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Namaz me Rafa alyadein/ नमाज़ में रफअ़ अल यदेन

Namaz me Rafa alyadein/ नमाज़ में रफअ़ अल यदेन

 

Namaz me Rafa alyadein/ नमाज़ में रफअ़ अल यदेन

Namaz me Rafa alyadein रफ़ा अल यदैन यानी दोनो हाथों को कंधों या कानों के लौ तक उठाना है! रफअ़ अल यदेन नमाज़ के अरकानों में से एक अरकान और सुन्नतों में से एक सुन्नत है ! रुकूआ में जाते और रूकुआ से उठते वक्त और तीसरी रकअ़त के शुरू में रफ़ा अल यदैन कई सारे अहादीस से साबित है 


    हर मुस्लमान रफअ़ अल यदेन के साथ नमाज़ पढ़े
    इमाम मालिक, इमाम शाफ़ई और इमाम अहमद बिन हंबल (रह.) वग़ैरह भी रफअ़ अल यदेन  के क़ाइल थे। लिहाज़ा यह कहना की इमाम शाफिई और इमाम मालिक (रह.) के बीच इस मसले पर मतभेद था जो ख़त्म नहीं हुआ, सरासर ग़लत और बेबुनियाद है, जिसमे कोई सच्चाई नही।

    आप ﷺ के वफा़त के 34 साल बआ़द रफअ़ अल यदेन का सबूत

    ताबेईन भी Namaz me Rafa alyadein करते थे आईए दलील देखें !, नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के 34 साल बआ़द नमाज़ की हालत को देखें, जो की रफअ़ अल्यदैन पर है! तर्क रफअ़ अल्यदैन कभी हुवा ही नही है!
     नबी ﷺ के इंतकाल के लगभग चौंतीस साल बआ़द, नाफ़अ़ ताबेई हैं, उन्होंने 44 ईस्वी में इस्लाम कबूल किया। तफसील के लिए देखें , तारिख खलीफा बिन खायत (पृष्ठ 207, तारिख अल-इस्लाम लिलदहबी, खंड 4, पृष्ठ 12,
    अल नूर ऐनिन तैयब जदीद सफहा. (260)
     नफ़ीअ ताबीइ ने कहा: "अब्दुल्ला बिन उमर जब "नमाज़ में दाखिल होते , तकबीर कहते और अपने हाथ उठाते यानी रफा यादैन करते, और झुकते समय, वह अपने हाथ उठाते थे और कहते थे समीअ़ अल्लाह लिमन हमीदः, वह अपने हाथ उठाते थे, और अब्दुल्ला बिन उमर इस अमल को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की तरफ मंसूब करते! (साहिह बुखारी, खंड 1, पृष्ठ 102, तफीमुल अल बुखारी भी देखें), खंड 1, पृष्ठ 376) 
    सुन्नत के विरुद्ध कोई भी अमल कबूल नहीं होता है! अब जो लोग अपने अकाबिरों के कहने पर चल कर कुरान और हदीस को छोड़ कर अमल करेंगें तो वह सब का सब बर्बाद है


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     अत: इससे यह पता चलता है की रफअ़ अल्यदैन  मंसूख़ नहीं हुआ लिहाज़ा रफअ़ अल्यदैन  सुन्नते नबवी (ﷺ) है और शुरू से लेकर आजतक किताब व सुन्नत के मानने वालों का इस पर अमल है। और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने आखरी वक्त तक रफ़ा अल यादेन से नमाज़ पढ़ी हैं !


     



     500 से ज़्यादा रफअ़ अल्यदैन  करने की ह़दीसें 


    1* Sahih Bukhari, Hadith- 735, 736, 737, 738, 739, 828. (Total Hadith = 6)

    2* Sahih Muslim, Hadith- 861, 862, 864, 865, 896. (Total Hadith = 5)

    3* Sunan Abu Dawood, Hadith- 721, 722, 723, 726, 729, 730, 733, 739, 741, 742, 743, 744, 745, 746, 761, 757, 966. (Total Hadith = 17)

    4* Jamai At-Tirmidhi, Hadith- 255, 256, 302, 304, 3423. (Total Hadith = 5)

    5* Sunan Nasai, Hadith- 889, 890, 891, 893, 894, 902, 1037, 1038, 1064, 1065, 1066, 1068, 1094, 1096, 1097, 1111, 1152, 1153, 1168, 1190, 1191, 1268, 1270. (Total Hadith = 23)

    6* Sunan Ibne Majah, Hadith- 858, 859, 860, 861, 862, 863, 864, 865, 866, 867, 868, 1061. (Total Hadith = 12)

    7*
    Sunan Darami, Hadith- 1285, 1286, 1287, 1346, 1347, 1348, 1396, 1397. (Total Hadith = 8)

    8*
    Muwatta Imam Malik, Hadith- 196, 198, 201. (Total Hadiths = 3)

    9*
    Sahih Ibne Khuzaima, Hadith- 456, 457, 583, 584, 585, 586, 587, 589, 643, 677, 693, 694, 695, 697, 698, 905. (Total Hadiths = 16)

    10*
    Munsad Ahmad, Hadith- 717, 4540, 4574, 5033, 5034, 5054, 5081, 5279, 5762, 5843, 6163, 6164, 6175, 6328, 6345, 9608, 14330, 15000, 15604, 18848, 18850, 18852, 18853, 18855, 18858, 18861, 18866, 18870, 18871, 18876, 18877, 20535, 20536, 20537, 20831, 23599. (Total Hadiths = 36)

    11*
    Dar Qutni, Hadith- 1119, 1120, 1121, 1122, 1123, 1124, 1125, 1126, 1127, 1128, 1129, 1130, 1131, 1132, 1133, 1134, 1135, 1138, 1145, 1148. (Total Hadiths = 20)

    12*
    Musnad Shafai: 1/35, 1/212. (Total Hadiths = 2)

    13*
    Musnad Abu Dawood Attiyalsi, Hadith- 1113, 1114, 1349. (Total Hadiths = 3)

    14*
    Musannif Abdur Razzaq, Hadith- 2517, 2518, 2519, 2520, 2521, 2522, 2523, 2524, 2525, 2526, 2527. (Total Hadiths = 11)

    15*
    Musnad Al-Hameedi, Hadith- 626, 627, 909. (Total Hadiths = 3)


    16*
    Musnad Ahmad Makhraja, Hadith- 717, 6175. (Total Hadiths = 2)

    17*
    Mustakhraj Abi Awana, Hadith- 1572, 1576, 1577, 1578, 1579, 1586, 1587, 1588, 1589, 1590, 1596. (Total Hadiths = 11)

    18*
    Sunan Al-Kubra Lil Nasai, Hadith- 646, 647, 648, 650, 676, 677, 678, 679, 693, 743, 750, 952, 953, 954, 956, 957, 959, 965, 1098, 1099, 1106, 1187, 1189. (Total Hadiths = 23)

    19*
    Musnad Al-Bazaar Al-Bahar Az-Zakhar, Hadith- 1608, 3711, 3712, 4485, 4488, 4489, 5742, 6002, 6004. (Total Hadiths = 9)

    20*
      Sunan Al-Kubra Lil Bayhaqi, Hadith- 2301, 2302, 2303, 2304, 2307, 2310, 2312, 2313, 2314, 2315, 2323, 2501, 2503, 2504, 2506, 2507, 2509, 2510, 2512, 2513, 2515, 2516, 2517, 2518, 2519, 2522, 2530, 2533, 2535, 2536, 2538, 2541, 2604, 2629, 2642, 2644, 2691, 2784, 2814, 2815, 2816, 2817, 6188. (Total Hadiths = 43)

    21*
      Al-Muntaqi Li-Ibne Jarood, Hadith- 177, 178, 192, 308. (Total Hadiths = 4)

    22*
      Sahih Ibne Habban, Hadith- 1861, 1862, 1864, 1865, 1868, 1872, 1873, 1877, 1878, 1945. (Total Hadiths = 10)

    23*
    Al-Muazzan Al-Awast Tabrani, Hadith- 1801, 1941, 6464 (Total Hadiths = 3)

    24*
    Al-Muazzam Al-Kabeer Lil Tabrani, Hadith- 10, 27, 60, 61, 77, 79, 80, 81, 82, 84, 85, 86, 89, 90, 103, 104, 118, 139, 362, 366, 368, 406, 408, 625, 626, 627, 628, 629, 630, 631, 13112, 13231, 13242. (Total Hadiths = 33)

    25*
    Sunan As-Sageer Lil Bayhaqi, Hadith- 362, 366, 368, 406, 408. (Total Hadiths = 5)

    26*
      Ma'arfa: As-Sunan Wal-Ashaar, Hadith- 2945, 3219, 3221, 3227, 3229, 3232, 3234, 3240, 3242, 3243, 3445, 3447, 3452, 3456, 3361, 3362. (Total Hadiths = 16)

    27*
      Muazzam Ibne Asakir, Hadith- 107, 411, 1021, 1201, 1572. (Total Hadiths = 5)

    28*
      Al-Muazzam As-Sahaba: Lil-Bagvi, Hadith- 2064, 2065. (Total Hadiths = 2)

    29*
      Aun Al-Ma'Bood, Hadith- 722, 723, 743, 744, 745, 752. (Total Hadiths = 6)

    30*
      As-Shakaat Li-Ibne Habban, Hadith- 11776, 14799. (Total Hadiths = 2)

    31*
      Sahih Ibne Habban Makhraja, Hadith- 1860, 1861, 1862, 1863, 1864, 1865, 1866, 1867, 1868, 1869, 1870, 1871, 1873, 1874, 1877, 1945. (Total Hadiths = 16)

    32*
      Al-Muhalla Bil-Ashaar: 2/264, 2/291, 3/4, 3/5, 3/6, 3/8,
    अब इन हज़रत को देखें तमाम मुहद्दिसीन और शेख़ अब्दुल कादिर जिलानी से रफ़ा अल यादेन साबित करने के बआ़द भी रफ़ा अल यादेन नही करते!👇




    हज़रत शेख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी रहिम. का फ़तवा


    ۞ "हज़रत पीर जिलानी रहीम. फ़र्माते है की तकबीर उला के वक़्त और रूकू में जाते वक़्त और रूकू से उठते वक़्त रफअ़ अल्यदैन करना चाहिए।"

    (गुनयतुल तालिबीन)

    हज़रत शाह वली उल्लाह साहब रह. फ़र्माते है की "जब रूकू करने का इरादा करे तो रफअ़ अल्यदैन  करे और जब रूकू से सर उठाए, उस वक़्त भी रफअ़ अल्यदैन  करे। मै रफअ़ अल्यदैन  करने वालो को न करने वालो से अच्छा समझता हु क्योंकि रफअ़ अल्यदैन  करने की हदीसें बहुत ज़्यादा है और बहुत सही है।"

    (हुज्जतुल्लाहिलबालग़ा भाग-2)

    बगल में बुत रखने की कहानी:


    ~ रफअ़ अल्यदैन  करने की जितनी हदीसें हैं सब सहीह और न करने की जो चन्‍द रवायात हैं वह सब ज़ईफ़, सब पर मुहददिसीन का कलाम है। अब कोई झूट बोलने के लिए यह कह देते हैं कि वह बगल के नीचे बुत रखते थे इसलिए रफअ़ अल्यदैन  शुरू हुई। अरे भाई! नमाज़ जमात से फ़र्ज हो रही है मदीना में और बुतों वाली पार्टी मक्‍का में रह गई है। जहां जमात से नमाज़ फ़र्ज हुई वहां बुतो वाली पार्टी कोई नहीं है। जहां बुतों वाली पार्टी है वहां जमात से नमाज़ फ़र्ज नहीं है?

      अगर मान भी लिया जाय कि वह बग़लों में बुत रखते थे तो सोचने वाली बात है की जब वो  पहली दफ़ा रफअ़ अल्यदैन  करते तभी बुत गिर जाने थे, सहीह बुख़ारी की हदीस में है कि आप कन्‍धों के बराबर हाथ उठाते और जो भाई रफ़यदैन के इंकारी हैं वह कहां तक हाथ उठाते हैं (कानों की लो तक) ठीक है तो जब यह पहली दफ़ा हाथ उठाए तो वह बुत साफ़ नीचे गिरे या नहीं ? वह कोई चिपकाने वाली चीज़ लगाकर तो नमाज़ के लिए आते नहीं थे कि वह बुत चिपक जाते हों और नीचे न गिरते हों,
    तो जब आप नमाज़ में पहली दफ़ा रफ़यदैन यानी तकबीर ए तहरीमा करते हो वह क्‍यों करते हो बुत तो ख़त्म हो गये इसे भी छोड़ दें !

     

     

    रफअ़ अल्यदैन न करने वालों से चन्‍द सवालात :


      वह तो बड़े बेवक़ूफ़ थे जो बग़लों में बुत लाते थे, जेब में डाल कर क्‍यों नहीं लाते थे? उन्‍हें इतनी अक़्ल नहीं थी कि जेब में डाल कर लायें ? किसी को पता भी नहीं चलेगा और बुत भी नही गिरेगा !

     अब सवाल उठता है की बुत लाते कौन थे? नउज़ो बिल्‍लाह यह तो नहीं कहा जा सकता कि सहाबा किराम बुत लाते थे, नहीं कहा जा सकता न ठीक है मुनाफिक़ लाते थे, अरे भाई मुनाफ़िक़ होता वही है जो ज़ाहिरी आपका, बातिनी आपका दुश्‍मन जो अन्‍दर से आपका दुश्‍मन हो वह क्‍या चाहेगा कि मेरी हकीक़त खुल जाए ? और जब मुनाफ़िक़ीन के बुत गिरते थे तो हज़रत उमर रजिअल्‍लाहु अन्‍हु की तलवार कहां थी? वह तो चाहते यही थे किसी को पता न लगे। अल्‍लाह तआला ‘वहीय’ करके बताता था कि यह मुनाफिक़ हैं। इसलिए यह मौलवियों की बनाई हुई ढकोसले वाली बात है !

    * रफअ़ अल्यदैन  न करने की किस रवायत को आप पेश करते हैं, किस रवायत को आप मन्‍सूख़ तस्‍लीम करते हैं, वह रवायत पेश करें ?
    * किस सन हिजरी में रफअ़ अल्यदैन  मन्‍सूख़ हुई वह सन भी बयान फ़रमादें?
    * किस नमाज़ में रफअ़ अल्यदैन  मन्‍सूख़ हुई, वह नमाज़ भी बतादें कि वह नमाज़ फ़ज्र की थी, ज़ुहर की थी कि अस्र की थी, मग़रिब की थी या ईशा की थी?
    *  रफअ़ अल्यदैन  मक्‍का में मन्‍सूख़ हुई है या मदीना में मन्‍सूख़ हुई है ? फ़िर अल्‍लाह तआला ने इसे कहा है कि मन्‍सूख़ हुई है या रसूलुल्‍लाह (ﷺ) ने कहा है कि रफअ़ अल्यदैन  मन्‍सूख है ?
    * ईदैन की जो तकबीरात की रफअ़ अल्यदैन हैं आप के हिसाब से मंसूख है तो फिर क्यूं ईद में रफअ़ अल्यदैन करते है ? जो दावा करते हैं उस दावे के मुताबिक़ वित्र वाली रफअ़ अल्यदैन भी मन्‍सूख़ है और तकबीरात ईदेन के जो रफअ़ अल्यदैन  है वह भी मन्‍सूख़ है और फ़िर यह मुक़ल्लिद हैं उनको चाहिये था कि अपना दावा-ए-नसख़ को इमाम अबू हनीफ़ा (रहमतुल्‍लाह अलैहि) से साबित करें कि इमाम अबू हनीफ़ा (रहमतुल्‍लाह अलैहि) ने कहा हे कि रफअ़ अल्यदैन मन्‍सूख़ है या उनके शागिर्दों से मन्‍सूख़ साबित करें ?
    जो ज़ईफ़ है वह क़वी को नसख़ कर सकता है ! नहीं.

    * कुरआन किसके साथ है ? हदीस किसके साथ है ? सलफ़ किसके साथ हैं ? रफअ़ अल्यदैन  मन्‍सूख़ होती तो इमाम अहमद बिन हंबल (रहिमल्‍लाहु अलैहि) मन्‍सूख़ कहते, इमाम मालिक (रहिमल्‍लाहु अलैहि) मन्‍सूख कहते, मन्‍सूख़ होती तो इमाम बुख़ारी (रहिमल्‍लाहु अलैहि) मन्‍सूख़ कहते, अबू दाउद (रहिमल्‍लाहु अलैहि) मन्‍सूख़ कहते, इमाम निसाई (रहिमल्‍लाहु अलैहि) मन्‍सूख़ कहते, पता चला कि रफ़यदैन मन्‍सूख़ नहीं है!
    वल्लाहु आ़लम 


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    ˡᶦᵏᵉ    ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ    ˢᵃᵛᵉ      ˢʰᵃʳᵉ



    Conclusion:

    हम रफअ़ अल्यदैन  से महरूम भाई बहनो की सेवा में बड़ी मुहब्बत और नेक नियत से अर्ज़ करते है की वे प्यारे नबी (ﷺ) की इस प्यारी सुन्नत को ज़रूर अपना लें और अ़मल में लाओ और किसी के कहने सुनने से इस नेअ़मत से महरूम न रहें।
    अल्लाह तआ़ला हम सभी को रसूलुल्लाह (ﷺ) की सुन्नतों पर अ़मल करने की सद्बुद्धि दे, आमीन।

    FAQs:

    Que: रफा अल्यदैन क्या है?
    Ans: रफ़ा अल यदैन यानी दोनो हाथों को कंधों या कानों के लौ तक उठाना है! नमाज़ में रफ़ा अल यदैन तकबीर ए तहरीमा के वक्त, रुकुअ़ जाते वक्त और रूकुअ़ से उठते वक्त और दो रकअ़त के बआ़द तीसरी रकअ़त के लिए उठते वक्त रफ़ा अल यदैन करना सुन्नत से साबित है !

    Que: शेख़ अब्दुल कादिर की नमाज़ कैसी थी ?
    Ans:  शेख़ अब्दुल कादिर की नमाज़ सुन्नत के मुताबिक थी ! वह तकबीर उला के वक़्त और रूकू में जाते वक़्त और रूकू से उठते वक़्त रफअ़ अल्यदैन करते थे।

    Que: क्या रफ़ा अल यदैन मनसूख है?
    Ans: नही ! रफ़ा अल यदैन कभी मंसूख हवा ही नहीं! नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अपनी आखरी वक्त तक इसपर अमल किए और आप के बाद भी सहाबा और ताबेयीन से रफ़ा अल यादैन साबित है !

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