Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ part:1/ सहीह नमाज़-ए-नब्वी (ﷺ)
(सही बुख़ारी : 631)
सबसे पहले नमाज़ी मुकम्मल वुज़ू करे !
बगैर वजू नमाज़ नही है ! रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "अल्लाह तआला नहीं क़बूल करता तुम में से किसी की नमाज़ जब वो बे-वुज़ू हो यहाँ तक के वुज़ू करे" (सही मुस्लिम : 537)
नमाज़ी क़िब्ला की और मुँह करे !
Namaz me Qayam karna |
नमाज़ पढ़ने वाला जहाँ कही भी हो अपने पुरे शरीर के साथ क़िब्ला (काअबा) की दिशा की तरफ़ हो जाएँ।
बरा बिन आजिब रजि. फ़रमाते है :"हम ने अल्लाह के रसूल सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के साथ 16 (सोलह) या 17 (सत्रह) महीने तक बैतुल-मक्दिस की तरफ़ मुँह करके नमाज़ पढ़ी, फिर अल्लाह तआला ने हमें काअबा की तरफ मुँह करने का हुक्म दिया" (सही बुख़ारी : 4492)
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नमाज़ी सुन्नत के मुताबिक़ सुतरह का प्रयोग करे !
नमाज पढ़ने वाला इमाम हो या अकेला हो, उसे चाहिए की सुन्नत के मुताबिक़ अपने आगे सुतरह (लकड़ी या कोई अन्य वस्तु) रख कर उस ओर नमाज पढ़े।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :"जब तुम अपने सामने पालान की छिछली लकड़ी के बराबर कोई चीज रख लो तो तुम्हे कोई नुकसान नहीं के कौन तुम्हारे आगे से गुज़रता हैं" (सुनन अबु दाऊद : 685)
नमाज़ की निय्यत करे !
नमाज़ी फर्ज़, सुन्नत या नफ़्ल जो नमाज़ पढ़ने का इरादा रखता हो अपने दिल में उसकी नियत करे, निय्यत दिल के इरादे का नाम हैं। अपनी ज़बान से नियत के शब्द न निकाले, क्योंकि ज़ुबान से नियत करना किताब व सुन्नत से साबित नहीं।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "तमाम आमाल का दारोमदार निय्यत पर है और हर अमल का नतीजा हर इंसान को इस की निय्यत के मुताबिक़ ही मिलेगा.........." (सही बुख़ारी : 1)
नमाज़ में क़ियाम करना !
क़ियाम क़ुदरत रखने वाले पर ज़रुरी है और माअज़ुर के लिए रुख़्सत हैं।
हज़रत इमरान बिन हुसैन रजि. ने कहा के मुझे बवासीर का मर्ज़ था। इस लिए मैने नबी करीम सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से नमाज़ के बारे में दरयाफ़्त किया,
आप (ﷺ) ने फ़र्माया : "खड़े हो कर नमाज़ पढ़ा करो अगर इस की भी ताक़त ना हो तो बैठ कर और अगर इस की भी ना हो तो पहलु के बल लेट कर पढ़ लो" (सही बुख़ारी : 1117)
किब्ला रुख खड़े होने के बाद तकबीरे-तहरीमा "अल्लाहु अकबर" कहे
हजरत अबु हमीद साअदी से रिवायत है इन्होंने फ़र्माया "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब नमाज़ की लिए खड़े होते तो क़िब्ले की तरफ़ मुँह करते, अपने दोनों हाथ उठाते और 'अल्लाहु अकबर' कहते"(सुनन इब्ने माजह : 803)
तकबीर के तमाम मक़ामात और अल्फ़ाज़ !
हज़रत अबु हुरैरह रजि. फ़रमाते है : "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब नमाज़ के लिए खड़े होते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फ़िर जब रूकू फ़रमाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फ़िर जब रूकू से अपनी पुश्त उठाते तो 'समीअल्लाहु लिमन हमिदह' कहते, फिर खड़े-खड़े कहते 'रब्बना लकल हम्द' फ़िर जब सज्दे के लिए झुकते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब सज्दे से सर उठाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब दूसरा सज्दा करते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फिर जब सज्दे से सर उठाते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते, फ़िर सारी नमाज़ में ऐसे ही करते हत्ता के इसे मुकम्मल फ़रमाते, और जब दो रकअतो के बाद बैठ कर उठते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते"(सुनन एन-निसाई : 1151)
अल्लाहु अकबर' कहते वक़्त अपने दोनों हाथ कंधो या कानो के बराबर उठाएं
हजरत वाइल बिन हुज्र रजि. फ़रमाते है "मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के पीछे नमाज़ पढ़ी। जब आपने नमाज़ शुरू फ़रमाई तो "अल्लाहु अकबर" कहा और अपने हाथ उठाये हत्ता के वो कानो के बराबर हो गये फ़िर आप ने सुरः फ़ातिहा पढ़ी, जब सुरः से फारिग हुए तो बुलन्द आवाज़ से आमीन कहीँ"(सुनन एन-निसाई : 880)
रफअ़ अल्यदैन करना !
Rafa alyadein |
नमाज़ में दोनों हाथो को कानों या कंधो तक उठाने को 'रफअ़ अल्यदैन या रफउलयदैन' कहा जाता है।
(A) रफअयदैन के तमाम मकामात।
रफअयदैन नमाज़ में चार जगह साबित है :
1. शुरू नमाज़ में तकबीरे-तहरीमा कहते वक़्त,
2. रूकूअ से पहले,
3. रुकूअ के बाद,
4. और तीसरी रकअत के शुरू में।
हज़रत अली बिन अबी तालिब रजि. से रिवायत है, वो रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से बयान करते है के "आप जब फर्ज़ नमाज़ के लिए खड़े होते तो 'अल्लाहु अकबर' कहते और अपने दोनों हाथ कंधो तक उठाते, और जब अपनी किरअत पूरी कर लेते और रूकूअ करना चाहते तो इसी तरह हाथ उठाते और जब रूकूअ से उठते तो इसी तरह करते, और नमाज़ में बैठे हुवे होने की हालत में रफअयदैन न करते थे और जब दो रकअत पढ़ कर उठते तो अपने हाथ उठाते और 'अल्लाहु अकबर' कहते"(सुनन अबु दाऊद : 744)
(B) रफअयदैन करते समय उंगलिया (नार्मल तरीक़े पर) खुली रखे, उंगलियो के बीच ज़्यादा फ़ासला न करे न उंगलिया मिलाएं।
अबु हुरैरह रजि. ने फ़र्माया : तीन काम ऐसे है जिन्हें रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम किया करते थे, लोगो ने इन्हें तर्क कर दिया है, आप जब नमाज़ के लिए खड़े होते तो आप ऐसे करते, अबु आमिर ने अपने हाथ से इशारा किया कर के दिखाया और अपनी उंगलियो के दरम्यान न ज़्यादा फ़ासला रखा और न इन्हें मिलाया (बल्कि दरम्यानी हालत में रखा)............................."(सही इब्ने खुज़ैमा : 459)
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तकबीरे-तहरीमा और रफयदैन के बाद हाथो को सीने पर मज़बूती से बांधे !
Seene par haath bandhana |
नमाज़ी को दायां हाथ बाएं हाथ पर इस तरह रखना चाहिए की दायां हाथ बाएं हाथ की हथेली की पुश्त, जोड़ और कलाई पर आ जाए और दोनों को सीने पर बाँधा जाए।
हज़रत वाइल बिन हुज्र रजि. रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज़ का तरीक़ा ब्यान करते हुए फ़र्माते है की "आप ने दाएं हाथ को बाएं हाथ की हथेली (की पुश्त), जोड़ और कलाई पर रखा" (सुनन एन-निसाई : 890)
हज़रत वाइल बिन हुज्र रजि. फ़रमाते है : "मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के साथ नमाज़ पढ़ी, और आपने अपना दायाँ हाथ बाएँ हाथ पर रख कर सीने पर हाथ बाँध लिए" (सही इब्ने खुज़ैमा : 479)
तकबीरे-तहरीमा और कीरअत के दरम्यान दुआ इस्तिफ्ताह {सना} सिर्रन पढ़ें !
हज़रत अबु हुरैरह रजि. फ़रमाते है : "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम तकबीरे-तहरीमा और कीरअत के दरम्यान थोड़ी देर ख़ामोश रहते थे, अबु ज़र्र ने कहा मै समझता हु हज़रत अबु हुरैरह रजि. ने यों कहा या रसूलुल्लाह, आप पर मेरे माँ-बाप क़ुर्बान हो, आप इस तकबीर और कीरअत के के दरम्यान की ख़ामोशी के बीच में क्या पढ़ते हो ?
आप (ﷺ) ने फरमाया, मै पढता हूँ:
اللَّهُمَّ بَاعِدْ بَيْنِي وَبَيْنَ خَطَايَاىَ كَمَا بَاعَدْتَ بَيْنَ الْمَشْرِقِ وَالْمَغْرِبِ، اللَّهُمَّ نَقِّنِي مِنَ الْخَطَايَا كَمَا يُنَقَّى الثَّوْبُ الأَبْيَضُ مِنَ الدَّنَسِ، اللَّهُمَّ اغْسِلْ خَطَايَاىَ بِالْمَاءِ وَالثَّلْجِ وَالْبَرَدِ
(सही बुख़ारी : 744)
और यदि चाहे तो उपर्युक्त दुआ के स्थान पर यह दुआ पढ़े :
रसूलुल्लाह (ﷺ) नमाज का आगाज़ फ़रमाते तो यह दुआ पढ़ते :
سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ وَتَبَارَكَ اسْمُكَ وَتَعَالَى جَدُّكَ وَلاَ إِلَهَ غَيْرُكَ
(सुनन एन-निसाई : 900)
दुआ इस्तिफ्ताह के बाद तअव्वुज पढ़े !
अल्लाह तआला क़ुरआन में फ़रमाता है :
"फिर जब आप कुरआन पढ़ने लगे तो शैतान मर्दुद से अल्लाह की पनाह तलब कर लिया करे"
(अन-नहल 16 : 98)
हज़रत इब्ने मसउद रजि. रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम से रिवायत करते है के आप यह दुआ पढ़ा करते थे :
اللَّهُمَّ إِنِّي أَعُوذُ بِكَ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيمِ وَهَمْزِهِ وَنَفْخِهِ وَنَفْثِهِ
(सही इब्ने खुज़ैमा : 472)
तअव्वुज के बाद तस्मियाः पढ़ना !
हज़रत अनस रजि. से मरवी है : "मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम, हज़रत अबु बक्र, हज़रत उमर और हज़रत उस्मान रजि. के पीछे नमाज़ पढ़ी है, मैने इनमे से किसी को बुलन्द आवाज़ से 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' पढ़ते नहीं सुना" (सुनन एन-निसाई : 908)
हज़रत नईमुल मुजमर फ़र्माते है - 'मैनें अबु हुरैरह (रजि.) के पीछे नमाज़ पढ़ी तो उन्होंने 'बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम' पढ़ी फ़िर सूरह फ़ातिहा पढ़ी,जब 'ग़ैयरिल मग़्ज़ूबि अल्लैहि वलज़्ज़ालींन' पर पहुचे तो 'आमीन' कही और लोगो ने भी 'आमीन' कही। जब रकूअ किया तो 'अल्लाहु अकबर' कहा और, फ़िर सज्दा किया तो 'अल्लाहु अकबर' कहा और जब सलाम फ़ेरा तो कहा- उस ज़ात की क़सम जिसके हाथ में मेरी जान है ! मै तुमसे ज़्यादा रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज़ के मुशाबेह (अनुरूप) हुँ'"(सुनन एन-निसाई : 906)
नमाज़ी सुर: फ़ातिहा पढ़े !
सहीह अहादीस की रु से इमाम, मुक़्त्तदी और मुंफ़रिद (एकल नमाज़ी) सबके लिए हर नमाज़ में सूरः फ़ातिहा पढ़ना वाजिब है। मुक़्तदी को इमाम के पीछे (चाहे वह बुलंद आवाज़ से किरअत करे या न करे) सूरः फ़ातिहा ज़रूर पढ़नी चाहिए।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "जिस शख़्स ने सूरः फ़ातिहा नहीं पढ़ी उस की नमाज़ नहीं हुई
(सही बुख़ारी : 756)
उबादा बिन सामित रजि. से रिवायत है की एक मर्तबा रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने फ़ज्र की नमाज़ पढ़ी ! इस में आप सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के लिए किरात में मुश्किल पेश आयी ! जब आप सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम फारिग हुए, तो फ़रमाया शायद तुम इमाम के पीछे किरात करते हो ?, हज़रत उबादा कहते है हम ने कहा हाँ या रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम अल्लाह की क़सम (हम किरअत करते हैं)
आप (ﷺ) ने फ़र्माया : "ऐसा 'ना' किया करो सिर्फ़ 'सूरह फ़ातिहा' पढ़ा करो क्योंके इस के बग़ैर नमाज़ नहीं होती"(जामे तिर्मिज़ी : 311)
सूरः फ़ातिहा पढ़ने के बाद 'आमीन' कहें !
जब नमाज़ी अकेले नमाज़ पढ़ रहा हो तो आमीन आहिस्ता कहे। जब ज़ोहर और अस्र इमाम के पीछे पढ़ें फिर भी आहिस्ता ही कहे। लेकिन जब आप जहरी नमाज़ में इमाम के पीछे हो तो जिस समय इमाम 'वलज़्ज़ालींन' कहे तो आपको ऊँची आवाज़ से आमीन कहना चाहिए बल्कि इमाम भी सुन्नत की पैरवी में आमीन पुकार कर कहे और मुक़तदियों को इमाम के आमीन शुरू करने के बाद आमीन कहना चाहिए।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "जब इमाम आमीन कहे तो तुम भी आमीन कहो, क्योंकि जिस की आमीन फ़रिश्तों की आमीन के साथ हो गयी इस के तमाम गुनाह माफ़ कर दिए जाएंगे" (सही बुख़ारी : 780)
हज़रत वाइल बिन हुज्र रजि. फ़रमाते है : मैने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की इक्तदा में नमाज़ पढ़ी जब नबी सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम ने " ﻭَﻻَ اﻟﻀَّﺎﻟِّﻴﻦ " कहा तो फ़रमाया : " 'आमीन', हम सब ने आपकी 'आमीन' सुनी" (सुनन इब्ने माजाह : 855)
सुरः फ़ातिहा के बाद क़ुरआन में से जो चाहे पढ़े !
सुरः फ़ातिहा के बाद क़ुरआन में से जो आसान लगे और याद हो, पढ़ें।
जनाब अली बिन याहया ने हज़रत रफाअ बिन राफेअ रजि. से बयान किया कहा : "जब तुम (नमाज़ के लिए) खड़े हो कर क़िब्ला की तरफ़ रुख करो तो 'अल्लाहु अकबर' कहो फिर उम्मुल कुरान (सुरः फ़ातिहा) और क़ुरआन से कुछ पढ़ो तो अल्लाह तौफ़ीक़ दे, जब रुकूअ करो तो अपनी हथेलियो को अपने घुटनो पर रखो और कमर को लम्बा रखो, और फ़रमाया जब सज्दा करो तो इत्मीनान से टिक कर सज्दा करो और जब सज्दे से उठो तो अपनी बायीं रान पर बैठ जाओ" (सुनन अबु दाऊद : 859)
अल्लाहु अकबर कहते हुए रुकूअ करे !
Rukoo ka tareeqa |
नमाज़ी अपने दोनों हाथ दोनों काँधे या दोनों कान की लौ तक उठाकर 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए रुकूअ करे, अपना सिर अपनी पीठ के समान रखे, दोनों हाथो को दोनों घुटनो पर रखे, अपनी उँगलियाँ फैलाए रखे, सुकून और संतुष्टी के साथ रूकूअ करे।
(A) रुकूअ में पीठ (पुश्त) बिल्कुल सीधी रखें और सर को पीठ के बराबर अर्थात सर न तो ऊँचा हो और न नीचा।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "वो नमाज़ नही होती जिस में इंसान रूकूअ और सज्दे के दरम्यान में अपनी पुश्त (पीठ) को सीधा ना रखे" (सुनन एन-निसाई : 1028)
(B) दोनों हाथो की हथेलिया दोनों घुटनो पर रखे, हाथो की उंगलिया कुशादा रखे और इस तरह से रखे की घुटनो को पकड़ लेवे।
हज़रत मुहम्मद बिन उमर बयान करते है के मै असहाबे-रसूल (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) की एक मजलिस में था, तो वहाँ रसूलुल्लाह की नमाज़ का ज़िक्र शुरू हो गया, हज़रत अबु हुमैद साअदी रजि. ने कहा.............और हदीस का कुछ हिस्सा बयान किया, इस में कहा "आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) जब रुकूअ करते तो अपनी हथेलियो से अपनी घुटनो को पकड़ लेते और अपनी उंगलियां को खोल लेते और अपनी कमर को झुकाया करते, सर न तो उठाया होता और न अपने रुखसारे को इधर-उधर मोड़ा होता (बल्कि सीधा क़िबला रुख होता)..........."(सुनन अबु दाऊद : 731)
(C) दोनों हाथो (बाज़ुओं) को तान कर रखे ज़रा भी टेढ़े न हो, उंगलियों के बीच फ़ासला हो घुटनो को मज़बूत थामे, अपनी कुहनियों को पहलु से दूर रखें।
हज़रत सालिम से रिवायत है के हज़रत अकबा बिन उमर रजि. ने कहा : क्या मै इस तरह नमाज़ ना पढूं जिस तरह मैने रसूलुल्लाह रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को पढ़ते देखा है? हमने कहा क्यों नहीं!
"आप खड़े हुवे, जब रूकूअ किया तो अपनी हथेलिया अपने घुटनो पर रखी और अपनी उंगलियो को घुटनो से नीचे रखा और अपनी बग़लो को खोला (बाज़ू के पहलु से दूर रखा) हत्ता के आप का हर अजुव सीधा और दुरुस्त हो गया (अपनी जगह पर जम गया)......................"(सुनन एन-निसाई : 1038)
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज़ के बारे मेँ तुम सबसे ज़्यादा आगाह हूँ फ़िर हदीस का एक हिस्सा बयान करते है :
"फ़िर रूकू किया और अपने हाथो को अपने घुटनो पर रखा गोया इन्हें पकड़े हुए हो और अपने हाथो को तांत बनाया (जो के कमान पर होता हैं) और अपने हाथो को अपने पहलु से दूर रखा....."
(सुनन अबु दाऊद : 734)
(D) रसूलुल्लाह (ﷺ) ने रूकूअ किया तो रूकूअ में पढ़ा :
सुब्हा-न रब्बीयल अजीम
سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ
और सज्दे में पढ़ा :
سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى
(सुनन एन-निसाई : 1047)
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रूकूअ से सर उठाऐ यहाँ तक की (कौमा में) सीधा खड़े हो जाएं !
Qauma ka tareeqa |
नमाज़ी रूकूअ से सर उठाते हुए रफयदैन (हाथो को कंधो या कानो तक उठाएं) करते हुए सीधे खड़े हो जाए और रूकूअ से कौमें में जाते समय यह पढ़े :
समि-अल्लाहु-लिमन हमिदह
سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ
और फिर यह कहे :
रब्बना लकल हम्द
رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ
या कहे :
رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ، حَمْدًا كَثِيرًا طَيِّبًا مُبَارَكًا فِيهِ
रसुलुल्लाह (ﷺ) जब سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ कहते तो इस के बाद ' رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ ' भी कहते, .........."
(सही बुख़ारी : 795)
हज़रत रफाआ बिन राफेअ रिवायत करते हुए कहते है की "हम नबी करीम सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की इक़तदा में नमाज़ पढ़ रहे थे, जब आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने रूकू से सर उठाते तो कहते :
سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ
(समियल्लाहु लिमन हमिदह),
एक शख़्स ने पीछे से कहा
" رَبَّنَا وَلَكَ الْحَمْدُ، حَمْدًا كَثِيرًا طَيِّبًا مُبَارَكًا فِيهِ، "
(रब्बना वल-क लहम्दु हम्दन कसीरन तय्यबन मुबारकन फिह)
आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने नमाज़ से फ़ारिग़ हो कर दरयाफ़्त फ़रमाया के किस ने यह कलमात कहे है? इस शख्स ने जवाब दिया के मैने ने ! इस पर आप (सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम) ने फरमाया के मैने तीस (30) से ज्यादा फरिश्तो को देखा के इन कलमात के लिखने में (या इसका सवाब लिखने में) वो एक दूसरे पर सबक़त ले जाना चाहते थे।(सही बुख़ारी : 799)
नमाज़ी सज्दे में जाने से पहले दोनों हाथो का घुटनों से पहले ज़मींन पर रखें !
Saheeh Namaz e Nabvi |
सहीह अहादीस की रु से वाज़ेह बात यही है के नमाज़ी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुए सज्दे में जाते हुवे पहले हाथ ज़मींन पर रखे जाएं और बाद में घुटनें।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "जब तुम में से कोई सज्दा करे तो ऐसे न बैठे जैसे के ऊंट बैठता है, चाहिए के अपने हाथ घुटनों से पहले रखे"(सुनन अबु दाऊद : 840)
हजरत इब्ने उमर रजि. से रिवायत है के "वो अपने हाथ अपने घुटनों से पहले (ज़मीन पर) रखते थे और फ़र्माते थे :
"रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम इसी तरह करते थे"(सही इब्ने खुज़ैमा : 627)
नमाज़ी सज्दा करे !
Sajdah ka tareeqa |
अल्लाह तआला क़ुरआन में फ़रमाता है :
"ऐ ईमान वालो ! तुम रूकूअ करो और सज्दा करो..."(अल-हज 22 : 77)
नमाज़ी 'अल्लाहु अकबर' कहते हुवे ज़मीन पर पहले हाथ फिर घुटने टिकाये और सज्दे में चले जाएं।
(A) सज्दा सात हड्डियों पर करे : पेशानी, दोनों हाथ, दोनों घुटनो और दोनों कदमो के पंजो पर।
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "मुझे सात हड्डियों पर सज्दा करने का हुक्म हुवा है, पेशानी पर और अपने हाथ से नाक की तरफ़ इशारा किया और दोनों हाथ और दोनों घुटनें और दोनों पाँव की उंगलियो पर"
(सही बुख़ारी : 812)
(B) सज्दे में पेशानी के साथ नाक भी ज़मींन पर टिकाएं। दोनों हाथो (हथेलियों) को कानो या कंधो के बराबर रखे। हाथो को अपने पहलुवों (Sides) से दूर रखे ।
अबु हुमैद रजि. फ़र्माते है की मै रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की नमाज़ के बारे मेँ तुम सबसे ज़्यादा आगाह हूँ फिर हदीस का एक हिस्सा बयान करते है :
"फ़िर रूकू किया और अपने हाथो को अपने घुटनो पर रखा गोया इन्हें पकड़े हुए हो और अपने हाथो को तांत बनाया (जो के कमान पर होता हैं) और अपने हाथो को अपने पहलु से दूर रखा....ब्यान किया के ...फ़िर सज्दा किया तो अपनी नाक और पेशानी को ज़मींन पर टिकाया और अपने हाथो को अपने पहलुवों से दूर रखा और अपने दोनों हाथो को अपने कंधो के बराबर रखा, फ़िर अपना सर उठाया हत्ता के हर हड्डी अपनी जगह पर आ गयी यहाँ तक के (सज्दो से) फ़ारिग़ हुवे, फ़िर बैठे और अपने बाए पाँवों को बिछा लिया और अपनी दायें पाँव की उंगलियो का रुख़ क़िब्ला की तरफ़ कर दिया और अपनी दायीं हथेली को अपने दायीं घुटने पर रखा और बायें को बाएँ घुटने पर और अपनी ऊँगली से इशारा किया"
(सुनन अबु दाऊद : 734)
(C) हाथो की उंगलिया एक दूसरे से मिलाकर रखें और उन्हें किब्ला रुख रखे।
हज़रत अलकमा बिन वाइल अपने वालिद मुहतरम हज़रत वाइल रजि. से रिवायत करते है के "नबी सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब सज्दा करते तो अपनी उँगलियों को मिला लेते थे"
(सही इब्ने खुज़ैमा : 642)
(D) सज्दे में हाथो को अपने पेट (Sides) से दूर रखे और अपनी बग़ल को खोल कर रखे।
Sajdah ka sunnat tareeqa |
सहाबा किराम रजि. बयान करते है "रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब सज्दा करते तो दोनों हाथ पेट से अलग रखते यहाँ तक के हम आपकी बग़लो की सफ़ेदी देख लेते"
(सही बुख़ारी : 3564)
(E) नमाज़ी (मर्द या औरत) सज्दे में अपने दोनों हाथ ज़मीन पर रखकर दोनों कोहनियां (अर्थात बाज़ू) ज़मीन से उठाये रखे और पेट को रानो से, और रानो को पिंडलियों से जुदा रखे और सीना भी ज़मीन से ऊँचा रखे जैसा की रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम के इस फ़रमान से स्पष्ट है -
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"सज्दे में हड्डियों को बराबर रखो और कोई तुम में से अपनी बाँहों को कुत्ते की तरह न बिछायें"
[सही मुस्लिम : 1102 (493)]
रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया : "जब तु सज्दा करे तो अपनी हथेलियां ज़मीन पर रख और कुहनियां ज़मीन से उठा ले"[सही मुस्लिम : 1104 (494)]
रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब सज्दे में होते इस वक़्त "अगर बकरी का बच्चा निकलना चाहता (सीने और हाथो की नीचे से) तो निकल जाता"
[सही मुस्लिम : 1107 (496)]
(F) सज्दे में अपनी पीठ (पुश्त) सीधी रखे।
रसुलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :
"वो नमाज नही होती जिस में इंसान रूकूअ और सज्दे के दरम्यान में अपनी पुश्त (पीठ) को सीधा ना रखे"(सुनन एन-निसाई : 1028)
(G) सज्दे में पाँव की उंगलियो के सिरे क़िब्ला की तरफ़ मुड़े हुए रखे और क़दम भी दोनों खड़े रखे और ऐड़ियो को मिलाएं।
हजरत आइशा रजि. से रिवायत है के मैने एक रात बिस्तर पर रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को न पाया, मैने ढूंढा तो मेरा हाथ आप के तलुवों पर पड़ा, आप सज्दे में थे और दोनों हाथ पाँव खड़े थे और आप फ़रमाते थे :
اللَّهُمَّ أَعُوذُ بِرِضَاكَ مِنْ سَخَطِكَ وَبِمُعَافَاتِكَ مِنْ عُقُوبَتِكَ وَأَعُوذُ بِكَ مِنْكَ لاَ أُحْصِي ثَنَاءً عَلَيْكَ أَنْتَ كَمَا أَثْنَيْتَ عَلَى نَفْسِكَ
[सही मुस्लिम : 1090 (486)]
नबी अकरम सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम की जोज़ा मोहतरमा हज़रत आइशा रदी. बयान करती है के (एक रात) मेने रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम को गुम पाया जबके आप मेरे साथ मेरे बिस्तर पर तशरीफ़ फ़रमा थे (मैंने आप को तलाश किया तो) "मैने आपको आप को सज्दे की हालत में पाया, आप ने अपनी एड़ियां ख़ूब मिलायी हुई थी और उँगलियों के किनारो को क़िब्ला रुख किया हुआ था,......."
(सही इब्ने खुज़ैमा : 654)
(H) रसूलुल्लाह सलल्लाहु अल्लैही व सल्लम जब रुकूअ करते तो कहते :
سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ وَبِحَمْدِهِ
तीन बार और जब सज्दा करते तो कहते
سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى وَبِحَمْدِهِ
तीन बार।
(सुनन अबु दाऊद : 870)
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Yahan padhen part:2 Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ part:2
Conclusion:
तो आप को पता चल गया होगा की Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ का तरीक़ा क्या है ? नमाज़ तमाम फ़राईज़ में से एक बहुत ही अहम फ़र्ज़ है और यह हर अक़ल वाले व बालिग़ मुसलमान व औरत पर फ़र्ज़ हैं! ये एक ऐसी इबादत या फ़र्ज़ है की जिस के बिना क़यामत के दिन कोई भी नेकी क़बूल नहीं की जायेगी! इस लिए आप पांचों वक्त नमाजों का पाबंदी से खुद भी एहतमाम करें और घर वालों को भी वक्त पर अदा करने की पाबंदी कराएं ताकी आखि़रत में कामयाबी हा़सिल हो! Saheeh Namaz e Nabvi ﷺ का सुन्नत तरीक़ा को अपनाएं और दूसरों तक पहुंचाएं !
FAQ:
Que : नमाज़ क्या है ?
Ans:इस्लाम धर्म में कलमा ए शहादत के बाद इस्लाम का सबसे पहला रुकन नमाज़ है,अल्लाह के नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: नमाज़ धर्म का स्तंभ है, इस्लाम और कुफ़्र के बीच, मुसलमानों और मुनकिरों के बीच अंतर करने वाला अ़मल नमाज़ ही है,
Que: क्या नमाज़ की माआ़फ़ी या छूट है ?
Ans: हर मुसलमान मर्द और औ़रत पर पांच वक्त की नमाज़ फर्ज है। नमाज़ की छूट किसी भी हा़लत में नहीं है। जब तक आदमी होश में है, तब उस पर नमाज़ मआ़फ़ नहीं है। अगर आदमी सफर में हैं तो भी उस पर नमाज़ की छूट नहीं है। हां आधी नमाज़ पढ़ सकता है। औ़रत के लिए कुछ दिनों में नमाज की छूट है।
Que: नमाज़ किन पर फ़र्ज़ है ?
Ans: हर बालिग़ बच्चे, मर्द व औ़रत और अ़क़ल वालों पर नमाज़ फ़र्ज़ है !
Que: नमाज़ कैसा अ़मल है ?
Ans: नमाज़ इस्लाम और कुफ़्र के बीच, मुसलमानों और मुनकिरों के बीच अंतर करने वाला अमल है !
Ques: अगर नमाज़ सुन्नत के मुताबिक़ न हो?
Ans: अगर नमाज़ सुन्नत के मुताबिक़ न हो ये कबूल न होगी भले ही हम उम्र भर नमाज़ में गुजार दें!
Ques: क्या कयामत के रोज़ सबसे पहले नमाज़ का हिसाब होगा ?
Ans: हां ! क़यामत के दिन सबसे पहले नमाज़ का हिसाब होगा क्योंकि ये नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है !
Que:अल्लाह तआ़ला को कौन सा अ़मल ज़्यादा पसंद है?
Ans: वक्त पर नमाज़ अदा करना अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला को ज़्यादा पसंद है !
Que: नमाज़ किन पर फ़र्ज़ है ?
Ans: हर अक़ल वाले व बालिग़ मुसलमान व औ़रत पर पाँच नमाजें फ़र्ज़ हैं! जिस के बिना क़यामत के दिन कोई भी नेकी क़बूल नहीं की जायेगी!
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