Shab e baraat ki haqeeqat part:3/शब ए बरात की हक़ीक़त भाग:3
Shab e baraat ki haqeeqat |
हमनें पिछले दो भागों में Shab e baraat ki haqeeqat से मुतल्लिक पढ़ा की कैसे शब ए बरात की शुरुवात हुइ और किस तरह इसकी फ़ज़ीलत साबित करने के लिए रिवायतें गढ़ी गईं और ज़ईफ और अधूरे रिवायतों का सहारा लिया गया.अब आइए यह जानते हैं की शब ए बारात और पन्द्र्ह शअबान में इबादत के नाम पर आज कल क्या क्या बिदआ़त और ख़ुराफ़ात हो रहे हैं हमारे यहां!
(याद रहे बिदअ़त गुनाहे कबीरा (सबसे बडा गुनाह) है। बिदअ़त से शैतान खुश होता है और अल्लाह की नाराज़गी हासिल होती है। बिदअ़त का रास्ता जहन्नुम की तरफ़ जाता है। लिहाज़ा तमाम मुसलमानों को बिदआ़त से बचना चाहिये।)
1) पन्द्र्ह शअ़बान को लोग "शब-ए-बरात" मान कर जगह-जगह, चौराहों, गली-कूचों में मजलिसें जमातें और झूठी रिवायात ब्यान करके पन्द्र्ह शअ़बान की बडी अह़मियत और फ़ज़ीलत बताते हैं।
3) पन्द्रह शअ़बान की रात को "ईदुल अम्वात" (मुर्दों की ईद) समझ कर मुर्दों की रुहों का ज़मीन पर आने का इन्तिज़ार करते हैं।
Shab e baraat ki haqeeqat |
4) शबे-बारात के दिन मकानों की सफ़ाई, बर्तनों की धुलाई, नये-नये कपड़ों को पहनते हैं, औरतें तरह-तरह के पकवान मसलन हलवा, पूड़ी, मसूर की दाल पकाती और नगमें गा-गा कर रात भर जागती हैं।
5) नियाज़ फ़ातिहा, कुरआन ख्वानी(कुरआन पढ़ना), मज़ारों की धुलाई, कब्रों पर फ़ूल चढ़ाना, गुलगुलों से मस्जिदों की ताकों को भरना, ये सारी बिदअतें व खुराफ़ातें पन्द्र्ह शअ़बान को आज का मोमिन करता है जिस मोमिन का ये दावह होना चाहिए कि....
Read This:Shab e baraat ki Haqeeqat part:1
पन्द्र्ह शअ़बान के रोज़े से अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मना फ़रमाया है। हदीस शरीफ़ में है "जब निस्फ़ (आधा) शअबान हो तो रोज़े न रखों।" (अबूदाऊद, तिर्मिज़ी) निस्फ़ शअबान 15 तारीख से शुरु होगा लिहाज़ा पन्द्रह शअ़बान का रोज़ा नहीं रखना चाहिये।पन्द्र्ह शअ़बान से पहले चाहे जितने रोज़े रखलें। इसके अलावा चन्द खुराफ़ात जो दीन का नाम लेकर की जाती है मुलाहिज़ा फ़रमायें.......
दीन के नाम पर खुराफ़ात
ह़लवा :- कहते है कि जंगे उहु़द में अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम का दांत टूट गया था तो आपने ह़लवा खाया था इसलिये आज के दिन ह़लवा खाना सुन्नत है।
गौर कीजिये!!!! अल्लाह के नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लल्लम का दांतो का टूटना जिहाद में, और लोगों का ह़लवा खाना अपने घरों में, जिहाद और जंग की सुन्नत रसूल सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम अदा करें और ह़लवा खाने की सुन्नत हम अदा करें??? यह कैसी मोहब्बत रसूल से!कहा जाता है कि एक बुज़ुर्ग उवैस करनी को जब मालुम हुआ कि आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का दांत-ए-मुबारक शहीद हो गया तो उन्होने अपने दातों को पत्थर से तोड डाला और फ़िर उन्होने हलवा खाया लिहाज़ा ये उनकी सुन्नत है।
दांत तोडने का झूठा वाकया उनसे मन्सूब करके नकल कर दिया गया। फ़िर अपने दांतों को तोडना खुदकुशी की तरह है। आप सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने मुंह पर तमाचें मारने से मना फ़रमाया है (इब्ने माज़ा) तो मुंह पर पत्थर मारना कैसे जायज़ होगा???
कहा जाता है कि जिसका अज़ीज़ इस साल मर गया हो तो "अरफ़ा" करे यानी शबे-बारात से एक रोज़ पहले ह़लवा पकाकर नियाज़ फ़ातिहा दिला दें इस तरह इसका साल का नया मुर्दा बरसों पुराने मुर्दों में शामिल हो जायेगा। ये बात भी मनघड़त है।
Shab e baraat ki haqeeqat :- अल्लाह तआला ने कुरआन में फ़रमाया "इन्ना अन्ज़लनाहू फ़ी लयलतिम मुबारकातिन इन्नाकुन्ना मुन्ज़िरीन फ़ीहा युफ़रकओं कुल्लो अमरीन हकीम"
तर्जुमा :- "बिला शुबह हमने इसे (क़ुरआन) उतारा है एक मुबारक रात में और हम इस किताब के ज़रीये लोगों को डराते हैं, इस रात में तमाम फ़ैसले हिकमत के साथ बांट दिये जाते है।" (मुबारक रात से मुराद शबे-कद्र है जैसा कि दुसरे मुकाम पर सराहत है।)
आयत :- "शहरौ रमज़ानल-लज़ी उनज़िला फ़ीही कुरआना" (सूर-ए-बकर)
तर्जुमा :- "रमज़ान के महीने में कुरआन नाज़िल किया गया।"
आयत :- "इन्ना अन्ज़लनाहो फ़ी लयलतिल क़द्र" ( सूर-ए-कद्र)
तर्जुमा :- "हमने यह क़ुरआन शब-ए-क़द्र में नाज़िल फ़रमाया।"
शब ए कद्र की रात कब आती है
यह शबे क़द्र रमज़ान के आख़िरी अशरे की ता़क़ रातों में से ही कोई एक रात होती है। यहां क़द्र की इस रात को मुबारक रात क़रार दिया गया है। इसके मुबारक होने में शक व शुबह हो सकता है?? कि एक तो इसमे क़ुरआन का नुजु़ल (नाज़िल) हुआ, दूसरें इसमें फ़रिश्तों और हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम का नुज़ूल (ज़मीन पर आते है) होता है। तीसरे इसमें सारे साल में होने वाले वाकियात का फ़ैसला किया जाता है।
"सूर-ए-दुखा़न" की आयत में लैलते मुबारका से शअ़बान की पन्द्र्हवी रात मुराद लेना सही नहीं है क्यौंकि क़ुरआन की दुसरी आयत से उसका नुजूल शब-ए-क़द्र में साबित हैं लिहाज़ा नुज़ूल की रात और फ़ैसले की रात रमज़ान के महीने के अलावा किसी दूसरे महीने में नही हो सकता।शब-ए-बरात को लेकर जितनी भी रिवायात (बातें) आती हैं जिनमें उसकी फ़ज़ीलत का ब्यान है या उनमें इसे फ़ैसले की रात कहा गया है तो यह सब रिवायात ज़ईफ़ हैं यह क़ुरआन की आयात का मुक़ाबला नही कर सकतीं हैं।
जन्नतुल बकी़अ़ में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का तस्रीफ ले जाना
"जन्नतुल बकी़अ़ में प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का तशरीफ़ ले जाना"हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहो अन्हा का इरशाद इमाम बुखारी रह० ने बुखारी शरीफ़ में नकल फ़रमाया है "प्यारे नबी सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम जब भी मेरी बारी के दिन तशरीफ़ लाते तो जन्नत-उल-बकीअ़ ज़रुर जाते और मुर्दों के लिये अल्लाह तआ़ला से दुआ करते।" (मुस्लिम शरीफ़ पेज ३१३ जिल्द ३)और वो रिवायत जिसे इमाम तिर्मिज़ी रह० ने रिवायत किया है जिसमें कहा गया है कि अल्लाह तआ़ला बनू कल्ब की बकरियों के बाल से ज़्यादा अपने गुनाहगार बन्दों को माआ़फ़ करता है यह रिवायत सख्त ज़ईफ़ और मुनक़तआ़ (बहुत पुरानी और कमज़ोर जिसका कोई और सुबूत नहीं हो) है।
इस रिवायत को अल्लामा अनवर शाह कश्मीरी रह० शेखुल हदीस दारुल उलूम देवबन्द ने ज़ईफ़ (पुरानी और कमज़ोर जिसका कोई और सुबूत नहीं हो) कहा है।
अल्लाह तआ़ला पन्द्र्ह शअ़बान ही को नहीं बल्कि रोज़ाना दो तिहाई रात गुज़रने के बाद आसमाने दुनिया पर नुजूल (आता है) फ़रमाता है और कहता है :- है कोई मुझसे दुआ करने वाला कि मैं उसकी दुआ कुबूल करुं, कोई मुझसे मांगने वाला है कि मैं उसे दूं, कोई मुझसे बख़्शिश तलब करने वाला है कि मैं उसे बख़्श दूं। (बुखारी पेज १५३ जिल्द १)
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मालूम हुआ कि आंहज़रत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम बकी जब भी हज़रत आयशा रजि० के यहां जब बारी होती तशरीफ़ ले जाते और अहले कब्रिस्तान के लिये दुआऎ मगफ़िरत करते। यह कोई पन्द्र्ह शअबान ही के लिये खास न था जैसा कि आजकल के बाज़ मुसलमान समझते है और ये भी मालुम हुआ कि अल्लाह तआला पन्द्रह शअबान ही को नहीं बल्कि रोज़ाना ही तिहाई रात गुज़रने के बाद आसमाने दुनिया पर तशरीफ़ लाता है और दुआ करने वाले की दुआ कुबूल करता है और बख्शिश तलब करने वाले की बख्शिश करता है।
15 शअ़बान की ख़ुराफ़ात
Shab e baraat ki haqeeqat |
पन्द्र्ह शअ़बान की रात में मस्जिदों, मकानों में चिरागां करना (चिराग जलाना), झंडियां लगाना,सड़कों पर जूलूस निकालना और सड़कों को जाम करना! दीवारों, दरवाज़ों पर चिराग और मोमबत्तियां रखना और पटाखे चलाना और आतिशबाज़ी करना ये दिवाली की नक़ल है इसका किसी भी ह़दीसों में कोई भी असल सुबूत नही है। यह आतिश परस्तों के तौर-तरीकों की नक़ल की एक झलक है जिसको आतिश परस्तों ने अ़वाम को धोखें में मुब्तला करके राइज़ (राज़ी) किया था। काश मुसलमान इसकी हक़ीक़त से वाकिफ़ होते और इससे बचते।
Conclusion:
अल्लाह तआ़ला हमें इन ग़लत रस्मों-रिवाजो से हटाकर हम सबको क़ुरआन और हदीस को पढ़कर, सुनकर, उसको समझने की और उस पर अ़मल करने की तौफ़िक अ़ता़ फ़र्मायें।अल्हम्दुलिल्लाह दीन मुकम्मल हो चूका है इस-में किसी भी इबादत को जोड़ना या बदलाव करना बिदअ़त है।
अल्लाह-तआ़ला फ़रमाता है:आज मैंने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर-दिया है और अपनी नेअ़मत को तुम पर पूरा कर-दिया है और तुम्हारे लिए इस्लाम को बतौर ए दीन पसंद कर लिया है-( अल मैदा: आयत: 03)
दीन कामिल हो चूका है 1400 साल पहले ही और अल्लाह तआ़ला ने उसी दीन को पसंद किया है ये ऐलान भी कर दिया अब इस के बआ़द इस दीन में कोई खुशी या ग़म को ले-आए या नेकी समझ कर कुछ इज़ाफ़ा करे तो ज़ाहिर है अल्लाह तआ़ला उस दीन को ना-पसंद करेगा और उसे करने वाले को भी सजा देगा और अ़मल करने वाले को भी सज़ा देगा।
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है कि: 🔥🔥कुल्लू बिदअ़तीन दलाला वा कुल्लू दलालतिन फिन-नार 🔥🔥"हर बिदअत गुमराही है हर गुमराही जहन्नुम में ले-कर जायेगी"(बुखारी: 3197, मुस्लिम: 4822, अहमद: 11372, तिर्मिज़ी: 2565, हकीम मुस्तद्रक, 1:218)
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