Qayam e Ramzan, Taraweeh/ क़याम ए रमज़ान, तरावीह
क़याम-ए-रमज़ान और तरावीह: सहीह जानकारी और मसाइलतरावीह, तहज्जुद, क़याम-ए-रमज़ान और क़याम-उल-लैल एक ही नमाज़ के अलग-अलग नाम हैं। आम लोगों में यह भ्रम है कि ये अलग-अलग नमाज़ें हैं, जबकि सहीह हदीसों और सुन्नत की रोशनी में यह स्पष्ट होता है कि Qayam e Ramzan, Taraweeh ये सभी एक ही इबादत के विभिन्न नाम हैं।
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तरावीह का अर्थ और महत्व
तरावीह रमज़ान के महीने में ईशा की नमाज़ के बाद अदा की जाने वाली एक नफ़ली इबादत है। अरबी भाषा में "तरावीह" का अर्थ "आराम या ठहरना" होता है, यानी हर चार रकअ़त के बाद थोड़ा ठहरकर, इत्मीनान और सुकून के साथ नमाज़ जारी रखी जाती है।रमज़ान एक रहमत, बरकत और मग़फिरत का महीना है, और इस महीने में तरावीह पढ़ने का असल मक़सद अल्लाह की इबादत करना, अपनी रूहानियत को मजबूत करना और मग़फिरत की दुआ करना है।
रसूलुल्लाह ﷺ और तरावीह
रसूलुल्लाह ﷺ ने तरावीह पढ़ने की तर्ग़ीब दिलाईहज़रत अबू हुरैरह (रज़ि०) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया:
"जिसने ईमान और सवाब की नियत से रमज़ान की रातों में नमाज़ (क़याम) पढ़ी, उसके पिछले गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे।"
(मुस्लिम: 1780)
इस हदीस से स्पष्ट होता है कि तरावीह की नमाज़ मुस्तहब (पसंदीदा) है, लेकिन फर्ज़ या सुन्नत-ए-मुअक्किदा नहीं।
रसूलुल्लाह ﷺ ने सिर्फ 3 रातों तक जमाअत के साथ पढ़ाई
रसूलुल्लाह ﷺ ने रमज़ान के आख़िरी अशरे में सहाबा को तीन रातों तक तरावीह की नमाज़ जमाअत से पढ़ाई। लेकिन चौथी रात आपने बाहर आकर फ़रमाया:
"मुझे डर हुआ कि कहीं यह नमाज़ तुम पर फ़र्ज़ न कर दी जाए।"
(बुख़ारी: 1129, 2012)
इससे पता चलता है कि नबी ﷺ ने तरावीह की पाबंदी नहीं की थी, बल्कि इसे नफ़्ली इबादत के तौर पर जारी रखा।
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Lailatul Qadr ki Raat |
तरावीह 20 और 8 तफ़सीली जाएज़ा
रसूलुल्लाह ﷺ ने 11 (8 + 3) से ज़्यादा नही पढ़ी :
आइशा (रज़ि०) से पूछा गया कि नबी ﷺ की रमज़ान में (रात की) नमाज़ कैसी होती थी। तो उन्होंने फ़रमाया 'रमज़ान हो या ग़ैर रमज़ान, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम 11 रक'अ़त से ज़्यादा नहीं पढ़ते थे। (बुख़ारी : 1147, 2013)
इस हदीस को इमाम बुख़ारी (रह०) ने 'तहज्जुद' (हदीस नंबर 1147) और 'तरावीह' (हदीस नंबर 2013) दोनों बाब में बयान किया है, जो इस बात की दलील है कि तहज्जुद और तरावीह एक ही नमाज़ के 2 नाम हैं।
इसके अलावा इस हदीस पर गुफ़्तगू करते हुए अनवर शाह कश्मीरी (रह०) लिखते हैं कि “तहज्जुद और तरावीह एक ही नमाज़ हैं और इनमें कोई फ़र्क़ नहीं है।"
(फ़ैज़ुल बारी ( बुख़ारी की शरह ) 2/420 )
जाबिर (रज़ि०) से रिवायत है कि 'हमें रसूलुल्लाह ﷺ ने रमज़ान में (रात की) नमाज़ पढ़ाई, आपने 8 रकअ़त और 3 वित्र पढ़ी।'{सहीह इब्ने ख़ुज़ैमा : 1070, सहीह इब्ने हिब्बान : 2401, 2402}
(मुस्नद अबू यअला : 1801)
रसूलुल्लाह ﷺ के दौर के बआ़द तरावीह:
एक दिन उमर (रज़ि०) रमज़ान की रात मस्जिद में गए तो वहां देखा कि कुछ लोग अकेले नमाज़ पढ़ रहे थे और कुछ लोग इकठ्ठा किसी इमाम के पीछे नमाज़ पढ़ रहे थे। तो उमर (रज़ि०) ने फ़रमाया कि “मेरा ख़्याल है कि अगर इन सब को एक क़ारी के पीछे जमा करूं तो ज़्यादा अच्छा होगा।” फ़िर उमर (रज़ि०) ने उबई बिन क़अब (रज़ि०) को इमाम बनाया और लोगों को उनके पीछे जमा किया।(बुख़ारी : 2010)
अमीरुल मोमिनीन सय्यदना उ़मर बिन ख़त्ताब (रज़ि०) ने उबई बिन कअ़ब (रज़ि०) और तमीम दारी (रज़ि०) को हुक्म दिया कि लोगों को (रमज़ान की रात में वित्र के साथ) 11 रकअ़त पढ़ाएं।
(मुवत्ता इमाम मालिक : 249, सुनन बैहक़ी : 2/496, मिश्कात : 1302)
अल्लामा ऐनी हनफ़ी {उम्दतुल क़ारी (बुख़ारी की शरह) 11/127},
अल्लामा ज़ैलई हनफ़ी - {नस्बुर राया 2/154},
नैमवी {आसारुस सुनन पेज 253}
इसी तरह इब्ने अबी शैबा में अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि०) से मरवी है कि रसूलुल्लाह ﷺ रमज़ान में 20 रकअत और वित्र पढ़ाते थे। इस रिवायत को भी कई उलमा ने ज़ईफ़/गढ़ी हुई हदीस कहा है। जैसे:
अल्लामा ज़ैलई हनफ़ी - { नस्बुर राया 1/153 },
इब्ने हमाम {फ़हुल क़दीर 1/333}
उ़लमा के अक़वाल 8 रकअ़त तरावीह
(1) मुल्ला अली क़ारी हनफ़ी (रह०) "इन सब का नतीजा यह है कि क़ियामे रमज़ान (तरावीह) वित्र मिला कर 11 रकअत जमाअ़त के साथ सुन्नत है। यह आप ﷺ का अ़मल है।”
{मिर्कातुल मफ़ातीह (मिश्कात की शरह) 3/382}
Qayam e Ramzan ,Taraweeh से मुतअ़ल्लिक़ मुख्त़लिफ उल्मा की राय
(2) इमाम त़हतावी (रह०) “क्योंकि नबी ﷺ ने 20 रकअ़त नहीं, बल्कि 8 रकअ़त पढ़ी हैं।"
{हाशिया तहतावी 1/295}(3) मौलाना अनवर शाह कश्मीरी (रह०) “इसके क़ुबूल करने से कोई छुटकारा नहीं है कि आप ﷺ की तरावीह 8 रकअ़त थी और किसी एक भी रिवायत से यह साबित नहीं है कि आप ﷺ ने रमज़ान में तरावीह और तहज्जुद अलग अलग पढ़े हों।”
{उर्फ़श शजी (तिर्मिज़ी की शरह ) 2/208}(4) मौलाना अब्दुल हई फ़रंगी महली लखनवी (रह०) “सहीह इब्न हिब्बान की रिवायत, जिसमें जाबिर (रज़ि०) फ़रमाते हैं कि नबी ﷺ ने रमज़ान में सहाबा को 8 रकअत और वित्र पढ़ाई, बिलकुल सहीह है।”
{तअलीकुल मुमज्जद ( मुवत्ता इमाम मुहम्मद की शरह ) पेज 91}(5) मौलाना अब्दुश शकूर लखनवी (रह०) “अगरचे नबी ﷺ से 8 रकअत तरावीह मस्नून है और एक ज़ईफ़ रिवायत में इब्न अब्बास (रज़ि०) से 20 रकअत भी मनकूल है।”
{हाशिया इल्मुल फ़िक़्ह पेज 195}
तरावीह की तअ़दाद ताबिईन वग़ैराह से कितनी रकअ़त
इमाम तिर्मिज़ी (रह०) : और उलमा का क़ियामे रमज़ान (यानी तरावीह की तअ़दाद) में इख़्तिलाफ़ है।”{सुनन तिर्मिज़ी : 806 के तहत}
अल्लामा बदरुद्दीन ऐनी हनफ़ी (रह०) ने उम्दतुल क़ारी (बुखारी की प्रसिद्ध शरह) में यह बयान किया कि तरावीह की रकअ़तों के बारे में उलमा का इख़्तिलाफ़ है। उन्होंने ताबिईन और तबा ताबिईन के ज़माने से अलग-अलग अमल बयान किए, जो 11 से 47 रकअ़त तक मिलते हैं। इसका मतलब यह है कि तरावीह की रकअ़तें कोई मुज्मा अलैह (सर्वसम्मत) मसला नहीं, बल्कि इसमें गुंजाइश मौजूद है।
यज़ीद बिन अस्वद (रह०) से 47 रकअ़त:
- यह बयान दर्शाता है कि कुछ सलफ़ (पूर्वज) ज्यादा रकअ़तें पढ़ते थे, जिससे यह साबित होता है कि इसमें आसानी और इज्तिहाद की गुंजाइश थी।
- हालांकि, यह आम अमल नहीं था, बल्कि एक इज्तिहादी मसला था।
इमाम मालिक (रह०) से 38 रकअ़त:
इमाम मालिक (रह०) ने अहले मदीना के अमल को आधार बनाकर 36 या 38 रकअ़त का जिक्र किया।
मुवत्ता इमाम मालिक में हज़रत उमर (रज़ि०) के दौर में 20 रकअ़त का जिक्र है, मगर बाद में मदीना वालों ने अधिक पढ़ना शुरू किया।
इमाम मालिक (रह०) का एक अन्य क़ौल 11 रकअ़त का भी है।
मदीना वालों का अमल 41 रकअ़त:
यह अहले मदीना का एक अमल था, जो कि शायद 36 रकअ़त तरावीह और 5 रकअ़त वितर पर आधारित था।
यह दिखाता है कि उस समय लोग अतिरिक्त इबादत की भावना रखते थे।
उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह०) के दौर में 39 रकअ़त:
उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ (रह०) के शासनकाल में मस्जिदे नबवी में यह अमल प्रचलित था।
इसका मकसद रमज़ान में ज्यादा इबादत को बढ़ावा देना था।
सईद बिन जुबैर (रह०) से 24 रकअ़त:
यह भी दर्शाता है कि तरावीह की संख्या में लचीलापन था और सहाबा व ताबिईन अपने हालात के अनुसार इसे अदा करते थे।
इसमें 20 रकअ़त तरावीह और 4 रकअ़त अतिरिक्त नफ़्ल हो सकते हैं।
अबू मिज्लस (रह०) से 16 रकअ़त:
यह अमल उन लोगों का था जो हल्का और संतुलित तरज़े से तरावीह पढ़ते थे।
इससे यह साबित होता है कि इस मामले में संख्या का कोई निश्चित पैमाना नहीं था।
मुहम्मद बिन इस्हाक़ (रह०) से 13 रकअ़त:
यह 8 रकअ़त तरावीह और 3 रकअ़त वितर पर आधारित हो सकता है।
यह भी नबी (ﷺ) की 11 या 13 रकअ़त की हदीस से मेल खाता है।
हदीस से दलील:
सहीह बुख़ारी (2010) और सहीह मुस्लिम में है कि हज़रत आयशा (रज़ि०) ने कहा:
"नबी (ﷺ) रमज़ान और रमज़ान के अलावा 11 रकअ़त से ज़्यादा नहीं पढ़ते थे।"
(बुख़ारी: 1147, मुस्लिम: 738)
→ इससे 11 रकअ़त की दलील मिलती है।
मगर सहाबा और ताबिईन ने 20 या उससे ज़्यादा रकअ़तें पढ़ीं, जो इज्तिहादी मसला है।
→ हज़रत उमर (रज़ि०) के दौर में 20 रकअ़त का आमल था (मुवत्ता इमाम मालिक: 1/114)।
इज्मा का मसला:
अहले मदीना का एक दौर 36 या 41 रकअ़त का था, जो दर्शाता है कि ज़्यादा रकअ़त भी अपनाई गईं।
हनफ़ी फिक़्ह में 20 रकअ़त को इज्मा से साबित किया जाता है।
अल्लामा ऐनी (रह०) ने यह बयान कर के बताया कि तरावीह की रकअ़तों की निश्चित संख्या पर इत्तिफ़ाक़ नहीं है, बल्कि इसमें लचीलापन है।
अगर कोई 11 पढ़े, तो सुन्नत के मुताबिक़ पढ़ रहा है।
अगर कोई 20 या उससे ज़्यादा पढ़े, तो भी सहाबा और ताबिईन के अमल के मुताबिक़ सही है।
इसलिए इसे जब्र (अनिवार्य) नहीं किया जा सकता, बल्कि यह अमल की सहूलत और इस्तिताअत (सामर्थ्य) पर निर्भर है।
Conclusion:
इन सबका निचोड़ यह है कि जो लोग यह दावा करते हैं कि 20 रकअ़त पर उम्मत का इज्मा है, उनका दावा बे-बुनियाद है। रकअ़त की तअ़दाद में इख़्तिलाफ़ की वजह यह हो सकती है कि क़ियामे रमज़ान एक नफ़्ल इबादत है, इसलिए इन हज़रात ने कोई तअ़दाद मुक़र्रर नहीं की थी। लेकिन तरावीह की सुन्नत तअ़दाद 11 रकअ़त (वित्र मिलाकर) ही है जैसा कि ख़ुद नबी ﷺ और उ़मर (रज़ि०) से साबित है।
अल्लाह हम सब को रसूल अल्लाह ﷺ की सुन्नत 11 रकअ़त (8 रकअ़त तरावीह व 3 वित्र) पर अ़मल पैरा होने की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए। आमीन
जिसने प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बताए तरीक़े के अनुसार ग्यारह रकअ़त नमाज़ पढ़ी उसने सुन्नत का पालन किया। और जिसने रकअ़तों की तअ़दाद को बढ़ा दिया, तो उसने भी अच्छा किया। और इन दोनों चीजों में से किसी एक को भी करने वाले की निंदा नहीं की जाएगी।चुंकी ये नफ्ली इबादत है आप रात में जितना चाहें पढ़ें !
एक और खास बात की जो 8+3 रकअत पढ़ाते हैं उनके कुरआन पढ़ने,किरआत करने का अंदाज और त़रीका़ देखें वो बिलकुल सकून और तवज्जाह के साथ क़ुरआन की तिलावत करते हैं और जो 20 रकअ़त पढ़ाते हैं उनके क़ुरआन पढ़ाने और किरआत का अंदाज देखें के कितनी तेज़ी के साथ वो तिलावत करते है की नमाज़ी समझ नही पाते को कौनसी आयत पढ़ी जा रही है,चुंकी उन्हें क़ुरआन ख़त्म करना होता है तो तेज़ी से किरआत करते हैं जबकि नमाज़ को ख़ुशूअ़ व ख़ुज़ूअ़ यानी सकून से अदा करने की बात कही गई है
जैसे यह वीडियो देखें .....
20 क्या इससे भी ज़्यादा रकअत पढ़ें लेकिन सकून से पढ़ें ! नफ़ली इबादत जितनी कीजियेगा उतना ही अजर मिलेगा.
शैखुल इस्लाम इब्ने तैमिय्या ने कहा :
यदि किसी व्यक्ति ने तरावीह (Qayam e Ramzan, Taraweeh) की नमाज़ अबू हनीफा, शाफ़ेई और अहमद के मत के अनुसार बीस रकअ़त, या इमाम मालिक के मत के अनुसार छत्तीस रकअ़त, या तेरह रकअ़त या ग्यारह रकअ़त पढ़ी, तो उसने अच्छा किया, जैसा कि इमाम अहमद ने इसे स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है, क्योंकि शरीयत में इसकी संख्या निर्धारित नहीं की गई है। तो रकअतो की संख्या को अधिक या कम करना क़ियाम (नमाज़ में खड़े होने) के लंबे और छोटे होने के हिसाब से होगा।''अल-इख्तियारात'' (पृष्ठः 64).
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
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