Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ part:2 / सहीह नमाज़-ए-नब्वी (ﷺ)
हम पहले भाग Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ में तकबीर ए तहरीम से सजदह तक नमाज़ का सुन्नत तरीका से मुताल्लिक़ पढ़ा और जाना अब आइए मुख़्तसर Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ (पार्ट - 2) में आगे पढ़ें और जानें !
नमाज़ी जल्सा में बैठे और मसनून दुआऐं पढ़े !
Do sajdon ke beech baithna |
दो सज्दों के बीच में इत्मीनान से बैठने को 'जल्सा' कहा जाता हैं। इसके लिए पहले सज्दे से 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे सर उठाएँ और बाएँ पाँव को बिछा कर इस पर बैठ जाएँ और दायाँ पाँव खड़ा रखे, और दोनों हाथ दोनों रानो और घुटनो पर रखे। जल्से में इत्मीनान से काम ले और सज्दे के बराबर इसमें बैठे। जल्से में यह दुआ पढ़े
رَبِّ اغْفِرْ لِي رَبِّ اغْفِرْ لِي
अथवा
اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَارْحَمْنِي وَعَافِنِي وَاهْدِنِي وَارْزُقْنِي
हजरत आइशा रजि. से रिवायत है इन्होंने फ़र्माया : रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब रूकू से सर उठाते तो इस वक़्त तक सज्दा नहीं करते थे जब तक पूरी तरह खड़े न हो जाते, और जब सज्दा करके सर उठाते इस वक़्त तक (दूसरा) सज्दा नहीं करते थे जब तक अच्छी तरह बैठ न जाते और आप अपना बायां पाँव बिछा लेते थे"(सुन्न इब्ने माजा:893)
रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम का "सज्दा, रुकूअ और दोनों सज्दो के दरम्यान बैठने की मिक़दार तक़रीबन बराबर होती थी"(सहीह बुखारी:830)
रसूलुल्लाह (ﷺ) दो सज्दो के दरमयान यो कहा करते थे :
رَبِّ اغْفِرْ لِي رَبِّ اغْفِرْ لِي
(सुन्न इब्न माजा:897)
और यदि चाहे तो उपर्युक्त दुआ के स्थान पर यह दुआ पढ़े :
रसूलुल्लाह (ﷺ) दो सज्दो के दरमयान यह दुआ पढ़ा करते थे :
اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي وَارْحَمْنِي وَعَافِنِي وَاهْدِنِي وَارْزُقْنِي
(अबू दाऊद :850)
नमाज़ी दूसरा सज्दा करे !
Sajdah ka tareeqa |
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पुरे इत्मीनान से जल्से के फराइज़ से फ़ारिग़ हो तो फ़िर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए नमाज़ी दूसरा सज्दा करे और पहले सज्दे की तरह इसमें भी विन्रमता, भय व कामिल इत्मीनान से दुआ या दुआएँ पढें। फिर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे दूसरी रकअत के लिए खड़े हो जाएं। दूसरी रकअत के लिए उठने से पहले 'जल्साऐ-इस्तराहत' करे।
जल्साऐ-इस्तराहत !
Jalsa e istarahat |
दूसरा सज्दा कर चुकने के बाद एक रकअत पूरी हो चुकी है अब अगली रकअत के लिए आपको उठना हैं लेकिन उठने से पहले जल्साऐ-इस्तराहत में कुछ वक़्त बैठ कर उठे, इसकी सूरत यह है :
पहली और तीसरी रकअत के बाद दूसरी और चौथी रकअत के लिए उठने से पहले एक दफ़ा इत्मीनान के साथ बैठ जाएं, और फ़िर हाथ का सहारा ले कर खड़े हो।
हज़रत मालिक बिन हुयरस रजि. ने सुन्नत तरीक़ा बताने के लिए नमाज़ पढ़ी तो :
"जब वो पहली और तीसरी रकअत के दूसरे सज्दे से सर उठाते तो बैठ जाते और ज़मींन पर टेक लगा कर खड़े होते"(सहीह बुखारी:824)
दूसरी रकअ़त !
दूसरी रकअ़त के शुरू में सुरः फ़ातिहा और क़ुरआन की कुछ आयते पढ़े, फिर रूकूअ़ करे, फिर रुकूअ़ से सर उठाएँ और दो सज्दे ठीक इसी तरह करे जैसे पहली रकअ़त में किये थे।
Note : ......दूसरी रकअ़त में दुआएँ-इस्तिफ़्ताह नहीं पढ़ी जायेगी।
अबु हुरैरह ने कहा रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम "जब दूसरी रकअ़त पढ़ कर खड़े होते 'अल्हम्दु' (सुरः फ़ातिहा) से किरअत शुरू करते और चुप न रहते (यानी दुआएँ-इस्तिफ़्ताह न पढ़ते)"
(सहीह मुस्लिम:1356)
तीसरी और चौथी रकअ़त !
दूसरी रकअ़त के दो सज्दे करने के बआ़द तशह्हुद किया जाएगा इसे पहला क़ाअदा भी कहते है और फ़िर अगर आप नमाज़ चार रकअ़त वाली पढ़ रहे हो तो पहले क़ाअदे के बाद तीसरी रकअ़त के लिए 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे ज़मींन पर अपनी मुट्ठियों या हथेली का सहारा लेते हुवे उठे और रफ़यदैन करे और सुरः फ़ातिहा से किरअत शुरू करे।
तीसरी रकअ़त से चौथी रकअ़त में उसी तरह प्रवेश करे जिस तरह पहली से दूसरी रकअ़त में किया था। चौथी रकअ़त भी दूसरी रकअ़त की तरह होगी। चौथी रकअ़त में भी तशह्हुद किया जाएगा इसे आख़री क़ाअदा कहा जाता है, यह पहले क़ाअदे से कुछ मुख़्तलिफ़ है जिसके बारे में आगे बताया जाएगा, इंशाअल्लाह !
अगर नमाज़ दो रकअत है तो तशह्हुद के बाद अथवा चार रकअत है तो आख़री क़ाअदे के बाद सलाम फ़ेर कर नमाज़ मुकम्मल की जायेगी।
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पहला तशह्हुद !
Pahla tashahud
(A) इसे पहला क़ाअदा भी कहते है, दूसरी रकअ़त के बआ़द (दूसरे सज्दे से उठकर) बायाँ पाँव बिछाकर उसपर बैठ जाएं और दायाँ पाँव खड़ा रखें।
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज़ के बारे मे तुम सबसे ज़्यादा याद है, मैने देखा आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने तकबीरे-तहरीमा कही.............................. और दो रकअतों में बैठते तो बायाँ पाँव बिछाकर बैठते और दायाँ पाँव खड़ा रखते। जब आख़री रकअ़त में बैठते तो बायां पाँव आगे करते और दायाँ पाँव खड़ा रखते, फिर अपने बायें कूल्हे के बल बैठ जाते (यानी आख़री क़ाअदा में तवर्रूक करते)
(सहीह बुखारी: 828)
(B) नमाज़ी दोनों हाथ घुटनों पर या रान (जांघ) पर रखेँ। अब पहले क़ाअदा में तशह्हुद पढ़े।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि. से रिवायत है, वो कहते है : रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने हमें नमाज़ के दरमयान में और इस के आख़िर में तशह्हुद सिखाया, अस्वद बिन यज़ीद कहते है : हम सैयदना अब्दुल्लाह रजि. को याद करते थे जब इन्होंने हमें बताया के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने इन को तशह्हुद की ताअलीम दी थी, पस वो कहते थे : "जब आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) नमाज़ के दरमयान में और इस के आख़िर में बाएं सिरिन पर बैठते तो पढ़ते :
التَّحِيَّاتُ لِلَّهِ وَالصَّلَوَاتُ وَالطَّيِّبَاتُ السَّلاَمُ عَلَيْكَ أَيُّهَا النَّبِيُّ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ السَّلاَمُ عَلَيْنَا وَعَلَى عِبَادِ اللَّهِ الصَّالِحِينَ أَشْهَدُ أَنْ لاَ إِلَهَ إِلاَّ اللَّهُ وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُولُهُ
फ़िर अगर नमाज़ के दरम्यान में हो तो तशह्हुद से फ़ारिग़ होने के बाद (तीसरी रकअ़त के लिए) खड़े हो जाते और अगर नमाज़ के आख़िर में होते तो इतनी दुआऐं करते, जितनी अल्लाह तआला को मंज़ूर होती, फ़िर सलाम फ़ेर देते"
(मुसनद अहमद: 4382)
(C) रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम दरम्यानी (बीच के) तशह्हुद में तशह्हुद (अत्ताहीय्यात....) से फ़ारिग़ होकर खड़े हो जाते थे।
लिहाज़ा दरम्यानी तशह्हुद में सिर्फ़ तशह्हुद (अत्ताहीय्यात....) काफ़ी है।
और अगर कोई शख़्स तशह्हुद के बआ़द दुआ करना चाहता है तो भी जाइज़ है।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "जब तुम दो रकअ़त के बआ़द बैठो तो यह पढ़ो - " अत्ताहीय्यात....", और तुम में से हर आदमी वो दुआ़ मुन्तख़ब करे जो इसे ज़्यादा अच्छी लगे, फ़िर अल्लाह तआला से दुआ करे"
(सुन्न निसाई :1164)
और दुआ से पहले दरूद पढ़ना चाहिए।
सहाबी रसूल (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) हज़रत फ़ज़ाला बिन अबैद रजि. बयान करते थे के रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने एक शख़्स को नमाज़ में दुआ करते हुवे सुना के इस ने अल्लाह की हम्द व सना न की थी और न नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) के लिए दरूद पढ़ा था, तो रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने फ़र्माया- इस ने जल्दी की, फ़िर इस को बुलाया और इसे या किसी दूसरे से फ़र्माया :
"जब तुम में से कोई नमाज़ पढ़े तो पहले अपने रब की हम्द व सना बयान करे, फ़िर नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) के लिए दरूद पढ़े, इस के बआ़द जो चाहे दुआ करे"
(अबू दाऊद:1481)
लिहाज़ा दरम्यानी तशह्हुद में तशह्हुद (अत्ताहीय्यात....) के बाद दरूद और दुआ भी की जा सकती है।
(D) दरूद शरीफ हर तशह्हुद में पढ़ना चाहिए।
रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से आख़री तशह्हुद (आख़री क़ाअदा) से पहले वाले तशह्हुद (क़ाअदा-अव्वल) में दरूद-शरीफ पढ़ना सहीह हदीस से साबित है।
हज़रत आइशा रजि. फ़रमाती है के हम रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के लिए आप की मिस्वाक और वज़ू का पानी तैयार रखते थे फ़िर जब अल्लाह तआला पसंद फ़रमाता, रात में आप को उठा देता, आप (उठ कर) मिस्वाक और वज़ू फ़रमाते और "नो (9) रकअत इस तरह पढ़ते के इन में से किसी के आख़िर में न बैठते मगर आठवीं रकअत पर बैठते, अल्लाह की हम्द करते और नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) पर दरूद पढ़ते और दुआऐं करते मगर सलाम न फ़ेरते फिर नवमी (9) रकअत पढ़ कर बैठते और अल्लाह की हम्द व सना फ़रमाते और नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) पर दरूद पढ़ते और दुआऐं करते, फ़िर इतनी आवाज़ से सलाम फ़ेरते के हमें सुनाई देता, फ़िर बैठ कर दो रकअत पढ़ते"
(सुन्न निसायित: 1721)
इस हदीस से वाज़ेह हो गया की ख़ुद रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने भी आख़री काअदे से पहले वाले काअदे में दरूद पढ़ा है। लिहाज़ा हमें आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) की सुन्नत के मुताबिक़ आख़री काअदे से पहले वाले काअदे (क़ाअदे-अव्वल) में भी दरूद पढ़ना चाहिए।
मसला रफअ सबाबा !अंगुली को हरकत देना !
Ungli ka harkat dena |
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तशह्हुद में ऊँगली को उठाना रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की बड़ी बरकत वाली और महान सुन्नत है, इसका सुबूत सुन्नत रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) से देखे।
(A) तशह्हुद में ऊँगली से इशारा करने से पहले बाक़ी की उंगलियो से एक ख़ास तरह की आकृति बनाना।
हज़रत वाइल बिन हुज्र रिवायत करते है, इन्होंने फ़रमाया : मैने रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को देखा के "आपने अंगूठे और दरमियान (बीच) की उँगली से दायरा (हलक़ा) बनाया और इस की क़रीब की ऊँगली (शहादत/तर्जनी ऊँगली) को उठाया, आप तशह्हुद में इस के साथ (इशारा करते हुए) दुआ कर रहे थे"(सुन्न इब्न माजा: 912)
(B) तशह्हुद में दायीं हथेली दायीं रान पर और बायीं हथेली बायीं रान पर रखना और दौराने-तशह्हुद में ऊँगली को हरकत देते हुए इसके साथ दुआ करना।
हज़रत वाइल बिन हुज्र रजि. से रिवायत हैं,'इन्होंने फ़रमाया : मैने इरादा किया के मै ज़रूर रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) की नमाज़ को ग़ौर से देखूंगा के आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) कैसे नमाज़ पढ़ते हैं। मैन ग़ौर से देखा......फ़िर इन्होंने बयान किया के.....फ़िर आप बैठे और अपना बायां पाँव बिछाया और अपनी बायीं हथेली अपनी बायीं रान और घुटने पर रखी और अपनी दायीं हथेली अपनी बायीं रान और घुटने पर रखी और अपनी दायीं कुहनी का किनारा अपनी दायीं रान पर रखा, फिर (अपनी दायीं हाथ की) दो उंगलिया बंद की और (दरमियानी ऊँगली और अंगूठे से) हलक़ा बनाया, फ़िर अपनी शहादत की ऊँगली को उठाया।, मैने आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को देखा, आप इसे हरकत देते थे और इस के साथ दुआ करते थे"
(सुन्न निसाइ:1269)
(C) तशह्हुद में इशारे के दौरान ऊँगली को कुछ झुका कर रखा जाएँ।
हज़रत नुमैर खुजाई रजि. से रिवायत हैं, इन्होंने फ़रमाया : मैने रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को दौरान नमाज़ में दायां हाथ दायीं रान पर रखे हुए देखा, आप अपनी ऊँगली शहादत उठा रखी थी,अलबत्ता इसे कुछ झुकाया हुवा था और आप तशह्हुद पढ़ रहे थे"
(सुन्न निसाई :1275)
(D) तशह्हुद में इशारे के दौरान ऊँगली क़िब्ला रुख रखते हुए नज़र इसी पर रखना।
हजरत अब्दुल्लाह बिन उमर रजि.से रिवायत है : .................ने अपना दायां हाथ अपनी दाहिनी रान पर रखा और अंगूठे के साथ वाली ऊँगली से क़िब्ले (सामने) की तरफ़ इशारा किया और अपनी नज़र इसी पर टिकाई, इसके बाद उन्होंने फ़र्माया 'मेंने रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) को ऐसे करते देखा हैं।"
(सुन्न निसायी: 1161)
आख़िरी क़ाअदा (आख़िरी तशह्हुद) !/ {तवर्रूक}
Aakhiri Tashahud / Tawarruk |
(A) जिस रकअ़त पर नमाज़ ख़त्म होती हैं इस में तशह्हुद बैठने का तरीक़ा {तवर्रूक}
आख़री रकअत मुकम्मल करके तशह्हुद में बैठ जाएं। आख़िरी तशह्हुद का तरीक़ा भी पहले तशह्हुद वाला है, फर्क़ सिर्फ़ यह है के दायाँ पाँव खड़ा करें, बायां पाँव (दायीं पिंडली के नीचे से) बाहर निकाले और ज़मीन पर बैठे। बायीं जानिब कूल्हे पर बैठना 'तवर्रूक' कहलाता है और यह सुन्नत है।
हजरत अबु हुमेद साअदी रजि. से मरवी हैं , इन्होंने फ़र्माया : "रसूलुल्लाह (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) इन दो रकअत के बाद जिन पर नमाज़ ख़त्म होती हैं (तशह्हुद में बैठते वक्त) अपना बायाँ पाँव दायीं तरफ़ (पिंडली के नीचे से) बाहर निकाल लेते और कूल्हे पर (ज़ोर दे कर) बैठते फ़िर सलाम फ़ेरते"
(सुन्न निसाई :1263)
(B) जब क़ाअदे में बैठे तो पहले अत्तहीय्यात...., पढ़े जिस तरह दूसरी रकअत पढ़कर आपने क़ाअदे में पढ़ी थी, और रफअ सबाबा (शहादत की ऊँगली उठा कर इशारा) भी लगातार जारी रखे। अत्तहीय्यात ख़त्म करके मंदरजा ज़ील (निम्नलिखित) दरूद शरीफ़ पढ़ें।
अत्ताहियातु लिल्लाहि वस्सलवातु वत्तैयिबातू
अस्सलामु अलैका अय्युहन नाबिय्यु रहमतुल्लाही व बरकताहू
अस्सलामु अलैना व आला इबादिल्लाहिस सालिहीन
अशहदु अल्ला इलाहा इल्ललाहू व अशहदु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसुलहू
हज़रत इब्राहिम रह.ने बयान किया के एक मर्तबा हज़रत काअब रजि. से मेरी मुलाक़ात हुई तो इन्होंने कहा क्यों न मै तुम्हे (हदीस का) एक तोहफ़ा पहुँचा दू जो मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से सुना था, मैने अर्ज किया के हम ने ऑहज़रत से पूछा था, या रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम हम आप पर और आप के अहले-बैत पर किस तरह दरूद भेजा करे? अल्लाह तआला ने सलाम भेजने का तरीक़ा तो हमें ख़ुद ही सीखा दिया है,
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया ये कहा करो :
अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन
कमा सल्लैता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नक हमीदुम मजीद,
अल्लाहुम्म बारिक अला मुहम्मदिन व अला आलि मुहम्मदिन
कमा बारक्ता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नक हमीदुम मजीद
اللَّهُمَّ صَلِّ عَلَى مُحَمَّدٍ وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ
كَمَا صَلَّيْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ
.إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
اللَّهُمَّ بَارِكْ عَلَى مُحَمَّدٍ، وَعَلَى آلِ مُحَمَّدٍ
كَمَا بَارَكْتَ عَلَى إِبْرَاهِيمَ وَعَلَى آلِ إِبْرَاهِيمَ
.إِنَّكَ حَمِيدٌ مَجِيدٌ
(सहीह बुखारी :3370)
(C) दरूद के बाद की दुआएँ।
नमाज़ी तशह्हुद पढ़े तो इसे चाहिए के अल्लाह से चार चीज़ों की पनाह तलब करे यानि अज़ाब 'जहन्नम' अज़ाब 'कब्र', 'ज़िन्दगी और मौत' के फ़ित्ने से और फित्नाए-मसीह दज्जाल की बुराई से।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : जब कोई तुम में से नमाज़ में तशह्हुद पढ़े तो चार चीजो से पनाह मांगे, कहे
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنْ عَذَابِ جَهَنَّمَ وَمِنْ عَذَابِ الْقَبْرِ وَمِنْ فِتْنَةِ الْمَحْيَا وَالْمَمَاتِ وَمِنْ شَرِّ فِتْنَةِ الْمَسِيحِ الدَّجَّالِ
सहीह मुस्लिम:1323 (588)
हज़रत अबु बक्र सिद्दीक़ रजि. से रिवायत करते है की मैने कहा , या रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम! नमाज़ में मांगने के लिए मुझे (कोई) दुआ सिखाइए (की उसे अत्तहीय्यात और दरूद के बाद पढ़ा करू) तो,
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : पढ़ -
अल्लाहुम्मा इन्नी ज़लमतू नफ़्सी ज़ुलमन कसीरा,वला यग़फिरुज़-ज़ुनूबा इल्ला अनता,फग़फिरली मग़ फि-र-तम्मिन ‘इनदिका,वर ‘हमनी इन्नका अनतल ग़फ़ूरूर्र रहीम
اللَّهُمَّ إِنِّي ظَلَمْتُ نَفْسِي ظُلْمًا كَثِيرًا وَلاَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ إِلاَّ أَنْتَ، فَاغْفِرْ لِي مَغْفِرَةً مِنْ عِنْدِكَ، وَارْحَمْنِي إِنَّكَ أَنْتَ الْغَفُورُ الرَّحِيمُ
(सहीह बुखारी: 834)
(D) तशह्हुद ख़ामोशी से पढ़ना।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद रजि. से रिवायत है इन्होंने ने कहा : "सुन्नत यह है के तशह्हुद को ख़ामोशी से पढ़ा जाएँ"
(सुन्न अबू दाऊद:986)
नमाज़ का समापन सलाम से करे !
Namaz ka Khaatma Salam |
तशह्हुद की दुआऐं पढ़ने के बाद नमाज़ी पहले दायीं तरफ़ व बायीं तरफ़ चेहरा फ़ेरकर सलाम कहे और नमाज़ को मुकम्मल करें।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :"नमाज़ की चाबी वुज़ू है और इस की तहरीम 'अल्लाहु अकबर' ही कहना और इस की तहलील सलाम फ़ेरना ही है"
(मुसनद अहमद :1072)
हज़रत अलकमा बिन वाइल अपने वालिद से बयान करते है : मैने नबी (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) के साथ नमाज़, "आप अपनी दायीं तरफ़ सलाम फ़ेरते तो السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ وَبَرَكَاتُهُ कहते और अपनी बायीं तरफ السَّلاَمُ عَلَيْكُمْ وَرَحْمَةُ اللَّهِ कहते"
(सुन्न अबू दाऊद :997)
हज़रत साद से रिवायत है के मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को "दायीं और बायीं तरफ़ सलाम फ़ेरते देखा करता यहाँ तक के आप की रुख़सार की सफ़ेदी मुझ को दिखाई देती थी"
सहीह मुस्लिम:1315 (582)
नोट :- अहादीस के हवालों में काफ़ी एहतियात बरती गयी है लेकिन फ़िर भी अगर कोई ग़लती रह गयी हो तो ज़रूर इस्लाह करें।
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Part:1 yahan padhen : Saheeh Namaz e Nabvi part:1
Conclusion:
अब तो ये पता चल गया होगा की Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ क्या है!अगर ये सही न हुई तो ज़िन्दगी भर पढ़ी नमाज़ बर्बाद हो जायेगी! अगर देखा जाए तो ये एक ऐसी इबादत है जिसके बगैर कोई भी नेकी या इबादत कबूल नहीं होगी! क्योंकि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है की क़यामत के दिन सबसे पहले बंदे से नमाज़ का हिसाब लिया जायेगा अगर नमाज़ दुरूस्त निकली तो काम्याबी नही तो नाकामी हाथ आयेगी!
FAQ:
Ans:इस्लाम धर्म में कलमा ए शहादत के बाद इस्लाम का सबसे पहला रुकन नमाज़ है,अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: नमाज़ धर्म का स्तंभ है, इस्लाम और कुफ़्र के बीच, मुसलमानों और मुनकिरों के बीच अंतर करने वाला अ़मल नमाज़ ही है,
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