Tauheed aur shirk part:2/ तौहीद और शिर्क भाग:2
Tauheed aur shirk |
पहला भाग Tauheed aur shirk में हमने तौही़द से मुतअ़ल्लिक़ जाना अब यह समझना ज़रूरी है की शिर्क क्या है ? क्यों शिर्क को बहुत बड़ा जुल्म कहा गया और क्यों इस से बार बार रोका गया है ,इससे हमारा कितना बड़ा नुक़सान है !
आइए क़ुरआन की यह आयत देखें!
अल्लाह तआ़ला फ़रमाता हैं :बेशक अल्लाह नहीं बख़्शेगा की उस के साथ शिर्क किया जाए और बख़्श देगा जो इस के इलावा होगा, जिसे वो चाहेगा। और जो कोई अल्लाह के साथ शिर्क करे, तो वो गुमराही मे बहुत दूर निकल गया!(सूरह निसा: 116)
जिसने अल्लाह के साथ किसी को शरीक किया, अल्लाह ने उसपर ज़न्नत हराम कर दिया उसका ठिकाना जहन्नम है और जालिमो का कोई मददगार न होगा (सुरह् अलमईदा:72)
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शिर्क क्या है ?
मसलन:- ख़ालिक, राज़िक़, हाजत रवा, मुश्किल कुशा।
अल्लाह तआला की इन सिफ़ात मे किसी और को शरीक समझना की कोई और भी ये सब कुछ कर सकता है। जैसा की इस हदीस से पता चलता है !
“सबसे बड़ा गुनाह ये है के तू अल्लाह के साथ किसी को शरीक करे हालांकि उसने तुझे पैदा किया।”( बुख़ारी: 4477, मुस्लिम: 86)
क़यामत के दिन मुशरिकीन कहेंगे :
“अल्लाह की क़सम हम खुली गुमराही मे थे जब हम तुमको रब्बुल आलमीन के बराबर क़रार देते थे.”(सूरह अशुरा ,आयत 97-98)इसका मतलब अल्लाह के बराबर किसी को क़रार देना, उसकी ज़ात में, उसकी सिफ़ात मे, उसके हुक़ूक़ मे, उसके इख़्तियारात मे, यही शिर्क कहलाता है।
शिर्क को ज़ुल्म भी कहा गया है। ज़ुल्म किसी के हक़ मे कमी के लिए इस्तेमाल होता है। अल्लाह का हक़ ये है कि उसके बराबर किसी को ना समझा जाए, किसी भी चीज़ में, उसकी किसी भी सिफ़ात में, उसकी हस्ती के किसी भी पहलू मैं।
और अगर कोई ऐसा करे तो वो ऐसे गुनाह का ऐतक़ाब कर रहा है कि जिसकी माआ़फ़ी नहीं। याद रखिये की गुनाह कई क़िस्म के है। कुछ ऐसे हैं जो इंसान भूल-चूक मे ख़ता कर जाता है और फ़िर उस के बाद नेकी करता है तो हर नेकी ख़ता को मिटा देती है।
कुछ गुनाह ऐसे है के जिन के लिए सिर्फ़ नेकी करना काफ़ी नहीं बल्कि उनकी बातौर ए ख़ास माआ़फ़ी मांगना भी ज़रूरी है। जब इंसान उन गुनाहो पर माआ़फ़ी मांगता है तो वो मआ़फ़ हो जाते हैं। कुछ गुनाह ऐसे है की जिन पर सिर्फ़ माआ़फ़ी भी काफ़ी नहीं जब तक के इंसानों उन हक़ों की अदायगी न करे जो वो किसी के हक़ में मार रहा है;
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मसलन :- किसी की चोरी की या किसी की इल्ज़ाम-तराशी की। तो ऐसे में जब तक के वो चीज़ साहिब ए हक़ को वापस ना की जाए, उसका नुक़सान पुरा ना किया जाए, उस शख़्स से माआ़फ़ी न मांगी जाए जैसे हुक़ूक़ उल इबाद में कोताही, तो उस वक़्त तक वो गुनाह मआ़फ़ नहीं होते। तो शिर्क भी उन गुनाहो मैं से एक गुनाह है की जिस पर इंसान जबतक सच्चे दिल से माआ़फ़ी मांग कर फिर आइंदा के लिए वो काम छोड़ नहीं देता उस वक़्त तक माआ़फ़ी नहीं हो सकती
शिर्क करने वाले का हर अ़मल बरबाद
और सूरह ज़ुमर में नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से फ़रमाया : ऐ पैग़म्बर आप की तरफ़ वही़ (कलाम ए अल्लाह) भेजी जाती है और आप से पहले नबियों पर भी यह वही़ भेजी गई है के अगर आपने शिर्क किया तो आपके अ़माल बरबाद हो जाएंगे और आप ख़ासारे पाने वालों में से हो जाएंगे (सूरह ज़ुमर : 65)
रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जब अल्लाह लोगों को क़ियामत के दिन, जिसमें कोई शक नहीं, (हिसाब के लिये) जमा फ़रमाएगा तो एक ऐलान करने वाला ऐलान करेगा : जिसने किसी ऐसे अ़मल में जिसे उसने अकेले अल्लाह के लिये किया था शरीक किया, तो वो अपना सवाब अल्लाह के अलावा किसी और से त़लब करे क्योंकि अल्लाह (दूसरे) तमाम शरीकों के मुक़ाबले में शिर्क से सबसे ज़्यादा बे नियाज़ है। (मिशकत अलमासबीह:5318)
शिर्क की माआ़फ़ी नही
अल्लाह रबुल इज़्ज़त ने सूरह निसा में इर्शाद फ़रमाया के बेशक अल्लाह शिर्क मआ़फ़ नही करेगा इसके सिवा जो चाहेगा जिसके लिए चाहेगा मआ़फ़ कर देगा।
शिर्क इतना बड़ा गुनाह है के अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला इसको मआ़फ़ नही करेगा और जो इस हाल में मरेगा के अल्लाह के साथ शिर्क करता हो अल्लाह ने उस पर जन्नत को हराम कर दिया उसका ठिकाना जहन्नम है!(सूरह माइदा : 72)
शिर्क का लुग़वि मायने होता है शरीक करना, और शरई ऐतबार से शिर्क का मतलब होता है, के अल्लाह तआला की ज़ात या फ़िर शिफ़ाअत में किसी को शरीक करना!
कैसे समझा जाये की किसी शख़्स ने अल्लाह के साथ किसी को शरीक किया है ?अल्लाह का क्या शिफ़ाअत है इसे जाने बगैर शिर्क नहीं समझ सकते है !
शिर्क इतना बड़ा गुनाह है के अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला इसको मआ़फ़ नही करेगा और जो इस हाल में मरेगा के अल्लाह के साथ शिर्क करता हो अल्लाह ने उस पर जन्नत को हराम कर दिया उसका ठिकाना जहन्नम है!(सूरह माइदा : 72)
शिर्क का लुग़वि मायने होता है शरीक करना, और शरई ऐतबार से शिर्क का मतलब होता है, के अल्लाह तआला की ज़ात या फ़िर शिफ़ाअत में किसी को शरीक करना!
कैसे समझा जाये की किसी शख़्स ने अल्लाह के साथ किसी को शरीक किया है ?अल्लाह का क्या शिफ़ाअत है इसे जाने बगैर शिर्क नहीं समझ सकते है !
वजूद मे शिर्क- जो शख़्स अल्लाह तआ़ला के सिवा किसी को वाजिबुल वजूद (हमेशा से होना या हमेशा से रहना) ठहराये वो मुशरिक है !
ख़ालिकीयत मे शिर्क- जो शख़्स अल्लाह के सिवा किसी को हक़ीक़तन ख़ालिक (बनाने वाला पैदा करने वाला) जाने या कहे या मानें वो मुशरिक हैं !
इबादत मे शिर्क - सिर्फ़ अल्लाह तआ़ला ही इबादत के लायक है जो शख़्स अल्लाह तआ़ला के सिवा किसी दूसरे को मुस्तहिक़ ए इबादत माने या ठहराये या अल्लाह के सिवा किसी दूसरे की इबादत करे वो मुशरिक है !
Tauheed aur shirk |
सिफ़ात मे शिर्क - अल्लाह तआ़ला की जीतने भी सिफते है वो जाती है जैसे आलिम यानी इल्म वाला, क़ादिर यानी क़ुदरत वाला इख़्तियार वाला, रज़्ज़ाक़ यानी रोज़ी देने वाला वग़ैरह, अगर, अल्लाह तआला के सिवा किसी के लिए एक ज़र्रे पर क़ुदरत, या इख़्तियार, या इल्म साबित करना, अगर बिज़्ज़ात हो यानी ख़ुद अपनी ज़ात से हो तो ये शिर्क है !
मुख़्तलिफ़ अंदाज़ से शिर्क- इसी तरह अल्लाह तआ़ला के सिवा किसी दूसरे को इल्म क़ुदरत या किसी इख़्तियार मे अल्लाह तआला के बराबर, या बढ़कर मानना, या वो ज़रूरी अक़ीदे जो तौहीद के बुनियाद पर हो उन अक़ीदों के ख़िलाफ़ अक़ीदा रखना शिर्क है !
ज़रूरी नुक़्ता:-
शिर्क अकबर करने वाला मुशरिक है इसके करने से बेशक करने वाला इस्लाम व ईमान से खारिज़ हो जाएगा !
2. शिर्क ए असगर
कोई शख़्स अपनी इबादत या नेकी के काम मे इख़लास ना करें, बल्कि रियाकारी करे यानी कि दूसरों को दिखावे के लिए करे ताकि लोग उसे नेक ईमानदार इबादत गुज़ार समझे उसकी इबादत सिर्फ़ अल्लाह तआला के लिए ना हो, बल्कि दिखावा करने के लिए हो ! रियाकारी पर मुश्तमिल हरगिज़ क़बूल नही होती बल्कि ठुकरा दी जाती है ! रियाकारी की नीयत से इबादत करने वाला सवाब पाने के बजाए अज़ाब का हक़दार होता है !
शिर्क ए असगर से मुताल्लिक़ हदीस
हज़रत सद्दाद बिन औस रदियल्लाहो तआ़ला अन्हो से रिवायत है कि उन्होंने कहा कि मैंने हुज़ूर अक़दस सलल्लालाहो अलैहे व सल्लम को ये फ़रमाते सुना कि : "जिसने रियाकारी से नमाज़ पढ़ी, उसने शिर्क किया जिसने रियाकारी से रोज़ा रखा उसने शिर्क किया, जिसने रियाकारी से सदक़ा दिया उसने शिर्क किया" (मिश्कातुल मसाबिह, सफ़ा 455)
शिर्क की शुरुआत कब और कैसे हुई ?
शिर्क की शुरूआ़त कब और कैसे हुई आइए इस हदीस से समझें !जो बुत मूसा (अलैहि०) की क़ौम में पूजे जाते थे बआ़द में वही अ़रब में पूजे जाने लगे। वद दूमतुल-जन्दल में बनी-कल्ब का बुत था। सुवाअ बनी हुज़ैल का। यग़ूस बनी-मुराद का और मुराद की शाख़ बनी-ग़ुतैफ़ का जो वादी अज्वफ़ में क़ौमे-सबा के पास रहते थे यऊक़ बनी-हमदान का बुत था। नसर हिमयर का बुत था जो ज़ुल-कलाअ की आल में से थे। ये पाँचों नूह (अलैहि०) की क़ौम के नेक लोगों के नाम थे जब उन की मौत हो गई तो शैतान ने उन के दिल में डाला कि अपनी मजलिसों में जहाँ वो बैठे थे उन के बुत क़ायम कर लें और उन बुतों के नाम अपने नेक लोगों के नाम पर रख लें चुनांचे उन लोगों ने ऐसा ही किया उस वक़्त उन बुतों की पूजा नहीं होती थी लेकिन जब वो लोग भी मर गए जिन्होंने बुत क़ायम किये थे और इल्म लोगों में न रहा तो उन की पूजा होने लगी।(बुखारी :4920)
Conclusion :
Tauheed aur shirk क्या है अब आप समझ गए होंगे की तौहीद से हमारी आखिरत की कामयाबी और शर्क से हमारी आखिरत की बर्बादी है !
एक बात ज़हन नसीं कर लें की शिर्क एक बहुत बड़ा ज़ुल्म है गुनाह है जिसकी माआ़फ़ी नहीं है शिर्क हमारे हर नेकी को बरबाद कर देगा ! क़ुरआन अल करीम में अल्लाह का खुला फ़रमान है कि :अल्लाह नहीं बख़्शेगा की उस के साथ शिर्क किया जाए और बख़्श देगा जो इस के इलावा होगा, जिसे वो चाहेगा। और जो कोई अल्लाह के साथ शिर्क करे, तो वो गुमराही मे बहुत दूर निकल गया!(सूरह निसा, आयत 116)
जिसने अल्लाह के साथ किसी को शरीक किया, अल्लाह ने उसपर ज़न्नत हराम कर दिया उसका ठिकाना जहन्नम है और जालिमो का कोई मददगार न होगा (क़ुरआन सूरह माइदा:72)
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
Frequently Asked Questions:
1. शिर्क का लग्वी मानी क्या होता है ?
शिर्क का लुग़्वी माना होता है, शरीक करना , साझा करना अल्लाह के सिवा किसी मख़लूक को, इबादत, मुहब्बत, ताज़ीम मे, अल्लाह के बराबर समझना
2.शिर्क क्या है ?
शिर्क का मतलब होता है हिस्सेदार या साझेदार ! यानी यह हुआ कि किसी और को अल्लाह के समान समझना, या किसी को अल्लाह की जा़त, सिफ़ात और इ़ल्म के साथ जोड़ना, यह अ़की़दह रखना कि वह शिफातों में भी अल्लाह जैसा है। इस्लाम में शिर्क बहुत बड़ा पाप है!
3.काफ़िर का मत़लब क्या है?
काफ़िर शब्द कुफ्र से निकला है जिसका मत़लब होता है इंकार करने वाला, न मानने वाला,यकीन न करने वाला! काफ़िर शब्द सिर्फ किसी एक धर्म के मानने वाले या गैर मुस्लिमों के लिए ही इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है! ये हर इस वयक्ति के लिए कहा जा सकता है जो अपनी धार्मिक किताब के अनुसार बताए मार्ग या रास्ते पर ना चले या धार्मिक किताब के अनुसार ईश्वर या अल्लाह की पूजा या इ़बादत ना करे!
4.इस्लाम में शिर्क की सज़ा क्या है?
अल्लाह का फ़रमान है कि:और जान रखो कि जो शख़्स अल्लाह के साथ शिर्क करेगा अल्लाह उस पर जन्नत को ह़राम कर देगा और उसका ठिकाना दोजख़ है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं।
5.क्या इस्लाम में कोई अक्षम्य पाप है?/इस्लाम में किस गुनाह की माआ़फ़ी नहीं ?
शिर्क एक अक्षम्य पाप है यानी इस गुनाह की कोई माआ़फ़ी नहीं है अगर कोई इससे तौबह किए बग़ैर ही मर जाता है ! वास्तव में, अल्लाह दूसरों को अपने साथ इ़बादत में शामिल करने को मआ़फ़ नहीं करता है, और जो चाहे उसे मआ़फ़ कर देता है। और जिसने दूसरों को अल्लाह का साझी बनाया उसने बहुत बड़ा पाप किया! जिसकी कोई माआ़फ़ी नहीं है !
6.क्या शिर्क करने वालों की कोई नेकी क़बूल होगी ?
शिर्क कितना अज़ीम गुनाह है कि अल्लाह तआ़ला ने आम इन्सान तो क्या नबीयों तक को भी नसीहत कर दी कि अगर तुमने शिर्क किया तो हम तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे !"और अगर वो लोग शिर्क करते तो जो अमल वो करते थे सब बेकार हो जाते ! तो फिर हम आम इंसानों की क्या हैसीयत है! शिर्क करने वाले की कोई भी नेकी कबूल नहीं की जाएगी !
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