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Sehri aur iftaar ki Dua/सेहरी और इफ़्तार की दुआ

"रोज़ा खोलते , अफ़्तार के वक़्त की दुआ: ذَهَبَ الظَّمَأُ وَابتَلَّتِ العُروقُ ، وَثَبَتَ الْأجْرُ إِنْ شَاءَ اللهُ ज़हा-बज़्ज़मओ वब्बतल्लतिल उरूक़ो व सब-तल अज्रो इन शा अल्लाह" प्यास चली गई, रगें तर होगईं और यदि अल्लाह तआला ने चाहा तो नेकी भी मिलेगी इंशॉल्लाह,

Sehri aur iftaar ki Dua/सेहरी और इफ़्तारी की दुआ 

Sehri aur iftaar ki Dua/सेहरी और इफ़्तार की दुआ

Sehri aur iftaar ki Dua
 


Sehri aur iftaar ki Dua से मुतअल्लिक़ जानने से पहले आएं एक हदीस देखें और फिर फैसला करें की हम कहीं सेहरी और इफ्तार के बनावटी दुआ के चक्कर में शायद अपनी नेकियां तो बर्बाद नही कर रहे हैं न और हमे इसकी ख़बर भी न हो!




नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया : इब्ने-आदम के हर नेक अ़मल को दस गुना से सात सौ गुना तक बढ़ा दिया जाता है। अल्लाह तआ़ला फ़रमाता है : रोज़े के सिवा; क्योंकि वो मेरे लिये है और में ही उसका बदला दूँगा वो अपनी ख़ाहिश और अपने खाने को मेरी वजह से तर्क करता है। रोज़ेदार के लिये दो ख़ुशियाँ हैं। एक फ़रहत और ख़ुशी तो उसके इफ़्तार के वक़्त है। जबकि एक ख़ुशी अपने रब से मुलाक़ात के वक़्त है। और रोज़ेदार के मुँह की बू अल्लाह के यहाँ मुश्क की ख़ुशबू से भी ज़्यादा बेहतर है। और रोज़ा ढाल है। जिस दिन तुममें से किसी का रोज़ा हो तो वो बद-गोई से बचे, अगर कोई उसे बुरा-भला कहे या उससे लड़ाई झगड़ा करे तो वो कहे कि में रोज़ेदार हूँ। (मुत्तफ़क़ अलैह) मिश्कात मसाबीह:1959

अब आप ज़रा गौर करें की यह जो इ़बादत है इसकी अहमियत और फज़ीलत इतनी बड़ी है की इसका अजर इसका बदला खुद अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला देगा तो फिर क्यों हम सेहरी और रोज़े इफ्तार की बनावटी दुआ के चक्कर में बिदअ़ती अ़मल करके अपने अ़माल और रोज़ा की अज़ीम नेकियों को बरबाद करें और अल्लाह को नाराज़ करें.हमारे यहां रमजान में Sehri aur iftaar ki Dua से मुतल्लिक जो दुआ मशहूर है वो हदीस से साबित नहीं।

नियत दिल के इरादे का नाम है। नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लमका का फ़रमान है। आप (सल्ल०) ने फ़रमाया कि तमाम अ़माल का दारोमदार नीयत पर है और हर अमल का नतीजा हर इन्सान को उसकी नीयत के मुताबिक़ ही मिलेगा। (बुखारी :1)

"नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: सेहरी खाया करो क्योंकि सेहरी खाने में बरकत है,मोमिन की बेहतरीन सेहरी खजूर है

सेहरी की कोई भी दुआ़ हदीस से साबित नही

दुआ़ एक इ़बादत है और इ़बादत हमें उसी त़रीके़ से करनी है जो त़रीक़ा हमें हमारे नबी ﷺ ने सिखाया है। और हमारे नबी ﷺ ने सेहरी की कोई दुआ़ नी बताई। यह दुआ़ जो हमारे मुआ़शरे में पढ़ी जाती है

Sehri aur iftaar ki Dua/सेहरी और इफ़्तार की दुआ
Sehri ki ghalt Dua 




وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ

(मैने माह ए रमज़ान के कल के रोज़े की नियत की)
इसका तर्जमा ही पढ़ने से समझ में आ रहा है की ये बनावटी है, आप रोज़ा आज रख रहे हैं और नियत कल की की जा रही
यह सहरी की दुआ इजाद की हुई है इसकी कोई दलील नही है लिहाज़ा यह बिदअ़त है हमारे अ़मल तबी कुबूल होंगे जब वो रसूल ﷺ के सुन्नत के मुताबिक होंगे।


आपका सहरी के लिए उठना ही नियत में शुमार है। और दिल में नियत यह कर लें की आज का रोज़ा रखना है यही आप की रोज़े की नियत हो गई ,ज़ुबान से कुछ पढने की ज़रूरत नही ! बिस्मिल्लाह करें और जो मयस्सर हो खा लें।नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: जब तुम में से कोई खाना खाने लगे तो " बिस्मिल्लाह " पढ़े (तिर्मजी:1858)


लिहाजा : सेहरी के लिए किसी ख़ास दुआ़ का एहत्माम करना ज़रुरी नहीं। दीन में हर नयी चीज़ बिदअ़त है। तो क्यों हम बनावटी दुआ़ के चक्कर में अपने अ़माल बर्बाद करें
Note: जिस दिन हमे रोज़ा रखना है उस दिन दिल में ये नियत ज़रूर करनी है की आज का रोज़ा हमे रखना है नही तो हमारा रोज़ा ही नही होगा! कई लोग ऐसे है की सुबह जल्दी में उठे और कुछ खाए और फिर सो गए कुछ तो ऐसे हैं की जब सेहरी का वक्त ख़त्म होने को होता है तो उठते हैं,बिस्तर से बाहर ही नही होते और पानी पिए, सो गए !ये दिल में नियत ही नही की के आज का रोज़ा हमे रखना है ऐसे में रोज़ा बेगैर नियत का क़बूल ही नही होगा

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सेहरी से मुतअल्लिक़ कुछ अहादीस

अनस (राज़ी:) से रिवायत है की इफ़्तार में जल्दी करो और सेहरी में ताखे़र करो ! (अल्सिलसिला:2233)

हज़रत अनस (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : सेहरी खाया करो क्योंकि सेहरी खाने में बरकत है। (मुत्तफ़क़ अलैह) मिश्कात:1982

हज़रत अम्र-बिन-आस (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : हमारे और अहले-किताब के रोज़ों में सेहरी खाने का फ़र्क़ है। (मुस्लिम) मिशकात अलमसाबीह1983

हज़रत अरबाज़-बिन-सारिया (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने रमज़ान में मुझे सेहरी की दावत देते हुए फ़रमाया : मुबारक खाने की तरफ़ आओ। अबू-दाऊद और नसाई मिशकात अलमसाबीह:1997

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : मोमिन की बेहतरीन सेहरी खजूर है। (अबू-दाऊद) (मिशकात अलमसाबीह:1998)

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत है कि नबी (सल्ल०) जब सफ़र में होते और सेहरी का वक़्त होता, तो आप ﷺ फ़रमाते : सुनने वाले ने सुन लिया कि हमने अल्लाह की हम्द बयान की उसकी नेमतें हम पर अच्छी हैं। हमारे रब! हमारी मदद फ़रमा और हम पर मज़ीद एहसानात फ़रमा, हम जहन्नम से अल्लाह की पनाह चाहते हैं। (मुस्लिम) 
(मिशकात अलमसाबीह 2424)

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इफ़्तार करते वक़्त की दुआ

हज़रत इब्ने-उमर (रज़ि०) बयान करते हैं कि जब नबी (सल्ल०) रोज़ा इफ़्तार करते तो आप ये दुआ पढ़ा करते थे : (अबू-दाऊद)1993


Sehri aur iftaar ki Dua
Iftaar ki dua 

ذَهَبَ الظَّمَأُ وَابتَلَّتِ العُروقُ ، وَثَبَتَ الْأجْرُ إِنْ شَاءَ اللهُ

Zahabaz Zam’ou Wab’tallatil Ouru’qu Wa Sabatal Ajru In shaa Allah.”

‘‘ज़हा-बज़्ज़मओ वब्बतल्लतिल उरूक़ो व सब-तल अज्रो इन शा अल्लाह"
प्यास चली गई, रगें तर होगईं और यदि अल्लाह तआला ने चाहा तो नेकी भी मिलेगी इंशॉल्लाह

इसे अबू दाऊद (हदीस संख्या : 2357) और दारक़ुत्नी (हदीस संख्या : 25) ने रिवायत किया है और इब्ने हजर ने ''अत-तल्खीसुल हबीर'' (2/202) में कहा है कि : ''दारक़ुत्नी ने फ़रमाया: इसकी इसनाद हसन दर्जे की है।''


इफ्तार से मुतल्लिक कुछ अहादीस


हज़रत उमर (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जब रात इस तरफ़ से आ जाए और दिन इस तरफ़ पलट जाए और सूरज डूब जाए तो रोज़ेदार को चाहिये कि वो इफ़्तार करे। (मुत्तफ़क़ अलैह) (मिशकात अलमसाबीह:1985)

हज़रत सलमान-बिन-आमिर (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जब तुममें से कोई इफ़्तार करे तो वो खजूर से इफ़्तार करे क्योंकि वो वजह बरकत है। अगर वो न पाए तो फिर पानी से इफ़्तार कर ले क्योंकि वो वजह पाकीज़गी है। अहमद तिरमिज़ी अबू-दाऊद दारमी लेकिन उन्होंने ये नहीं कहा : क्योंकि वो वजह बरकत है। सिर्फ़ इमाम तिरमिज़ी ने ये अलफ़ाज़ एक दूसरी रिवायत से नक़ल किये हैं। अह़मद और तिरमिज़ी और अबू-दाऊद और इब्ने-माजा और दारमी (मिशकात अलमसाबीह:1990)

हज़रत अनस (रज़ि०) बयान करते हैं कि नबी (सल्ल०) नमाज़ (मग़रिब) पढ़ने से पहले कुछ ताज़ा खजूरों से इफ़्तार किया करते थे। अगर ताज़ा खजूरें न होतीं तो फिर कुछ छुआरों से और अगर छुआरे न होते तो फिर पानी के कुछ घूँट पी लिया करते थे। तिरमिज़ी अबू-दाऊद और इमाम तिरमिज़ी ने फ़रमाया : ये हदीस हसन ग़रीब है। तिरमिज़ी और अबू-दाऊद। (मिशकात अलमसाबीह:1991)

हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जब तक लोग इफ़्तार करने में जल्दी करते रहेंगे दीन ग़ालिब रहेगा क्योंकि यहूद और नसारा (इफ़्तार करने में) देरी करते हैं। अबू-दाऊद और इब्ने-माजा (मिशकात अलमसाबीह:1995)

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इफ्तार करने की ग़लत दुआ

اَللّٰهُمَّ اِنِّی لَکَ صُمْتَ اٰمَنْتُ وَعَلَيْکَ تَوَکَّ لْتُ وَعَلٰی رِزْقِکَ اَفْطَرْتُ



अल्लाहुम्मा इन्नी लका सुमत वा बिका अमंतु व 'अलैका तवक्कल्तू व 'अला रिज़्किका अफ़्तार्तु'।
हमारे कुछ भाई बहन इफ़्तार के बआ़द यह दुआ़ पढ़ते हैं जबकि ये दुआ़ सही हदीस से साबित नही है.इसको शेख़ अल्बानी ने अबू दाऊद,2358 में ज़ईफ कहा है !

रोजेदार ध्यान दें 

यह अक्सर देखा जाता है की सुबह सेहरी के वक्त और शाम को इफ्तार करते वक्त जयादह चिकनाई और मसालेदार चीज़ ही खाने में इस्तेमाल करते हैं ! रमज़ान के दिनों में कम चिकनाई वाले चीजे ही खाएं। दही, दाल, सूखा मेवा, हरी सब्जी, फल, कच्चा पनीर, दाल, दूध को अपने खाने में शामिल करें। रोज़ादार फाइबरयुक्त चीज़ों को अपने खाने में जरूर शामिल करें। रमज़ान के महीने में अपने खाने में प्रोटीन वाली चीज़ों को ज़्यादा से ज़्यादा शामिल करें, क्‍योंकि प्रोटीन खाने से कम भूख लगती है। इफ़्तार के वक्त खाते समय और खाने के बआ़द कम से कम पानी पिएं, क्योंकि ज्यादा पानी पीने से खाना पचता नहीं है।
तमाम लोग इफ़्तार के समय तली हुई चीजे ज्‍यादा खाते है लेकिन जिससे बचना चाहिए। दोनों समय तरल पदार्थो का ज़्यादा  से ज़्यादा इस्तेमाल करें ताकि गुर्दे स्वस्थ रहें। सहरी के समय आटे की रोटी, ताज़े फल आदि खाना सही रहेगा। ध्यान रहे सहरी के समय ज़्यादा चाय, कॉफी या सोडा न पीएं। साथ ही सहरी में बिरयानी, कबाब, पिज़्ज़ा, और फास्ट फूड्स न खाएं।

इफ्तार के दौरान खजूर जरूर खाएं, क्‍योंकि खजूर खाना सुन्नत भी है और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद भी। खजूर ऊर्जा का स्रोत होने के अलावा पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। खजूर में आयरन होता है, जिससे शरीर को ऊर्जा मिलती है।

अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला से दुआ है की हम सभी का ये रहमतों, बरकतों और मग़फि़रत वाला रमज़ान सेहत और सहीह सलामत के साथ गुज़रे ! आमीन या रब 


Conclusion:

 Sehri aur iftaar ki Dua और नमाज़ की ज़बानी निय्यत करने से मुतअ़ल्लिक़ कोई भी सहीह हदीस नही है और यही वजह है कि उलमा-ए-हक़ इस ज़बानी नियत से मना फ़रमाते हैं कि दीन में इसका कोई रूतबा नही और ना ही अहमियत है।
आएशा (राज़:) रिवायत करती हैं की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया " जिसने हमारे दीन में कुछ ऐसी बात शामिल की जिसपर हमारा अ़मल नही तो वह मरदूद है (बुखारी:2697 मुस्लिम: 1718)
और सुन्न कुबरा बैहकी 138 में है की तमाम बिदअ़तें गुमराही हैं अगर्चे बजा़हिर वोह लोगों को अच्छा लगे

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ˡᶦᵏᵉ    ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ    ˢᵃᵛᵉ      ˢʰᵃʳᵉ



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Frequently Asked Questions:

Que: सेहरी और इफ़्तार में क्या अंतर है?

Ans: रमज़ान के दिनों में रोज़ा रखने वाले सुबह की अज़ान से पहले उठ कर रोज़ा रखने यानी दिन भर भूखे रहने की नियत से कुछ खाते पीते हैं ताकि दिन भर भूखा रह सकें,यही सेहरी कहलाता है और शाम को जैसे ही मगरिब की अज़ान होगी तो खजूर और पानी से अपनी रोज़ा तोड़ देते हैं इसी को इफ्तार कहते हैं यानी अब खाने पीने की बिल्कुल छूट है सुबह तक!

Que: सेहरी खाने का टाइम क्या है?

Ans: सुबह की अज़ान होने से पहले तक सेहरी खाने का वक्त है.अगर कोई सेहरी खा रहा है अज़ान होने लगी तो वो अपनी सेहरी को पूरा कर ले यानी जो खा रहा है उसे पूरा करले फिर उठे!

Que: इफ्तार में क्या दुआ पढ़ी जाती हैं?

Ans: बिस्मिल्लाह पढ़ कर इफ़्तार शुरू करें और इफ्तार के बआ़द ये दुआ पढ़ें
Zahabaz Zam’ou Wab’tallatil Ouru’qu Wa Sabatal Ajru In shaa Allah.”
‘‘ज़हा-बज़्ज़मओ वब्बतल्लतिल उरूक़ो व सब-तल अज्रो इन शा अल्लाह"
प्यास चली गई, रगें तर होगईं और यदि अल्लाह तआला ने चाहा तो नेकी भी मिलेगी इंशॉल्लाह

Que: सेहरी का मतलब क्या होता है?

Ans: एक रोज़ादार रोज़ा रखने यानी दिनभर भूखा रहने के लिए सुबह फजर की अज़ान से पहले जो खाना खाता या नाश्ता करता है वही सेहरी कहलाता है !

Que:क्या सेहरी की कोई दुआ है ?

Ans: नही सेहरी की कोई दुआ सुन्नत से साबित नही है ! सिर्फ बिस्मिल्लाह पढ़े और सेहरी खा लें! ये जो सेहरी की दुआ है ये बनावटी दुआ है 
وَبِصَوْمِ غَدٍ نَّوَيْتُ مِنْ شَهْرِ رَمَضَانَ


Que: मुसलमान सेहरी क्यों करते हैं?

Ans: मुस्लमान सेहरी इस लिए करते हैं की दीन भर भूखा रहना है और इसके लिए कुछ खाना ज़रूरी है और दूसरी अहम बात ये है की रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : सेहरी खाया करो क्योंकि सेहरी खाने में बरकत है

Que: सेहरी क्यों महत्वपूर्ण है?

Ans: सेहरी एक रोजेदार के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: सेहरी खाया करो क्योंकि सेहरी खाने में बरकत है और दुसरी जगह फ़रमाया : हमारे और अहले-किताब के रोज़ों में सेहरी खाने का फ़र्क़ है। इस लिए सेहरी खाया करो !

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