Zakaat aur Sadqa e Fitr/ज़कात और सदका ए फितर
Zakaat aur Sadqa e Fitr/ज़कात और सदका ए फितर |
Zakaat aur Sadqa e Fitr इस मसला को समझना बहुत जरूरी है! ज़कात इस्लाम के 5 फर्ज़ों में से एक अहम फ़र्ज़ है जिसके तहत अपने जमा किए हुवे माल का एक ख़ास हिस्सा गरीबों और मिस्किनों की मदद के लिए निकाला हर साहब ए निसाब पर फर्ज़ होता है ! और सदका ए फि़तर रोजे़दार को बेहूदगी और बेहयाई बातों से पाक करने के लिए और मोहताजों के खाने का इंतज़ाम करने के लिए फर्ज़ किया गया
सदका ए फितर ईद की नमाज़ से पहले निकालना
सदका़ ए फि़तर का मकसद रोज़े की हालत में सरज़द होने वाले गुनाहों और कमी कोताही से ख़ुद को पाक करना है।
हजरत इब्ने अब्बास से रिवायत है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया की सदका ए फि़तर रोज़ादार को बेहूदगी और बेहयाई बातों से पाक करने के लिए और मोहताजों के खाने का इंतज़ाम करने के लिए फर्ज़ किया गया। जो ईद की नमाज़ से पहले सदका़ करे तो ये मकबूल सदका़ ए फि़तर है और जो नमाज़ के बआ़द करे वो आ़म सदका़ होगा। (अबु दाऊद; 1611)
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया सदका़ रब के गुस्से को बुझाता है और बुरी मौत से बचाता है( तिर्मजी: 644)
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रिश्तेदार को सदका देना
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया मिस्कीन यानी ग़रीब गुरबा को सदका़ देना सिर्फ सदका़ है और रिश्तेदार को सदका़ देने में दो भलाइयां हैं। यह सदका़ भी है और सिला रहमी भी। (तिर्मज़ी :658)
एक और हदीस में है की नबी ने फ़रमाया अल्लाह उसका सदका़ कबूल नहीं फ़रमाता जिसके रिश्तेदार को उसकी हाजत हो और वो उन्हें छोड़ कर औरों को सदका़ दे। कसम उस जात की जिसके हाथ में मेरी जान है , अल्लाह कयामत के दिन उसपर नज़र न फ़रमाये (मजमूल ज़वाइद लिल्हैसीमी :1335)
क़ुरान अल करीम में अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है :
ये सदक़े तो अस्ल में फ़क़ीरों और मिसकीनों के लिये हैं और उन लोगों के लिये जो सदक़ों के काम पर मुक़र्रर हो और उनके लिये जिनका मन मोहना हो साथ ही ये गरदनों के छुड़ाने और क़र्ज़दारों की मदद करने में और अल्लाह के रास्ते में और मुसाफ़िर की मदद में इस्तेमाल करने के लिये हैं। एक फ़रीज़ा है अल्लाह की तरफ़ से, और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला और गहरी हिक्मत वाला है ! (सुरह तौबा:60)जकात न देने वालों का अंजान
अबू हुरैरा रजी: अल्लाहू अन्हु से रिवायत है की रसूल-अल्लाह सललल्लाहू अलैही वसल्लम ने फ़रमाया की जिसे अल्लाह ने माल दिया और उसने उसकी ज़कात अदा नही की तो क़यामत के दिन उसका माल निहायत ज़हरीले गंजे साँप की शकल इखतरियर कर लेगा उसकी आँखों के पास दो सियाह नुक़ते होंगे जैसे साँप के होते हैं फिर वो साँप उसके दोनो जबड़ो से उसे पकड़ लेगा और कहेगा की मैं तेरा माल और ख़ज़ाना हूँ
(सही बुखारी जिल्द 2, हदीस 1403)
(सही बुखारी जिल्द 2, हदीस 1403)
क़ुरआन में शब्द "ज़कात" 33 बार इस्तेमाल हुआ है और ज़्यादातर नमाज़ के साथ साथ
ज़कात का ज़िक्र हुआ है।
जकात की मिकदार
"ज़कात" आपकी पिछले साल की संपत्ती की मुल्य बढ़ोत्तरी का 2•5% हिस्सा यदि आभूषण निश्चित तय मात्रा अर्थात 52 तोला और 6 मासा चाँदी के मुल्य से अधिक हों तो उनके कुल मुल्य के 2•5% हिस्सा ज़कात का मुल्य होता है।
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जकात किसको नही दे सकते
अब देखिए कि ज़कात किसको नहीं दे सकते ?
ज़कात इन लोगों को नहीं दे सकते, क्योंकि इनकी देखभाल करने की ज़िम्मेदारी होती है, इनकी देखभाल करना बेटों, पति और बाप की होती है, इस लिए व्यक्तिगत लोगों को ज़कात देने की अनुमति नहीं है।
1- बाप 2- माँ 3-बीवी और 4- बेटा बेटी
जकात पर पहला हक
ज़कात पर पहला हक आपके सगे संबन्धियों का है। उनमें क़रीबी रिश्तेदार,पड़ोसी,और दोस्त हैं। , फिर यतीम , मिस्कीन, फ़क़ीर (गरीब और मजबूर) , ज़कात और सदक़ात की वसूली करने वाले तालीफ़े क़ल्ब , क़ैदियों को छुड़ाने के लिए, क़र्ज़दारों की मदद कर उनका कर्ज़ चुकाने में , अल्लाह के दीन को फैलाने के लिए और मजबूर मुसाफ़िर को ज़कात दिया जा सकता है।(देखें सूरह अल-बक़रह :177 और सूरह अत तौबा : 60)
"नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कि मैं तुम्हें चार कामों का हु़क्म देता हूं और चार कामों से रोकता हूं। मैं तुम्हें ईमान बिल्लाह का हु़क्म देता हूं तुम्हें मालूम है कि ईमान बिल्लाह क्या है ? उसकी गवाही देना है कि अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं और नमाज़ क़ायम करना और ज़कात देने और गनीमत में पांचवा हिस्सा देने का हु़क्म देता हूं" (सही बुख़ारी, 7556)
तो इस तरह , ज़कात पर पहला हक , सगे संबन्धीयों का है , यहाँ एक मुश्किल यह है कि और तो सभी ज़कात ले लेते हैं पर अक्सर गरीब सगे संबन्धियों की "अना" , "गैरत" , स्वाभिमान आड़े आ जाता है क्युँकि भले वह गरीब हों पर रिश्ते में वह आपके बराबर ही होते हैं।
उनको ज़कात भी मिल जाए और उनके मान स्वाभिमान और गैरत को चोट भी ना पहुँचे इसके लिए एक बेहतर तरीका है।
अपने ऐसे सगे संबन्धीयों से रमज़ान के अलावा भी मिला करें , रमज़ान में आप उनसे मिले और उनकी कुछ मदद की तो वह "ज़कात" का पैसा समझ कर अपनी गैरत पर चोट महसूस करेंगे।
उनसे शेष 11 महीनों में दो चार बार मिला करें , उनके पास बैठा करें , उनकी ज़रूरतों को समझा करें और फिर उन पर खर्च किया करें। जैसे उनकी कोई देनदारी हो वह चुका दें , जैसे उनका कोई बेटा बेटी पढ़ाई कर रहा हो उसकी सारी ज़िम्मेदारी उठा लें , जैसे उनकी कोई बेटी की शादी होनी हो उसमें मदद करें , मकान में कोई काम हो वह करा दें , उनकी जायज़ ज़रूरतें पूरी करें , इत्यादि इत्यादि।
उनकी गैरत बची रह जाएगी और आपकी ज़कात सबसे बेहरीन जगह खर्च हो जाएगी।
यही इस्लाम है।
तो इस तरह , ज़कात पर पहला हक , सगे संबन्धीयों का है , यहाँ एक मुश्किल यह है कि और तो सभी ज़कात ले लेते हैं पर अक्सर गरीब सगे संबन्धियों की "अना" , "गैरत" , स्वाभिमान आड़े आ जाता है क्युँकि भले वह गरीब हों पर रिश्ते में वह आपके बराबर ही होते हैं।
उनको ज़कात भी मिल जाए और उनके मान स्वाभिमान और गैरत को चोट भी ना पहुँचे इसके लिए एक बेहतर तरीका है।
अपने ऐसे सगे संबन्धीयों से रमज़ान के अलावा भी मिला करें , रमज़ान में आप उनसे मिले और उनकी कुछ मदद की तो वह "ज़कात" का पैसा समझ कर अपनी गैरत पर चोट महसूस करेंगे।
उनसे शेष 11 महीनों में दो चार बार मिला करें , उनके पास बैठा करें , उनकी ज़रूरतों को समझा करें और फिर उन पर खर्च किया करें। जैसे उनकी कोई देनदारी हो वह चुका दें , जैसे उनका कोई बेटा बेटी पढ़ाई कर रहा हो उसकी सारी ज़िम्मेदारी उठा लें , जैसे उनकी कोई बेटी की शादी होनी हो उसमें मदद करें , मकान में कोई काम हो वह करा दें , उनकी जायज़ ज़रूरतें पूरी करें , इत्यादि इत्यादि।
उनकी गैरत बची रह जाएगी और आपकी ज़कात सबसे बेहरीन जगह खर्च हो जाएगी।
यही इस्लाम है।
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हमे कैसे लोगों को ज़कात देनी चाहिये
कैसे लोगों को ग़रीब समझ कर उसे ज़कात देना चाहिये ?नबी ए करीम ﷺ ने सवाल करने वाले (यानी भीख मांगने वाले) को कमा कर खाने की अनोखी रहनुमाई फ़रमायी
एक बार रसूल अल्लाह ﷺ की ख़िदमत में किसी भिखारी ने सवाल किया।
तो अल्लाह के नबी ﷺ ने फ़रमाया:
क्या तेरे घर कुछ है ?
अर्ज़ किया : सिर्फ़ एक कम्बल है जिसको आधा बिछाता हूँ आधा ओढ़ता हूँ और एक प्याला है जिससे पानी पीता हूँ ।
फ़रमाया : वो दोनों ले आओ
रसूल ﷺ ने मजमे से ख़िताब करके फ़रमाया : इसे कौन ख़रीदता है ?
एक ने अर्ज़ किया कि मैं 1 दिरहम से लेता हूँ ,
फ़िर दो तीन बार फ़रमाया कि 1 दिरहम से ज़्यादा कौन देता है ?
दूसरे ने अर्ज़ किया : मैं 2 दिरहम में ख़रीदता हूँ , रसूल ﷺ ने वोह दोनों चीज़े उन्ही को अता फ़रमा दीं
और यह 2 दिरहम उस भिखारी को देकर फ़रमाया कि एक का ग़ल्ला (अनाज) ख़रीद कर घर मैं डालो दूसरे दिरहम की कुल्हाड़ी ख़रीद कर मेरे पास लाओ।
फ़िर उस कुल्हाड़ी में अपने मुबारक हाथ से दस्ता डाला और फ़रमाया : जाओ लकड़ियां काटो और बेचो और 15 रोज़ तक मेरे पास न आना
वो भिखारी 15 रोज़ तक लकड़ियां काटते और बेचते रहे 15 रोज़ के बाद जब बारगाहे नबवी मे हाज़िर हुए तो उनके पास खाने पीने के बाद 10 दिरहम बचे थे उसमें से कुछ का कपड़ा ख़रीदा कुछ का ग़ल्ला।
रसूल ﷺ ने फ़रमाया, यह मेहनत तुम्हारे लिए मांगने से बेहतर है ।
[इब्ने माजाह जिल्द 3 हदीस 198 सफ़ा 36]
[इब्ने माजाह : 2198]
Conclusion:
ग़ौर फ़रमाइए! भीख मांगने वालों को बढ़ावा न दें
रसूल अल्लाह ﷺ ने तो जिसके पास सिर्फ़ 2 चीज़ें (कम्बल और प्याला) था उसे भी भीख मांगने के बजाए कमा कर खाने की तरग़ीब दिलायी
जबकि हमने भीख दे दे कर इनकी तअ़दाद बढ़ा दी है जिसकी वजह से भिखारियों की सबसे ज़्यादा तअ़दाद मुसलमानो में है ये लोग बाज़ारों, गलियों - मुहल्लों और आ़म जगहों पर मुसलमानी हुलिये में भीख मांग कर हमारे प्यारे मज़हब दीने इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं।
इनका सबसे ज़्यादा शिकार हमारी भोली भाली माँ - बहने होती हैं लिहाज़ा बेदारी लाइये,
अपने दोस्तो अहबाब ख़ास कर अपने घरों की ख़्वातीन को समझाइये
इन्हे भीख देकर मुसलमानो में भिखारियों की तादाद बढ़ाने का ज़रिया न बनिए। ज़कात फ़ित्र और सदक़ा से अपने कमज़ोर पड़ोसी अपने रिश्तेदारो या फिर आप जिसे जानते हो उसे भीख समझकर नहीं बल्कि उसकी माली मदद करके उसे मज़बूत बनाने में लगाए। अल्लाह से दुआ भी करे।
बराये करम इस पैग़ाम को आम कीजिए और बेदारी लाइए,,,
जबकि हमने भीख दे दे कर इनकी तअ़दाद बढ़ा दी है जिसकी वजह से भिखारियों की सबसे ज़्यादा तअ़दाद मुसलमानो में है ये लोग बाज़ारों, गलियों - मुहल्लों और आ़म जगहों पर मुसलमानी हुलिये में भीख मांग कर हमारे प्यारे मज़हब दीने इस्लाम को बदनाम कर रहे हैं।
इनका सबसे ज़्यादा शिकार हमारी भोली भाली माँ - बहने होती हैं लिहाज़ा बेदारी लाइये,
अपने दोस्तो अहबाब ख़ास कर अपने घरों की ख़्वातीन को समझाइये
इन्हे भीख देकर मुसलमानो में भिखारियों की तादाद बढ़ाने का ज़रिया न बनिए। ज़कात फ़ित्र और सदक़ा से अपने कमज़ोर पड़ोसी अपने रिश्तेदारो या फिर आप जिसे जानते हो उसे भीख समझकर नहीं बल्कि उसकी माली मदद करके उसे मज़बूत बनाने में लगाए। अल्लाह से दुआ भी करे।
बराये करम इस पैग़ाम को आम कीजिए और बेदारी लाइए,,,
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
FAQs:
Que: ज़कात और फि़तरा में क्या अंतर है ?
Ans: ज़कात इस्लाम के ख़ास फर्ज़ों में से एक अहम फ़र्ज़ है जिसके तहत अपने जमा किए हुवे माल का एक खास हिस्सा गरीबों और मिस्किनों की मदद के लिए निकाला फ़र्ज़ है ! और सदका ए फि़तर रोजे़दार को बेहूदगी और बेहयाई बातों से पाक करने के लिए और मोहताजों के खाने का इंतज़ाम करने के लिए फर्ज़ किया गया
Que: एक आदमी का फितरा कितना होता है?
Ans: एक आदमी का फि़तरा तक़रीबन 2.5 किलोग्राम होता है और जो अनाज आप खाते है वैसा ही अनाज दिया जाता है !
Que: कौनसा सदका सबसे अफ़ज़ल है ?
Ans: नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया मिस्कीन यानी ग़रीब गुरबा को सदका़ देना सिर्फ सदका़ है और रिश्तेदार को सदका़ देने में दो भलाइयां हैं। यह सदका़ भी है और सिला रह़मी भी।
Que: कौनसा सदका़ कबूल है ?
Ans: जो कोई ईद की नमाज़ से पहले सदका़ करे तो ये मक़बूल सदका़ ए फि़तर है और जो नमाज़ के बआ़द करे वो आ़म सदका़ होगा।
Que: ज़कात कब फर्ज है?
Ans: ज़कात हर साहिबे निसाब पर फ़र्ज़ है, जिसके पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या इतनी रक़म हो उसे ज़कात देना ज़रूरी है !
Que: मुस्लिम लोग ज़कात क्यों देते हैं?
Ans: क्योंकि ज़कात फ़र्ज़ है जो ज़कात न देगा ज़कात अदा नही करेगा तो क़यामत के दिन उसका माल निहायत ज़हरीले गंजे साँप की शकल इख़्तियार कर लेगा और उसे डसेगा
Que: ज़कात कैसे निकाला जाता है?
Ans: ज़कात" आपकी पिछले साल की संपत्ती की मुल्य बढ़ोत्तरी का 2•5% हिस्सा यदि आभूषण निश्चित तय मात्रा अर्थात 52 तोला और 6 मासा चाँदी के मुल्य से अधिक हों तो उनके कुल मुल्य के 2•5% हिस्सा ज़कात का मुल्य होता है।
Que: हम फि़तरा क्यों देते हैं?
Ans: फि़तर का मकसद रोज़े की हालत में सरज़द होने वाले गुनाहों और कमी कोताही से ख़ुद को पाक करना होता है इसी लिए फितरा देना चाहिए!
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