Namaz padhne ki Fazeelat / नमाज़ पढ़ने की फ़ज़ीलत
अहा़दीस के किताबों में Namaz padhne ki Fazeelat से मुतअल्लिक़ कई सारी ह़दीसें आई हैं! आइए उन ह़दीसों से जाने की नमाज़ पढ़ने की फ़ज़ीलत क्या है ? और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने क्या फ़रमाया है ?
नमाज़ गुनाहों को मिटाती है
हज़रत अबु हुरेरा रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:“पांच नमाज़ें, उन गुनाहों को जो उन नमाज़ों के दर्मियान हुये, मिटा देती हैं। और (इसी तरह) एक जुम्अ: से दूसरे जुम्अः तक के गुनाहों को मिटा देता है, जबकि बड़े गुनाहों से बच रहा हो।"(मुस्लिम : 233)
जैसे, फ़ज्र की नमाज़ के बाद जब ज़ोहर (ज़ुह्र) की नमाज़ पढ़ेंगे तो दोनों नमाज़ों के दर्मियान में जो गुनाह (पाप) और कौताहीयाँ (ग़लतियां) होगी, अल्लाह तआ़ला उन को मआ़फ़ कर देगा। इसी तरह रात और दिन के तमाम छोटे-मोटे गुनाह पांचों वक़्त की नमाज़ पढ़ने से मआ़फ़ हो जाते हैं। गोया पांचों नमाज़ों के पढ़ते रहने से मुसलमानों का अ़माल नामा (कर्म पत्र) हर समय पाक-साफ़ रहता है, यहां तक कि इंसान नमाज़ की बर्कत से धीरे-धीरे छोटे गुनाहों से दूर रहते हुये बड़े गुनाहों को सोच कर ही कांप उठता है?
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नमाज़ गुनाहों से रोकती है
Namaz padhne ki Fazeelat क्या है अब इस हदीस से जानें!अगर अक़ीदा, नमाज़ पढ़ने का त़रीका़ और नियत दुरुस्त हो तो पाबन्दी से नमाज़ की अदायगी बन्दे को गुनाहों से रोक देती है। इस के बावजूद अगर कोई शख़्स बड़े गुनाह करता है तो बिलाशुब्हा वह किसी ऐसे गुनाह को मुसलसल कर रहा है जिस के होते हुए नमाज़ क़ुबूल ही नही होती। वर्ना यह नामुमकिन (असंभव) है कि नमाज़ क़ुबूल भी हो जाये और गुनाहों से न रोके!
अल्लाह ने तेरा गुनाह माफ़ कर दिया है
हज़रत अनस रज़ि० रिवायत करते हैं कि एक शख़्स (व्यक्ति) ने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की ख़िदमत में हाज़िर होकर कहा : (मैंने गुनाह किया और सज़ा के तौर पर) में ह़द को पहुंचा हूं, इसलिए मुझ पर ह़द जारी करें। (आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस से ह़द के बारे में कुछ नहीं पूछा कि कौन सा गुनाह किया है? ) इतने में नमाज़ का समय हो गया। उस ने आप के साथ नमाज़ पढ़ी। जब आप नमाज़ पढ़ चुके तो वह शख़्स फ़िर खड़ा हो कर कहने लगा: ऐ अल्लाह के रसूल! बिलाशुब्हा में ह़द को पहुंचा इसलिये मुझ पर अल्लाह का हुक्म लागू कीजिये। आप ने फ़रमाया: क्या तूने हमारे साथ नमाज़ नहीं पढ़ी ? उसने जवाब दिया: पढ़ी है। आप ने फरमाया:
"अल्लाह ने तेरा गुनाह माफ़ कर दिया है।"(मुस्लिम : 2764)अल्लाह की रहमत कितनी कुशादा है कि नमाज़ पढ़ने की वजह से उस का गुनाह जिसे वह अपनी समझ के मुताबिक़ "ह़द को पहुंचना" कह रहा था मआ़फ़ कर दिया। मालूम हुआ कि नमाज़ गुनाहों को मिटा देती है।
पेड़ के पत्तों की तरह गुनाह झड़ना
अबू ज़र रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जाड़े के मौसम में बाहर निकले, पतझड़ का मौसम था। आप ने एक पेड़ की दो डालियां पकड़ कर उन्हें हिलाया तो पत्ते गिरने लगे। आप ने फ़रमाया: ऐ अबू ज़र! मैंने कहा ऐ अल्लाह के रसूल! हाज़िर हूं। आप ने फ़रमाया: मुसलमान जब नमाज़ पढ़ता है और उस के साथ अल्लाह की रज़ा चाहता है, तो उस के गुनाह इस तरह (प्रकार) गिरते हैं जिस तरह इस पेड़ के पत्ते झड़ते हैं।
(मुस्नद अहमद - 5 / 179) इमाम मुनज़री ने इसे हसन कहा है!हज़रत उबादा बिन सामित रज़ि० से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:“अल्लाह तआ़ला ने पांच नमाज़े फ़र्ज़ की हैं। पस जिसने अच्छा वज़ू किया, उस को इतमिनान के साथ अदा किया और उन का रुकूअ पूरा किया, तो उस नमाज़ी के लिये अल्लाह का वअ़दा है कि उस को बख़्श देगा।"
(अबू दाऊद : 425) इमाम हिब्बान ने इसे सहीह कहा है !
ये नमाजे़ं पढ़ने वाला आग में दाख़िल नही होगा
हज़रत अम्मार बिन खुबा रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:"जो शख़्स सूरज के डूबने और निकलने से पहले (यानी फ़ज्र और असर की) नमाज़ पढ़ेगा, वह शख़्स हर्गिज़ आग में दाख़िल नहीं होगा।"(मुस्लिम : 634)
ईशा की नमाज़ जमाअ़त से पढ़ने की फ़जी़लत
हज़रत उस्मान रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:
"जो शख़्स ईशा की नमाज़ जमाअ़त के साथ अदा करे (उसे इतना सवाब है) गोया उसने आधी रात तक नमाज पढ़ी। और फ़िर सुबह की नमाज़ जमाअ़त के साथ पढ़े (तो इतना सवाब पाया) गोया पूरी रात नमाज़ पढ़ी।"(मुस्लिम : 656)“जिस ने सुबह की नमाज़ पढ़ी तो वह अल्लाह के ज़िम्मा (यानी उसकी हिफ़ाज़त) में है।"(मुस्लिम : 657)
हज़रत अबू हुरैरा रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:“तुम्हारे पास फ़रिश्ते रात और दिन को आते हैं (आने और जाने वाले फ़रिश्ते) फ़ज्र और असर की नमाज़ में इकट्ठा होते हैं। जो फ़रिश्ते रात को रहे वह आसमान (आकाश) पर चढ़ते हैं तो उन का रब उन से पूछता है (हालांकि वह अपने बन्दों का हाल ख़ूब जानता है) तुम ने मेरे बन्दों को किस हाल में छोड़ा ? वह कहते हैं: हम ने उन को इस हाल में छोड़ा कि वह नमाज़ पढ़ते थे और हम उन के पास इस हाल में गये कि वह नमाज़ पढ़ते थे।(सहीह बुख़ारी :
मुनाफ़िक़ों पर फ़ज्र और ईशा की नमाज़ का भारी होना
“मुनाफ़िक़ों पर फ़ज्र और ईशा की नमाज़ से अधिक भारी कोई नमाज़ नहीं। अगर उन्हें इन नमाज़ों का सवाब मालूम हो जाये तो वह उन में ज़रूर पहुंचे, अगर्चे उन्हें सुरीन (चूतड़) पर चलना पड़े।"(सहीह बुख़ारी : 657+सहीह मुस्लिम : 651)
सुरीन पर चलने का यह मानी (अर्थ) है कि अगर पांव से चलने की ताक़त न हो तो उन के सवाब और अज्र की ख़्वाहिश उन्हें चूतड़ों के बल चल कर मस्जिद तक पहुंचने पर मजबूर कर दे, यानी हर हाल में पहुंचने की कोशिश करें!
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