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Farz namaz ke baad ke azkaar/फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द के अज़कार

Farz namaz ke baad ke azkaar/फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द के अज़कार 

Farz namaz ke baad ke azkaar/फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द के अज़कार
Farz namaz ke baad ke azkaar




सलाम फेरने के बआ़द के अज़कार या Farz namaz ke baad ke azkaar क्या हैं ये हर नमाज़ी को जानना बहुत जरूरी है ताकि हम इसके फ़ज़ीलत से मह़रूम न रह जाएं! अफ़सोस की बात है कि अक्सर लोग फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ कर फ़ौरन या तो दुआ माँगने में लग जाते हैं या सुन्नत पढ़ने लग जाते हैं और मस्जिद से निकल जाते हैं वह बहुत सारी बरकत व तहफ़्फ़ुज़ात से महरूम हो जाते हैं। आइए इस हदीस से समझें!


    नमाज़ की जगह बैठ कर अज़कार करने की फ़ज़ीलत 

    Farz namaz ke baad ke azkaar/फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द के अज़कार
    Masnoon Azkaar 


    नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है कि: नमाज़ पढ़ने के बआ़द जब तक तुम अपने मुसल्ले पर जहां तुमने नमाज़ पढ़ी थी, बैठे रहो और रयाह खारिज न करो तो फरिश्ते तुम पर बराबर दरूद भेजते रहते हैं और कहते हैं की  اللَّهُمَّ اغْفِرْ لَهُ اللَّهُمَّ ارْحَمْهُ 
    ऐ अल्लाह! इसकी मग़फि़रत कीजिए , ऐ अल्लाह! इस पर रह़म कीजिए ! (बुखारी: 445)
    इसी लिए हमे चहिए की फ़र्ज़ नमाज़ अदा करने के बआ़द मस्जिद में कुछ वक्त ज़िक्र ओ अज़कार और दुआ़ में दें!अब आइए जानें की फर्ज नमाज़ के बआ़द के मसनून अज़कर क्या हैं ?

    Farz namaz ke baad ke azkaar




    सलाम फ़ेरने के बआ़द थोड़ा बुलंद आवाज़ के साथ तकबीर पढ़ें

    अल्लाहु अकबर «اللہ اکبر»
    अल्लाह सबसे बड़ा है।
    (सही बुख़ारी : 841, 842, मुस्लिम : 583) - एक मर्तबा

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    अस्तग़फिरुल्लाह «أَسْتَغْفِرُ اللَّهَ »
    मैं अल्लाह की बख़्शिश मांगता हूँ।
    (मुस्लिम : 591) - तीन मर्तबा

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    «اللَّهُمَّ أَنتَ السَّلامُ ، وَمِنْكَ السَّلَامُ ، تَبَارَكَتْ يَا ذَا الْجَلالِ وَالإِكْرَامِ»

    अल्लाहुम्म अन्तस्सलाम व मिन्कस्सलामु तबारकता या ज़ल जलालि वल इकराम

    तर्जुमा : ऐ अल्लाह! तू ही सलाम है और तेरी ही तरफ़ से सलामती है, ऐ साहिबे जलाल व इज़्ज़त तू बहुत बाबरकत है। (मुस्लिम : 591) - एक मर्तबा

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    «اللَّهُمَّ أَعِنِّى عَلَى ذِكْرِكَ وَشُكْرِكَ، وَحُسْنِ عِبَادَتِكَ»


    अल्लाहुम्मा अइन्नी अला ज़िक्रिका व शुक्रिका व हुस्नि इबादतिका


    तर्जुमा : ऐ मेरे रब! मेरी मदद कर तेरा ज़िक्र करने शुक्र अदा करने के लिये और तेरी बेहतर तरीक़े इबादत करने के लिये। (अबू दाऊद : 1522) - एक मर्तबा

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    «لا إِلهَ إِلَّا اللهُ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الحَمْدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ، اَللَّهُمَّ لَا مَانِعَ لِمَا أَعْطَيْتَ وَلَا مُعْطِيَ لَمَا مَنَعَتَ، وَلَا يَنْفَعُ ذَا الْجَدِ مِنكَ الْجَدُ»

    ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीक लहु लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु व हु व अला कुल्लि शैइन क़दीर, अल्लाहुम्मा ला मानिआ लिमा आअतैता वला मुअतिया लिमा मन अता वला यनफ़उ ज़लजद्दि मिनकल जद्द

    तर्जुमा : नहीं है कोई माबूद सिवाय अल्लाह के, वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिये बादशाहत है और उसी के लिए तारीफ़ है और वही हर चीज़ पर क़ादिर है। ऐ अल्लाह! कोई नहीं रोक सकता उस चीज़ को जो तू अता करे और कोई नहीं दे सकता उसको जिसे तू रोक ले और नफ़ा नहीं दे सकती किसी मालदार को उसकी मालदारी। (बुख़ारी : 844 + मुस्लिम : 593) - एक मर्तबा

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    «لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَحْدَهُ لاَ شَرِيكَ لَهُ لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَىْءٍ قَدِيرٌ لاَ حَوْلَ وَلاَ قُوَّةَ إِلاَّ بِاللَّهِ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَلاَ نَعْبُدُ إِلاَّ إِيَّاهُ لَهُ النِّعْمَةُ وَلَهُ الْفَضْلُ وَلَهُ الثَّنَاءُ الْحَسَنُ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ مُخْلِصِينَ لَهُ الدِّينَ وَلَوْ كَرِهَ الْكَافِرُونَ»

    ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीक लहु लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु व हु व अला कुल्लि शयइन क़दीर, लाहौ लावला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह, ला इलाहा इल्लल्लाहु वला नअबुदु इल्ला इय्याहु लहुन् निअमतु व लहुल फ़ज़्लु व ल हुस्सनाउल हसनु ला इलाहा इल्लल्लाहु मुख़्लिसीना लहुद्दीना व लौव करिहल काफ़िरून।

    तर्जुमा : नहीं है कोई माबूद सिवाय अल्लाह के, वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिये बादशाहत है और उसी के लिए तारीफ़ है और वही हर चीज़ पर क़ादिर है। नहीं है गुनाह से बचने की हिम्मत और न नेकी करने की ताक़त व क़ुव्वत मगर अल्लाह की तौफ़ीक़ से, नहीं है कोई माबूद सिवाय अल्लाह के और हम नहीं इबादत करते सिवाय उसी के, उसी का हम पर एहसान है और उसी का फ़ल है और वही मुस्तहिक़ है अच्छी तारीफ़ का, नहीं है कोई माबूद सिवाय अल्लाह के, हम ख़ालिस उसी की इबादत करते हैं चाहे काफ़िरों को कितना ही बुरा क्यों न लगे। (मुस्लिम : 594) - एक मर्तबा

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    सुब्हानल्लाह «سبحان اللہ»
    पाक है अल्लाह -33 मर्तबा

    अल्हम्दुलिल्लाह «الحمد اللہ»
    तमाम तारीफ़ अल्लाह के लिये हैं - 33 मर्तबा 

    अल्लाहु अकबर «اللہ اکبر»
    अल्लाह सबसे बड़ा है - 33 मर्तबा

    और एक मर्तबा -
    «لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ، لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الحَمدُ، وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ»

    ला इलाहा इल्लल्लाहु वह्दहु ला शरीक लहु लहुल मुल्कु व लहुल हम्दु व हु व अला कुल्लि शयइन क़दीर

    तर्जुमा : नहीं है कोई माबूद सिवाय अल्लाह के, वह अकेला है उसका कोई शरीक नहीं, उसी के लिये बादशाहत है और उसी के लिए तारीफ़ है और वही हर चीज़ पर क़ादिर है। (सही मुस्लिम : 597)


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    नमाज़े फ़ज्र व मग़रिब के बआ़द - 10 मर्तबा

    لَا إِلَهَ إِلَّا اللَّهُ وَحْدَهُ لَا شَرِيكَ لَهُ،‏‏‏‏‏‏لَهُ الْمُلْكُ وَلَهُ الْحَمْدُ،‏‏‏‏‏‏يُحْيِي وَيُمِيتُ وَهُوَ عَلَى كُلِّ شَيْءٍ قَدِيرٌ

    ला इलाहा इल्लल्लाहु वह़्दहू  ला शरीक लहु लहुल मुल्कु व लहुल ह़म्दु युहयी व युमीत वहुवा अला कुल्लि शयइन क़दीर

    अल्लाह के अलावा कोई (सच्चा) माबूद नही, वह अकेला है उसका कोई शरीक नही, उसी के लिए बादशाहत है और उसी के लिए तमाम तारीफ़ात, वह ज़िंन्दा करता है और मारता है और वह हर चीज़ पर क़ादिर है। (तिर्मिज़ी : 3474, 3534 + मुसनद अहमद : 4/227)

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    आयतुल कुर्सी: एक मर्तबा 


    Farz namaz ke baad ke azkaar/फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द के अज़कार
    Ayatul kursi 



    اللَّهُ لَا إِلَهَ إِلَّا هُوَ الْحَيُّ الْقَيُّومُ لَا تَأْخُذُهُ سِنَةٌ وَلَا نَوْمٌ لَّهُ مَا فِي السَّمَاوَاتِ وَمَا فِي الْأَرْضِ مَن ذَا الَّذِي يَشْفَعُ عِندَهُ إِلَّا بِإِذْنِهِ يَعْلَمُ مَا بَيْنَ أَيْدِيهِمْ وَمَا خَلْفَهُمْ وَلَا يُحِيطُونَ بِشَيْءٍ مِّنْ عِلْمِهِ إِلَّا بِمَا شَاء وَسِعَ كُرْسِيُّهُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضَ وَلَا يَؤُودُهُ حِفْظُهُمَا وَهُوَ الْعَلِيُّ الْعَظِيمُ

    अल्लाहु ला इलाहा इल्ला हुवल ह़य्युल क़य्यूम ला तअख़ुजुहु सिनतँव वला नौम लहू मा फ़िस्समावाति वमा फ़िलअर्ज़ि मन जल्लज़ी यशफ़ऊ इन्दहु इल्ला बिइज़्निहि यअलमु माबैना अयदीहिम वमा ख़ल्फ़हुम वला युहीतूना बि शैइम मिन इल्मिहि इल्ला बि माशाआ, वसिआ कुर्सिय्यु हुस्समावाति वल अर-ज़ा, वला यऊदुहू हिफ़्ज़ुहुमा व हुवल अलिय्युल अज़ीम

    अल्लाह, जिसके सिवाय कोई इबादत के लायक़ नहीं। ज़िन्दा, हमेशा रहने वाला, उसे न ऊँघ आती है और न नींद, जो कुछ आसमानों और जो कुछ ज़मीन में है, सब उसी का है। कौन है जो उसकी इजाज़त के बग़ैर उससे (किसी की) सिफ़ारिश कर सके जो कुछ लोगों के सामने हो रहा है और जो कुछ पीछे हो चुका है, उसे सब मालूम है और वे उसके इल्म में से किसी चीज़ पर दस्तरस (क़ाबू) हासिल नहीं कर सकते। हाँ जिस क़द्र वह चाहता है (उसी क़द्र) मालूम करा देता है, उसकी बादशाही (और इल्म) आसमान और ज़मीन सब पर हावी है और उसे उनकी हिफ़ाज़त कुछ भी मुश्किल नहीं, वह बड़ा आली रुतबा और जलीलुलक़द्र है। (सूरह बक़र:- 255)(सुनन निसाई : 100, इसे इब्ने हिब्बान ने सहीह कहा है।)

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    हर फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द मुअव्विज़ात पढ़ना : सुबह ओ शाम 3 मर्तबा करके और बाकी नमाज़ में एक एक बार करके

    بسم الله الرحمن الرحيم

    قُلْ هُوَ اللَّهُ أَحَدٌ (١)اللَّهُ الصَّمَدُ (٢)لَمْ يَلِدْ وَلَمْ يُولَدْ (٣)وَلَمْ يَكُن لَّهُ كُفُوًا أَحَدٌ (٤)

    कुल हुव अल्लाहू अहद़, अल्लाहू समद, लम यलिद व लम यूलद, व लम यकुल लहू कुफु़वन अहद़
    तर्जमा: आप कह दीजिए की अल्लाह एक है, अल्लाह बेनियाज़ है और सभी उसके मोहताज हैं, न उसकी कोई औलाद है और न वो किसी की औलाद, और कोई उसका कोई हमसर उसके बराबर नही है,

    قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ (۱) مِن شَرِّ مَا خَلَقَ (۲) وَمِن شَرِّ غَاسِقٍ إِذَا وَقَبَ (۳) وَمِن شَرِّ النَّفَّاثَاتِ فِي الْعُقَدِ (٤) وَمِن شَرِّ حَاسِدٍ إِذَا حَسَدَ (ه)

    कुल अऊ ज़ु बिरब्बिल फ़लक़ मिन शर्रिमा ख़लक़ वमिन शर्रि गासिक़िन इज़ा वक़ब वमिन शर्रिन् नफ़्फ़ासाति फ़िल उक़द वमिन शर्रि हासिदिन इज़ा हसद

    तर्जुमा : कह दो, मैं पनाह में आता हूँ सुबह के रब की, उस चीज़ के शर से जो उसने पैदा की, और अंधेरा करने वाली (रात) के शर से जब छा जाए, और गंड़ों पर (पढ़- पढ़ कर) फ़ूँकने वालियों के शर से और हसद करने वाले के शर से जब वो हसद करे। (सूरह फ़लक़)

    قُلۡ اَعُوۡذُ بِرَبِّ النَّاسِ (۱) مَلِکِ النَّاسِ (۲) اِلٰہِ النَّاسِ (۳) مِنۡ شَرِّ الۡوَسۡوَاسِ ۬ ۙ الۡخَنَّاسِ (٤) الَّذِیۡ یُوَسۡوِسُ فِیۡ صُدُوۡرِ النَّاسِ (ه) مِنَ الْجِنَّةِ وَ النَّاسِ (٦)

    कुल अऊज़ुबिरब्बिन्नास मलिकिन्नास इलाहिन्नास मिन शर्रिल वस्वासिल खन्नास अल्लज़ी युवसविसु फ़ी सुदुरिन्नास मिनल जिन्नति वन्नास

    तर्जुमा : कह दो, मैं पनाह में आता हूँ लोगों के रब की, लोगों के बादशाह की, लोगों के माबूद की, वस्वसे डालने वाले (शैतान) से जो आँखों से ओझल है, जो वस्वसे डालता है लोगों के सीनों में (चाहे वह) जिन्नों में से (हो) या इन्सानों में से। (सूरह नास)
    (सुनन अबू दाऊद : 1523 + सुनन निसाई : 1337)

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    नमाज़ के बआ़द कसरत से यह पढ़े बिल ख़ुसूस फ़ज्र के बआ़द :

    سُبْحَانَ اللهِ وَبِحَمْدِهِ، عَدَدَ خَلْقِهِ، وَرِضَا نَفْسِهِ، وَزِنَةَ عَرْشِهِ، وَمِدَادَ كَلِمَاتِهِ

    सुब्हानल्लाही व बिहम्दिही, अदादा ख़ल्क़िहि, वरिज़ा नफ़्सिहि, व'ज़िनता अरशिही, व मिदादा कलिमातिह

    मैं अल्लाह की पाकी बोलता हूँ ख़ूबीयों के साथ उसकी मख़लूक़ात के शुमार के बराबर और उसकी रज़ामंदी और ख़ुशी के बराबर और उसके अर्श के तौल के बराबर और उसके कलिमात की सियाही के बराबर (यानी बेइंतिहा इसलिए कि अल्लाह के कलमों की कोई हद नही, सारा समुन्द्र अगर सियाही हो वह ख़त्म हो जाए और अल्लाह के कलमे तमाम न हों)

    नमाज़ो के अलावा आम हालात में इस अज़ीम ज़िक्र का अहतमाम करना चाहिए, यूं ज़बान ज़िक्र इलाही मे रत्ब-उल-लिसान रहेगी। (सही मुस्लिम : 6913)

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    हज और उमरे का अजर 

    हज व उमरे का अजर लेना चाहते हैं तो जमाअत से फ़ज्र की नमाज़ पढ़ने के बाद सूरज निकलने तक मुसल्ले पर बैठे ज़िक्र करे फ़िर दो रक'अत नमाज़ अदा करें। (तिर्मिज़ी : 586)

    नमाज़ ए वित्र के बाद की दुआ़ 



    नमाज़ वित्र के बाद - तीन मर्तबा
    «سُبْحَانَ الْمَلِكِ الْقُدُّوسِ»
    सुब्हान'नल मलिकिल कुद्दूस
    तर्जुमा : पाक है (मेरा रब) बादशाह निहायत मुक़द्दस
    तीसरी मर्तबा बुलन्द आवाज़ व लंबा करके पढ़ें साथ में यह भी पढ़े
    «رَبُّ الْمَلَآئِکَۃِ وَالرُّوْحِ»
    रब्बुल मलाइकति वर्रुह
    तर्जुमा : फ़रिश्तो और रूह (जिब्रील अमीन) का रब
    (सुनन अबू दाऊद : 1430 + सुनन दारुक़ुतनी : 1644 + ज़ाद अल-मआद : 1/337)

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    फ़िर दोनों हाथ उठाकर अल्लाह की हम्द ओ सना बयान करें औ फ़िर नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम पर दरूद ओ सलाम भेजने के बाद अपने लिए आफियत,भलाई और सबकी भलाई के लिये सही और जाइज़ दुआएँ मांगें। नमाज़ पढ़ने के बआ़द दुआ़ ज़रूर माँगनी चाहिए क्योंकि नबी (ﷺ) ने दुआओं की बहुत सारी फ़ज़ीलतें गिनवाई हैं।

    दुआ़ से मुतअ़ल्लिक़ कुछ अहादीसे मुबारका :-
    Farz namaz ke baad ke azkaar/फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द के अज़कार
    Dua momin ka hathiyar 


    दुआ़ मोमिन का हथियार है और दीन का सुतून है और आसमानों ज़मीन का नूर है। (मुस्तदरक हाकिम)

    दुआ़ करने से मत हारो, बेशक दुआ़ के साथ कोई हलाक़ नहीं होता। (सही इब्ने हिब्बान 4/233)

    तक़दीर को सिर्फ़ दुआ ही फेर सकती है।
    (सुनन इब्ने माजा 2/300 रावी हज़रत सोबान रज़ियल्लाहु अन्हु)

    बेशक तुम्हारा परवरदिगार बहुत ज़्यादा शर्म रखने वाला बाहया सख़ी है। जब उसका बन्दा हाथ उठाकर इल्तज़ा करता है तो उसे हया आती है कि अपने बन्दे के हाथ खाली लौटाए।
    (इब्ने माजा 1/284, तिर्मिज़ी 2/190 रावी हज़रत सलमान फ़ारसी रज़ियल्लाहु अन्हु)

    तुममें से जिसके लिए दुआ का दरवाज़ा खोल दिया गया उसके लिए रहमत के दरवाज़े खोल दिए गए और अल्लाह तआ़ला से कोई चीज़ आफ़ियत से ज़्यादा पसन्दीदा नहीं मांगी गई। (तिर्मिज़ी)

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    अपने लिए और तमाम मुसलमानों के लिए दुआएँ मांगने के बआ़द फ़िर यह पढ़ें,

    رَبَّنَا تَقَبَّلُ مِنَّا إِنَّكَ أَنتَ السَّمِيعُ الْعَلِيمُ إِنَّكَ أَنتَ التَّوَّابُ الرَّحِيمُ

    रब्बना तकब्बल मिन्ना इन्नका अनतससमीउल अलीम वअतुब अलैना इन्नका अनतत तव्वाबुर्रहीम

    तर्जुमा : ऐ हमारे रब! क़ुबूल फ़रमा हमारी यह दुआएँ बेशक तू जानने व सुनने वाला है और हमारी तौबा क़ुबूल फ़रमा बेशक तू ही तौबा क़ुबूल फ़र्माने वाला, मेहरबान है। (फिर यह पढ़ें,

    سُبْحَانَ رَبِّكَ رَبِّ الْعِزَّةِ عَمَّا يَصِفُونَ وَسَلَامٌ عَلَى الْمُرْسَلِينَ وَالْحَمْدُ لِلَّهِ رَبِّ الْعَالَمِينَ

    सुब्हान रब्बका रब्बल इज़्ज़त अम्मायसिफ़ून वसलामुन अलल मुरसलीन वल हम्दुलिल्लाहि रब्बिल आलमीन।
    तर्जुमा : अल्लाह पाक है जो बड़ी इज्ज़त वाला है उनकी बेहूदापन से पाक है और रसूलों पर सलाम हो और तमाम तारीफ़ों का मालिक अल्लाह ही है जो कायनात का रब है।

    वसल्लल्लाहु अला ख़ैरि ख़ल्किही मुहम्मदिवँ वअला आलिही व अस्हाबिहिल अजमईन बिरह़मतिका या अर्रह़मर्राहि़मीन

    तर्जुमा: और अल्लाह की रहमत मुहम्मद (ﷺ) पर, उनकी आदाते मुबारका पर, उनकी औलाद पर उनके तमाम असहाब (सहाबा किराम रज़ियल्लाहू अन्हु) पर ऐ रहमान व रहीम तेरी रहमत के साथ।

    चंद अहम इंतिबाह:
    बाअ़ज़ अहादीस की सेहत व ज़ो'फ़ में अहले इल्म के दरमियाँन अज़कार में कमी बेशी है इसलिए अज़कार कुछ कम पढ़े या कुछ ज़्यादा पढ़े इसमे हर्ज नही है, असल यह है कि आप पाँच औक़ात की नमाज़ की पाबंदी करें और नमाज़ के बआ़द वह अज़कार पढ़े जो सहीह अहादीस से साबित हों।

    कभी उजलत की वजह से चंद अज़कार पर भी इक्तिफ़ा करते है तो कोई हर्ज नही है और कभी ज़रूरत की वजह से मस्जिद से निकलना पड़े तो चलते हुए भी इन अज़कार को पढ़ सकते हैं।
    आपको इनमे से जितने अज़कार याद है उनको अभी से ही फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द पढ़ना शुरू कर दें और जो याद नही हैं वह देख कर भी पढ़ सकते हैं ताहम कोशिश करे कि बक़िया अज़कार भी जल्द अज़ जल्द ज़बानी याद हो जाए।

    हम में से अक्सर जिन्न व शयातीन से डरते हैं, औरते तो कुछ ज़्यादा ही डरती हैं यही वजह है कि अक्सर आमिलीन माल कमाने के लिए आवाम को बिलख़ुसूस औरतों को "आप पर आसेब का साया है" कह कर हद से ज़्यादा डराते हैं, आप इन अज़कार का अहतमाम करें, इन शा अल्लाह ऐसे आमिलो के पास जाने की नौबत नही आएगी।

    बहुत अफ़सोस की बात है कि अक्सर लोग फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ कर फ़ौरन या तो दुआ माँगने लग जाते हैं या सुन्नत पढ़ने लग जाते हैं और मस्जिद से निकल जाते हैं वह बहुत सारी बरकत व तहफ़्फ़ुज़ात से महरूम हो जाते हैं। आइए हदीस देखें 

    नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है कि: नमाज़ पढ़ने के बआ़द जब तक तुम अपने मुसल्ले पर जहां तुमने नमाज़ पढ़ी थी, बैठे रहो और रयाह ख़ारिज न करो तो फरिश्ते तुम पर बराबर दरूद भेजते रहते हैं और कहते हैं की ऐ अल्लाह! इसकी मगफिरत कीजिए , ऐ अल्लाह! इस पर रहम कीजिए ! (बुखारी: 445)

    Note: हाथों में फूंक मारना और शरीर पर हाथ फेरना

    कई लोग नमाज़ के बआ़द बैठ कर ज़िक्र ओ अज़कार करते हैं और अपने गरीबान में फूंकते हैं और अपने हाथों में फूंक कर पूरे जिस्म पर हाथ फेरते हैं यह अमल नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित नही है तो यह सुन्नत नही बल्कि बिदात है ! जो सुन्नत से साबित है वो करते नही जैसे रात को सोने से पहले तीनों कुल पढ़ कर हाथों में फूंक कर सर से लेकर पूरे जिस्म पर फेरना

    👍🏽        ✍🏻         📩         📤

    ˡᶦᵏᵉ    ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ    ˢᵃᵛᵉ      ˢʰᵃʳᵉ



     

    Conclusion: 

    हद दर्जा अफ़सोस मुसलमानों के उस तबक़े पर है जो मस्नू'ई यानी बनावटी अज़कार पढ़ने और वज़ाइफ़ गढ़ने में माहिर हैं मगर अल्लाह के रसूल ﷺ से किस क़द्र अदावत है कि फ़र्ज़ नमाज़ के बाद अज़कार से अकसर नज़रे चुराते हैं,बहुत कम ही मिलेंगे जिन्हे जिक्र ओ अज़कार करते हुवे पाइएगा!आख़िर इनके उल्मा या रहबर कौनसे दीन को लेकर चल रहे हैं ? किस मदरसे से दीन का इल्म या डिग्री लेते हैं ? कम अज़ कम उन्हें नमाज़ और अज़कार का इल्म तो ज़रूर होगा फ़िर यह लोग फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ कर फ़ौरन इज्तिमा'ई दुआ में कैसे लग जाते हैं और अज़कार से ग़फ़लत बरतते हैं,जब कि इज्तिमा'ई दुआ तो हदीस से साबित भी नही है।

    एक तरफ़ अपनी तरफ़ से क़िस्म क़िस्म के वज़ाइफ़ ईजाद करते हैं दूसरी तरफ़ मुहम्मद ﷺ से साबित शुदाह अज़कार से ऐसी किनारा-कशी करते जैसे उनके उलमा व आवाम को इन अज़कार की ख़बर ही नही है ! जब अवा़म को इन अज़कार का पता ही नहीं तो इन पर अमल क्या करेगी।
    अल्लाह हम सभी को सही दीन पर चलने और इसपर अ़मल करने की तौफ़ीक़ अ़ता़ फ़रमाए !

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    Frequently Asked questions:

    Que: क्या फ़र्ज़ नमाज़ के बआ़द अज़कार करना चाहिए?
    Ans: Farz namaz ke baad ke azkaar की बड़ी अहमियत है. नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कई सुन्नत अज़कार साबित है जिसका हमें एहतमाम करना चाहिए ऐसा न करके हम बहुत सारी बरकत व तहफ़्फ़ुज़ात से महरूम हो जाते हैं

    Que: क्या नमाज़ के बआ़द इज्तमाई दुआ़ करना सही है ?
    Ans: नहीं ! नमाज़ के बआ़द इज्तमाई दुआ़ नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम या सहाबा से साबित नही और ऐसा करना सुन्नत नही बल्कि बिदअ़त में शुमार होगा !

    Que: नमाज़ के बआ़द नमाज़ की जगह बैठ कर ज़िक्र या दुआ करना कैसा है ?
    Ans: नमाज़ पढ़ने के बआ़द जब तक आप अपने मुसल्ले पर जहां आपने नमाज़ पढ़ी थी, बैठे रहें और रयाह खारिज न करें तो फरिश्ते आप पर बराबर दरूद भेजते रहते हैं और कहते हैं की 
    ऐ अल्लाह! इसकी मग़फि़रत कीजिए , ऐ अल्लाह! इस पर रह़म कीजिए !

    Que: अज़कार या दुआ़ के बआ़द गरीबान या पूरे जिस्म पर हाथ फेरना कैसा है ?
    Ans: कई लोग नमाज़ के बआ़द बैठ कर ज़िक्र ओ अज़कार करते हैं और अपने गरीबान में फूंकते हैं और अपने हाथों में फूंक कर पूरे जिस्म पर हाथ फेरते हैं यह अमल नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से साबित नही है !यह सुन्नत नही बल्कि बिदअ़त है !


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