Namaz ki ahmiyat/नमाज़ की अहमीयत
Namaz ki ahmiyat |
Namaz ki ahmiyat क्या है आइए इस हदीस से जानें ! नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:"क़यामत के दिन लोगों के अ़माल में से सब से पहले जिस अ़मल या इ़बादत से मुतअल्लिक़ पूछ ताच्छ होगी वो नमाज़ है यानी पहले नमाज़ का ही हिसाब होगा!"(अबू दाऊद: 866 - हाकिम - 1/362-363) इसे इमाम ज़हबी ने सहीह कहा है!हज़रत उमर बिन अल्खताब रजी़: ने फरमाया है कि उस आदमी का इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं जिसने नमाज़ को छोड़ दिया,
अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला को जो अमल ज़्यादा पसन्द है
हज़रत इब्ने मस्ऊद रज़ि० फ़रमाते हैं कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सवाल किया कि अल्लाह तआ़ला को कौन सा अ़मल ज़्यादा पसन्द है? आप ﷺ ने फ़रमाया: “वक्त पर नमाज़ पढ़ना" मैंने कहाः फ़िर कौन सा? आप ने फ़रमाया: "मां-बाप के साथ अच्छा बर्ताव करना" मैने कहाः फ़िर कौन सा ? आप ने फ़रमाया: “अल्लाह की राह में जिहाद करना।"(बुख़ारी:527, मुस्लिम: 85)
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः"नमाज़ के बारे में अल्लाह से डरो, नमाज के बारे में अल्लाह से डरो।"इब्ने माजा :2697- इब्ने हिब्बान: 1220) इसे इमाम बूसीरी ने सहीह कहा है!
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:"आदमी और शिर्क के दर्मियान नमाज़ ही रुकावट है।"(मुस्लिम : 82)
Read This: Agar namaz Sunnat ke mutaabiq na ho
Namaz ki ahmiyat |
अ़की़दह ए तौहि़द के बाद नमाज़ की बहुत बड़ी अहमियत है। अगर नमाज़ी का अ़की़दा नमाज़ के लफ्ज़ों के अनुसार हो तो वह कभी शिर्क और कुफ्र में गिरफ्तार नहीं हो सकता, इन शा अल्लाह तआ़ला !
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह भी फ़रमाया:"नमाज़ दीन का सुतून (स्तंभ) है!"
(तिर्मिज़ी:2621 - हाकिम: 2/76, 412, 413) इमाम ज़हबी और इमाम तिर्मिज़ी ने इसे सहीह कहा है!
कसरत से सज्दह करने वालों का अंजाम
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:"क़ियामत के दिन जब अल्लाह तआ़ला चंद जहन्नम वालों पर रहमत करने का इरादा फ़रमायेगा तो फ़रिश्तों को हुक्म देगा कि वह जहन्नम से ऐसे लोगों को बाहर निकाल लें जो अल्लाह की इबादत किया करते थे। चुनांचे फ़रिश्ते उन्हें सज्दा के निशान से पहचान कर जहन्नम से निकाल देंगे (क्योंकि) सज्दा की जगहों पर अल्लाह तआला ने जहन्नम की आग को ह़राम कर दिया है, वहां आग का कुछ भी असर-ओ-रुसूख़ (प्रभाव) न होगा।(बुख़ारी : 806- मुस्लिम: 182)
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:"सब से अफज़ल काम अव्वल वक्त पर नमाज़ पढ़ना है!"(इब्ने ख़ुज़ैमा: 327- इब्ने हिब्बान :280) इसे इमाम हाकिम और इमाम ज़हबी ने सहीह कहा है!
Read This: Achhe aur bure amaal ka anjam
हर अ़मल का बदला ज़रूर मिलता है
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:"मेरे पास जिब्रील आये और कहने लगे कि ऐ मुहम्मद! (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) चाहे कितना ही आप ज़िंन्दा (जीवित) रहे, आख़िर मे (अन्ततः) एक दिन मरना है। और जिस से चाहे कितनी ही मुहब्बत करें, अन्ततः एक दिन जुदा हो जाना है और आप जैसा भी अ़मल करें उस का बदला ज़रूर ही मिलता है और इसमें कोई शक व शुब्हा नहीं कि मोमिन की शराफत तहज्जुद की नमाज़ में है, और मोमिन की इज़्ज़त लोगों (के माल) से बेपर्वाही (बरतने) में है।
(हाकिम 4/324 - 325) इमाम हाकिम ने और ज़हबी ने सहीह और मुनजुरी ने हसन कहा है। यानी जो कुछ अल्लाह ने दिया है उस पर सब, शुक्र और इत्मिनान (संतोष) करें और लोगों के माल में लालच और स्वाहिश न रखे !
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: मैने सपने में अपने बर्कत वाले और बुलन्द मर्तबा वाले रब को बेहतरीन सूरत में देखा पस उस ने कहा: ऐ मुहम्मद! मैंने कहा: हाज़िर हूं में ऐ मेरे रब! अल्लाह ने फ़रमाया: फरिश्ते किस बात में बहस कर रहे हैं? मैंने कहा कि में नहीं जानता। अल्लाह ने तीन बार पूछा और मैने हर बार यही जवाब दिया। फ़िर मैंने अल्लाह को देखा कि उसने अपना हाथ मेरे कन्धों के दर्मियान रखा यहाँ तक कि मैंने अल्लाह तआला की उन्गलियों की ठन्डक अपनी छाती के दर्मियान महसूस की। फ़िर मेरे लिये हर चीज़ ज़ाहिर हो गयी और मैंने सब को पहचान लिया। (2) फ़िर फ़रमाया: ऐ मुहम्मद! मेने कहा: मेरे रब मे हाज़िर हूँ। अल्लाह ने फ़रमायाः फरिश्ते किस बात में बहस कर रहे हैं? मैंने कहा: कफ़्फ़ारात (यानी गुनाहों का कफ़्फ़ारा बनने वाली नेकियों) के बारे में। अल्लाह ने फ़रमाया: वह क्या है मैंने कहा: जमाअ़त के साथ नमाज पढ़ने के लिये पैदल चल कर जाना और नमाज़ के बाद मस्जिदों में बैठना और मुश्क़्क़त (सर्दी या बीमारी) के समय पूरा वज़ू करना। अल्लाह तआला ने फ़रमाया: और किस चीज़ में बहस कर रहे हैं? मैंने कहा: मर्तबे की बुलन्दी के बारे में अल्लाह ने पूछा: वह किन चीज़ों में है? मैंने कहा: लोगों को खाना खिलाने, नर्म बात करने, और रात को नमाज़ पढ़ने में जब लोग सो रहे हों। फ़िर अल्लाह तआला ने फ़रमाया: अपने लिये जो चाहो दुआ करो। नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: फ़िर मैंने यह दुआ की :
Namaz ki ahmiyat |
तर्जुमा : "ऐ अल्लाह! मैं तुझ से सवाल करता हूं नेकियों के करने का और बुराइयों के छोड़ने का और मिस्कीनों के साथ मुहब्बत करने का, और यह कि तू मुझे बख़्श दे और मुझ पर रहम कर। और अगर तेरा किसी क़ौम को आज़माइश में डालने का इरादा हो तो मुझे आज़माइश से बचा कर मौत दे देना। और में तुझ से तेरी और हर उस शख़्स की मुहब्बत मांगता हूं जो मुझ से मुहब्बत करता है और में तुझ से वह अमल करने की तौफ़ीक़ मांगता हूं जो (मुझे) तेरी मुहब्बत के क़रीब कर दे !"
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: मेरा यह सपना सच्चा है पस उस को याद रखो और दूसरे लोगों को भी यह सपना सुनाओ।(तिर्मिजी : 3249) इमाम तिर्मिजी ने हसन सहीह कहा है !
Read This: Kya mazar par haazri dene se mushkil ka hal hota hai?
अल्लाह का हाथ और उंगलियाँ
अस्ल में यह अल्लाह तआला की सिफ़ते हैं इन की कैफ़ियत हम नहीं जानते। हम इन्हें मख़लूक़ के हाथ और उंगलियों से तश्बीह नहीं देते, बल्कि ग़ैब की बातो की तरह अल्लाह की इन सिफ़्तों पर भी ईमान बिल ग़ैब रखते है। अल्हम्दुलिल्लाह
(2) यानी सपने में ज़मीन आसमान की हर चीज़ मैंने देखी और पहचान ली जो अल्लाह ने मुझे दिखाना चाही। सवाल और जवाब से भी यही मफ़हूम निकल रहा है। और एक रिवायत में केवल पूरब और पश्चिम का ज़िक्र है (उत्तर-दक्षिण का नहीं) इसलिये इस हदीस का हर्गिज़ यह मानी नहीं है कि आदम अलै0 की पैदाइश से ले कर लोगों के जन्नत और जहन्नम में दाख़िल होने तक दुनिया के हर ज़मान और मकान की हर चीज़ और हर राज़ मुझे मालूम हो गया। अगर ऐसे होता तो इस सपने के बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर वहयि नहीं आनी चाहिये थी, क्योंकि जो चीज़ आप को पहले मालूम करा दी गयी उस की वहयि भेजना हासिल की हुयी चीज़ को हासिल करना है, मगर ऐसा नहीं हुआ और वहयि आती रही। कभी कभार आप वहयि का इन्तिज़ार भी फ़रमाया करते थे
नमाज़ी अल्लाह की हिफाज़त में होता है
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:"जिसने सुबह की नमाज़ पढ़ी, वह अल्लाह की हिफ़ाज़त (सुरक्षा) में है पस अल्लाह तआला तुम से अपनी हिफ़ाज़त के बारे में किसी चीज़ का मुतालबा न करे। इसलिए कि जिस से वह यह मुतालबा करेगा बिलाशुब्हा उस को अपनी पकड़ में ले कर मुंह के बल जहन्नम में फेंक देगा।"(मुस्लिम-: 657)
मुतालबा का मानी या तो नमाज़ में कोताही पर मुतालबा और अल्लाह की पकड़ से डरना है या फ़ज्र की नमाज़ पढ़ने वाले से टकराव करने की सूरत में मुतालबा और पकड़ से डराना है।
यानी नमाज़ में कोताही न करो, क्योंकि यह अल्लाह की हिफ़ाज़त न चाहने के माना में है। और जो शख़्स जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने में कोताही नहीं करता उसे ना हक़ तंग न करो कि यह अल्लाह की हिफ़ाज़त तोड़ने की तरह है। अल्लाह की पकड़ से डरो, वर्ना जहन्नम का ईंधन बन जाओगे!
हज़रत इब्ने अब्बास रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:"बैतुल्लाह शरीफ़ के पास जिब्रील (अलै०) ने मेरी इमामत की और मुझे ज़ौहर की नमाज़ पढ़ाई और असर की नमाज़ पढ़ाई और मुझे मग़रिब की नमाज़ पढ़ाई और मुझे ईशा की नमाज़ पढ़ाई और मुझे फ़ज्र की नमाज पढ़ाई"
(अबू दाऊद :393 - तिर्मिजी : 149) इसे इमाम तिर्मिज़ी, इब्ने ख़ुजैमा, हाकिम, ज़हबी और अबू बक्र इब्नुल अ-रबी ने सहीह कहा है!
Read This: Libaas insaan ki zeenat hai
Conclusion:
हज़रत जिब्रील अलैहिस्सलाम की इमामत वाली इस हदीस से मालूम हुआ कि नमाज़ का दर्जा कितना बुलन्द है और Namaz ki ahmiyat अल्लाह के नज़दीक़ इतनी अधिक है कि उसे बताए नियमों और ज़ाबतों के मुताबिक़ निहायत इतमिनान से अदा करना लाज़िम है। अल्लाह तआ़ला ने उम्मत को तआ़लीम देने ही के लिये जिब्रील अलैहिस्सलाम को आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के पास भेजा। जिब्रील अलैहिस्सलाम ने अल्लाह के हु़क्म के मुताबिक़ नबी करीम सल्लल्लाहु अलाह व सल्लम को नमाज़ की कैफ़ियत, हेअत (अदा करने का तरीक़ा) उस के वक्त और उस के क़वाइद सिखाये और फ़िर आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जिब्रील अलैहिस्सलाम के बताए और सिखाए हुये वक्तों, तरीक़ों, क़वा'इदो और ज़ाबतों के मुताबिक़ नमाज पढ़ते रहे और उम्मत को भी हुक्म दिया कि "तुम उस तरह नमाज पढ़ो, जिस तरह मुझे नमाज़ पढ़ते देखते हो।(बुख़ारी : 631)
👍🏽 ✍🏻 📩 📤
ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
FAQ:
*•┈━━━━•❄︎•❄︎•━━━━┈•*
0 Comments
please do not enter any spam link in the comment box.thanks