Qurbani Kya hai /कुर्बानी क्या है ?
Qurbani Kya hai /कुर्बानी क्या है ? |
Qurbani Kya hai? क़ुर्बानी का लफ़्ज़ “क़ुर्ब” से बना है जिसका मतलब होता है ‘क़रीब होना’ यानि ईदुल अज़हा को अपने जानवर को ज़िबह करने का मकसद अल्लाह का क़ुर्ब हासिल करना होता है, यानि अल्लाह से अपनी नजदीकियों को बढ़ाना।
ईद-उल-अजहा को ईदुज्जौहा औए ईदे-अजहा भी कहा जाता है। इस ईद का संबंध कुर्बानी से है। इस ईद पर कुर्बानी दी जाती है। इसलाम में बुनयादी तौर पर क़ुर्बानी हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के ज़माने से है जब उन्होंने अपने बेटे को क़ुर्बान करने की कोशिश की तो अल्लाह ने उनके बेटे के बदले एक जानवर की क़ुर्बानी ली तब से यह अपनी जान की क़ुर्बानी के निशान के तौर पर हर साल दी जाती है।
क़ुरआन में उन बाप बेटों की बात चीत कुछ इस तरह नक़ल हुई है
(इब्राहीम ने कहा:- “ऐ मेरे बेटे मैं ख़्वाब में तुम्हे क़ुर्बान करते हुए देखता हूँ तो तुम बताओ कि इस बारे में तुम्हारी क्या राय है ?)“Read This:- Dua Sirf Allah se
बेटे ने जवाब दिया:- “अब्बू जान आप को जो हुक्म दिया जा रहा है उसे ज़रूर पूरा कीजिए, अगर अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वालों में पाएँगे।” (सूरेह साफ्फात: 102)
सच है कि यह जवाब इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) के बेटे का ही हो सकता था। इसमें हज़रत इस्माइल (अलैहिस्सलाम) का कमाल यह ही नहीं कि क़ुर्बान होने के लिए तैयार हो गए बल्कि कमाल यह भी है कि अपनी अच्छाई को अल्लाह की तरफ मंसूब किया कि ”अगर अल्लाह ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वालों में पाएँगे”
इसी हवाले से एक और हिकमत हदीस में बयान हुई है:-
अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से सहाबा ने पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) यह Qurbani Kya hai? आप (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने जवाब दिया कि तुम्हारे बाप इब्राहीम का तरीक़ा/ सुन्नत है।”
(मुसनद अहमद: 18797, इब्ने माजा: 3127)
क़ुरबानी में अपने जानवर की जान को अल्लाह के नाम ज़िबह करके असलन बंदा इस जज़्बे का इज़हार कर रहा होता है कि मेरी जान भी अल्लाह की दी हुई है और जिस तरह आज मैं अपने जानवर की जान अल्लाह के लिए दे रहा हूँ अगर अल्लाह का हुक्म हुआ तो अपनी जान भी मैं देने के लिए तैयार हूँ। यही वह जज़्बा है जो क़ुरबानी की असल रूह है अगर हमारे अन्दर अपने जानवर की क़ुरबानी के साथ यह जज़्बा नहीं है तो यह असल क़ुरबानी नहीं है फ़िर यह ऐसे ही है जैसे रोज़ लोग अपने खाने के लिए जानवर ज़िबह करते हैं।
क़ुर्बानी के पीछे जो जज़्बा होता है वह यही है कि मेरी जान मेरे लिए नहीं अल्लाह के लिए है, यही जज़्बा क़ुर्बानी का मक़सद है और यही जज़्बा अल्लाह को मतलूब है।
अल्लाह सुब्हानहु ने कुरआन में फ़रमाया:- ”कह दो कि मेरी नमाज़ मेरी क़ुरबानी ‘यानि’ मेरा जीना मेरा मरना अल्लाह के लिए है जो सब आलमों का रब है।”(कुरआन 6:162)
क़ुर्बानी में कई हिकमते हैं लेकिन इस का सबसे अहम फलसफा यह है कि अल्लाह बन्दे के लिए सबसे बढ़ कर है।
इस बात को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि इस्लाम में क़ुर्बानी एक इबादत की हेसियत रखती है और जैसा की आप जानते हैं कि इबादतें जितनी भी हैं वो सब बन्दे का अल्लाह से ताल्लुक़ का इज़हार होती हैं। जैसे बदन से बंदगी का इज़हार नमाज़ में होता है और माल से इबादत करने का इज़हार ज़कात और सदके से होता है, ठीक ऐसे ही क़ुर्बानी जान से बंदगी करने का इज़हार है।
अल्लाह सुब्हानहु ने कुरआन में फ़रमाया:- “अल्लाह के पास ना तुम्हारी कुर्बानियों का गोश्त पहुँचता है और ना उनका खून, अल्लाह को सिर्फ़ तुम्हारा तक़वा पहुँचता है” (सूरेह हज: 37)
क्या हैं कुर्बानी का मकसद : -
सैयादः आयशा रदी अल्लाहू अन्हु रिवायत करती हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:- कुर्बानी के दिनों में इब्ने आदम के लिए खून बहाने ( कुर्बानी करने ) से बढ़कर कोई और काम नहीं है, और वह जानवर कयामत के दिन अपने सींगों, बालों और खुरों के साथ आएगा। कुर्बानी का खून ज़मीन पर पहुँचने से पहले ही क़ुबूलियत की अवस्था में पहुँच जाता है।" (तिर्मिज़ी, इब्नु माजा)
बेशक अल्लाह दिलों के हाल जानता है और वह खूब समझता है कि बंदा जो कुर्बानी दे रहा है, उसके पीछे उसकी क्या नीयत है। जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रजा के लिए कुर्बानी करेगा तो यकीनन वह अल्लाह की रजा हासिल करेगा, लेकिन अगर कुर्बानी करने में दिखावा या तकब्बुर आ गया तो उसका सवाब जाता रहेगा। कुर्बानी इज्जत के लिए नहीं की जाए, बल्कि इसे अल्लाह की इबादत समझकर किया जाए। अल्लाह हमें और आपको कहने से ज्यादा अमल की तौफीक दे।
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जिसकी कुरबानी करने की हैसियत हो और कुरबानी न करे
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:- जो शख्स कुर्बानी करने की हैसियत रखता हो और कुर्बानी न करे, वो हमारी ईदगाह के क़रीब न आए ! सुन्न इब्न माजा
कुर्बानी करने वाला बाल ,नाखून न कटवाए
हज़रत उम्मे-सलमा (रज़ि०) बयान करती हैं। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जब ज़ुल-हिज्जा का अशरा शुरू हो जाए और तुममें से कोई क़ुरबानी करने का इरादा रखता हो तो वो अपने बालों और जिल्द से कोई चीज़ न उतारे। और एक दूसरी रिवायत में है : वो न अपने बाल कटवाए न नाख़ुन। और एक रिवायत में है : जो शख़्स ज़ुल-हिज्जा का चाँद देख ले और वो क़ुरबानी करने का इरादा रखता हो तो वो अपने न बाल कटवाए न नाख़ुन। (मुस्लिम) मिश्कात:1459
कुर्बानी ईद नमाज़ के बआ़द करें:-
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया जो आदमी हमारी नमाज़ की तरह नमाज़ पढ़े और हमारे किब्ला की तरफ़ रुख करे और हमारी कुर्बानियों की तरह कुर्बानी करे तो वो ज़िबाह न करे जब तक के वो नमाज़ ए ईद न पढ़ ले ! (सही मुस्लिम :5072)
हज़रत जुन्दुब-बिन-अब्दुल्लाह अल-बजली (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जो शख़्स नमाज़े-ईद से पहले क़ुरबानी कर ले तो वो उसकी जगह दूसरी क़ुरबानी करे और जो शख़्स नमाज़े-ईद के बाद ज़बह करे तो उसे अल्लाह के नाम पर ज़बह करे। (मुत्तफ़क़ अलैह) मिश्कात अल मसाबीह:1436
हज़रत बरा (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जिस शख़्स ने नमाज़े-ईद से पहले ज़बह कर लिया। तो उसने सिर्फ़ अपनी ज़ात की ख़ातिर ज़बह किया और जिसने नमाज़े-ईद के बाद ज़बह किया तो उसकी क़ुरबानी मुकम्मल हुई और उसने मुसलमानों के तरीक़े के मुताबिक़ की। (मुत्तफ़क़ अलैह) (मिश्कात:1437)
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जो कुरबानी करने की हैसियत न रखता हो:-
हज़रत अब्दुल्लाह-बिन-अम्र (रज़ि०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : मुझे हुक्म दिया गया है कि में इस उम्मत के लिये अज़हा के दिन को ईद क़रार दूँ। किसी आदमी ने आप ﷺ ने कहा : अल्लाह के रसूल! मुझे बताएँ अगर में दूध देने वाली बकरी जो कि मुझे किसी ने अतिया की है के सिवा कोई जानवर न पाऊँ तो क्या में उसे ज़बह कर दूँ? फ़रमाया : नहीं लेकिन तुम (ईद के दिन) अपने बाल और नाख़ुन कटाओ मूँछें कतराओ और नाफ़ के नीचे के (नाभि) बाल मूँड लो अल्लाह के यहाँ ये तुम्हारी मुकम्मल क़ुरबानी है। अबू-दाऊद और नसाई
बड़े जानवर में कितने लोगों का हिस्सा?
हज़रत जाबिर (रज़ि०) से रिवायत है कि नबी (सल्ल०) ने फ़रमाया : गाय और ऊँट सात-सात आदमियों की तरफ़ से क़ुरबानी के लिये काफ़ी है। मुस्लिम अबू-दाऊद और अलफ़ाज़ हदीस अबू-दाऊद के हैं। मुस्लिम और अबू-दाऊद।
(Mishkaat:1458)
जानवर ज़ब्ह करते वक़्त — "बिस्मिल्लाही वल्लाहुअकबर"
तस्मियाह (बिस्मिल्लाह पढ़ने) के मसाइल
✨ज़ब्ह करते वक़्त "बिस्मिल्लाही वल्लाहु अकबर" पढ़ना चाहिए
📙(सहीह बुख़ारी : 5565)
📘(सहीह मुस्लिम : 1966)
✒️ज़ब्ह करने वाले का बिस्मिल्लाह पढ़ना ज़रूरी है।
✒️अगर दो आदमी छुरी फ़ैर रहे हों तो दोनों का बिस्मिल्लाह पढ़ना लाज़िम है।
✒️अगर जानबुझ कर बिस्मिल्लाह नही पढ़ी तो जानवर हलाल नही होगा।
✒️अगर भूल से बिस्मिल्लाह रह गई तो जानवर हलाल हो जायेगा।
✒️अगर ज़िबाह करने वाले के मुँह मैं गुटका, पान वग़ैराह हो तो उसे मुँह ख़ाली करना ज़रूरी है ताकि बिस्मिल्लाह पढ़ सके।
✒️बिस्मिल्लाह पढ़ने वाले का मुसलमान होना ज़रूरी है।
✒️तस्मियाह के अल्फ़ाज़ यह है: बिस्मिल्लाही वल्लाहुअकबर।
✒️जानवरों की गर्दन मैं मौजूद चार रगो मैं से कम-अज़कम तीन रगो का काटना ज़रूरी है।
✒️अगर एक बार ज़ब्ह करने से चंद रगे रह गयी, और दूसरी बार छुरी फ़ैरने की ज़रूरत आये तो दोनों मर्तबा बिस्मिल्लाह पढ़ना होगा।
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Conclussion:
Qurbani Kya hai ? मुख्तसर में आप को बताया गया है ! इस लिए अपनी हैसियत के हिसाब से कुरबानी जरूर किया करें ! क़ुरबानी करना वाज़िब है! अगर कोई मुसलमान ऐसा करने के काबिल है तो उसे कुर्बानी करनी चाहिए। इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ी अहमियत है! अल्लाह तआला के हुक्म और रज़ा के लिए हज़रत इब्राहीम (अ०स०) ने अपने बेटे हज़रत इस्माईल (अ०स०) की क़ुरबानी पेश की थी और यह सुन्नत ए इब्राहिम है आप भी इस सुन्नत पर अमल करें !इस्लामिक कैलेंडर के ज़िल-हिज्जा महीने के 10वें दिन, ईद-उल-अधा (बलिदान की ईद) पर मुसलमान कुर्बानी करते हैं।
ईद-उल-अधा के मौका पर एक जानवर (बकरी, भेड़, गाय या ऊँट) की कुर्बानी की जाती है। इसका गोश्त तीन हिस्सों में बांटा जाता है:
1. एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है।
2. एक हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों को दिया जाता है।
3. एक हिस्सा खुद और अपने परिवार के लिए रखा जाता है।
कुर्बानी का खास मकसद अल्लाह को राज़ी और खुश करना और उसके हुक्म की तामील करना है !
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FAQs:
Que: कुर्बानी क्या है ?
Ans: कुर्बानी एक जरिया है जिससे बंदा अल्लाह की रजा हासिल करता है। बेशक अल्लाह को कुर्बानी का गोश्त नहीं पहुंचता है, बल्कि वह तो केवल कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत को देखता है।
Que:- क्या नमाज़ ए ईद से पहले कुर्बानी जायज़ है ?
Ans:- नही ! कुर्बानी नमाज़ के बाद ही जायज़ और कबूल है !नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:- जिस शख़्स ने नमाज़े-ईद से पहले ज़बह कर लिया। तो उसने सिर्फ़ अपनी ज़ात की ख़ातिर ज़बह किया और जिसने नमाज़े-ईद के बाद ज़बह किया तो उसकी क़ुरबानी मुकम्मल हुई और उसने मुसलमानों के तरीक़े के मुताबिक़ की। (मुत्तफ़क़ अलैह) (मिश्कात:1437)
Que: कुर्बानी की अहमियत क्या है ?
Ans: इस्लाम में क़ुर्बानी एक इबादत की हेसियत रखती है और जैसा की आप जानते हैं कि इबादतें जितनी भी हैं वो सब बन्दे का अल्लाह से ताल्लुक़ का इज़हार होती हैं। जैसे बदन से बंदगी का इज़हार नमाज़ में होता है और माल से इबादत करने का इज़हार ज़कात और सदके से होता है, ठीक ऐसे ही क़ुर्बानी जान से बंदगी करने का इज़हार है।
Que: कुर्बानी का मकसद क्या है ?
Ans: क़ुर्बानी का मक़सद अल्लाह को राज़ी करना है! अल्लाह तआला को क़ुर्बानी का गोश्त नहीं पहुँचता और ने उसका ख़ून बल्कि उसे तो तुम्हारा तक़वा पहुँचता है।
सूरह अल हज - आयत नं 37
Que: कुर्बानी किसकी सुन्नत है?
Ans: कुर्बानी हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सुन्नत है !
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1 Comments
Ek sawal hai kya qurbani ke janwar me aqeeqah bhi hota hai kya
ReplyDeleteplease do not enter any spam link in the comment box.thanks