Sehri ya Subah ka aaghaz /सेहरी या सुबह का आग़ाज़
Sehri ya Subah ka aaghaz |
हम अपनी Sehri ya Subah ka aaghaz कैसे करें ? आइए क़ुरान और सुन्नत की रोशनी में समझें ताकि हम अपनी सुबह का आग़ाज़ सहीह तरीक़े और अल्लाह की रह़मत और फ़ज़ल ओ करम के साथ कर सकें!
अगर फजर की अज़ान से आधा एक घंटा पहले अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला ने आप को उठने की तौफ़ीक़ दी तो सबसे पहले हम वजू़ करें और इस हदीस पर अमल करें !आयशा (रज़ि०) ने फरमाया : नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब रात को उठते थे तो सब से पहले ये कलिमात कहते !दस बार (الله أكبر) अल्लाह अकबरदस बार (الحمد الله), अल्हमदुलिल्लाहदस बार (سُبْحَانَ اللَّهِ وَبِحَمْدِهِ), सुब्हान अल्लाही व बिहम्दिहदस बार (سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ), सुब्हानल मलिकिल कु़द्दुसदस बार (استغفر الله), अस्तग़फि़रुल्लाहदस बार (لا إله إلا الله), ला ई लाह इल्लल्लाहफिर दस बार कहते (اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ ضِيقِ الدُّنْيَا، وَضِيقِ يَوْمِ الْقِيَامَةِ ) '(ऐ अल्लाह! मैं दुनिया और क़ियामत के दिन की तंगियों से तेरी पनाह चाहता हूँ )फिर नमाज़ शुरू फ़रमाते। (सुनन अबू दाऊद: 5085)
ये कालीमात पढ़ने के बआ़द हमें भी जितनी रकअ़त की तौफ़ीक़ मिले नमाज़ अदा कर लें!
दुआ़ और नमाज़ का क़बूल होना:
सही बुखारी और इब्न माजा में है की :
नबी करीम (सल्ल०) ने फ़रमाया, जो शख़्स रात को बेदार हो कर ये दुआ पढ़े
لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ ، لَهُ الْمُلْكُ ، وَلَهُ الْحَمْدُ ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ ، سُبْحَانَ اللَّهِ ، وَالْحَمْدُ لِلَّهِ ، وَلَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ ، وَاللَّهُ أَكْبَرُ ، وَلَا حَوْلَ وَلَا قُوَّةَ إِلَّا بِاللَّهِ الْعَلِيِّ الْعَظِيمِ ،
फिर ये पढ़े
( तर्जमा ) ऐ अल्लाह! मेरी मग़फ़िरत फ़रमा। या (ये कहा कि) कोई दुआ करे तो उसकी दुआ क़बूल होती है। फिर अगर उसने वुज़ू किया (और नमाज़ पढ़ी ) तो नमाज़ भी मक़बूल होती है।
(सही बुखारी:1154, इब्न माजा: 3778)
अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फरमान है:
और सेहरी के वक्त में वो अस्तग़फा़र करते है! (सुरत: ज़ारियत:18)
तौबा और अस्तग़फा़र की फ़ज़ीलत
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: जो शख्स यह कलिमात कहे तो अल्लाह ताला उसे बख़्श देता है, भले ही वो लड़ाई से भागा हो.यह है वो कलिमात:
اَسْتَغْفِرُاللّٰہَ الَّذِیْ لَآ اِلٰہَ اِلَّا ھُوَ الْحَیُّ الْقَیُّوْمُ وَاَتُوْبُ اِلَیْہِ
तर्जमा: मैं अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला से माआ़फ़ी मांगता हूं, जिसके सिवा कोई मआ़बूद नही, ज़िंदा है, कायनात का निगरान है और मैं उसी के हुज़ूर तौबह करता हूं! (तिर्मज़ी:3397)
अज़ान का जवाब और बआ़द की दुआ़
उसके बआ़द फजर की अज़ान हो तो क्या करें ? अज़ान का जवाब देना है ! अज़ान सुन कर वही अल्फाज़ कहें जो मोअज्जि़न कहता है सिवाए हैय्या अललसलात और हैय्या अललफलाह के इसके बदले ला हौल वला कूववत इल्लाह बिल्लाह पढ़ेंا
Sehri ya Subah ka aaghaz /सेहरी या सुबह का आग़ाज़ |
अब अज़ान का जवाब देने के बआ़द क्या करना है ? अज़ान का जवाब देने के बआ़द दरूद शरीफ़ यानी दरूद ए इब्राहीमी पढें
اَللّٰهُمَّ صَلِّ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَعَلٰی آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا صَلَّیْتَ عَلٰی اِبْرَاهِیْمَ وَعَلٰی آلِ اِبْرَاهِیْمَ اِنَّكَ حَمِیْدٌ مَجِیْدٌ اَللّٰهُمَّ بَارِکْ عَلٰی مُحَمَّدٍ وَعَلٰی آلِ مُحَمَّدٍ كَمَا بَارَکْتَ عَلٰی اِبْرَاهِیْمَ وَعَلٰی آلِ اِبْرَاهِیْمَ اِنَّكَ حَمِیْدٌ مَجِیْدٌ
फ़िर उसके बआ़द नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के लिए वसील वाली दुआ़ पढ़ें
اَللّٰھُمَّ رَبَّ ھٰذِہِ الدَّعْوَۃِ التَّآمَّۃِ وَالصَّلٰوۃِ الْقَآئِمَۃِ اٰتِ مُحَمَّدَاۨ الْوَسِیْلَۃَ وَالْفَضِیْلَۃَ وَابْعَثْہُ مَقَامًا مَّحْمُوْدَاۨ الَّذِیْ وَعَدْتَّہٗ (اِنَّکَ لَا تُخْلِفُ الْمِیْعَادَ)
दरूद और वसील वाली दुआ़ की फ़जी़लत
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है की जिसने मेरे लिए वासिला त़लब किया उसके लिए मेरी सफ़ाअ़त वाजिब हो गई! आइए हदीस देखें
हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अम्र-बिन-आस (रज़ि०) से रिवायत है कि उन्होंने नबी ﷺ को सुना, आप फ़रमाया रहे थे : "जब आप मुअज़्ज़न को सुनो तो उसी तरह कहो जैसे वो कहता है, फिर मुझ पर दुरूद भेजो क्योंकि जो मुझ पर एक बार दुरूद भेजता है, अल्लाह- उसके बदले में उसपर दस रहमतें नाज़िल फ़रमाता है, फिर अल्लाह से मेरे लिये वसीला माँगो क्योंकि वो जन्नत में एक मक़ाम है। जो अल्लाह के बन्दों में से सिर्फ़ एक बन्दे को मिलेगा और मुझे उम्मीद है। वो मैं हूँगा, चुनांचे जिसने मेरे लिये वसीला त़लब क्या उसके लिये (मेरी) शफ़ाअ़त वाजिब हो गई।"(सही बुखारी:614)
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दुनियां वा आखि़रत के लिए दुआ़ करना
फिर इसके बआ़द दुनियां वा आखि़रत के लिए दुआ मांगनी है क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है अज़ान और इका़मत के दरमायन की दुआ रद्द नहीं होती (तिर्माजी 212)
जैसे दुनिया और आखि़रत के लिए यह बेहतरीन दुआ़ है या और कोई दुआ़ जो आप चाहें मांग सकते हैं !
رَبَّنَا آتِنَا فِیْ الدُّنْیَا حَسَنَةً وَّفِیْ الْآخِرَةِ حَسَنَةً وَّقِنَا عَذَابَ النَّار
ऐ हमारे रब ! हमें दुनियां में भी भलाई अ़ता़ फ़रमा और आखि़रत में भी भलाई अ़ता़ फ़रमा और हमे आग के अजा़ब से बचा ले !
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फजर की दो रकअ़त सुन्नत और फ़र्ज़
फिर उसके बआ़द फजर की दो रकअ़त सुन्नत और फर्ज़ नमाज़ अदा करें! फजर की दो रकअ़त सुन्नत की कितनी बड़ी अहमियत और फ़जी़लत है इस हदीस से समझें
हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) अल्लाह तआला के फ़रमान : बेशक फ़ज्र की नमाज़ का पढ़ना (फ़रिश्तों की) हाज़िरी का वक़्त है। के बारे में नबी (सल्ल०) से रिवायत करते हैं। आप ﷺ ने फ़रमाया : वो रात और दिन के फ़रिश्तों की हाज़िरी का वक़्त है। सही तिरमिज़ी
(मिश्कात मसाबीह:635)
अबू-अवाना ने क़तादा से, उन्होंने ज़रारा-बिन-औफ़ा से, उन्होंने सअद-बिन-हिशाम से, उन्होंने हज़रत आयशा (रज़ि०) से और उन्होंने नबी करीम ﷺ से रिवायत की कि आपने फ़रमाया : फ़ज्र की दो रकअतें दुनिया और जो कुछ दुनिया में है, उससे बेहतर है। (मुस्लिम:1688)
एक दूसरी हदीस में हज़रत आयशा (रज़ि०) से रिवायत है की आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पौ फटने के वक़्त की दो रकअतों के बारे में फ़रमाया : वो दो (रकअतें) मुझे सारी दुनिया से ज़्यादा पसन्द है।(मुस्लिम:1689)
सुबह के मसनून अज़कार
सुबह व शाम के मसनून अज़कार हमारे लिए एक ढाल एक क़िला की हैसियत रखते हैं! ये अज़कार हमे अल्लाह के करीब करते हैं और इन अज़कार के जा़रिया अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला हमें दुःख ,दर्द,मुसीबत,जादू जिन्नात , बुरी नज़र,जिन्न और शैतान के हमले,हर तरह की परेशानी, नागहानी मुसीबत और कई बीमारियों से बचाता है !और इसके ज़रिया अल्लाह आपकी चिंता और परेशानियों को दूर करेगा, इससे आपके दिल को रा़हत मिलेगी और आपको ज़हनी सकून हासिल होगा। अल्लाह क़ुरान में कहता है," तुम मुझे याद करो मैं तुम्हे याद रखूंगा" फिर एक जगह फरमाता है "बल्कि, जो कुछ वे कमा रहे थे, उसका दाग़ उनके दिलों पर पड़ गया है"। अज़कार को रोजाना करने से वह ख़त्म हो जाएगा।
रोज़ अज़कार पढ़ना हमें अल्लाह के करीब लाता है, यह अल्लाह के साथ मजबूत संबंध बनाने का एक त़रीका़ है।और हम अल्लाह के जितने करीब रहेंगे हम पर अल्लाह की रहमत का साया बना रहेगा !
नमाज़ पढ़ने के बाद sehri ya Subah ka aagaz सुबह वाले मसनून अज़कार से करने हैं और अज़कार सूरज निकलने से पहले मुकम्मल कर लेना बेहतर है!
सुबह वाले अज़कार यहां डाऊनलोड करें अरबी में
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तस्बीहात और इनकी फ़ज़ीलत
फिर उसके बआ़द नीचे जो तस्बीहअत दिए जा रहे हैं सभी को सौ सौ बार पढ़नी है
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने कहा जो शख़्स एक दिन में सौ मर्तबा ये तस्बीह पढ़ेगा उसके गुनाह समंदर के झाग के बराबर भी हों तो मआ़फ़ हो जायेगा (बुखारी 6405)
(سُبْحَانَ اللهِ وَبِحَمْدِهِ )सौ बार
❋ फजीलत ❋
रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सवाल किया गया के कौनसा कलाम अफ़ज़ल है ? आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: जो अल्लाह ने अपने फरिश्तों और अपने बंदों के लिए चुना है ! (सही मुस्लिम:6925)
फिर ला ईलाह इल्लल्लाह की तस्बीह:
सौ बार ( لَا اِلٰهَ اِلَّا اللهُ )
❋ फजीलत ❋
नौफ राजियाल्लाह कहते हैं कि हमें बताया गया है कि अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला ने अपने फरिश्तों से फ़रमाया मेरे बंदों को बुलाओ, फरिश्तों ने अर्ज़ किया: या रब ! ये कैसे हो सकता है जबकि उनके दरमायन सात आसमान और उससे आगे अर्श हाइल है ? अल्लाह ने फ़रमाया जब वह कह ले ( لَا اِلٰهَ اِلَّا اللهُ ) तो उनकी पुकार कबूल होगी
نوف رضی الله عنہ کہتے ہیں کہ ہمیں بتایا گیا ہے کہ الله تعالیٰ نے اپنے فرشتوں سے فرمایا میرے بندوں کو بلاؤ۔ فرشتوں نے عرض کیا: یا رب! یہ کیسے ہو سکتا ہے جبکہ ان کے درمیان سات آسمان اور اس سے آگے عرش حائل ہے؟ الله نے فرمایا: جب وہ کہہ لیں: ... تو ان کی پکار قبول ہو گی۔
जन्नत का ख़ज़ाना:
सौ बार (لَاحَوْلَ وَلَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللهِ)
❋ फजीलत ❋नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अबू मूसा अशअ़री से फ़रमाया: क्या मैं तुम्हे एक ऐसा खजाना न बताऊं जो जन्नत का ख़ज़ाना है तो मैने कहा क्यूं नही ! आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया (لاحَوْلَ وَلَا قُوَّةَ اِلَّا بِاللهِ) (सहीह बुखारी:6409)
نبی ﷺ نے ابو موسیٰ اشعری ؓسے فرمایا: کیا میں تمہیں ایک ایسا کلمہ نہ بتا وں جو جنت کا خزانہ ہے، تو میں نے کہا، کیوں نہیں! آپ ﷺ نے فرمایا:
पसंदीदह कलिमात:
❋ फजीलत ❋
अबू हुरैरा रजी अल्लाह अनहो से रिवायत है के रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: ये कलिमात कहना मेरे नज़दीक हर उस चीज़ से महबूब है जिस पर सूरज निकलता है
ابوہریرہ رضی الله عنہ سے روایت ہے کہ رسول الله ﷺ نے فرمایا: يہ كلمات کہنا میرے نزدیک ہر اس چیز سے محبوب ہے جس پر سورج طلوع ہوتا ہے۔)صحیح مسلم:6847)
क़ुरान की तिलावत और इशराक की नमाज़:
ये तस्बीहात पूरे करने के बआ़द सूरज निकलने तक क़ुरआन की तिलावत करें अगर दिन का आग़ाज़ क़ुरआन की तिलावत से करेंगें तो आप को यूं लगेगा जैसे अपने रूहानी नाश्ता कर लिया है फिर जब सूरज निकल आए तो इशराक की नमाज़ पढ़ें और नमाज़ मुकम्मल करने के बआ़द अब आप अपने काम की शुरुवात करें !
1 Comments
Masha Allah
ReplyDeleteJazsk Allah khair
please do not enter any spam link in the comment box.thanks