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Jashn e Eid Miladun Nabi / जश्न ए ईद मिलादुन्नबी

Jashn e Eid Miladun Nabi/ जश्न ए ईद मिलादुन्नबी

Jashn e Eid Miladun Nabi / जश्न ए ईद मिलादुन्नबी
Jashn e Eid Miladun Nabi / जश्न ए ईद मिलादुन्नबी


Jashn e Eid Miladun Nabi दुनियाँ के कई मुल्कों में रहने बसने वाली मुस्लिम आबादी का एक बड़ा हिस्सा इस्लामी कैलेंडर के माहे रवीउलअव्वल की 12 तारीख को जश्न मानता है और इस जश्न में जो खुराफात किए जाते हैं उसका पूछिए मत! यह रवीउलअव्वल का महीना है कुछ साल पहले इस महीने में इस दिन को 12 वफात के नाम से याद किया जाता था लेकिन वक्त के साथ साथ यह 12 वफात का महीना जश्न ए ईद मिलादुन्नबी के नाम में तब्दील हो गया !

    किस बात का जश्न ?

    इस बात का जश्न कि इस दिन अल्लाह के आखिरी रसूल मुहम्मद मुस्तफा ﷺ  की पैदाइश हुई थी । इसलिए ये दिन ईद के जैसा है, बल्कि उससे बढ़ कर।

    अब सवाल ये पैदा होता है कि क्या मुसलमानों की भीड़ अपने हिसाब से कोई काम करना शुरू कर दे तो क्या वो काम, अल्लाह के दीन में दाखिल हो जाएगा ??

    जैसे ये video देखें 


     


    क्या नबी या रसूल के बआ़द किसी भी इंसान की ये हैसियत है कि उसका निकाला हुआ कोई काम या अमल या तरीका, अल्लाह का दीन बन जायेगा औऱ उस पर अल्लाह की तरफ से अज्र दिया जाने लगेगा ?? कभी नहीं !

     

    इस मक़ाम पर ज़रा ठहर कर चंद बुनियादी बातों पर गौर करनें, समझने की ज़रूरत है

     जश्न ईद मिलाद के नाम पर मुसलमान क्या कुछ कर रहे है ।




    क्या इस्लामी हिस्ट्री में ऐसा वाकया मिलता है कि मुहम्मद मुस्तफा की पैदाईश के दिन जश्न मनाया गया हो ? तो इसका जवाब है कि हां, मुहम्मद मुस्तफा ﷺ की यौम ए विलादत पर जश्न मनाया गया था, खुशियां मनाई गयीं थी
    Read This: Ahle bidat ke sawalat aur aitrazat part 1

    लेकिन जश्न किसने मनाई थीं ?

    अबु जहल ने मनाई थीं, अबु लहब ने मनाई थीं,अबु तालिब ने मनाई थीं, क़ुरैश खानदान के दूसरे अफ़राद ने भी खुशियां मनाई थीं,

    क्योंकि क़ुरैश खानदान के एक फर्द हज़रत अब्दुल्लाह के घर एक बेटा जन्मा था, जिससे कोई चाचा बना तो कोई बड़ा अब्बू बना तो कोई दादा बन गया था, इसी तरह क़ुरैश की औरतों में भी खुशियां थीं, क्योंकि उनका भी मुहम्मद इब्न अब्दुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) से कोई न कोई रिश्ता बन गया था

    याद रखिये, ये खुशी ठीक वैसी ही थी, जैसे आज भी हमारे घरों में किसी बच्चे के जन्म पर फ़ितरी तौर पर होती है ।
    ठीक वैसे ही क़ुरैश घराने में भी खुशी का माहौल था

    क़ुरैश घराने में खुशी की वजह


    क़ुरैश घराने में ये खुशी इसलिए नही थी कि उनके घर/खानदान में अल्लाह के नबी ﷺ का जन्म हुआ है , नही बल्कि उनके ज़ेहन ओ गुमान में भी ये बात नही थी कि उनके घर मे पैदा होने वाला ये बच्चा, भविष्य का नबी है, भविष्य में नबूवत का एलान कर देगा और इस पर आसमान से वहीय आने लगेगी ।

    और ऐसा भी नही हुआ कि जिस दिन मुहम्मद मुस्तफा ﷺ का जन्म हुआ था, फिर क़ुरैश खानदान में हर साल, उस महीने औऱ दिन को सेलिब्रेट किया जाने लगा हो।

    अब थोड़ा और आगे बढ़ते है, मुहम्मद मुस्तफा ﷺ जब हिजरत करके मदीने पहुंचे तो उस दिन वहां के लोगों में जश्न का माहौल था और वो मुहम्मद मुस्तफा की सवारी के आगे औऱ पीछे जुलुस की शक्ल में गाते बजाते औऱ झूमते हुए चल रहे थे क्योंकि आज उनके शहर में अल्लाह का रसूल तशरीफ़ लाया है ।

    तो एक जश्न ये मनाया गया, और इस वाक़ये में मुहम्मद मुस्तफा, अल्लाह के नबी की हैसीयत से लोगों के दरमियान खड़े थे,

    लेकिन ये दिन 12 रवीउल अव्वल का दिन नही था और ऐसा भी नही हुआ कि फिर हर साल उस दिन को ईद मान कर सहाबा इकराम सेलिब्रेट करने लगे हों ।

    इस्लामी इतिहास में ऐसा कोई वाकया नही मिलता कि नबी की यौमे पैदाईश के दिन सहाबा या ताबेईन या तबे- ताबेईन या अगले हज़ार साल तक मुस्लिम उम्मत ने कोई जश्न कोई जुलूस निकाला हो ।

    हाँ ये ज़रूर है कि बाज़ सूफिया ने 12 रवील अव्वल के दिन ही को नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम की यौमे विलादत मानते हुए इनफिरादी तौर पर रात को दुरूद पढ़ने, अल्लाह का ज़िक्र करने और नवाफिल पढ़ने और नबी (अलैहिस्सलाम) की सीरत बयान करने बगैरह के आमाल किये हैं ।

    लेकिन सड़कों पर घूमना-झूमना, चिल्लाना, नारे लगाना, ढोल बजाना, गली गली शोर शराबा करना, नाचते फिरना , हेवी साउंड के डीजे बजाना कि बीमार बूढ़े इंसानों के दिल दहल जाए ,

    ये न पहले कभी इस्लामी काम कहे गए औऱ न ही आज कहे जा सकते है । फिर इन जुलूसों के आगे आगे चाहे जितनी बड़ी खानकाह के पीर साहब चल रहे हों, चाहे कितनी बड़ी इस्लामी यूनिवर्सिटी से फारिग आलिम साहब चल रहे हो ।
    उनके जुलूस के आगे आगे चलने से वो काम, न तो दीन बन जायेगा और न ही सवाब का काम यह दीन में बिदत ही कहलाएगा और यह बिदअ़त क्या खुराफाती शकल लेती है इस की एक वीडियो देखें.जो ईश्क ए रसूल के नाम पर तौहीन की जा रही है 




    अस्तगफीरुल्लाह यहां पोस्टर पर नबी करीम ﷺ का मुबारक नाम और ये आशिकान ए रसूल कहलाने वाले बेहयाई का काम और गुस्ताखी कर रहे हैं. कोई बताएगा कौन है इसका जिम्मेदार? अगर ईद मिलाद के नाम पर होने वाली ये बिदअ़त पहले ही रोक दिया गया होता तो आज ये खुराफात बेहयाई और गुस्ताखी की नौबत नहीं आती.
    अब इसे भी देख लें के ये गुस्ताख ए रसूल कैसे कैसे गुस्ताखी कर रहे हैं.


    आखिर कौन है इसका जिम्मेदार?

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    बाकी अपने पैगम्बर या किसी और दीनी हस्ती की यौमे पैदाईश सेलिब्रेट करने का ढंग, रिवाज, अमल मुस्लिम उम्मत ने ईसाईयों और दूसरी क़ौमों की देखा देखी शुरू किया था और आज जश्ने ईद मिलादुन्नबी के नाम पर बिदअत और दूसरी खुराफातों के जितने अम्बार मुस्लिम उम्मत ने लगा लिए है उतने तो शायद दूसरों के यहां भी न पाए जाते हों।




    सहाबा को भी मुहम्मद मुस्तफा से बे-इंतिहा मोहोब्बत थी लेकिन वो सड़कों पर चिल्ला चिल्ला कर, ढोल बजा बजा कर अपनी मोहोब्बत साबित करते नही फिरते थे ।

    चीजें बड़ी साफ है देखने समझने वाले के लिए, जो अक़्ल से काम लेता हो, बाकी रहे जाहिल, तो उनका न पैगम्बरों के ज़मानों में कोई सुधार हुआ औऱ न ही आज उनसे उम्मीद की जा सकती है ।

    जब गुमराही पैगम्बरों से मोहोब्बत के नाम पर हो

    जब गुमराही पैगम्बरों से मोहोब्बत के नाम पर आती है तो बड़े बड़े मुल्ला मौलवी भी तिनके की तरह उखड़ जाते है और उस गुमराही को दीनी काम समझ कर खुद करते है और उनके अंध भक्त भी उनकी देखा देखी करने लगते है


    पैगम्बर ईसा की मोहोब्बत उनको मानने वालोँ के दिल ओ दिमाग मे ऐसी ठूंस ठूंस कर भरी गयी कि आज तक ईसाईयत इस अक़ीदे से बाहर नही निकल पाई कि आज तक वो कम्युनिटी उनको खुदा का बेटा ही माने बैठी है, जबकि अल्लाह ने अपने आखिरी रसूल - मुहम्मद मुस्तफा के ज़रिए ये बात साफ साफ बयान कर दी थी कि ईसा इब्न मरियम सिर्फ अल्लाह का रसूल है और उनकी मां एक पाक दमन औरत, दोनो खाना खाते थे ।

    मतलब ये कि न तो हज़रत मरियम के अंदर कोई खुदाई शक्ति थी और न ही ईसा मसीह, अल्लाह की खुदाई में शरीक है, बल्कि उन दोनों की ज़िंदगी, दूसरे इंसानो की तर्ज़ पर थी, जैसे सब इंसान खाना खाते है वैसे ही ये दोनों भी खाना खाते थे और जिसकी ज़िन्दगी खाने पीने पर चलती हो, वो खुदा या खुदा का बेटा या खुदा का रिश्तेदार नही हो सकता ।

    अब उम्मते मोहम्मदिया कोई अलग मिट्टी की तो बनी है नही जो उनके यहां के सब आलिम क़यामत तक, दूध के धुले और एतिकादि खराबियों से पाक साफ रहते ।

    पीछे किसने क्या कहा, उसको बाद में देखेंगे, फिलहाल बात करते है दौरे हाज़िर के बड़े नामवर आलिम ताहिरुल क़ादरी साहब की

    ताहिरुल क़ादरी साहब की बेढंगी दलील:


    मुहम्मद मुस्तफा  ﷺ की यौमे विलादत को ईद की तरह मनाने के जवाज़ पर उनकी बेढंगी दलीलें पढ़िए

     क़ुरआन की सूरह मायदा में आता है कि एक मौके पर ईसा मसीह की उम्मत के लोगों ने उनसे मोजिज़ा तलब किया कि आप खुदा से दुआ करे, ताकि वो आसमान से "मायदा"(खाने पीने की बेहतरीन चीजों से सजा एक दरतरख्वान) उतारे । इस पर ईसा मसीह ने कहा कि अल्लाह से डरो अगर तुम वाक़ई मोमिन हो ।
    इस पर उनके असहाब ने कहा कि बात दरअसल ये है कि हम उस दरतरख्वान के बेहतरीन खाने खाना चाहते है ताकि हमारे दिल मुतमईन हो जाये कि आपकी बातें सच्ची है ।

    हज़रत ईसा ने खुदा से दुआ की कि ऐ हमारे खुदा !! हमारे लिए "मायदा" उतार दे ताकि हम और हमारी आने वाली नस्ले इस दिन को "ईद" के जैसे सेलिब्रेट करें ...
    तो अल्लाह ने कहा कि ठीक है हम उनकी ख्वाहिश पूरी किये देते है लेकिन अगर उसके बाद फिर उनमे का कोई काफिर हुआ तो उसको ऐसी सज़ा दूंगा जो दुनियाँ में किसी को न दी होगी


    अब इस वाक़ये औऱ मुहम्मद मुस्तफा की यौमे विलादत को सेलिब्रेट करने में क्या ताल्लुक बनता है ???

    जब मोहोब्बत में गुलू आजाए


    लेकिन जब मोहोब्बत में गुलू आजाए यानी हदों से गुज़र जाए तो फिर मौलवी ऐसे ही ताल्लुक जोड़ते फिरते है
    यहूद और नास्रानियों के यहां साल के बहुत से दिनों को सेलिब्रेट करने की तारीख मिलती है जिसे वो दीनी काम समझ कर किया करते थे हालांकि उन कामों में दीन कम और खुराफातें ज़्यादा हुआ करती थीं

    अब एक तरफ़ तो मुसलमान नमाज़ में कहता है कि

    इहदिनस सिरातल मुस्तकीम
    सिरातल लज़ीना अन अमता अलैहिम
    गैरिल मगदुबी अलैहिम
    व लज़्ज़ाललीन

    ऐ अल्लाह ! हमे सीधे रास्ते पर चला, उन लोगों के रास्ते पर, जिन पर तेरी नेमतें-तेरे इनाम हुए, न कि उनका रास्ता, जिन पर तेरा गज़ब हुआ और जो गुमराह हो गए थे


    अल्लाह के रसूल से पूछा गया कि क्या इन आखिरी आयतों में यहूद और नसारा मुराद है तो अल्लाह के रसूल ने जवाब दिया कि फिर और कौन मुराद है ??

    नबी ने अलर्ट किया कि यहूद और नसारा के ढंग, तौर तरीके न अपनाना लेकिन उम्मत ने भी कसम खायी है कि हम यहूद-नसारा के कदम से कदम मिला मिला कर चलेंगे ।

    तो ये है आज के बड़े और भारी भरकम मौलवियों की दलीलें, जिनको जश्ने ईद मीलाद सेलिब्रेट करनें के लिए "सहाबा इकराम" को छोड़ कर यहूद और नसारा के यहां से दलीलें लानी पड़ती है।

    चीजें बड़ी साफ है, उनके लिए जो अक़्ल से काम लेते है
    रहे जाहिल, जज़्बाती, अंधभक्त
    तो उनका सुधार न पैगम्बर नूह के दौर में हुआ न इब्राहीम के ज़माने में, न मूसा के दौर में, न दाऊद ओ सुलैमान की हुकूमत में, न ईसा मसीह की नबूवत के ज़माने में और अब न ही क़यामत तक जारी मुहम्मद मुस्तफा की नबूवत के ज़माने में ही हो सकता है ।
    (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम/सलामुन अलल मुरसलीन)
     
    अब इस video me देखें मस्जिद वीरान और सड़कों पर आशिकान ए रसूल की खुराफात!



    कुछ लोग तरह तरह की दलीलें दे रहे हैं जश्न मनाने की, कभी इब्न ए कसीर रहमउल्लाह का हवाला, कभी इब्न ए तैमिया रहमउल्लाह का, तो कभी अशरफ अली थानवी का, कभी अहमद रज़ा खान साहब का..... तो कभी क़ुरआन की किसी आयात का, तो कभी कुछ, कभी कुछ

    एक सीधा सा सवाल


    मेरा सीधा सा सवाल है कि बराये मेहरबानी आप कोई दलील लाइये नबी ए अकरम (ﷺ) की नबुव्वत के बाद की 23 साला ज़िंदगी से, क्योंकि उन 23 सालों में 23 बार 12 रबी-उल-अव्वल आया था, अगर वहां से न मिले तो ख़ुल्फ़ा-ए-राशिदीन रज़ियल्लाहू अन्हु से लाइये जिनके दौर में कम अज़ कम 25 बार 12 रबी-उल-अव्वल आया था अगर वहां से भी न मिले तो अपने इमाम अबु हनीफा रहमउल्लाह से ही कोई दलील ला दिजीये, आप ला ही नहीं सकते क्योंकि इन लोगों ने 12 रबी-उल-अव्वल को कभी जश्न मनाया ही नहीं

    अच्छा फ़र्ज़ किजिये ... क़यामत हो गई है और हश्र के मैदान में हम सभी जमा हैं और हिसाब किताब का दौर चल रहा है और अल्लाह ने सवाल कर दिया कि बताओ तुम में से कितनों ने 12 रबी-उल-अव्वल को ईद और जश्न मनाया, जुलूस निकाला, चिरागा किया हाथ खड़े करो ....... तो आप जैसों का हाथ उठेगा और अल्लाह की क़सम मेरे अबूबक्र सिद्दीक रज़ियल्लाहू अन्हु, मेरे उमर बिन ख़त्ताब रज़ियल्लाहू अन्हु, मेरे उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहू अन्हु, और मेरे अली बिन अबी तालिब रज़ियल्लाहू अन्हु, का हाथ नहीं उठेगा और तमाम सहाबा का और हमारा भी हाथ नहीं उठेगा

    अल्हमदुलिल्लाह, हम हाथ न उठाने वालों में ख़ुल्फ़ा-ए-राशिदीन रज़ियल्लाहू अन्हु के साथ होंगे,

    तब बताइये अल्लाह किससे सवाल करेगा.....क्या वो अबूबक्र और उमर रज़ियल्लाहू अन्हु से पूछेगा कि "ऐ अबूबक्र" आपने उस दिन जश्न क्यों नहीं मनाया, जबकि देखिए आपके हज़ारों साल बाद वालों ने कितनी धूम धाम से मनाया, क्या आपको अपने नबी ﷺ से मोहब्बत नहीं थी जो आपने नहीं मनाया

    या फ़िर..... अल्लाह आप जैसे लोगों से सवाल करेगा कि ऐ बदबख़्तों! जिस अमल को अबूबक्र, उमर, उस्मान और अली (रज़ियल्लाहू अन्हु) ने नहीं किया उसको तुमको करने की जुर्रत कैसे हुई.....वहां जवाब आपको देना है।

    अगर हमसे सवाल होगा तो हम तो साफ़ कह देंगे के ऐ अल्लाह जिस अमल को आपके हबीब के जां-निसार सहाबा, जिनको आपने ज़िंदगी मे ही जन्नत की बशारत दे दी थी उन्होंने नहीं किया, इसलिए हमने भी नहीं किया।

    अब फ़ैसला आपका है कि Jashn e Eid Miladun Nabi के नाम पर इस अमल को करके ख़ुल्फ़ा-ए-राशिदीन रज़ियल्लाहू अन्हु के ख़िलाफ़ में खड़े होना चाहते हैं या ना करके इनके साथ,,, आपकी मर्ज़ी

    Read This: Ahle bidat ke sawalat aur aitrazat part 3


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    Conclusion:

    Jashn e Eid Miladun 
    Nabi के नाम पर आज जो हो रहा है वो तो आप को समझ में आ गया होगा की किस तरह गुस्ताख़ी और खुराफात हो रहे हैं और इसका जिम्मेदार कौन है?
    जश्न के बरक्स हदीसों में आता है कि 12 रबी-उल-अव्वल को जब मेरे प्यारे नबी (ﷺ) दुनिया से रुख़सत हुए तो उनकी लाडली बेटी हज़रत फातिमा रज़ियल्लाहू अन्हा का रो-रो के बुरा हाल था,,, उन्होंने कहा कि आज जितनी तकलीफ़ मुझे हो रही है यह तकलीफ़ अगर किसी पहाड़ पे दे दी जाती तो पहाड़ रेज़ रेज़ा हो जाता

    और तुम लोग नहीं मनाने वालों को कहते हो कि वो इब्लीस के साथी हैं ज़रा सोचो तो कि indirectly तुम उन तमाम लोगों को इब्लीस का साथी कह रहे हो जिनका रुतबा इस्लाम में अव्वल पायदान पे हैं....जिसमे ख़ुल्फ़ा-ए-राशिदीन रज़ियल्लाहू अन्हु ताबेईंन, तब-ए-ताबेईन से लेकर आइम्मा-ए-कराम तक है ..... इन सब पे तुम जैसे लोग इब्लीस के साथी होने का इल्ज़ाम लगाते हो.... शर्म करो और अपने ईमान का जायज़ा लो, अल्लाह से पनाह मांगो समझ आई हो तो शेयर कर दे , ताकि और लोगों तक पहुंच जाये।

    FAQs:

    Que:1. ईद मिलादुन्नबी क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?

    Ans: मुसलमानों में आज कल ये रिवाज आम है की ईद मिलादुन्नबी नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के जन्मदिन के तौर पर मनाया जाता है और इनका मानना है कि इसी दिन नबी करीम की पैदाइश हुई है। असल में इसका दीन से कोई तअ़ल्लुक नहीं है यह बाद की ईजाद की हुई एक बिदअ़त है। असल में कुछ साल पहले इसे 12 वफात के नाम से जाना जाता था।


    Que:2. ईद मिलादुन्नबी के दौरान लोग क्या क्या करते हैं? 

    Ans: इस दिन  सड़कों पर जलसे, जुलूस निकाले जाते हैं, नात-गोई (पैगंबर की तारीफ में कविताएँ पढ़ना) की जाति है। महफिलें और सड़कों को सजाया जाता है 


    Que:3. ईद मिलादुन्नबी के दौरान होने वाले खुराफात क्या हैं? 

    Ans: आज कल ईद मिलाद के नाम पर बेहयाई वाले गाने और डांस किए जाते हैं। सड़कों को जाम किया जाता है लोग इसमें झूमते हैं नाचते हैं और तरह तरह के करतब दिखाते हैं लेकिन मजाल क्या की उस वक्त अज़ान हो और कोई नमाज पढ़ने जाए।


    Qur:4. क्या ईद मिलादुन्नबी मनाना इस्लामी दृष्टिकोण से सही है? 

    Ans: इस्लाम में इस पर विभिन्न मत हैं। कुछ विद्वान इसे सही मानते हैं और इसे पैगंबर की शिक्षाओं को याद करने का एक तरीका मानते हैं, जबकि कुछ इसे बिदअत (धर्म में नई चीजें जोड़ना) मानते हैं और इसे नकारते हैं.ये ना ही दीन का कोई हिस्सा है और ना ही इस्लाम में इसका कोई वजूद है 


    Que:5. ईद मिलादुन्नबी के दौरान खुराफात से कैसे बचा जा सकता है?
     
    Ans: खुराफात से बचने के लिए उलमाओं को पहले आना होगा अवाम को समझना होगा कि इस दिन को मनाएं लेकिन शरीयत के दायरे में रह कर।इस दिन आप ﷺ के फजाईल, ज़िक्र खैर और मोअजजा़त बयान किया जाए।आप  ﷺ की तालीमात और मोहब्बत का दरस दिया जाए और वो साल में एक दिन नही बल्कि हर महीने हर दिन आप ﷺ की तालीमात आ़म किया जाए।

    Que: ईद मिलाद मनाने का सबसे बेहतरीन तरीका क्या है ?

    Ans: ईद मिलाद मनाने का सबसे बेहतरीन तरीका उस दिन रोज़ा रखा जाए क्योंकि हमारे नबी  ﷺ उस दिन यानी हर सोमवार को रोज़ा रखा करते थे । और आज के मुसलमान इस दिन रोज़ा नमाज़ छोड़ कर खुराफात में लगे रहते हैं !

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