Wazoo ka Masnoon tareeqa/ वुज़ू का मस्नून त़रीका़
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है की नमाज़ में वजू करना शर्त है और बगैर वजू की नमाज़ ही नही !किसी की कामिल नमाज़ उस वक्त तक नहीं होगी जब तक के वो अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ कामिल वज़ू न करे ! तो आइए हम आज Wazoo ka Masnoon tareeqa क्या है जानें और अमल करें !
क़ुरआन में वजू से मुतअ़ल्लिक़ अल्लाह का हु़क्म
जब हम नमाज़ के लिए खड़े होने का इरादा करें तो पहले वुज़ू करें जैसा कि अल्लाह तआ़ला ने वुज़ू करने का आदेश दिया है!"ऐ ईमान वालों! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चेहरे और अपने हाथों को कोहनियों तक धोओ, अपने सरों का मसह करो और अपने पांवों को टखनों तक धोओ। और अगर तुम जनाबत की हालत में हो तो पूरे बदन को अच्छी तरह से पाक कर लो। और यदि तुम बीमार हो, या सफ़र में हो, या तुम में से कोई शौच से आया हो, या तुम स्त्रियों से मिले हो, और तुम्हें पानी न मिले, तो पाक मिट्टी से तयम्मुम करो, और अपने चेहरों और हाथों का पाक मिट्टी से मसह कर लो। अल्लाह तुम पर कोई सख्ती नहीं करना चाहता, बल्कि वह तुम्हें पाक करना चाहता है, और अपनी सारी नेअ़मतें तुम पर बरसाना चाहता है, ताकि तुम शुक्र गुजार हो जाओ।"(सूरह अल-मैदा : 6)
Read this: Namaz Kya hai ?
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान :
- तुम में से किसी की कामिल नमाज़ उस वक्त तक नहीं होगी जब तक के वो अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ कामिल वज़ू न करे (अबू दाऊद : 858).
- नबी करीम ने फ़रमाया: क़यामत के दिन मेरी उम्मत इस हालत में बुलाई जायेगी के मुंह और हाथ पांवों आसार ए वज़ू से चमकते होंगे. (बुखारी:136)
- रसूलुल्लाह ने फ़रमाया: पाकीज़गी आधा ईमान है (मुस्लिम:223) और सुन्नत तरीक़ा से वजू करने से पिछले गुनाह माफ़ हैं( मुस्लिम: 229).
- रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़र्माया :अल्लाह तआला नहीं क़बूल करता तुम में से किसी की नमाज़ जब वो बे-वुज़ू हो यहाँ तक के वुज़ू करे"(सही मुस्लिम : 537)
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अब्दुल्लाह-बिन-ज़ैद और इब्ने-अब्बास (रज़ि०) से वुज़ू का सुन्नत तरीक़ा
जब अब्दुल्लाह बिन ज़ैदj
(जब अब्दुल्लाह बिन ज़ैद से पूछा गया की क्या आप मुझे दिखा सकते हैं कि रसूलुल्लाह (सल्ल०) ने किस तरह वुज़ू किया है ? तो उन्हों ने कहा कि हाँ ! फिर उन्होंने पानी का बर्तन मँगवाया पहले पानी अपने हाथों पर डाला और दो मर्तबा हाथ धोए। फिर तीन मर्तबा कुल्ली की, तीन बार नाक साफ़ की, फिर तीन बार अपना चेहरा धोया। फिर कोहनियों तक अपने दोनों हाथ दो-दो मर्तबा धोए। फिर अपने दोनों हाथों से अपने सिर का मसह किया। इस तौर पर अपने हाथ (पहले) आगे लाए फिर पीछे ले गए। (मसह) सिर के शुरूआती हिस्से से शुरू किया। फिर दोनों हाथ गुद्दी तक ले जा कर वहीं वापस लाए जहाँ से (मसह) शुरू किया था फिर अपने पैर धोए। (सही बुखारी:185)
हज़रत इब्ने-अब्बास (रज़ि०) से रिवायत है कि अल्लाह के रसूल ﷺ ने वुज़ू फ़रमाया चुनांचे एक चुल्लू पानी लिया उस से कुल्ली की और नाक में पानी चढ़ाया फिर एक चुल्लू पानी लिया और इस से अपना चेहरा धोया फिर एक चुल्लू पानी लिया और इस से अपना दायाँ हाथ धोया फिर एक चुल्लू पानी लिया और उस से बायाँ हाथ धोया फिर अपने सिर और कानों का मसह किया। कानों के अन्दर का तरफ़ का मसह शहादत की उँगलियों से और बाहरी तरफ़ का अँगूठियों से किया। फिर एक चुल्लू पानी लिया और उस से दायाँ पाँव धोया फिर एक चुल्लू पानी लिया और उस से बायाँ पाँव धोया। (सुन्न निसाई:102)
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वजू से गुनाह का झड़ना:
- जब मुसलमान वुज़ू करते हुए कुल्ली करता है तो उसके मुँह से गुनाह निकल जाते हैं और जब वह नाक साफ़ करता है तो उसके नाक से गुनाह निकल जाते हैं। जब वह मुँह धोता है तो उसके चेहरे के गुनाह धुल जाते हैं यहाँ तक कि उसकी आँखों की पुतलियों के नीचे से भी गुनाह निकल जाते हैं।
- जब वह बाज़ू धोता है तो उसके नाख़ूनों के नीचे तक के तमाम गुनाह निकल जाते हैं। जब वह सिर का मसह करता है तो उसके सिर के गुनाह निकल जाते हैं, यहाँ तक कि कानों के नीचे तक के गुनाह गिर जाते हैं।
- जब वह पाँव धोता है तो उसके पाँव के नाख़ूनों के नीचे तक के तमाम गुनाह निकल जाते हैं। फिर उसका मस्जिद की तरफ़ चलना और नमाज़ पढ़ना उसकी इबादत में दाखिल हो जाता है और मरवी है कि बा वुज़ू आदमी रोज़ादार की तरह है। (सहीह मुस्लिम : 244)
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वजू के फराईज़ व सुन्नत
वजू करने के दरमियान कुछ फराईज़ हैं जिनके छूटने से वजू नही होगी।
- चेहरे को अच्छी तरह से धोना ,
- दोनों हांथो को कुहनियों समेत धोना
- चौथाई तक सर का मसह करना ,
- टखनों तक अपने पैरों को धोना
वजू में सुन्नत अमल:
- नियत करना: वजू शुरू करने से पहले वजू की नीयत (इरादा) करना।
- बिस्मिल्लाह कहना: वजू की शुरुआत में "बिस्मिल्लाह" (अल्लाह के नाम से) कहना।
- हाथ धोना: वजू की शुरुआत में तीन बार हाथों को कलाई तक धोना।
- कुल्ली करना: तीन बार मुंह में पानी लेकर कुल्ली करना।
- नाक में पानी डालना: तीन बार नाक में पानी डालकर उसे साफ करना।
- सिर का मसह करना: चौथाई सिर का मसह (गीले हाथों से सिर को पोंछना) करना।
- कानों का मसह करना: गीले हाथों से कानों का मसह करना।
- टखनों के ऊपर से धोना: टखनों के ऊपर से पैरों को धोना।
- सभी अंगों को तीन बार धोना: सभी धुले जाने वाले अंगों को तीन-तीन बार धोना।
- तरतीब का पालन: वजू के वक्त तरतीब का ख़्याल रखना।
Read This: Namaz ki ahmiyat.
वजू की शुरुआ़त
(सूरत निसा:43, अल माईदा:6)
हर नमाज़ के साथ मिसवाक करना अगर मयस्सर हो ! (बुखारी:887, मुस्लिम:252)
वुज़ू के शुरूआत में "बिस्मिल्लाह" ज़रूर पढ़नी चाहिये। क्योंकि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सहाबा से फ़रमाया :"बिस्मिल्लाह कहते हुये वुज़ू करो।" जिसका वूजू नही उसकी नमाज़ नही और जिसने अल्लाह का नाम नहीं लिया उसका वजू नही !
[नसई - हदीस नं० 78 + इब्ने ख़ुज़ैमा - हदीस नं० 144 , अबू दाऊद:9
इमाम नौवी ने कहा कि इस हदीस की सनद जय्यिद है। इस हदीस से साबित हुआ कि वुज़ू के शुरूआत में "बिस्मिल्लाह” पढ़नी चाहिये (ज़ुबैर अली ज़ई)]
मालूम रहे कि वुज़ू के शुरूआ़त के वक़्त सिर्फ़ "बिस्मिल्लाह" कहना चाहिये।"अर्रहमानिर्रहीम" के अल्फ़ाज़ का इज़ाफ़ा सुन्नत से साबित नहीं।
इस का यह मानी नहीं है कि किताब लिखने वाले को पूरी "बिस्मिल्ला हिर्रहमानिर्रहीम" से कोई दुश्मनी है, बल्कि यह उस की सुन्नत से सख़्त मुहब्बत की पहचान है कि जितना नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने बताया, उतना ही पढ़ा जाये !
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: "जो शख्स वुज़ू के शुरू में अल्लाह का नाम नहीं लेता उस का वुजू नहीं।"[अबू दावूद - 101 + इसे हाफ़िज़ मुन्जुरी ने शवाहिद की बिना पर हसन कहा है। अगर बिस्मिल्लाह भूल गया और वुज़ू के दौरान याद आयी तो तुरन्त पढ़ ले, वर्ना वुज़ू दोबारा करने की ज़रूरत (आवश्यकता) नहीं क्योंकि भूल माफ़ है]
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जूती पहनने, कन्घी करने, पाकी हासिल करने, मतलब यह कि और दूसरे तमाम कामों में दायें तरफ़ से शुरू करना पसन्द करते थे।[बुख़ारी - हदीस नं० 168 + मुस्लिम - हदीस नं० 268]
Note: भूल जाने या जहालत की बिना पर बिस्मिल्लाह न पढ़ना
वजू के वक्त बिस्मिल्लाह पढ़ना वाजिब है और अगर किसी ने भूल कर या शरई हुक्म से ज़हालत की बिना पर बिस्मिल्लाह किए बगैर वजू कर लिया उसका वजू सहीह है और जिसने जान बूझ कर छोड़ा तो उल्मा के सहीह कौल के मुताबिक़ उसका वजू दुरुस्त नहीं क्यूं नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के फ़रमान के मुताबिक जिसने बिस्मिल्लाह नही पढ़ी उसका वजू नही !
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दोनों हाथों का धोना और अंगुलियों का खिलाल
पहले अपने दोनों हाथ पहुंचों तक तीन बार धोयें। आप ﷺ ने तीन बार अपने हाथों पर पानी डाला और उनको धोया !
[बुख़ारी - हदीस नं० 159 + मुस्लिम - हदीस नं० 268]
हाथों के धोते वक़्त हाथों की उगलियों के दर्मियान ख़िलाल करें।नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया वजू पूरा करो और अंगुलियों से खिलाल किया करो !
[अबू दावूद - हदीस नं० 142 + तिर्मिज़ी - हदीस नं० 38, इसे तिर्मिज़ी, हाकिम और नौवी ने सहीह कहा है।]
[अबू दावूद - हदीस नं० 142 + तिर्मिज़ी - हदीस नं० 38, इसे तिर्मिज़ी, हाकिम और नौवी ने सहीह कहा है।]
कुल्ली करना और नाक झाड़ना :
दाएं हाथ के एक ही चुल्लू से पानी लेकर आधे से कुल्ली करें और आधा नाक में डालें और नाक को बायें हाथ से झाड़ें। इस तरह तीन मर्तबा करें। हज़रत अली ने जब वजू का तरीक़ा बताया तो दाएं हाथ से पानी नाक में चढ़ाया और बाएं हाथ से नाक को झाड़ा ! यह अमल तीन बार किए !
[बुख़ारी - हदीस नं०191,199 + मुस्लिम - हदीस नं० 235, नसाइ:89)
[बुख़ारी - हदीस नं०191,199 + मुस्लिम - हदीस नं० 235, नसाइ:89)
मुंह का धोना
इसके बाद हाथों में पानी लेकर तीन मर्तबा मुंह धोयें। अब्दुल्लाह बिन ज़ैद ने वजू का तरीक़ा बताते हुए तीन बार अपना चेहरा धोया !
[बुख़ारी -हदीस नं०185, 186, 192 + मुस्लिम - हदीस नं० 235]
[बुख़ारी -हदीस नं०185, 186, 192 + मुस्लिम - हदीस नं० 235]
दाढ़ी का खिलाल
मुंह धोने के बाद फ़िर चुल्लू में पानी ले कर उसे ठोड़ी के नीचे दाख़िल कर के अपनी अंगुलियों से दाढ़ी का ख़िलाल करें। अनस बिन मालिक से रिवायत है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम जब चेहरा धो लेते तो चुल्लू में पानी लेते और ठोड़ी के नीचे से पानी दाखिल करते दाढ़ी का खिलाल करते और फरमाते की मेरे रब ने मुझे ऐसा करने का हुक्म दिया है !
[तिर्मिज़ी - हदीस नं० 31, इसे इब्ने हिब्बान और खुज़ैमा ने सहीह कहा है।, (अबू दाऊद:132)
[तिर्मिज़ी - हदीस नं० 31, इसे इब्ने हिब्बान और खुज़ैमा ने सहीह कहा है।, (अबू दाऊद:132)
कुहनियों तक हाथ धोना
[बुख़ारी - हदीस नं० 1934 + मुस्लिम - हदीस नं० 236]
सर और कानों का मसाह
दोनो बाज़ू धोने के बाद दोनों हाथों को भिगो कर फ़िर सर का मसह करें। दोनों हाथ सर के अगले हिस्सा से शुरू कर के गुद्दी तक पीछे ले जायें, फ़िर पीछे से आगे उसी जगह ले आयें जहां से मसह शुरू किया था।
[बुख़ारी - हदीस नं० 18 - हदीस नं० 235]
आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने सर का एक दफ़ा मसह किया।
[बुख़ारी - नं०186 + मुस्लिम नं० 235]
फ़िर कानों का मसह इस तरह करें कि शहादत की उगलियां दोनों कानों के सुराख़ों से गुज़ार कर कानों की पुश्त पर अंगूठों के साथ मसह करें। इब्न अब्बास से रिवायत है की बेशक रसूल अल्लाह ने शहादत की दोनों अंगुलियों को कानो में दाखिल करके अंगूठों को कानों के पीछे रखते हुए कानों के अंदर और बाहर से मसह किया !
[बुख़ारी - नं०186 + मुस्लिम नं० 235]
फ़िर कानों का मसह इस तरह करें कि शहादत की उगलियां दोनों कानों के सुराख़ों से गुज़ार कर कानों की पुश्त पर अंगूठों के साथ मसह करें। इब्न अब्बास से रिवायत है की बेशक रसूल अल्लाह ने शहादत की दोनों अंगुलियों को कानो में दाखिल करके अंगूठों को कानों के पीछे रखते हुए कानों के अंदर और बाहर से मसह किया !
कानों के मसह के लिए नया पानी लेने की ज़रूरत नही !
[इब्ने माजा: नं० 439 , 353 + तिर्मिजी : हदीस नं० 36, इसे इब्ने खुज़ैमा ने सहीह कहा है।]
[इब्ने माजा: नं० 439 , 353 + तिर्मिजी : हदीस नं० 36, इसे इब्ने खुज़ैमा ने सहीह कहा है।]
दोनों पांवों का धोना और अंगुलियों का खिलाल
फ़िर दायां पांव टख़नों तक तीन बार धोयें, और बायां पांव भी टख़नों तक तीन बार धोयें। हज़रत उस्मान से रिवायत है की आप ﷺ ने अपना दायां पांवों तीन बार धोया और उसके बाद बायां पांवों तीन बार धोएं !
[बुख़ारी - हदीस नं० 1934 + मुस्लिम - हदीस नं० 226]
[बुख़ारी - हदीस नं० 1934 + मुस्लिम - हदीस नं० 226]
पांवों को धोते हुए अपने दाएं हाथ की छंगुली से अपने पांव की अंगुलियों का खिलाल करें !
जब वुज़ू करें तो हाथों और पांव की उगलियों का ख़िलाल करें।
[तिर्मिज़ी - हदीस नं० 447 + इब्ने माजा - हदीस नं० 447, इसे इमाम तिर्मिज़ी ने हसन कहा है।]
इब्ने शद्दाद रज़ि० रिवायत करते हैं कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को वुज़ू करते हुये देखा कि आप अपने पांव की उंगलियों का ख़िलाल हाथ की छंगुली (छोटी उंगली) से कर रहे थे।
[तिर्मिज़ी - हदीस नं० 447 + इब्ने माजा - हदीस नं० 447, इसे इमाम तिर्मिज़ी ने हसन कहा है।]
इब्ने शद्दाद रज़ि० रिवायत करते हैं कि मैंने नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को वुज़ू करते हुये देखा कि आप अपने पांव की उंगलियों का ख़िलाल हाथ की छंगुली (छोटी उंगली) से कर रहे थे।
[अबू दावूद - हदीस नं० 148+ तिर्मिज़ी - हदीस नं० 40,
इसे इमाम मालिक ने हसन कहा है।]
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि० ने फ़रमाया: अगर घाव पर पट्टी बांधी हुयी हो तो वुज़ू करते समय पट्टी पर मसह कर ले और आस-पास को धो ले।
[बैहक़ी - 1/228 + इमाम बैहक़ी ने इसे सहीह कहा है।]
ध्यान दें:-
★ कुल्ली और नाक में पानी डालने के लिये अलग-अलग पानी लेने का ज़िक्र जिस हदीस में है, उसे इमाम अबू दावूद (हदीस नं० 139) इमाम नौवी और हाफिज़ इब्ने हजर रह० ने ज़ईफ़ कहा है। इमाम नौवी और इमाम इब्ने क़य्यिम रह० फ़रमाते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वुज़ू का तरीक़ा चुल्लू से आधा पानी मुंह में और आधा नाक में डालना है।
हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि० ने फ़रमाया: अगर घाव पर पट्टी बांधी हुयी हो तो वुज़ू करते समय पट्टी पर मसह कर ले और आस-पास को धो ले।
[बैहक़ी - 1/228 + इमाम बैहक़ी ने इसे सहीह कहा है।]
ध्यान दें:-
★ कुल्ली और नाक में पानी डालने के लिये अलग-अलग पानी लेने का ज़िक्र जिस हदीस में है, उसे इमाम अबू दावूद (हदीस नं० 139) इमाम नौवी और हाफिज़ इब्ने हजर रह० ने ज़ईफ़ कहा है। इमाम नौवी और इमाम इब्ने क़य्यिम रह० फ़रमाते हैं कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वुज़ू का तरीक़ा चुल्लू से आधा पानी मुंह में और आधा नाक में डालना है।
★ नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमायाः "कानों का ताल्लुक़ सर से है" (दारू कुत्नी 1/98) इसे इब्ने जौज़ी रह० वग़ैरह ने सहीह कहा है। इस का मतलब यह है कि कानों के लिये नये पानी की ज़रूरत नहीं। कानों के मसह के लिये नये पानी लेने वाली रिवायत को हाफिज़ इब्ने हजर रह० ने “शाज़" कहा है।
और यह मानी भी हो सकता है कि कानों का हुक्म, चेहरे वाला नहीं कि उन्हें धोया जाये, बल्कि उस का हुक्म सर वाला है, यानी उन का मसह किया जाये
और यह मानी भी हो सकता है कि कानों का हुक्म, चेहरे वाला नहीं कि उन्हें धोया जाये, बल्कि उस का हुक्म सर वाला है, यानी उन का मसह किया जाये
★हाफ़िज़ इब्ने कय्यिम रह० फ़रमाते हैं कि (गुद्दी के नीचे) गर्दन के (अलग) मसह के बारे में कोई भी हदीस सहीह नहीं है। गर्दन के मसह की रिवायत के मुतअल्लिक़ इमाम नौवी रह० फ़रमाते हैं: “यह हदीस ज़ईफ़ है इस पर सभी का इत्तिफ़ाक़ है।"
शर्मगाह गुप्तांग पर छींटे मारना
वजू मुकम्मल होने के बाद शर्मगाह पर पानी के छींटे मारना सुन्नत है ! हकम फरमाते हैं की उन्होंने रसूल अल्लाह ﷺ को देखा की आप ने वजू किया फिर चुल्लू में पानी लिया और अपनी शर्मगाह यानी गुप्तांग पर छींट दिया ! दूसरी रिवायत में है की रसूल अल्लाह ने फ़रमाया के जिब्राईल ने मुझे वजू का तरीक़ा सिखाया और मुझे हुक्म दिया की मैं अपने कपड़े के नीचे छींटे मारूं !
(सहीह इब्न माजा:374/375)
वुज़ू के बाद की दुआयें
नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया: जो शख्स पूरा वुजू करे और फिर यह दुआ पढ़े तो तो उस के लिये जन्नत के आठों दर्वाज़े खोल दिये जाते हैं कि जिस से चाहे दाखिल हो। [मुस्लिम - हदीस नं० 234]أَشْهَدُ أَنْ لا إِلَهَ إِلا اللَّهُ وَحْدَهُ لا شَرِيكَ لَهُ، وَأَشْهَدُ أَنَّ مُحَمَّدًا عَبْدُهُ وَرَسُوله
"मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं, वह अकेला है, उस का कोई शरीक नहीं। और में गवाही देता हूं कि मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम अल्लाह के बन्दे और रसूल है।"
धयान दें:
धयान दें:
अबू दावूद की एक रिवायत में इस दुआ को आसमान की तरफ नज़र उठा कर पढ़ने का ज़िक्र है, मगर यह रिवायत सहीह नहीं है। इस में अबू अकील के चचा ज़ाद भाई मजहूल है।
वुज़ू के बाद यह दुआ भी पढ़ें:
سُبْحَانَكَ اللَّهُمَّ وَبِحَمْدِكَ، أَشْهَدُ أَنْ لا إِلَهَ إِلَّا أَنْتَ، أَسْتَغْفِرُكَ وَأَتُوبُ الَيْكَ
"ऐ अल्लाह! तू अपनी हर तरह की तारीफ़ों के साथ (हर ऐब से) पाक है। मैं गवाही देता हूं कि तेरे सिवा कोई सच्चा माबूद नहीं। मैं तुझ से माफ़ी मांगता हूं और तेरे सामने तौबा करता हूं।"
[नसई - इसे इमाम हाकिम, ज़हबी और इब्ने हजर ने सहीह कहा है। तिर्मिज़ी की रिवायत में दुआ “अल्लाहुम्म्ज्- अल्नी मि- नत्तव्वाबी- न... " भी ज़िक्र है, मगर ख़ुद उन्हों ने उसे मुज़तरिब (यानी ज़ईफ़ की एक क़िस्म) क़रार दिया है। ]
[नसई - इसे इमाम हाकिम, ज़हबी और इब्ने हजर ने सहीह कहा है। तिर्मिज़ी की रिवायत में दुआ “अल्लाहुम्म्ज्- अल्नी मि- नत्तव्वाबी- न... " भी ज़िक्र है, मगर ख़ुद उन्हों ने उसे मुज़तरिब (यानी ज़ईफ़ की एक क़िस्म) क़रार दिया है। ]
Read This: Namaz padhne ki Fazeelat
कुछ ऐसे अमल जिन से वजू टूट जाता है :
पेशाब और शौच करने से वजू टूट जाता है। (अल-मैदा: 6)
हवा के खारिज होने से वजू टूट जाता है . (सहीह बुखारी: 137)
लेटकर या टेक लगा कर सोने से। (सहीह अबू दाऊद:188)
शर्मगाह गुप्तांग को छूने से. (सहीह अबू दाऊद: 166)
ऊँट का मांस खाने से. (मुस्लिम: 360)
और निम्नलिखित बातें जिनसे वुज़ू नहीं टूटता:
शरीर से खून निकलना.
रक्तस्राव और उल्टी.
बिना टेक लगाए सोने से.
Conclusion:
वजू इस्लाम में तहारत यानी पाकी हासिल करने का एक जरिया है, जिसे नमाज़ से पहले अनिवार्य रूप से पूरा किया जाता है। इसमें चार फ़र्ज़ शामिल हैं: चेहरा धोना, कोहनी तक हाथ धोना, सिर का मसह करना, और टखनों तक पैर धोना। ये अमल न केवल जिस्मानी पाकी का जरिया हैं बल्कि रूहानी सफाई और ज़हनी सकून में भी सहायक होती हैं। वजू के माध्यम से मुसलमान शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से प्रार्थना के लिए तैयार होते हैं, जिससे वे अल्लाह की इबादत सही तरीके से कर सकें। इस प्रक्रिया से व्यक्तियों को पवित्रता और अनुशासन का एहसास होता है, जो इस्लामी जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं।
वजू की पाबंदी से मुसलमान अपने जिस्म और रूह को पाक रखते हैं जो कि एक मुकम्मल और मुतवाजन ज़िन्दगी गुजारने के लिए जरूरी है .ये अमल न सिर्फ मजहबी फरीजा है बल्कि इंसान की मजमूई सेहत और तहारत के लिए भी फायदेमंद है !
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ˡᶦᵏᵉ ᶜᵒᵐᵐᵉⁿᵗ ˢᵃᵛᵉ ˢʰᵃʳᵉ
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Frequently Asked Questions:
Que: वजू में फ़र्ज़ क्या क्या हैं ?
Ans: वजू के चार फ़र्ज़ (अनिवार्य क्रियाएं) हैं:
चेहरा धोना: माथे के ऊपरी हिस्से से लेकर ठोड़ी के निचले हिस्से तक धोना
हाथ धोना: कोहनी तक दोनों हाथों को धोना।
सिर का मसह करना: सिर के कुछ हिस्से पर गीले हाथों से मसह करना।
पैर धोना: टखनों तक दोनों पैरों को धोना।
इन चार फ़र्ज़ को पूरा करना वजू के लिए अनिवार्य है, और बिना इन्हें पूरा किए, वजू मान्य नहीं माना जाएगा।
Que: वजू क्या है ?
Ans: वजू इस्लाम में एक खास तरह का जिस्मानी तहारत यानी पाकी हासिल करने का अमल है जो नमाज़ (सलात) से पहले किया जाता है। इसमें शरीर के कुछ खास अंगों को धोने और साफ़ करने की प्रक्रिया शामिल है। वजू करने का उद्देश्य आत्मा और शरीर को शुद्ध करना होता है ताकि व्यक्ति अल्लाह के सामने पूरी पवित्रता के साथ खड़ा हो सके।
Que: वजू के दौरान क्या किया जाता है ?
Ans: नियत करना: सबसे पहले मन में वजू करने की नियत (इरादा) करना।
हाथ धोना: दोनों हाथों को कलाई तक तीन बार धोना।
कुल्ला करना: मुंह में पानी डालकर कुल्ला करना और दाँत साफ करना।
नाक में पानी डालना: नाक में पानी डालकर साफ करना।
चेहरा धोना: पूरे चेहरे को माथे से लेकर ठोड़ी तक और एक कान से दूसरे कान तक धोना।
बायें और दायें हाथ धोना: कोहनी तक दायें हाथ को तीन बार धोना, फिर बायें हाथ को तीन बार धोना।
सिर का मसह करना: हाथों को गीला करके सिर के ऊपर से लेकर गर्दन तक मसह करना (हल्का सा पानी फेरना)।
कानों का मसह करना: कानों के अंदर और बाहर हल्के से पानी फेरना।
पैर धोना: दोनों पैरों को टखनों तक तीन बार धोना।
वजू का महत्व इस्लाम में बहुत अधिक है क्योंकि यह न केवल शारीरिक शुद्धिकरण का साधन है बल्कि यह मानसिक और आत्मिक शुद्धिकरण का भी एक तरीका है।
Que: क्या वजू से गुनाह झड़ते हैं ?
Ans: हां! जब मुसलमान वुज करता है तो उसके मुँह से गुनाह निकल जाते हैं और जब वह नाक साफ़ करता है तो उसके नाक से गुनाह निकल जाते हैं। जब वह मुँह धोता है तो उसके चेहरे के गुनाह धुल जाते हैं यहाँ तक कि उसकी आँखों की पुतलियों के नीचे से भी गुनाह निकल जाते हैं। इसी तरह हाथ ,पांवों धोने से गुनाह झड़ता है!
Que:वजू किन चीज़ों से टूटता है ?
Ans: वजू करने के बाद, व्यक्ति पवित्र हो जाता है और नमाज अदा करने के योग्य होता है। अगर वजू टूट जाए (जैसे, पेशाब करना, मल त्याग करना, गैस छोड़ना, गहरी नींद में सोना आदि), तो नमाज से पहले वजू को फिर से करना आवश्यक होता है।
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