Daily Dua/रोज़ाना की दुआएं
Daily Dua/रोज़ाना की दुआएं |
हमारी रोज़ मर्रह की ज़िन्दगी में सुबह से शाम और शाम से सुबह तक की हर एक अ़मल और बुरी चीज़ों से बचने की दुआ़एं हमारे प्यारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने हमें बताए हैं तो आइए आज इन Daily Dua/रोज़ाना की दुआएं से मुतअ़ल्लिक़ जानें और पढ़ें !
Daily Dua पढ़ने से न केवल हमे रूहानी और ज़हनी सकून मिलता है, बल्कि Daily Dua/रोज़ाना की दुआएं हमें अल्लाह के प्रति आस्था और भरोसे को भी मजबूत करता है। दुआ के ज़रिए से इंसान अपनी परेशानियों, उम्मीदों को अल्लाह तक पहुँचाता है और अल्लाह का शुक्र अदा करता है, जिससे उसे ज़हनी सकून और रूहानी इत्मीनान मिलता है। Daily Dua/रोज़ाना की दुआएं हमारी जिंदगी का एक अहम और जरूरी हिस्सा है ! इस लिए आइए पढ़ें, अ़मल करें और इससे फ़ायदा उठाएं!इल्म हासिल करने की दुआ़
اَللّٰھُمَّ إِنِّيْ أَسْئَلُكَ عِلْمًا نَّافِعًا
(इब्ने माजा : १३१५)
तर्जमा : ए अल्लाह! मैं आप से नफा पहुंचाने वाला इल्म मांगता हूँ।
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खाने से पेहले की दुआ़
بِسْمِ اللّٰہِ.
(तिर्मिज़ी : 1858)
तर्जमा : मैं अल्लाह के नाम से खाना शुरू करता हूँ।
शुरू में दुआ़ पढना भूल जाए तो यह दुआ़ पढ़ें
بِسْمِ اللّٰہِ أَوَّلَہٗ وَ اٰخِرَہٗ
(अबू दाऊद : 3767)
तर्जमा : शुरू और आखिर में अल्लाह का नाम ले कर खाता हूँ।
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खाने के बआ़द की दुआ़
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِيْ أَطْعَمَنَا وَسَقَانَا وَجَعَلَنَا مُسْلِمِیْنَ
(तिर्मिज़ी : 3457)
तर्जमा : तमाम तारिफें अल्लाह के लिये हैं, जिस ने हमें खिलाया पिलाया और मुसलमान बनाया।
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किसी के यहां दावत खाने के बआ़द की दुआ़
اَللّٰھُمَّ أَطْعِمْ مَّنْ أَطْعَمَنِيْ وَاسْقِ مَنْ سَقَانِيْ
(मुस्लिम : 5483)
तर्जमा : ए अल्लाह ! जिस ने मुझे खिलाया तू उस को खिला और जिस ने मुझे पिलाया तू उस को पिला।
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पानी पीने के बआ़द की दुआ़
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِيْ سَقَانَا عَذْبًا فُرَاتًاۘ بِرَحْمَتِہٖ وَلَمْ یَجْعَلْہُ مِلْحًا أُجَاجًاۘ بِذُنُوْبِنَا
(कंज़ुल उम्माल : 18226)
तर्जमा : तमाम तारी़फें अल्लाह के लिये हैं जिस ने हमें अपनी रहमत से मीठा पानी पिलाया और इस को हमारे गुनाहों की वजह से खारा और कड़वा नहीं बनाया।
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दूध पीने के बआ़द की दुआ़
اَللّٰھُمَّ بَارِكْ لَنَا فِیْہِ وَزِدْنَا مِنْہُ
(तिर्मिज़ी : 3455)
तर्जमा : ए अल्लाह! इस में हमारे लिये बरकत अता फरमा और हमें ज़्यादा अता फरमा।
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सोने से पेहले की दुआ़
اَللّٰھُمَّ بِاسْمِكَ أَمُوْتُ وَأَحْیَا
(बुखारी : 6314)
तर्जमा : ए अल्लाह ! मैं तेरे ही नाम से मरता हूँ और जीता हूँ।
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सो कर उठने की दुआ़
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِيْ أَحْیَانَا بَعْدَ مَا أَمَاتَنَا وَإِلَیْہِ النُّشُوْرُ
(बुखारी : 6314)
तर्जमा : तमाम तारीफें अल्लाह के लिये हैं जिस ने हमें मौत देने के बाद ज़िंदगी दी और उसी की तरफ सब को जाना है।
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बैतुलखला जाने से पेहले की दुआ़
بِسْمِ اللّٰہِ، اَللّٰھُمَّ إِنِّيْ أَعُوْذُبِكَ مِنَ الْخُبُثِ وَالْخَبَائِثِ
(मोअ्जमे औसत : 2803)
तर्जमा : अल्लाह का नाम ले कर दाखिल होता हूँ, ए अल्लाह! मैं नापाक जिनों से तेरी पनाह चाहता हूँ, मर्द हों या औरत।
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बैतुलखला से बाहर निकलने के बआ़द की दुआ़
غُفْرَانَكَ، اَلْحَمْدُلِلّٰہِ الَّذِيْ أَذْھَبَ عَنِّي الْأَذٰی وَعَافَانِيْ
(इब्ने माजा : 300 , 301)
तर्जमा : ए अल्लाह! मैं आप से मग्फिरत चाहता हूँ, तमाम तारीफें अल्लाह के लिये हैं जिस ने मुझ से तकलीफ को दूर किया और मुझे आफियत बख्शी।
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सवारी पर सवार होने की दुआ़
Daily Dua/रोज़ाना की दुआएं |
سُبْحَانَ الَّذِيْ سَخَّرَلَنَا ھٰذَا وَمَا کُنَّا لَہٗ مُقْرِنِیْنَ وَ إِنَّا إِلٰی رَبِّنَا لَمُنْقَلِبُوْنَ
(मुस्लिम : 3339)
तर्जमा : पाक हे वह ज़ात, जिस ने इस सवारी को हमारे कब़्जे में दे दिया, वरना हम इस को अपने काबू में करने वाले न थे और बिला शुबा हम को अपने रब की तरफ लौट कर जाना है।
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अज़ान के वक्त की दुआ़
أَشْھَدُ أَنْ لَّاۤ إِلٰہَ إِلَّا اللّٰہُ وَحْدَہٗ لَا شَرِیْكَ لَہٗ وَأَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُہٗ وَرَسُوْلُہٗ، رَضِیْتُ بِاللّٰہِ رَبًّا وَّبِمُحَمَّدٍ رَّسُوْلًا وَّ بِالْإِسْلَامِ دِیْنًا
(मुस्लिम : 877)
तर्जमा : मैं गवाही देता हूं के अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वो अकेला है उस का कोई शरीक नहीं और (हज़रत) मुहम्मद ﷺ अल्लाह के बंदे और उस के रसूल है, मैं अल्लाह के रब होने (ह़ज़रत) मुहम्मद ﷺ के रसूल होने और इस्लाम के दीन होने पर रा़जी हूं।
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अज़ान के बआ़द की दुआ़
اَللّٰھُمَّ رَبَّ ھٰذِہِ الدَّعْوَۃِ التَّامَّۃِ وَالصَّلَاۃِ الْقَائِمَۃِ اٰتِ مُحَمَّدَا ࣙ الْوَسِیْلَۃَ وَالْفَضِیْلَۃَ وَابْعَثْہُ مَقَامًا مَّحْمُوْدَاࣙ الَّذِيْ وَعَدْتَّہٗ إِنَّكَ لَاتُخْلِفُ الْمِیْعَادَ
(बुखारी : 614, बैहकी : 2009)
तर्जमा : ए अल्लाह ! इस मुकम्मल दावत और काइम होने वाली नमाज़ के रब! मुहम्मद ﷺ को वसीला और फज़ीलत अता फरमा और उन को उस मकामे महमूद पर पहुंचा, जिस का आप ने उन से वादा फरमाया है, बेशक आप वादे के खिलाफ नहीं करते।
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वुज़ू से पेहले की दुआ़
بِسْمِ اللّٰہِ
(नसई : 78)
तर्जमा : मैं अल्लाह के नाम से (वुज़ू) शुरू करता हूँ।
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वुज़ू के बआ़द की दुआ़
أَشْھَدُ أَنْ لَّاۤ إِلٰہَ إِلَّا اللّٰہُ وَحْدَہٗ لَا شَرِیْكَ لَہٗ وَأَشْھَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُہٗ وَرَسُوْلُہٗ، اَللّٰھُمَّ اجْعَلْنِيْ مِنَ التَّوَّابِیْنَ وَاجْعَلْنِيْ مِنَ الْمُتَطَھِّرِیْنَ
(तिर्मिज़ी : 55]
तर्जमा : मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह के सिवा कोई माबूद नहीं, वह अकेला है कोई उस का शरीक नहीं और मैं गवाही देता हूँ के (हज़रत) मुहम्मद ﷺ अल्लाह के बंदे और उस के रसूल हैं, ए अल्लाह! मुझे तौबा करने वालों में से कर दीजिये और मुझे पाक व साफ लोगों में से कर दीजिये।
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मस्जिद में दाखिल होने की दुआ़
اَللّٰھُمَّ افْتَحْ لِيْ أَبْوَابَ رَحْمَتِكَ
(मुस्लिम : 1685)
तर्जमा : ए अल्लाह! तू मेरे लिये अपनी रहमत के दरवाज़े खोल दे।
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मस्जिद से निकलने की दुआ़
اَللّٰھُمَّ إِنِّيْ أَسْئَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ
(मुस्लिम : 1685)
तर्जमा : ए अल्लाह! मैं तुझ से तेरे फज़्ल का सवाल करता हूँ।
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घर में दाखिल होने की दुआ़
اَللّٰھُمَّ إِ نِّيْ أَسْئَلُكَ خَیْرَ الْمَوْلِجِ وَخَیْرَ الْمَخْرَ جِ بِسْمِ اللّٰہِ وَلَجْنَا وَبِسْمِ اللّٰہِ خَرَجْنَا وَعَلَی اللّٰہِ رَبِّنَا تَوَکَّلْنَا
(अबू दाऊद : 5096)
तर्जमा : ए अल्लाह ! मैं आप से अन्दर जाने और बाहर निकलने की भलाई का सवाल करता हूँ, हम अल्लाह तआला ही के नाम से दाखिल होते हैं और अल्लाह तआला ही के नाम से बाहर निकलते हैं, और हम ने अपने रब अल्लाह ही पर भरोसा किया है।
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घर से निकलने की दुआ़
بِسْمِ اللّٰہِ تَوَکَّلْتُ عَلَی اللّٰہِ لَا حَوْلَ وَلَا قُوَّۃَ إِلَّا بِاللّٰہِ
(तिर्मिज़ी : 3426)
तर्जमा : मैं अल्लाह के नाम से निकलता हूँ, मैंने अल्लाह पर भरोसा किया, गुनाहों से बचने की ताकत और नेक काम करने की कुव्वत अल्लाह तआला ही की तरफ से है।
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कपडा पहनने की दुआ़
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِيْ کَسَانِيْ ھٰذَا الثَّوْبَ وَرَزَقَنِیْہِ مِنْ غَیْرِ حَوْلٍ مِّنِّيْ وَلَا قُوَّ ۃٍ
(अबू दाऊद : 4023)
तर्जमा : तमाम तारीफें अल्लाह के लिये हैं जिस ने मुझे यह कपडा पहनाया और मेरी ताकत व कुव्वत के बगैर मुझ को यह अता फरमाया।
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नया कपडा पहनने की दुआ़
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ الَّذِيْ کَسَانِيْ مَا أُوَارِيْ بِہٖ عَوْرَتِيْ وَأَتَجَمَّلُ بِہٖ فِيْ حَیَاتِيْ
(तिर्मिज़ी : 3560]
तर्जमा : तमाम तारीफें अल्लाह के लिये हैं, जिस ने मुझे ऐसा लिबास पहनाया के जिस से मैं अपना सतर छुपाता हूँ और जिस से मैं अपनी ज़िंदगी में ज़ीनत इख्तियार करता हूँ।
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आईना देखने की दुआ़
اَللّٰھُمَّ حَسَّنْتَ خَلْقِيْ فَحَسِّنْ خُلُقِيْ
(इब्ने हिब्बान : 959)
तर्जमा : ए अल्लाह! तूने मेरी सूरत अच्छी बनाई है, पस तू मेरी सीरत भी अच्छी बना दे।
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किसी मुसलमान से मिलें तो सलाम करें
اَلسَّلَامُ عَلَیْکُمْ وَرَحْمَۃُ اللّٰہِ وَبَرَکَاتُہٗ
(तिर्मिज़ी : 2689)
तर्जमा : तुम पर सलामती हो और अल्लाह की रहमत और उस की बरकतें हों।
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कोई मुसलमान सलाम करे तो यह जवाब दें
وَعَلَیْکُمُ السَّلَامُ وَرَحْمَۃُ اللّٰہِ وَبَرَکَاتُہٗ
(मुस्नदे अहमद : 12612)
तर्जमा : और तुम पर (भी) सलामती हो और अल्लाह की रहमत और उस की बरकतें हों।
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हर अच्छे काम को शुरू करते वक़्त पढें
بِسْمِ اللّٰہِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ
(अल अज़्कार : 1/156)
तर्जमा : शुरू करता हूँ मैं अल्लाह के नाम से जो बड़ा महेरबान निहायत रहम करने वाला है।
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कोई नेअ्मत हासिल हो तो कहें
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ
(इब्ने माजा : 3805)
तर्जमा : तमाम तारीफें अल्लाह के लिये हैं।
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कोई कुछ दे या अच्छा सुलूक करे तो कहें
جَزَاكَ اللّٰہُ خَیْرًا
(तिर्मिज़ी : 2035)
तर्जमा : अल्लाह आप को बेहतर बदला अता करे।
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ऊंची जगह पर चढते हुवे पढें
اَللّٰہُ أَکْبَرُ
(बुखारी : 2993)
तर्जमा : अल्लाह सब से बडा है।
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नीचे उतरते हुवे पढें
سُبْحَانَ اللّٰہِ
(बुखारी : 2993)
तर्जमा : अल्लाह की ज़ात पाक है।
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छींक आने पर कहें
اَلْحَمْدُ لِلّٰہِ
(बुखारी : 6224)
तर्जमा : तमाम तारीफें अल्लाह के लिये हैं।
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छींकने वाले को यह जवाब दें
یَرْحَمُكَ اللّٰہُ
(बुखारी : 6224 )
तर्जमा : अल्लाह तुम पर रहम करे।
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छींकने वाला फिर यह दुआ़ दे
یَھْدِیْکُمُ اللّٰہُ وَیُصْلِحُ بَالَکُمْ
(बुखारी : 6224 )
तर्जमा : अल्लाह तुम्हें हिदायत दे और तुम्हारे हाल की इस्लाह करे।
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किसी काम के करने का इरादा ज़ाहिर करें तो कहें
اِنْ شَآءَ اللّٰہُ
(सूर-ए-कहफ : 24)
तर्जमा : अगर अल्लाह ने चाहा।
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कोई चीज़ अच्छी लगे तो यह दुआ़ पढे
مَا شَآءَ اللّٰہُ
(सूर-ए-कहफ : 39)
तर्जमा : जो अल्लाह चाहे।
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किसी बात पर तअज्जुब हो, तो यह दुआ़ पढे
اَللّٰہُ أَکْبَرُ، سُبْحَانَ اللّٰہِ
(बुखारी : 6218 )
तर्जमा : अल्लाह सब से बड़ा है, अल्लाह की ज़ात पाक है।
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कोई तकलीफ पहुंचे या कोई चीज़ गुम हो जाए तो कहे
اِنَّا لِلّٰہِ وَ اِنَّاۤ اِلَیْہِ رٰجِعُوْنَ
(सूर-ए-बकरह : 156)
तर्जमा : बेशक हम अल्लाह ही के लिये हैं और हम को उसी की तरफ लौट कर जाना है।
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जब गुस्सा आए तो पढ़ें
أَعُوْذُ بِاللّٰہِ مِنَ الشَّیْطَانِ الرَّجِیْمِ
(तिर्मिज़ी : 3452 )
तर्जमा : में शैतान मर्दूद से अल्लाह की पनाह चाहता हूं
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
Conclusion:
Daily Dua/रोज़ाना की दुआएं हमारे दिनचर्या का एक अहम हिस्सा हैं जो हमें ज़हनी सकून और रूहानी इत्मीनान प्रदान करती हैं। ये दुआएं न केवल हमें अल्लाह से जोड़ती हैं, बल्कि हमें सकारात्मक ऊर्जा से भर देती हैं। दुआएं हमारे मन को शांत करने के साथ-साथ हमारी आत्मा को भी पोषित करती हैं। इसके पढ़ने से हमारा ध्यान केंद्रित होता है और हम अपनी दैनिक चुनौतियों का सामना अधिक सजगता और धैर्य के साथ कर सकते हैं। अतः, रोज़ाना की दुआएं हमें आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाती हैं और हमारे जीवन को अर्थपूर्ण दिशा प्रदान करती हैं।FAQs:
Que: इस्लाम में नियमित प्रार्थना क्या है ?
Ans: इस्लाम में नियमित प्रार्थना हर मुसलमान को रोजाना पांच यानी फज्र , जुहर, असर, मगरिब और ईशा की नमाज़ पढ़ना फ़र्ज़ है अनिवार्य है !
Que: रोज़ाना की दुआएं पढ़ना क्यूं ज़रूरी है ?
Ans: रोज़ाना की दुआएं हमारे दिनचर्या का एक अहम हिस्सा हैं जो हमें ज़हनी सकून और रूहानी इत्मीनान प्रदान करती हैं। ये दुआएं न केवल हमें अल्लाह से जोड़ती हैं बल्कि अल्लाह से हमारा तअ़ल्लुक़ भी मज़बूत होता है !
Que: रोज़ाना की नमाज़ों में किस नमाज़ की अहमियत बहुत ज़यादह है ?
Ans: फज्र की दो रकअ़त सुन्नत की बहुत बड़ी अहमियत है क्योंकि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है की फज्र की दो रकअ़त सुन्नत दुनियां से और जो कुछ दुनियां में है उन सब से बेहतर है
( मुस्लिम:725 ) !
Que: दुआ क्यों जरूरी है ?
Ans: दुआ़ हमारे लिए बहुत ही अहम है क्यूं की इसके जारिया हमे कई तरह के गम व परेशानी से छुटकारा मिलता है और शैतान व जादू से हिफ़ाज़त मिलती है !
Que: दुआ क्या है ?
Ans: दुआ़ एक इबादत है, दुआ मोमिन का हथ्यार है , अल्लाह से मदद और दया पाने का एक जा़रिया है
Que: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पसंदीदा दुआ क्या है ?
Ans: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की पसंदीदा दुआ है
رَبَّنَاۤ اٰتِنَا فِی الدُّنۡیَا حَسَنَۃً وَّ فِی الۡاٰخِرَۃِ حَسَنَۃً وَّ قِنَا عَذَابَ النَّار
Que: दुआ न करने वालों का अंजाम क्या है ?
Ans:तुम्हारा रब कहता है, “ मुझे पुकारो, मैं तुम्हारी दुआएँ क़बूल करूँगा, जो लोग घमण्ड में आकर मेरी इबादत से मुँह मोड़ते हैं, ज़रूर वे बेइज़्ज़त और रुसवा होकर जहन्नम में दाख़िल होंगे।”
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