Faatiha aur Nazar o niyaz /फातिहा और नज़र ओ नियाज़
Khane par fatiha ki daleel bukhari Se????
क्या ये नज़र-ओ-नियाज़, ये फातिहा दिलाना सही है??
सबसे पहले हम क़ुरआन और हदीस पे ग़ौर करते हैं :अल्लाह तआला क़ुरआन में फरमाता है "हमने तुम्हारे लिए दीन को मुकम्मल कर दिया"
(सुरह माएदा, आयत नंबर 3)
(अल्लाह ने जब दीन मुकम्मल कर दिया है तो अब इसमें ज़र्रा बराबर भी कुछ सामिल करने की जरूरत नही)
"तुम पे हराम किया गया मुरदार और ख़ून और खिंजीर का गोश्त, और जिस पे अल्लाह के सिवा किसी और का नाम पुकारा गया हो."
(सुरह बकरा आयत 173, सुरह माएदा 3, सुरह अनाम 145 सुरह नहल 115)
हज़रते आयशा रजि० से रिवायत है के मुहम्मद स० अलैह० फ़रमाते हैं के जिसने हमारे दीन में कुछ ऐसी बात शामिल की जो उसमे से नहीं है तो वो मरदूद है.
(सहीह बुखारी 2697, सहीह मुस्लिम 1718)
एक हदीस है के मुहम्मद स० अलैह० फ़रमाते हैं " दीन के अंदर नयी नयी चीज़ें दाख़िल करने से बअ़ज़ रहो, बिला शुबहा हर नयी चीज़ बिदअ़त है और हर बिदअ़त गुमराही है और हर गुमराही जहन्नम में ले जाने वाली है."
(अबु'दाऊद किताब अल सुंनह 7064)
रसूलल्लाह स० अलैह० ने फ़रमाया "सबसे बेहतरीन अमर (अमल करने वाली) अल्लाह की किताब है और सबसे बेहतर तरीका मुहम्मद स० अलैह० का तरीका है, और सबसे बदतरीन काम दीन में नई नई बातें पैदा करना है, और हर नई बात गुमराही है "
(इबने माजा जिल्द 1 हदीस 45)
इसके अलावा भी दलील के लिए न जाने कितनी ही क़ुरआनी आयतें और हदीसें मौजूद हैं जो इस बात की दलील देती हैं के दीन में कोई नयी चीज़ ईजाद न करो और खाने पीने की चीज़ों पे सिर्फ़ अल्लाह का नाम लो ताकि वो तुम्हारे लिए हलाल हो जाये।
नियाज़ फातिहा के ग़लत होने की दलील:-
1.आपने देखा होगा के नियाज़ फातिहा जब भी होती है तो किसी पीर या बुज़ुर्ग या किसी औलिया-ओ- पैग़म्बर के नाम की होती है, मतलब उनका नाम लिया जाता है बेशक उनके नाम लेने के पहले क़ुरआनी सूरतें और आयतें पढ़ी जाती है मगर जब भी किसी और का नाम आ जाये तो फिर वो खाने की चीज़ हराम हो जाती है. इसलिए नियाज़ फातिहा दिलाना सरासर ग़लत है और गुनाह है।
2. अगर कुछ लोग इस बात पे बहस करें के अगर हमने सिर्फ़ क़ुरआनी आयतें पढ़ी तो फिर तो वो हलाल हुआ क्यूंकि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है...तो ऐसे समझदार लोगों से मैं पूछना चाहता हूँ के क्या किसी हदीस या क़ुरआन से इन्हे ऐसा करने की दलील मिलती है के कभी मुहम्मद रसूलल्लाह स० अलैह० ने या उनके सहबाओं ने ऐसा किया हो के खाने पीने के सामन सामने रख कर क़ुरआन की तिलावत की हो और फिर खाया हो??
नहीं ऐसी कोई दलील किसी सही हदीस में नहीं है. मतलब साफ़ हुआ के लोगों ने अपनी तरफ से दीन में इस नयी चीज़ का ईजाद किया है, फिर तो ये बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है।
3. कुछ जाहिल लोग ये दलील देते हैं के खाने पे क़ुरआन की तिलावत करने से खाना हराम होता है तो फिर बिस्मिल्लाह कहने से भी खाना हराम हो गया. सबसे पहली बात के क़ुरआन की आयतें तिलावत करने से खाना हराम नहीं होता बल्कि तुम्हारा ये फेल (खाने पे तिलावत करना) बिदअत है क्यूंकि न तो मुहम्मद स० अलैह० ने कभी खाने को सामने रख कर तिलावत की और न ही उनके सहाबियों से कभी सुबूत मिला, हाँ खाने से पहले बिस्मिल्लाह के तमाम सुबूत मौजूद हैं।
4. कुछ मौलवी जिन्होंने दीन को अपना कारोबार बन लिया है वो मेरे उन भाइयों को, जिन्हे दीन की समझ कम है ये दलील देते हैं के खाने की चीज़ पे तो हमने क़ुरआन पढ़ी और ये तो और भी अच्छी बात है फिर भी ये लोग ऐतराज़ करते हैं..... मैं अपने उन भाइयों को बताना चाहता हूँ के जैसे नमाज़ की एक रकत में सिर्फ दो ही सजदे हैं और अगर तीसरा सजदा किया तो ये गुनाह होगा बेशक सजदे के दौरान हम अल्लाह की तारीफें करें, मगर ये काम गुनाह हो गया क्यूंकि ये बिदअ़त है मतलब दीन-इ-इस्लाम में नयी चीज़ जोड़ी हमने इसलिए ये गुनाह है. उसी तरह से खाने की चीज़ें सामने रख कर क़ुरआन पढ़ें तो ये भी बिदअत हो जाती है क्यूंकि ये किसी हदीस से या क़ुरआन से साबित नहीं है।
सबसे आख़री बात ,वो ये के क्या दीन का कारोबार चलाने वाले हमारे मौलवियों को लगता है की हमारा दीन मुकम्मल नहीं हुआ,जो वो इसमें नयी चीज़ें जोड़े जा रहे हैं ...जबकि अल्लाह फ़रमाता है के हमने तुम्हारे दीन को मुकम्मल कर दिया।
मतलब ये अल्लाह के कलाम को ताक पे रख कर (नउज़ुबिल्लाह) अपनी मनमानी करते रह रहे हैं और जिन्हे दीन की सही समझ नहीं है उन्हें भी बहका रहे हैं और न जाने कहाँ कहाँ से झूटी दलीलें दे रहे हैं जबकि हमें तो बस वही काम करनी चाहिए जिसका हुक्म अल्लाह और उसके रसूल ने दिया हो या मुहम्मदुर रसूलल्लाह से साबित हो और सहाबाओं ने किया हो।
ऊपर की तमाम बातों से ये साबित हुआ के Faatiha aur Nazar o niyaz दीन में नयी ईजाद करदा अमल हैं जो की बिदअ़त है और हमे इस गुमराही से बचना चाहिए. बजाये सवाब के हम गुनाह की तरफ जा रहे हैं।और यह अमल अल्लाह की नाराज़गी का सबब बन रहा है तो फिर क्यों ये अमल करें? जब दीन मुकम्मल है तो क्यों अल्लाह की बनाई हद्द से आगे बढ़ें और नुकसान उठाने वालों में शामिल हों ? जो काम सहाबा ने नही किया नबी ﷺ ने नही बताई भला हम क्यूं करें और अल्लाह का नाराज़ करें !
अल्लाह तआला से दुआ है के हम तमाम मुसलमान भाइयों को सही दीन पे अमल करने की तौफ़ीक़ अत फरमाए और जो दीन के रास्ते से भटक गए हैं उन्हें रहे रास्त पे ला दें (आमीन)
"तुम पे हराम किया गया मुरदार और ख़ून और खिंजीर का गोश्त, और जिस पे अल्लाह के सिवा किसी और का नाम पुकारा गया हो."
(सुरह बकरा आयत 173, सुरह माएदा 3, सुरह अनाम 145 सुरह नहल 115)
Fatiha khawani halal ya haram
हज़रते आयशा रजि० से रिवायत है के मुहम्मद स० अलैह० फ़रमाते हैं के जिसने हमारे दीन में कुछ ऐसी बात शामिल की जो उसमे से नहीं है तो वो मरदूद है.
(सहीह बुखारी 2697, सहीह मुस्लिम 1718)
एक हदीस है के मुहम्मद स० अलैह० फ़रमाते हैं " दीन के अंदर नयी नयी चीज़ें दाख़िल करने से बअ़ज़ रहो, बिला शुबहा हर नयी चीज़ बिदअ़त है और हर बिदअ़त गुमराही है और हर गुमराही जहन्नम में ले जाने वाली है."
(अबु'दाऊद किताब अल सुंनह 7064)
रसूलल्लाह स० अलैह० ने फ़रमाया "सबसे बेहतरीन अमर (अमल करने वाली) अल्लाह की किताब है और सबसे बेहतर तरीका मुहम्मद स० अलैह० का तरीका है, और सबसे बदतरीन काम दीन में नई नई बातें पैदा करना है, और हर नई बात गुमराही है "
(इबने माजा जिल्द 1 हदीस 45)
इसके अलावा भी दलील के लिए न जाने कितनी ही क़ुरआनी आयतें और हदीसें मौजूद हैं जो इस बात की दलील देती हैं के दीन में कोई नयी चीज़ ईजाद न करो और खाने पीने की चीज़ों पे सिर्फ़ अल्लाह का नाम लो ताकि वो तुम्हारे लिए हलाल हो जाये।
अब ज़रा ग़ौर फ़रमाते हैं नियाज़ फातिहा के तरीक़े और उस से जुड़ी बातों से।
नियाज़ फातिहा के ग़लत होने की दलील:-
1.आपने देखा होगा के नियाज़ फातिहा जब भी होती है तो किसी पीर या बुज़ुर्ग या किसी औलिया-ओ- पैग़म्बर के नाम की होती है, मतलब उनका नाम लिया जाता है बेशक उनके नाम लेने के पहले क़ुरआनी सूरतें और आयतें पढ़ी जाती है मगर जब भी किसी और का नाम आ जाये तो फिर वो खाने की चीज़ हराम हो जाती है. इसलिए नियाज़ फातिहा दिलाना सरासर ग़लत है और गुनाह है।
2. अगर कुछ लोग इस बात पे बहस करें के अगर हमने सिर्फ़ क़ुरआनी आयतें पढ़ी तो फिर तो वो हलाल हुआ क्यूंकि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है...तो ऐसे समझदार लोगों से मैं पूछना चाहता हूँ के क्या किसी हदीस या क़ुरआन से इन्हे ऐसा करने की दलील मिलती है के कभी मुहम्मद रसूलल्लाह स० अलैह० ने या उनके सहबाओं ने ऐसा किया हो के खाने पीने के सामन सामने रख कर क़ुरआन की तिलावत की हो और फिर खाया हो??
नहीं ऐसी कोई दलील किसी सही हदीस में नहीं है. मतलब साफ़ हुआ के लोगों ने अपनी तरफ से दीन में इस नयी चीज़ का ईजाद किया है, फिर तो ये बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है।
3. कुछ जाहिल लोग ये दलील देते हैं के खाने पे क़ुरआन की तिलावत करने से खाना हराम होता है तो फिर बिस्मिल्लाह कहने से भी खाना हराम हो गया. सबसे पहली बात के क़ुरआन की आयतें तिलावत करने से खाना हराम नहीं होता बल्कि तुम्हारा ये फेल (खाने पे तिलावत करना) बिदअत है क्यूंकि न तो मुहम्मद स० अलैह० ने कभी खाने को सामने रख कर तिलावत की और न ही उनके सहाबियों से कभी सुबूत मिला, हाँ खाने से पहले बिस्मिल्लाह के तमाम सुबूत मौजूद हैं।
ध्यान दें :-
हां ! सही बुखारी,मुस्लिम और कुछ हदीस में ये पाया जाता है और हमारे सुन्नी भाई हदीस से जिन हदीसों का सहारा लेकर फातिहा या नियाज़ साबित करना चाहते हैं उन हदीसों में बेशक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खाना रख कर पढ़े हैं लेकिन क्या पढ़ें हैं किसी को पता नहीं !सही बुखारी में है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के सामने खाना रखा गया , उम सलीम राजि़अल्लाह अन्हा ने भेजा था, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खाना रख के कुछ पढ़ना शुरू किया और दुआ के बाद वो थोड़ा सा खाना जितने सहाबा मौजूद थे सब के लिए काफी हो गया.एक और रिवायत में मिलती है की आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खाने पर दुआ़ की जो कुछ अल्लाह ने चाहा एक और रिवायत में है की दुआ़ की बआ़द आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उस खाने में अपना लआ़ब ए दहन मिलाया.अब गौर करने वाली बात है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खाने पर कुछ पढ़ा क्या पढ़ा यह जिक्र नहीं है तो आप को कैसे पता चला की सुराह फातिहा, चारो कुल और दरूद पढ़ना है ,दूसरी रिवायत में जिक्र है अल्लाह ने जो कुछ भी चाहा आप ने दुआ की यहां भी ये जिक्र नहीं की क्या पढ़ा गया और फिर एक और रिवायत में है की आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपना लआ़ब ए दहन उसमे मिलाया तो आप सुन्नी हजरात भी अपना थूक ए मुबारक उसमे मिलाएं और अवाम को बताएं की हमने अपनी थूक ए मुबारक इसमें मिलाया हैं तो देखिए अवाम क्या करती है आप के साथ !अलमुखतसर, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खाना कम होने की वजह से बरकत के लिए दुआ किए और वो भी अल्लाह ने वो कलिमात बताए और वो कलिमात आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम और अल्लाह को मालूम है ! जब किसी सहाबा को नहीं मालूम की क्या पढ़ा गया तो हमे कैसे मालूम की फातिहा में ये सब पढ़ना है! अगर मालूम होता तो सहाबा इस अमल यानी फातिहा से क्यों दूर रहते. सोचिए और गौ़र ओ फ़िक्र कीजिए !
Niyaz ka khana, khana chahiye ya nahi
4. कुछ मौलवी जिन्होंने दीन को अपना कारोबार बन लिया है वो मेरे उन भाइयों को, जिन्हे दीन की समझ कम है ये दलील देते हैं के खाने की चीज़ पे तो हमने क़ुरआन पढ़ी और ये तो और भी अच्छी बात है फिर भी ये लोग ऐतराज़ करते हैं..... मैं अपने उन भाइयों को बताना चाहता हूँ के जैसे नमाज़ की एक रकत में सिर्फ दो ही सजदे हैं और अगर तीसरा सजदा किया तो ये गुनाह होगा बेशक सजदे के दौरान हम अल्लाह की तारीफें करें, मगर ये काम गुनाह हो गया क्यूंकि ये बिदअ़त है मतलब दीन-इ-इस्लाम में नयी चीज़ जोड़ी हमने इसलिए ये गुनाह है. उसी तरह से खाने की चीज़ें सामने रख कर क़ुरआन पढ़ें तो ये भी बिदअत हो जाती है क्यूंकि ये किसी हदीस से या क़ुरआन से साबित नहीं है।
सबसे आख़री बात ,वो ये के क्या दीन का कारोबार चलाने वाले हमारे मौलवियों को लगता है की हमारा दीन मुकम्मल नहीं हुआ,जो वो इसमें नयी चीज़ें जोड़े जा रहे हैं ...जबकि अल्लाह फ़रमाता है के हमने तुम्हारे दीन को मुकम्मल कर दिया।
मतलब ये अल्लाह के कलाम को ताक पे रख कर (नउज़ुबिल्लाह) अपनी मनमानी करते रह रहे हैं और जिन्हे दीन की सही समझ नहीं है उन्हें भी बहका रहे हैं और न जाने कहाँ कहाँ से झूटी दलीलें दे रहे हैं जबकि हमें तो बस वही काम करनी चाहिए जिसका हुक्म अल्लाह और उसके रसूल ने दिया हो या मुहम्मदुर रसूलल्लाह से साबित हो और सहाबाओं ने किया हो।
फातिहा करना बिदअ़त में शामिल है इस से खाना हराम नहीं होता है अगर अल्लाह के नाम की हो लेकिन अगर अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह या ख्वाजा के नाम के फातिहा हो उन को राजी करने के लिए खाने पर फातिहा देना है। उनके नाम से डेग चढ़ाना है। यह फलाने बाबा की डेग है,फलाने बाबा का बकरा है। अगर यह इस तरह का होता है ,उनके नाम पर खाना बना है। यह जायज नहीं होगा । अगर फातिहा पढ़ा है तो खाना हराम नही हो जाता लेकिन उससे बचना अच्छा है ! अगर फातिहा का खाना कोई आदमी खा लेता है और अगर वह गैरुल्लाह के नाम से नहीं है तो खाना हराम नहीं होता है हां अमाल बिदअ़त है और बिदअ़त गुमरही की तरफ ले जाने वाली है !
अगर कोई आदमी किसी गैरुल्ला के नाम से ही डेग चढ़ाए या कोई जानवर उसके नाम से जिबाह करे या उसकी रजा के लिए करे यानी खाना उसी के लिए हो तो ये खाना हराम है !
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
Conclusion:
ऊपर की तमाम बातों से ये साबित हुआ के Faatiha aur Nazar o niyaz दीन में नयी ईजाद करदा अमल हैं जो की बिदअ़त है और हमे इस गुमराही से बचना चाहिए. बजाये सवाब के हम गुनाह की तरफ जा रहे हैं।और यह अमल अल्लाह की नाराज़गी का सबब बन रहा है तो फिर क्यों ये अमल करें? जब दीन मुकम्मल है तो क्यों अल्लाह की बनाई हद्द से आगे बढ़ें और नुकसान उठाने वालों में शामिल हों ? जो काम सहाबा ने नही किया नबी ﷺ ने नही बताई भला हम क्यूं करें और अल्लाह का नाराज़ करें !
अल्लाह तआला से दुआ है के हम तमाम मुसलमान भाइयों को सही दीन पे अमल करने की तौफ़ीक़ अत फरमाए और जो दीन के रास्ते से भटक गए हैं उन्हें रहे रास्त पे ला दें (आमीन)
FAQs:
Que: फातिहा देना कैसा है ?
Ans: फातिहा देना किसी भी हदीस या क़ुरान से साबित नही है बल्कि ये एक बिदअ़त है दीन में इज़ाफ़ा है !
Que: नियाज़ फातिहा क्या है ?
Ans: नियाज़ करवाना या फातिहा दिलाना जिसमे खाने-पीने की चीज़ों को सामने रखते हैं और सुरह फातिहा और दीगर क़ुरआनी सूरतें और आयतें पढ़ी जाती हैं और फिर आखिरी में बुर्जुगों,पीर-ओ-पैगम्बरों की नज़र की जाती है। इसका शरीअ़त में कोई वजूद नहीं है !
Que: क्या इस्लाम में खाने पर फातिहा करने की इजाजत है?
Ans: नही ! इस्लाम में खाना सामने रख कर उस पर फातिहा पढ़ना या करने की इजाज़त नहीं है ! कोई भी खाना हो उसपर अल्लाह का नाम लेकर यानी बिस्मिल्लाह पढ़ कर खाना चाहिए !
Que: फातिहा देना क्या हदीस से साबित है?
Ans: हमारे सुन्नी भाई हदीस से जिन हदीसों का सहारा लेकर फातिहा या नियाज़ साबित करना चाहते हैं उन हदीसों में बेशक नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने खाना रख कर पढ़े हैं लेकिन जो कुछ पढ़े हैं वो तो अल्लाह ने उन्हें बताया किसी को नहीं मालूम की क्या पढ़े ? वो तो अल्लाह और उसके रसूल का मुआमला है लेकिन हमारे नियाज़ी भाइयों को कैसे मालूम हुवा की क्या पढ़ना है !
Que: क्या कुरान में फातिहा का जिक्र है?
Ans: क़ुरान में हम जिस तरीक़े से फातिहा करते हैं उसका कोई जिक्र नहीं है बल्कि कुरान की पहली सूरत का नाम अल फातिहा है !
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