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Shab e baraart ki haqeeqat (Part:1)/शब ए बरात की हक़ीक़त भाग:1

Shab e baraart ki haqeeqat (Part:1)/शब ए बरात की हकीकत भाग:1


Shab e baraart ki haqeeqat (Part:1)

Shab e baraart ki haqeeqat


Shab e baraart ki haqeeqat जानने से पहले हमें सबसे पहले ये जानना चाहिए कि शब-ए-बारात का मतलब क्या है.शब एक फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ रात है और बराअत एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ बेजार और नफ़रत है! इसलिए, यह नाम क़ुरआन और हदीसों में नहीं पाया जा सकता ! क़ुरआन में जहां भी यह शब्द आया है, इसका मानी घृणा, नफ़रत, बेज़ारी है ! 




    Read This:Shab e baraat se mutalliq jhooti Riwayat
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    आइए क़ुरान की आयतों से समझें!

    • अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला फ़रमाता है: "उन लोगों के लिए ऐलान-ए- बराअत है अल्लाह और उसके रसूल की तरफ से जिनके साथ तुमने मुआहिदे किए थे! यानी अल्लाह और उसके रसूल की ओर से उन मुश्रिकों को घृणा का आदेश दिया गया है जिनसे तुमने समझौता, मुआहिदे की थी !(सूरह तौबह-1)
    • फिर वह(सूरज)डूब गया, इब्राहिम अलैहिस्सलाम ने कहा, ऐ लोगों, मुझे उन चीज़ों से घिन आती है, जिनहे तुम खुदा का शरीक ठहराते हो ।(सूरह अल-अनआम - 78)
    • जब (इब्राहीम अलैहिस्सलाम) को यह स्पष्ट हो गया कि वह अल्लाह का दुश्मन है, तो वह उससे बेज़ार हो गए !(सूरह अल-बराअत/तौबह - 114)
    • इसके अलावा सूरह अल-बक़राह, अल-अनआ़म, अल माईदह(बराअत), यूनुस और अल-मुमतहनाह में जहां भी ये शब्द (बराअत, बारी और तबर्राअ) आए हैं, उनका अर्थ बेज़ारी , नफ़रत है! यानी यह रात रुसवाई/बेज़ारी (तबर्राअ) की रात है।

    Shab e baraart ki haqeeqat (Part:1)
    Shab e baraart ki haqeeqat

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    शिया मुनाफ़िक़ों की बिदअ़त और ख़ुराफ़ात

    • इस रात, मुनाफि़की़न (शिया रावफिज़) अपने नक़ली इमाम के जन्म का जश्न मनाते हैं और सहाब ए कराम और अन्य मुसलमानों पर तबर्राअ यानी बेज़ारी करते हैं।
    • शियाओं की मशहूर किताब (तोहफ़ा अल-अवाम) में लिखा है कि ये इस रात का अहतामाम इस लिए करते हैं इनका अ़की़दा है की इस इनके बारहवीं इमाम मेहदी अलैहे स्सलाम की पैदाइश हुई है!(जबकि ह़की़क़त यह है कि उनके ग्यारहवें इमाम हसन अस्करी बगैर औलाद के ही फौत हुवे थे)
    • उनकी अन्य पुस्तकों में और खुमैनी के सिद्धांत के अनुसार,"इमाम महदी ज़ाहिर होंगे और पृथ्वी पर मोमिनीन की हुकूमत स्थापित करेंगे और (मआ़ज़ अल्लाह) अबू बक्र और उमर के लाशों को कब्रों से निकाल कर उन्हें फांसी देंगें!
    • इस रात ये लोग गुफाओं, नदियों और कुओं पर जाकर अपने इमाम के नाम की पर्चियां डालते हैं और गुजारिश करते हैं की लिल्लाह अब आप तशरीफ़ लाएं!
    • इसलिए, इस रात को वे अपने इमाम के जन्म का जश्न मनाने के लिए हलवा पकाते हैं और आतिशबाजी और दीपक जलाते हैं।
    • और फिर इस डर से कि अहले-सुन्नत इस रस्म का विरोध न करे, इसके लिए अलग-अलग कहानियाँ और रिवायतें गढ़ी दी गईं! जबकि Shab e baraart ki haqeeqat यह है कि पांचवीं सदी से पहले किसी भी मुस्तनद किताब में शबे बरात शब्द का ज़िक्र नहीं मिलता

    शब ए बरात की फ़ज़ीलत में कुरआन की आयतों का पेश करना

    • शब-ए-बारात की फ़जी़लत को साबित करने के लिए जो कहानियां और रवायात गढ़ी गईं उनका जाइज़ाह लेने से पहले, आइए कुरान की उन आयतों पर गौर करें जो शब-ए-बारात से मंसूब की जाती हैं!
    • वे सूरत अल-दुखा़न के शुरुआती आयात हैं।
    • उनका तर्जमा पेश है और वह भी अह़मद रज़ा ख़ान बरेलवी का ताकि शब-ए-बारात मनाने वालों को कोई संदेह, शक न हो।
    • "बेशक हमने इसे एक बड़ी ख़ैर और बरकतवाली रात में उतारा है, बेशक हम डर सुनाने वाले हैं, इसमें बांट दिया जाता है हर हि़क्मत वाला काम, हमारे पास के हु़क्म से,बेशक हम भेजने वाले वाले हैं,तुम्हारे रब की तरफ से रह़मत,बेशक वही सुनता जानता है ! (सुरत दुखा़न:आयत:3-6)
    • सूरत अल-दुखान मक्का मोआ़ज़मा में मेअ़राज से पहले नाजि़ल हुई। उस समय तक पांच वक्त की नमाज़ फ़र्ज़ नहीं थी और 2 हिजरी के बाद रोज़ा फर्ज हूवा और ना ही मक्का में बकी़अ नाम का कोई कब्रिस्तान था।
    • इस तरह से इन आयात और रात में कब्रिस्तान का चक्कर लगाना और दिन में रोज़ा रखना इन तमाम बातों का आपस में कोई जोड़ नहीं बनता,
    • बहरे हाल, इन आयतों में 4 बातों का जिक्र किया गया है,
    • 1. यह रात बरकत वाली रात है।
    • 2. इस मुबारक रात में क़ुरान नाजिल किया गया।
    • 3. इस रात में सभी हुकमों का फ़ैसला किया जाता है।
    • 4. इस रात में रहमत उतरती है।
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    किस महीने में ये मुबारक रात आती है ?

    • ये रात कब और किस महीने में आती है?ऊपर जिन आयतों का ज़िक्र किया गया है यह आयतें इन मुद्दों पर खामोश हैं।पवित्र क़ुरआन की एक यह भी ख़ास अंदाज या तरीक़ा है कि इसमें अहम बातों का एक से अधिक बार उल्लेख, ज़िक्र किया जाता है।
    • यदि एक जगह पूरा उल्लेख है तो दूसरी जगह उसकी व्याख्या की गयी है। इसीलिए सूरह अल-क़द्र में इस रात का ज़्यादा ज़िक्र मिलता है"बेशक हमने इसे क़द्र की रात में उतारा है, और क्या आप जानते हैं कि क़द्र की रात क्या है, क़द्र की रात एक हज़ार महीनों से बेहतर है, इसमें फ़रिश्ते और जिब्रील अपने रब के हु़क्म से हर काम के लिए उतरते हैं , वह सलामती है सुबह चमकने तक!
    • इन आयतों में भी इन अमूर या मुद्दों का जिक्र किया गया है.
    • 1. इसी रात में कुरान नजिल किया गया हुआ.
    • 2. इस रात में सभी मामलों का फैसला किया जाता है।
    • 3. इस रात में फ़रिश्ते और जिब्राईल (रहमत) उतरते हैं।
    • 4. इस रात में सुबह होने तक रहमत और सलामती का नजूल होता है।
    • अब जाहिर सी बात है कि ये एक ही रात का ज़िक्र है और कुरान में बताया गया है कि ये रात रमजान में आती है.अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला फ़रमाता है "रमज़ान का महीना जिसमें कुरान नाज़िल हुआ"

    • फिर आगे फ़रमाया:"तो तुम में से जो कोई यह महीने पाए, वह इसका रोज़ा रखे।"(अल-बकराह - 185)
    • यानी यह बात साफ़ हो गई कि सूरह दुखा़न और सूरह क़द्र दोनों में जिस रात का ज़िक्र है वह वही रात है जो रमज़ान के महीने में आती है।
    • इसके बावजूद जो मौलवी शब-ए-बारात की फ़जी़लत में सूरह दुखा़न की आयतों को शब ए बरात की फ़जी़लत में जोड़ते हैं,उनके लिए बस हिदायत की दुआ ही की जा सकती है जो Shab e baraart ki haqeeqat को अवाम के सामने बयान नहीं करते!
    • इस संबंध में सहाबा के समय से लेकर आज तक के मोअज्जीज़ उल्मा, मुफ़स्सरीन और मुहद्दिसीन की अक्वाल तो क्या, उनका नाम भी लिखा जाए तो सूची बहुत लंबी हो जाएगी। जिनका यह मुतफ्फ़का फ़ैसला है कि लैलत अल-मुबारका और लैलत अल-क़द्र एक ही रात है जो रमज़ान के महीने में आती है।

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    नुस्फ शबान से मुतअल्लिक़ मुहद्दिसीन का कौ़ल 

    Shab e baraart ki haqeeqat (Part:1)
    Shab e baraart ki haqeeqat


    • हालाँकि, तफ़सीर इब्न अब्बास में, अकरमा के माध्यम से, इब्न अब्बास राज़ी का कौ़ल, इस आयत में, "फ़िहा याफ़रक कुल्ली अम्र....... हकीम" से मुराद नुस्फ शबान की रात है
    • लेकिन इमाम दहबी मिज़ान में ईमाम इब्न अ़दी कामिल में इसे अस्वीकार कर दिया।(मिज़ान-उल-अतिदाल - 2/255)
    • कुछ मुहद्दिसीन ने अकरमा को भरोसेमंद बताया है और इस झूठ के लिए इकरीमा के शिष्य इस्माइल बिन नफ़र को जिम्मेदार ठहराया है।इन दोनों की हालत का ब्यौरा इमाम ज़हाबी के मिज़ान में मिलेगा।
    • बहरे हाल यह रवायत मुन्कर है इसका सैय्यदना अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ी अल्लाह) से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन चुंकी इसमें इब्न अब्बास और अकरमा का नाम शामिल है, तो कुछ मुफस्सरीन ने इस कौल को ले लिया और इसी वजह से खास तौर पर हिंद वा पाक के कुछ लोग इसको अपने सीने से लगाए हुए हैं और जनता को धोखा दे रहे हैं।
    • शब-ए-बारात की फजीलत में जो कुछ कुरान से पेश किया जाता है,हमने तो उसका जाइजह ले लिया है और सच्चाई भी ज़ाहिर हो गयी है की Shab e baraart ki haqeeqat क्या है!

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    शब ए बरात की फ़ज़ीलत में बयान की जाने वाली रिवायतों का जायज़ा


    • अब हम उन रवायतों को देखते हैं जो शब-ए-बारात की फजीलत में बयान की जाती हैं।इनमें से कोई भी रवायत हदीसों की सबसे सही तरेन पहली दो किताबों में नहीं है।
    • पहली रवायत उस्मान बिन अल-मुगी़रा की पेश की जाती है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: शाबान से शाबान तक मौतों का फैसला किया जाता है। यहां तक कि ही कोई एक शख्स निकाह़ करता है या उसके बच्चे होते हैं, हालांकि उसका नाम मृतकों की सूची में दर्ज किया जाता है।"(तफ़सीर अल-कुर्तुबी)
    • उथमान बिन अल-मुगी़रा पहली बात यह है कि वे सहाबी नहीं हैं, लेकिन वे छोटे दर्ज के ताबई हैं इस लिए यह रवायत मुर्सल है, और कुरान के ख़िलाफ़ है।
    • हाफ़िज़ इब्न कथीर इस हदीस का हवाला देते हैं और यह निर्णय लेते हैं की"यह रवायत मुर्सल है और ऐसी रवायत क़ुरआन के मुक़ाबले पेश नहीं की जा सकती।"
    • इसके अलावा इस रवायत में एक रावी(कथावाचक) अब्दुल्ला बिन सालेह़ भी हैं.
    • इसके बारे में मुह़द्दिसीन के पास इसके बारे में बहुत सख़्त अक़वाल हैं।
    • इस शब-ए-बारात की फ़ज़ीलत में जो एक और रिवायत बयान की जाती है, उसे बकी़अ़ का वाक़या कहा जाता है

    • और इत्तेफ़ाक (संयोगवश) यह एकमात्र रवायत है जो तिर्मिज़ी और इब्न माजा में और सहाह सित्ता में पाई जाती है।
    • जहां तक इब्न माजा का सवाल है, भारत और पाकिस्तान के कुछ बाद के विद्वान उन्हें साहिह में शामिल मानते हैं, अन्यथा, हाफिज इब्न हजर, शाह वलीउल्लाह, शाह अब्दुल अज़ीज़, शेख अब्दुल हक़ मुहद्दिस देहलवी सहित ज़्यादा तर मुहद्दिसीन,विद्वान और मुह़की़की़न और अन्य, उसे साहिह सित्ता से बाहर क़रार देते हैं
    • जहाँ तक इमाम तिर्मिज़ी का सवाल है, वह साहिब ए इल्म और फन ए रज्जाल थे।इमाम तिर्मिज़ी ने अपनी जामअ़ में सैय्यदा आयशा से इस घटना का वर्णन इस प्रकार किया है:
    • "जब शाबान की आधी रात थी, तो मैंने पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) को बिस्तर पर नहीं पाया। मैंने उनका पीछा किया और वह बकी़अ में खड़े थे। कुछ देर बआ़द वह लौटे और कहा: "ऐ आयशा! क्या तू यह सोचती है कि अल्लाह के रसूल तुम्हारे साथ ज्यादती करेगें। सैय्यदा आयशा ने कहा, "नहीं, या अल्लाह के रसूल मुझे लगा कि आप अपनी किसी और बीवी के पास तशरीफ ले गए थे।" उन्होंने कहा, "ऐ आयशा! आप जानती हैं कि आज कौन सी रात है? आज आधे शाबान की रात है। इस रात में, अल्लाह तआ़ला बनू क्लब की भेड़ों के बालों से भी अधिक लोगों को माफ कर देता है।''
    • यहां तक सभी लोग तिर्मिज़ी की रिवायत बयान करते हैं, लेकिन इसके बाद इमाम तिर्मिज़ी ने जो फैसला सुनाया, उसे "शीर मादर" समझ कर हज़म कर जाते हैं

    Continue....to part: Read here part:2


    Conclusion:

    अब तो हम समझ ही गए होंगे की Shab e baraart ki haqeeqat क्या है और शब ए बरात के नाम पर शबान की रात में जो इबादत की जाती है दर असल वह इबादत की रात रमज़ान के दिनों और आखरी अशरे में आती है! और शब ए बरात से मुतअल्लिक़ जो भी रिवायतें पेश की जाती हैं या तो वह ज़ईफ, मनघड़त हैं या आधी अधूरी हैं!और मौलवी हज़रात अपनी जेब और पेट भरने के लिए हक़ बात कभी बयान नहीं करेंगे नही तो उनकी दुकान बंद हो जाएगी.अगर ये मौलवी हज़रात अ़वाम में सही और पूरी हदीस पढ़ कर बयान कर देंगे तो अ़वाम शब ए बारात को कब्रिस्तान नही सजाएगी न हलवे बिरयानी बनाएगी और न रुसुमाती कामों मे फुजूल खर्च करेगी अगर आवाम ने ऐसा किया तो मौलवियों की दुकानें बंद हो जाएंगी..मौलवी कभी नही चाहेंगे कि उनकी दुकानें बंद हो..वो और बड़ा चढ़ा कर झूटी बातें आवाम में मक़बूल करेंगे।।
    अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला हमें साहीह दीन पर चलने,समझने और अ़मल करने की तौफीक अता फरमाए! आमीन या रब
    👍🏽        ✍🏻         📩         📤
    ˡᶦᵏᵉ    ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ    ˢᵃᵛᵉ      ˢʰᵃʳᵉ





    Frequently Asked Question:

    Que: क्या शबे बारात की रात में कुरान नाज़िल हुआ ?
    Ans: नही कुरान लैलातुल क़द्र में नाज़िल हुआ और लैलातुल कद्र की रातें रमज़ान में आती है ( सूरह दुखन आयत 3 और सूरह क़द्र आयत 1 देखें)

    Que : क्या इस रात में अल्लाह-तआ़ला पहले आसमान पर आते हैं और दुआ कुबूल करते हैं 
    Ans: अल्लाह-ताला साल की हर रात में पहले आसमान पर आते हैं और दुआ कुबूल करते हैं, बुखारी और मुस्लिम की हदीस देखें)।

    Que: क्या इस रात में इंसान का रिज़क, उमर, मौत का वक्त लिखा जाता है
    Ans: नही! ये सारे काम लैलतुल क़द्र में होते हैं जो रमज़ान में आती है !(सूरह दुखन आयत 4 - 5 देखें)

    Que: क्या रात में मुर्दो की रूहें अपने परिवार से मुलाकात करने आती है...
    Ans: अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है कि इन्तेक़ाल के बाद सभी रूहें या तू इल्लिइन या सिज्ज़िन में होती हैं और क़यामत तक वहां से बाहर नहीं आ सकती तो इस रात कैसे आएंगी (सूरह मुमिनून आयत 99 -100 देखें)।

    Que: क्या इस रात की कोई खास इबादत या नमाजें हैं ?
    Ans: नही! इस रात की कोई भी ख़ास नमाज़ या जिक्र कोई भी सही हदीस से साबित नहीं है ऐसा करना बिदअ़त में शामिल होगा ¡

    Que: क्या इस दिन का कोई ख़ास रोज़ा है ?
    Ans: ये भी किसी सही हदीस से साबित नहीं है, 15 शाबान को खास कर के रोजा रखना बिदअ़त है। हर महीने के 13, 14, 15 (अय्याम ए बीध) का रोजा रखना सुन्नत है)

    Que: क्या इस रात खास कर कब्रिस्तान जाना चाहिए ?
     Ans: ये भी किसी सही हदीस से साबित नहीं, 15 शाबान की रात में खास कर कब्रिस्तान जाना बिदअत है! 
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