Tauheed aur shirk part:1/तौहीद और शिर्क भाग:1
Tauheed Aur Shirk |
Tauheed aur shirk को समझने के लिए पहले हमे दीन की असल बुनियाद क्या है इसको समझना होगा ! इस्लाम या दीन की 5 फराईज़ या असल बुनियादें हैं ! शहादह यानी अकी़द ए तौहीद,नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात !और इन सभी में अक़ीद ए तौहीद इस्लाम की सबसे पहली और अह़म बुनियाद है क्योंकि इसके बगैर बन्दा की हर इ़बादत चाहे फ़र्ज़ हो या नफ़ली और बड़ी से बड़ी नेकी सब बेकार है
लिहाज़ा आखि़रत की नाकामी से बचने के लिए ज़रूरी है के इंसान को Tauheed Aur Shirk की पहचान हो
तौहीद यानी अल्लाह को एक जानना और एक मानना अल्लाह को उसकी ज़ात सिफ़ात उसकी इबादत और उसके हक़ूक़ में मुंफरीद यकता और बेमिशाल मानना ! इसके बआ़द बाक़ी फ़राईज़ हैं !
तौहीद की 3 किस्में है! आईए समझें कि यह तीन किस्में कौनसी हैं !
तौही़द ए रबुबियत
तौही़द ए रबूबियत से मुराद है अल्लाह को कायनात की हर चीज़ का ख़ालिक़ मालिक राज़िक़ और तमाम उमूर की तदबीर करने वाला जानना और मानना !
(ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) आप (मुशरिकीन से) पूछो के तुमको आसमान और ज़मीन में रिज़्क कौन पहूँचाता है, या तुम्हारे कानो और आंखों का मालिक कौन है और जानदार को बेजान से और बेजान को जानदार से कौन निकालता है, और तमाम कामों का इन्तेज़ाम कौन करता है, वो फ़ौरन कहेंगे के (ये सब काम करने वाला) अल्लाह है। तो उन से पूछो के फ़िर तुम (अल्लाह से) डरते क्यों नहीं!(कुरान 10:31)
इस्से पता चला मुशरिकीन ए मक्का तौहीद'ए'रुबू'बियत को मानते थे।
तौही़द ए उलूहियात
तौहीद उलूहियात से मुराद है अल्लाह ही हक़ीक़ी और अकेला माबूद है! यही वो तौहीद है जिसको मुशरिकीन मक्काह और हर दौर के मुशरिक मानने से इनकार करते है जैसे "नमाज़ रोज़ा हज क़ुरबानी दुआ़ नज़र नियाज़ ..... सिर्फ़ अल्लाह के लिए हो" (क़ुरआन 2:163)
तौहीद फ़िल इबादत क्या होती है ?
तौहीद फ़िल इबादत का मतलब है कि इबादत की तमाम क़िस्में (ज़बानी, माली और जिस्मानी) सिर्फ़ अल्लाह के लिए ही ख़ास है। (क़ुरआन 6:162-163)तौहीद फ़िल इ़बादत की कुछ मिसालें इस तरह हैं –• नमाज़ की तरह का क़ियाम या बाअदब हाथ बांध कर खड़े होना सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह के लिए है“और अल्लाह तआ़ला के लिए अदब से खड़े रहा करो” (क़ुरआन 2:238)• रुकूअ और सज्दा सिर्फ़ अल्लाह के लिए ही ख़ास है। (अबू दाऊद हo 2140)“ऐ ईमानवालों! रुकूअ सज्दा करते रहो और और अपने परवरदिगार की इबादत में लगे रहो और नेक काम करते रहो ताकि तुम कामयाब हो जाओ” (क़ुरआन 22: 77)• तवाफ़ (सवाब की नियत से काबा के चारों तरफ़ चक्कर लगाना) और एतिकाफ़ (सवाब की नियत से किसी जगह बैठना) सिर्फ़ अल्लाह के लिए ही ख़ास हैं। (क़ुरआन 2:125)रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “किसी क़ब्र पर बैठने से बेहतर यह है कि आदमी आग के अंगारे पर बैठ जाए जो इसके कपड़े और खाल तक को जला डाले” (मुस्लिम हo 2248)• नज़र, मन्नत वग़ैरह सिर्फ़ अल्लाह के लिए ही होने चाहिए, किसी नबी, वली, पीर या बुज़ुर्ग, के लिए नहीं होना चाहिए। (क़ुरआन 2:173)• क़ुर्बानी सिर्फ़ अल्लाह के नाम की ही होना चाहिए। (क़ुरआन 6:121,162; 108:2)रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि “अल्लाह ने लानत फ़रमाई है उस शख्स़ पर जो ग़ैरुल्लाह के नाम पर जानवर ज़िबह करे” (मुस्लिम हo 5124,5125)• दुआ़ सिर्फ़ अल्लाह से ही मांगना चाहिए। (क़ुरआन 2:186)नोमान बिन बशीर ؓ रिवायत करते हैं कि नबी ﷺ फ़रमाते हैं कि “दुआ़ इ़बादत है और फ़िर यह आयत तिलावत की तुम्हारा रब कहता है कि मुझसे दुआ़ करो मैं तुम्हारी दुआ़ क़ुबूल करूंगा और जो लोग मेरी इ़बादत से मुंह मोड़ते हैं मैं उन्हें जल्द ही रुसवा करके जहन्नम में डाल दूंगा” (तिरमिज़ी हo 3033)नोट: चूंकि दुआ़ इ़बादत है और इ़बादत सिर्फ़ अल्लाह की ही जायज़ है, लिहाज़ा अल्लाह के अलावा किसी और से दुआ़ मांगना, अल्लाह के साथ किसी और को शरीक करने के बराबर (यानी शिर्क) हुआ।• पनाह सिर्फ़ अल्लाह से मांगना चाहिए। (क़ुरआन सूरह 113,114)• तवक्कल और भरोसा सिर्फ़ अल्लाह पर ही करना चाहिए। (क़ुरआन 3:160, 8:64, 39:38)
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उमर इब्न ख़त्ताब ؓ रिवायत करते हैं कि नबी ﷺ ने फ़रमाया “अगर तुम लोग अल्लाह पर भरोसा करो जैसा भरोसा करने का हक़ है तो वह तुमको उस तरह रिज़्क़ देगा जिस तरह परिंदों को देता है। परिंदे सुबह ख़ाली पेट निकलते हैं और शाम को पेट भर कर लौटते हैं” (इब्न माजा हo 4164, तिरमिज़ी हo 2344)• रज़ा और ख़ुशनूदी सिर्फ़ अल्लाह से ही तलब करना चाहिए। (क़ुरआन 30:38)
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मुआविया ؓरजी़: ने आइशा रजी़ः से कुछ नसीहत के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि रसूलुल्लाह ﷺ फ़रमाते थे कि “जो शख्स़ लोगों की नाराज़गी मोल ले कर अल्लाह की रज़ा ढूंढता है तो अल्लाह उसे लोगों की तकलीफ़ से दूर कर देता है, और जो लोगों की रज़ा हासिल करने के लिए अल्ल्लाह की नाराज़गी मोल लेता है तो अल्लाह उसे लोगो के सुपुर्द कर देगा” (तिरमिज़ी हo 2231)
तौही़द ए अस्मा व सिफ़ात
तौहीद अस्मा व सिफ़ात से मुराद है अल्लाह ने क़ुरआन में अपने आप को मौसूफ़ किया या नबी सल्ललाहो अलैहि व सल्लम ने हदीस में ज़िक्र किया अल्लाह के अस्मा व शिफ़ाअत में किसी को शरीक न किया जाये! जैसे:- अल्लाह ने कहा ऐ इब्लीस तुझे उसे सजदह करने से किस चीज़ ने रोका जिसे मैंने अपने हाथो से पैदा किया (क़ुरआन 38:75)"रहमान अर्श पर क़ायम है" (क़ुरआन 20:5)"अल्लाह ने मूसा अ. से कलाम किया ”(क़ुरआन :164)”अल्लाह आसमानी दुनिया पर नज़ूल फ़रमाता है" (मुस्लिम: 758)"उस (अल्लाह) जैसी कोई चीज नहीं" (क़ुरआन 26:11)अल्लाह के अस्मा वा सिफ़ात को हक़ीक़त पर माहमूल करते हुए किसी क़िस्म की तवील, कैफ़ियत, ततील और तमसील के बग़ैर ईमान लाना तौहीद अस्मा वा सिफ़ात है।
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तौहीद फ़िस सिफ़ात
तौहीद फ़िस सिफ़ात का मतलब है कि अल्लाह अपनी सिफ़ात (विशेषताओं) में अकेला है, उसकी इन सिफ़ात में कोई भी मख़्लूक़ उसके साथ शरीक नहीं है।तौहीद फ़िस सिफ़ात की कुछ मिसालें इस तरह हैं –• कायनात की हर चीज़ का हक़ीक़ी मालिक और बादशाह सिर्फ़ अल्लाह है। (क़ुरआन 9:23)• ज़मीन और आसमान के सारे ख़ज़ानो का मालिक अल्लाह ही है। (क़ुरआन 6:50)• क़ियामत के दिन सिफ़ारिश की इजाज़त देने या न देने और सिफ़ारिश क़ुबूल करने या न करने का सारा इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह ही को होगा। (क़ुरआन 39: 43,44)अनसؓ फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने क़ियामत के दिन सिफ़ारिश से मुताल्लिक़ फ़रमाया कि “अल्लाह तआला मुझसे कहेगा कि तुम सिफ़ारिश करो तुम्हारी सिफ़ारिश क़ुबूल की जाएगी…..फ़िर मेरे लिए (सिफ़ारिश की) एक हद मुक़र्रर कर दी जाएगी..” (बुख़ारी हo 4476)
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Note: इस हदीस से पता चला कि नबी ﷺ के लिए भी सिफ़ारिश की एक हद होगी और वह अपनी मर्ज़ी से जिसकी चाहे उसकी सिफ़ारिश नहीं कर पाएंगे। लिहाज़ा कुछ लोगों का यह सोंचना कि फ़लां वली, पीर, बुज़ुर्ग मेरी सिफ़ारिश कर देंगे, बिलकुल ग़लत है।
• क़ियामत के दिन अच्छे और बुरे आमाल का बदला देने का इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह ही को होगा।(क़ुरआन 66:10)
आइशा ؓ से रिवायत है कि जब यह आयत उतरी कि ‘तू अपने घर वालों को (जहन्नम की आग से) डरा’ तो रसूलुल्लाह ﷺ सफ़ा पहाड़ पर खड़े हुए और फ़रमाया “ऐ फ़ातिमा, मुहम्मद की बेटी! और ऐ सफ़िया, अब्दुल मुतल्लिब की बेटी! और ऐ अब्दुल मुतल्लिब के बेटों! मेरे माल में से जो जी चाहे मांग लो लेकिन मैं अल्लाह के सामने (आख़िरत के मैदान में) तुमको नहीं बचा सकता।” (मुस्लिम हo 503)
Note: इस हदीस से यह भी मालूम हुआ कि जब अल्लाह के हबीब ﷺ अपनी चहेती बेटी को भी अल्लाह से नहीं बचा सकते तो फिर किसी वली, पीर, बुज़ुर्ग के बारे में यह अक़ीदा रखना कि वह अपने मुरीदों और शागिर्दों की बख़्शिश कराएंगे, सरासर गुमराही है।
• गुनाह मआ़फ़ करने या न करने का इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह ही को होगा। (क़ुरआन 9:80)उम्मुल अला रजी़ः कहती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया “अल्लाह की क़सम मैं नहीं जानता, हांलाकि मैं उसका रसूल हूँ, कि ख़ुद मेरे साथ क्या मामला होगा.” (बुख़ारी :1243 )• शरीअ़त बनाना यानी ह़लाल और हराम, जायज़ और नाजायज़, मुस्तहब और मकरूह वग़ैरह मुतइयन करने का इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह ही को है। (क़ुरआन 22:1)• इल्म-ए-ग़ैब सिर्फ़ अल्लाह ही को है और वह अपने रसूलों में से जिनको, जब और जितना चाहता है, ग़ैब का इ़ल्म अता कर देता है। (क़ुरआन 7:188, 3:179)• हर वक़्त हर जगह बन्दों की दुआ सुनने वाला सिर्फ़ अल्लाह है। (क़ुरआन 2:186)• दिलों में छुपी हुई बातें सिर्फ़ अल्लाह ही जानता है। (क़ुरआन 68:13,14)• दीन और दुनिया की तमाम भलाइयां अल्लाह ही के हाथ में हैं, जिसको चाहता है देता है और जिससे चाहता है छीन लेता है। (क़ुरआन 3:26)• बेटे और बेटियाँ देने वाला सिर्फ़ अल्लाह है। (क़ुरआन 42:49,50)• सेहत और शिफ़ा देने वाला सिर्फ़ अल्लाह है। (क़ुरआन 66:78,82)• फ़ायदे और नुक़्सान का मालिक सिर्फ़ अल्लाह है। (क़ुरआन 48:11)
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अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास ؓ फ़रमाते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने उन्हें कुछ नसीहत फ़रमाई कि “तुम अल्लाह के अहकाम की हिफ़ाज़त करो अल्लाह तुम्हारी हिफ़ाज़त करेगा, अल्लाह को याद करो तो उसे अपने साथ पाओगे, जब सवाल करो तो सिर्फ़ अल्लाह से सवाल करो, जब मदद मांगो तो सिर्फ़ अल्ल्लाह से मांगो, और अच्छी तरह जान लो कि अगर सारे लोग तुझे नफ़ा पहुचाने के लिए इकठ्ठा हो तो कुछ भी नफ़ा नहीं पहुचा सकेंगे सिवाए उसके जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है और अगर सारे लोग तुझे नुक़्सान पहुचाना चाहे तो तुझे कोई भी नुक़्सान नहीं पंहुचा सकते सिवाए उसके जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है।” (तिरमिज़ी हo 2329)
अल्लाह के अस्मा व सिफ़त को हक़ीक़त पे मोहमूल करते हुवे किसी क़िस्म की तावील कैफ़ियत तातील और तमसील के बग़ैर ईमान लाना तौहीद अस्मा व सिफ़त है !Tauheed Aur Shirk का ये पहला भाग है बाक़ी का आने वाली पोस्ट में !
Conclusion:
रियाकारी यानी लोगो को दिखाने के लिए जो अमल किया जाता है उसको हुजूर ए अक़दस मोहम्मद सल्लल्लालाहो अलैहे वसल्लम ने शिर्क फ़रमाया है, लेकिन शिर्क ऐसा नही की जिस से ईमान ख़त्म हो जाये, इसीलिए इसको शिर्क ए असगर फ़रमाया ! शिर्क ए असगर का अमल बेशक क़ाबिले मज़म्मत है ऐसा करने वाला सख़्त से सख़्त अज़ाब का हक़दार है उसका अमल दरबारे इलाही मे ना - क़ाबिल ए क़ुबूल है उसका अमल उसके मुंह पर मार दिया जाएगा ! ऐसा अमल करनेवाला को सवाब के बदले अज़ाब मिलेगा वो सख़्त गुनाहगार है।
रियाकारी यानी लोगो को दिखाने के लिए जो अमल किया जाता है उसको हुजूर ए अक़दस मोहम्मद सल्लल्लालाहो अलैहे वसल्लम ने शिर्क फ़रमाया है, लेकिन शिर्क ऐसा नही की जिस से ईमान ख़त्म हो जाये, इसीलिए इसको शिर्क ए असगर फ़रमाया ! शिर्क ए असगर का अमल बेशक क़ाबिले मज़म्मत है ऐसा करने वाला सख़्त से सख़्त अज़ाब का हक़दार है उसका अमल दरबारे इलाही मे ना - क़ाबिल ए क़ुबूल है उसका अमल उसके मुंह पर मार दिया जाएगा ! ऐसा अमल करनेवाला को सवाब के बदले अज़ाब मिलेगा वो सख़्त गुनाहगार है।
Continue....
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
Frequently Asked Questions:
1. तौही़द क्या है?
तौही़द यानी अल्लाह को एक जानना और एक मानना, अल्लाह को उसकी ज़ात सिफ़ात उसकी इबादत और उसके हक़ूक़ में मुंफरीद यकता और बेमिशाल मानना
2.शिर्क क्या है ?
शिर्क का मतलब होता है हिस्सेदार या साझेदार ! यानी यह हुआ कि किसी और को अल्लाह के समान समझना, या किसी को अल्लाह की जा़त, सिफ़ात और इ़ल्म के साथ जोड़ना, यह अ़की़दह रखना कि वह शिफातों में भी अल्लाह जैसा है। इस्लाम में शिर्क बहुत बड़ा पाप है!
3.काफ़िर का मत़लब क्या है?
काफ़िर शब्द कुफ्र से निकला है जिसका मत़लब होता है इंकार करने वाला, न मानने वाला,यकीन न करने वाला! काफ़िर शब्द सिर्फ किसी एक धर्म के मानने वाले या गैर मुस्लिमों के लिए ही इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है! ये हर इस वयक्ति के लिए कहा जा सकता है जो अपनी धार्मिक किताब के अनुसार बताए मार्ग या रास्ते पर ना चले या धार्मिक किताब के अनुसार ईश्वर या अल्लाह की पूजा या इ़बादत ना करे!
4.इस्लाम में शिर्क की सज़ा क्या है?
अल्लाह का फ़रमान है कि:और जान रखो कि जो शख़्स अल्लाह के साथ शिर्क करेगा अल्लाह उस पर जन्नत को ह़राम कर देगा और उसका ठिकाना दोजख़ है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं।
5.क्या इस्लाम में कोई अक्षम्य पाप है?/इस्लाम में किस गुनाह की माआ़फ़ी नहीं ?
शिर्क एक अक्षम्य पाप है यानी इस गुनाह की कोई माआ़फ़ी नहीं है अगर कोई इससे तौबह किए बग़ैर ही मर जाता है ! वास्तव में, अल्लाह दूसरों को अपने साथ इ़बादत में शामिल करने को मआ़फ़ नहीं करता है, और जो चाहे उसे मआ़फ़ कर देता है। और जिसने दूसरों को अल्लाह का साझी बनाया उसने बहुत बड़ा पाप किया! जिसकी कोई माआ़फ़ी नहीं है !
6.क्या शिर्क करने वालों की कोई नेकी क़बूल होगी ?
शिर्क कितना अज़ीम गुनाह है कि अल्लाह तआ़ला ने आम इन्सान तो क्या नबीयों तक को भी नसीहत कर दी कि अगर तुमने शिर्क किया तो हम तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे !"और अगर वो लोग शिर्क करते तो जो अमल वो करते थे सब बेकार हो जाते ! तो फिर हम आम इंसानों की क्या हैसीयत है! शिर्क करने वाले की कोई भी नेकी कबूल नहीं की जाएगी !
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