Shab e baraat aur Zaeef Riwayat /शब ए बरात और ज़ईफ रिवायत
Shab e baraat aur Zaeef Riwayat
Shab e baraat aur Zaeef Riwayat को समझने के लिए सबसे पहले हमे शब ए बरात की फ़ज़ीलत को लेकर बिदअ़ती हज़रात जो ज़ईफ और मनघड़त रिवायतें बयान करते हैं उनके बारे में जानना और समझना ज़रूरी है!
Shabe barat ki haqeeqat dekhen is video me
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बिदअती मौलवियों का अपनी ही आवाम को धोखा देना ! शब ए बरात की फ़ज़ीलत को लेकर बिदअ़ती मौलवी अक्सर तिर्मिज़ी शरीफ की एक हदीस बयान करते हैं और वह हदीस यह है :Shabe barat ki haqeeqat dekhen is video me
Shab e baraat aur Zaeef Riwayat |
यही वो हदीस है जिसको बिदअ़ती मौलवी अपनी मस्जिदों के मिंम्बर पर खड़े होकर बहुत ज़ोर ओ शोर से बयान करतें है और शब ए बारात के रुसुमाती कामों के एवज इसी हदीस को दलील बनाते हैं !
Note: दीगर अइम्मा के अलावा खुद इमाम तिर्मिज़ी र.अ. ने भी इस रिवायत को ज़ईफ क़रार दिया है। ये रिवायत नक़ल करने के बआ़द इसके साथ ही वो लिखते हैं कि मैंने अपने उस्ताद मुहम्मद बिन इस्माइल बुखारी से सुना वो फ़रमाते थे कि ये रिवायत ज़ईफ है। क्या रिवायत को हज्जाज बिन इरतात ने याह्या बिन अबी कासिर से रिवायत किया, हालांकी हज्जाज का याह्या से समा (सुन्ना) साबित नहीं बल्कि जिंदगी में उनसे मुलाक़ात भी नहीं हुई। फिर यह रिवायत को उर्वह से नक़ल कर रहे हैं जबकी यहा का उरवह से समा (सुन्ना) भी साबित नहीं। इस तरह ये रिवायत 2 जगह से मुनक़तआ़ है। 2 जगह से मुनक़तआ़ रिवायत मुहद्दसिन की इस्तेलाह में शदीद दरजे की ज़ईफ़ रिवायत होती है। याद रहे कि क़िस्सा आयशा रज़ीअल्लाहु अन्हा जो रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के "बक़ी" में जाने या अहले बाक़ी के लिए दुआ करने के मुतल्लिक है वो सही है या सही मुस्लिम वग़ैरह में तफ़सीलन मौजूद है लेकिन इसमे शाबान की 15वीं रात का कोई ज़िक्र नहीं, (मुकम्मल वाकि़आ़ के लिए देखिये सही मुस्लिम, किताबुल जनाइज़, हदीस-974)
अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का आसमान दुनिया पर नजू़ल फरमाना
Shab e baraat aur Zaeef Riwayat"जब शअ़बान की 15वीं रात आए तो इस्मे क़याम किया करो और उसके दिन का रोज़ा रखा करो क्योंकि इस रात की शाम से ही अल्लाह तआ़ला आसमान दुनिया पर आकर फ़रमाता है-"क्या कोई मग़फि़रत त़लब करने वाला है कि मैं इसको मआ़फ़ कर दूं? क्या कोई रिज्क़ त़लब करने वाला है कि मैं इसको रिज्क़ दूं? क्या कोई बीमार है कि मैं आफियत दूं? क्या कोई सवाल करने वाला है ? क्या कोई......क्या कोई......यहां तक कि फज्र तूलू हो जाती है"(इब्ने माजा, हदीस-1388)
Note :अल्लामा अल्बानी र.अ. ने इस रिवायत को मोज़ू (मंघड़त) क़रार दिया है (सिलसिलेटल ज़ैफ़ा, हदीस-2132), इसके बजाय बुखा़री व मुस्लिम की हदीस में है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "हमारा बा बरकत वा बुलंद रब हर रात का जब आखिरी" तिहाई हिसा बाकी होता है तो वो आसमान-ए-दुनिया की तरफ नुज़ूल फरमाता है, फिर कहता है- *"कौन है जो मुझसे दुआ मांगे तो मैं उसकी दुआ को क़ुबूल करूँ? कौन है जो मुझसे सवाल करे तो मैं उसका उपयोग कैसे करूं? कौन है जो मुझसे माआ़फ़ी त़लब करे तो उसे मआ़फ़ करदू?"(सहीह बुखारी :1145, सहीह मुस्लिम :758)
और इस सहीह हदीस के मुताबिक ये फ़जी़लत हर रात नसीब हो सकती है क्योंकि अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला तो हर तिहाई रात आसमान ए दुनिया पर नजू़ल फ़रमाता है लिहाज़ा इसे शाबान की 15वीं रात के साथ ख़ास करना यक़ीनन ग़लती है!
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शाबान की 15वीं रात की इबादत
जिसने शाबान की 15वीं रात में 12 रकात नमाज़ अदा की और हर रकअत में 30 मर्तबा सूरह इख़लास पढ़ी तो वो जन्नत में अपनी जगह देख लेता है और अपने अहेल में से 10 जहन्नमियों के बारे में बताता है इसकी सिफ़ारिश कुबुल की जाती है"(अलमोज़ुआत लिल इब्ने जोज़ी, खण्ड-2, पृष्ठ-51, 52)
Note: इमाम इब्ने जोजी र.अ. ने इस रिवायत को "अल'मोज़ुआ़त" में ज़िक्र करने के बाद लिखा है कि ये रिवायत मोज़ू (मंघड़त) है!
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सलातुल अल्फिया की हकीकत
Shab e baraat aur Zaeef Riwayat सलातुल अल्फ़िया: जो शख़्स इस रात में 100 रकअ़त नमाज़ पढ़ता है, हर रकअ़त में सूरह फातिहा़ के बाद सूरह इख़लास 11 बार पढ़ता है अल्लाह तआ़ला उसकी हर हाजत पूरी कर देता है, अगर वो लोहे महफ़ूज़ में बद बख़्त लिख गया हो तो अल्लाह तआ़ला उसे मिटा कर उसे खुश नसीब लिख देता है...और उसके अंदर एक साल का गुनाह नहीं लिखा जाता''(अलमोज़ुआत लिल अब्ने जोज़ी, खण्ड-2, पृष्ठ-50, 51)
Note: अलमोज़ुआ़त" में इमाम इब्ने अल जोज़ी र.अ. इस हदीस के मुख़्तलिफ़ तुर्क ज़िक्र करने के बुरे लिखे हैं: इस रिवायत के मोज़ू (मंघड़त) होने में कोई शक नहीं !
ये और इस क़िस्म की दूसरी रिवायत जिनमें शाबान की 15वीं रात की इबादत की फ़ज़िलत बयां की गई है बिल इत्तेफ़ाक ज़ईफ़ और मंघड़त हैं। अइम्मा इकराम, जैसे इमाम शोकानी, इब्ने अल जोज़ी, इब्ने हिब्बन, क़ुर्तबी, और सुयूती र.अ. वग़ैरह ने रिवायत को नक़ाबीले ऐतबार क़रार दिया है। तफ़सीलात के लिए देखें: अल'फ़वायद अल मजमुआ, तफ़सीर क़ुर्तबी, अल'मोज़ुआत लिल इब्ने जोज़ी, वाग़ैरह।
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Conclusion:
बिदअ़ती मौलवियों का फ़रेब ये है कि..ये मौलवी महज़ अपने पेट की खा़तिर भोली भाली अ़वाम को गुमराह करते है अपने पेटों को भरने के लिए आधी अधूरी हदीस बयान करते हैं।
Shab e baraat aur Zaeef Riwayat अगर ये मौलवी हज़रात अ़वाम में सही और पूरी हदीस पढ़ कर बयान कर देंगे तो अ़वाम शब ए बारात को कब्रिस्तान नही सजाएगी न हलवे बिरयानी बनाएगी और न रुसुमाती कामों मे फुजूल खर्च करेगी अगर आवाम ने ऐसा किया तो मौलवियों की दुकानें बंद हो जाएंगी..मौलवी कभी नही चाहेंगे कि उनकी दुकानें बंद हो..वो और बड़ा चढ़ा कर झूटी बातें आवाम में मक़बूल करेंगे।।
अल्लाह हमें ऐसे दीन फरोख्त मौलवियों के साए से भी बचाना और दीन ऐ मुहम्मदी पर मज़बूती से चलने की ताक़त देना और सोचने समझने से जयादह अमल करने की तौफीक अता फरमाए ! आमीन
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
Frequently Asked Question:
Que : क्या इस रात में अल्लाह-तआ़ला पहले आसमान पर आते हैं और दुआ कुबूल करते हैं ?
Que: क्या इस रात में इंसान का रिज़क, उमर, मौत का वक्त लिखा जाता है
Que: क्या रात में मुर्दो की रूहें अपने परिवार से मुलाकात करने आती है...
Ans: अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है कि इन्तेक़ाल के बाद सभी रूहें या तू इल्लिइन या सिज्ज़िन में होती हैं और क़यामत तक वहां से बाहर नहीं आ सकती तो इस रात कैसे आएंगी (सूरह मुमिनून आयत 99 -100 देखें)।
Que: क्या इस रात की कोई खास इबादत या नमाजें हैं ?
Que: क्या इस दिन का कोई ख़ास रोज़ा है ?
Ans: ये भी किसी सही हदीस से साबित नहीं है, 15 शाबान को खास कर के रोजा रखना बिदअ़त है। हर महीने के 13, 14, 15 (अय्याम ए बीध) का रोजा रखना सुन्नत है)
Que: क्या इस रात खास कर कब्रिस्तान जाना चाहिए ?
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