़ा गुनाह है जैसा कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- "क्या मैं तुम्हें सबसे बड़े गुनाह के बारे में न बतलाऊं ? हमने कहा ज़रूर बताएं ऐ अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम! आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया - “अल्लाह तआ़ला के साथ शिर्क और वालदैन की ना फ़रमानी। " (बुख़ारी व मुस्लिम बहवाला किताबुल तौहीद सफ़ा - 24)
शिर्क की माआ़फ़ी नही !
- जिस गुनाह को अल्लाह तआ़ला और मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम बड़ा गुनाह बतलाए उससे इन्सान गफ़लत बरते ये बहुत बड़ा ख़सारे का सौदा है।
- शिर्क इतना अज़ीम गुनाह है कि अल्लाह तआ़ला ने इसके बारे में फ़रमाया है- "अल्लाह इस गुनाह को नहीं बख़्शेगा कि उसका शरीक बनाया जाए और इसके सिवा और जिस गुनाह को चाहेगा मुआफ कर दे ।" (निसा - 48)
- जैसा कि ऊपर बतलाया गया है कि शिर्क करने वाला अल्लाह तआ़ला कि ज़ात और सिफ़ात में कमी करता है वो अल्लाह तआ़ला को मुकम्मिल नहीं मानता। जिसका अक़ीदा इतना घटिया हो अल्लाह तआ़ला के बारे में तो भला अल्लाह तआ़ला जो हर ऐब और हर तरह की कमीबेशी से पाक है वो किस तरह इस इन्सान को मुआ़फ करेगा जिस इन्सान के फ़ायदे कि लिए उसने पुरी दुनिया के निज़ाम को लगा रखा है और बदले में कुछ नहीं मांग रहा बस यह चाहता है कि अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं किया जाए।
- इन्सान जितना ग़ैरतमन्द है अल्लाह तआ़ला उससे कई ज़्यादा ग़ैरतमन्द है। जब एक मर्द ये बरदाश्त नहीं करता कि उसकी बीवी उसके बिस्तर पर किसी ग़ैर मर्द को सुलाए तो ये इन्सान जो हर वक़्त सिर्फ़ अल्लाह तआ़ला का मोहताज है किस तरह सोचता है कि अल्लाह तआला के साथ वो शिर्क किये जाए और अल्लाह तआ़ला उसे कुछ भी नहीं कहेगा कोई सज़ा नहीं देगा ऐसे ही माफ़ कर देगा। क्या इन्सान अल्लाह तआ़ला की ग़ैरत को अपनी ग़ैरत से कम मानता है ?
Allah Apne bandon ke Liye kaafi hai
शिर्क से हर नेकी बर्बाद
Shirk Kya hai? शिर्क कितना अज़ीम गुनाह है कि अल्लाह तआ़ला ने आम इन्सान तो क्या नबीयों तक को भी नसीहत कर दी कि अगर तुमने शिर्क किया तो हम तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे। जैसे कि सुरह अनआम में 17 नबीयों के नाम ज़िक्र करने के बाद फ़रमाया - "और अगर वो लोग शिर्क करते तो जो अमल वो करते थे सब बेकार हो जाते।" (सूरह अनआम - 89)
इन्सान को ग़ौर करना चाहिए कि अल्लाह तआला ने जब नबीयों के अमल को बेकार करने के लिए कह दिया जो कि अल्लाह तआला के नेक बन्दे है जिन्हें ख़ुद अल्लाह तआला ने चुना हैं तो किस तरह इन्सान शिर्क करके भी अल्लाह तआला से नहीं डरता है
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Conclusion:
Frequently Asked Questions:
1.इस्लाम में Shirk Kya hai?
5.क्या शिर्क करने वालों की कोई नेकी कबूल होगी ?
शिर्क कितना अज़ीम गुनाह है कि अल्लाह तआ़ला ने आम इन्सान तो क्या नबीयों तक को भी नसीहत कर दी कि अगर तुमने शिर्क किया तो हम तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे !"और अगर वो लोग शिर्क करते तो जो अमल वो करते थे सब बेकार हो जाते ! तो फिर हम आम इंसानों की क्या हैसीयत है! शिर्क करने वाले की कोई भी नेकी कबूल नहीं की जाएगी !
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1 Comments
Allah hidayat de hame
ReplyDeleteplease do not enter any spam link in the comment box.thanks