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Eid Miladun Nabi ki Haqeeqat/ईद मिलादुन्नबी की हक़ीक़त

Eid Miladun Nabi ki Haqeeqat/ईद मिलादुन्नबी की हक़ीक़त

Eid Miladun Nabi ki Haqeeqat/ईद मिलादुन्नबी की हक़ीक़त
Eid Miladun Nabi ki Haqeeqat/ईद मिलादुन्नबी की हक़ीक़त


Eid Miladun Nabi ki Haqeeqat क्या है और यह क्यूं मनाई जाती है?
मिलाद से मुराद है पैदाइश का दिन और ईद मिलादुन्नबी का मतलब है नबी-ए-करीम ﷺ की पैदाइश के दिन ईद मनाना यानी खुशी मानना !



    ईद मिलादुन्नबी मनाने वालों का कहना है के 12 रबीउल अव्वल को मुहम्मद ﷺ की विलादत हुई थी और उनकी विलादत का दिन ख़ुशी का दिन है इसलिए हर साल इस दिन को बड़े जोशो-ख़रोश से मनाते हैं, नए कपड़े पहने जाते हैं, घरों में मिठाइयां और पकवान बनाये जाते हैं, और एक जुलूस भी निकाला जाता है जिसमे माइक और लाउडस्पीकर पर नारे लगाते हुए, शोर शराबों के बीच ये ख़ुशियां मनाते हैं।

    ईद मिलाद के बारे में क़ुरान और हदीस में क्या हुक्म है ?

    Eid Miladun Nabi ki Haqeeqat/ईद मिलादुन्नबी की हक़ीक़त
    Eid Miladun Nabi ki Haqeeqat/ईद मिलादुन्नबी की हक़ीक़त


    ईद मिलादुन्नबी को मनाने का सुबूत न तो किसी हदीस में मिलता है और न ही क़ुरआन की किसी आयत में ईद मिलादुन नबी का ज़िक्र है, तो फ़िर ये वुजूद में कहाँ से और कैसे आया?

    तारीख़ की किताबों के हवाले से पता ये चला के इराक़ के शहर मौसूल का इलाक़ा इरबिल का बादशाह "मलिक मुज़फ्फर अबु-सईद" ने नबी-ए-करीम की वफ़ात के 600 साल बाद सबसे पहले इस्लाम में इस नयी ख़ुराफात को जन्म दिया और रबीउल अव्वल के महीने में उसके हुक्म से एक महफ़िल सजाई गयी जिसमें दस्तरख़्वान सजाया गया और सूफ़ियों को बुलाया गया फ़िर ढोल-तमाशे और नाचना-गाना हुआ जिसे ईद मिलादुन्नबी का नाम दिया गया।
    (अल-बिदायह वल निहाया, जिल्द १३,सफ़ा 160, इबने कसीर)



    इस बादशाह के बारे में मोवर्रिख (इतिहासकार) ने लिखा है के इसे दीन की समझ नहीं थी और ये फ़िज़ूल ख़र्च इंसान था।(अनवारे सातिया, सफ़ा 267)

    उसके पहले तक क़ुरआन हदीस से साबित सिर्फ़ दो ईद ही थी मगर कुछ गुमराह लोगों की वजह से ये तीसरी ईद का आग़ाज़ हुआ जिसकी कोई दलील मौजूद नहीं है।

    मुहम्मद ﷺ फ़रमाते हैं : "दीन के अंदर नयी नयी चीज़ें दाख़िल करने से बाज़ रहो, बिला शुबहा हर नयी चीज़ बिदअत है और हर बिदअत गुमराही है और हर गुमराही जहन्नम में ले जाने वाली है." (अबु'दाऊद किताब अल सुन्ना 7064)

    इस तीसरी ईद को मनाने की शरई हक़ीक़त पे ग़ौर करें तो



    ईद मिलादुन्नबी को कभी भी रसूलल्लाह ﷺ के ज़माने हयात में नहीं मनाया गया और न ही कभी आप ﷺ ने इसे मनाने का हुक्म दिया।
    इस तीसरी ईद को सहाबा-ए-कराम में से किसी ने नहीं मनाया और न ही कभी इस ईद के वजूद की तस्दीक़ की।
    ताबईन और तबा-ताबईन के दौर में भी कभी कहीं इस ईद का ज़िक्र नहीं मिलता और न ही उस ज़माने में भी किसी ने इस ईद को मनाया था।

    इन तमाम सुबूतों से यही साबित होता है के इस्लाम में दो ईदों (ईद उल-फ़ित्र और ईद उल-अज़हा) के अलावा कोई तीसरी ईद नहीं है, ये ख़ुराफ़ाती दिमाग़ की उपज है जो के सरासर बिदअत है।

    रसूलल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :"सबसे बेहतरीन अमर (अमल करने वाली) अल्लाह की किताब है और सबसे बेहतर तरीका मुहम्मद ﷺ का तरीक़ा है, और सबसे बदतरीन काम दीन में नयी नयी बातें पैदा करना है, और हर नयी बात गुमराही है "
    (इबने माजा जिल्द 1 हदीस 45)


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    12 रबीउल अव्वल का दिन


    १२ रबीउल अव्वल का दिन हज़रत मुहम्मद ﷺ के दौरे हयात में 63 दफ़ा आया था, खुलफ़ा-ए-राशेदीन में

    हज़रते अबु बकर रज़ि० की ख़िलाफ़त में 2 दफ़ा

    हज़रते उमर रज़ि० की ख़िलाफ़त में 10 दफ़ा

    हज़रते उस्मान रज़ि० की ख़िलाफ़त में 12 दफ़ा और

    हज़रते अली रज़ि० की ख़िलाफ़त में 4 दफ़ा

    ये दिन आया मगर फ़िर भी किसी से भी ईद मिलादुन्नबी मनाने का सुबूत नहीं है। जब उनके जैसी शख़्सीयतों ने जिनके ईमान हमसे कही ज़्यादा कामिल थे और जो किताबुल्लाह और सुन्नते रसूल पर आज के मुसलमान से कही ज़्यादा ....बल्कि सबसे ज़्यादा अमल करने वालों में से हैं, कभी इस दिन को नहीं मनाया तो फ़िर तुम कौन होते हो दीन में नयी चीज़ ईजाद करने वाले?

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    ईद मिलाद से मुतल्लिक गलत दलील


    आइये इस बिदअत को ज़ोर-शोर से अंजाम देने वाले लोगों के पेश किये गए कुछ सुबूतों पे ग़ौर करते हैं :
    "कह दीजिये, अल्लाह के इस फज़ल और रहमत पर लोगों को ख़ुश होना चाहिए"
    (सूरह 10 यूनुस, आयत 58 )

    उन लोगों ने इस आयत में रहमत से मुराद विलादते नबी तस्लीम कर लिया, जबकि रहमत से मुराद अल्लाह की किताब क़ुरआन से है।

    ख़ुद अहमद रज़ा खान की तर्जुमा करदह कंज़ुल ईमान तफ़्सीर में भी इसको क़ुरआन से मुराद किया गया है जिसे फैजाने क़ुरआन में इस तरह बयां किया गया है:-

    तफ़्सीर में लिखा है "हज़रते इबने अब्बास व हसन व क़तादह ने कहा के अल्लाह के फ़ज़ल से इस्लाम और उसकी रहमत से क़ुरआन मुराद है, एक क़ौल ये है के फ़ज़्लुल्लाह से क़ुरान और रहमत से अहादीस मुराद हैं" (फैजाने क़ुरआन , साफ 311)

    इसी तरह की और भी आयतें इनकी तरफ से दलील के तौर पे पेश की जाती हैं :
    "और उन्हें अल्लाह के दिन याद दिलाओ"(सूरह इब्राहिम , आयत 5)

    "बेशक अल्लाह का बड़ा एहसान है मुसलमानो पर, के उन में उन्ही में से एक रसूल भेजा"
    (सूरह आले इमरान, आयत १६४)

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    हदीस भी सुबूत के तौर पे बयां की जाती है

    जब अल्लाह के रसूल ﷺ से पीर के रोज़े के मुताल्लिक़ पूछा जाता है तो वो फ़रमाते हैं के इस दिन यानि पीर को ही मेरी विलादत भी हुई और पीर को ही नुज़ूले क़ुरआन की इब्तेदा हुई।

    ऐसी और भी न जाने कई दलीलें वो पेश करते हैं मगर कहीं भी विलादते नबी की बात नहीं मिलती, न तो क़ुरआन की दलील से ही ये वाज़े होता है और न ही हदीस की बात से ऐसा कुछ लगता है, फिर लोगों ने अपने मतलब के हिसाब से कहाँ से मानी निकालना शुरू कर दिए?



    जब भी क़ुरान की आयत रसूलल्लाह ﷺ पर नाज़िल होती तो आप सहाबए कराम को तफ़्सीर के साथ समझाते और उसपे अमल करने को कहते थे...... तो क्या आप ﷺ ने इस तीसरी ईद को अपनी आवाम से छुपा लिया था या फिर आप ﷺ को क़ुरआन के उन आयात के मतलब नहीं समझ आये थे (नौज़ुबिल्लाह) जिसे आज कुछ लोगों ने क़ुरान से इस ईद का मतलब निकाल लिया??

    चले अगर उस वक्त किसी वजह से ये बात रसूलल्लाह ﷺ नहीं भी बता पाए तो फिर आपके सहाबा को भी ये बात पता न चली? अरे ये तो वो लोग थे के जिन्हें अगर छोटी से छोटी बात भी पता चलती तो उस पर अमल करना शुरू कर देते थे फिर क्या ये इतनी बड़ी बात को छोड़ देते, वो भी जो ख़ुद रसूलुल्लाह ﷺ से जुड़ी हो??

    अरे जाहिलों, अक़्ल के घोड़े दौड़ाओ और ख़ुद ही इन बातों पे ग़ौर करो के जिस फेल से हमारे नबी का वास्ता नहीं, सहाबए किराम का वास्ता नहीं, ताबेईन का वास्ता नहीं उसे तुम दीन कह रहे हो, यक़ीनन तुमसे बड़ा गुमराह कोई नहीं।

    अल्लाह फ़रमाता है: "और हमने तुम्हारे लिए तुम्हारा दीन मुकम्मल कर दिया"
    (सुरह 5 मैदा, आयात 3)

    फिर तुम्हे क्या ज़रूरत आन पड़ी के तुम इस दीन में बिगाड़ पैदा करने लगे? और इस बिगाड़ का अंजाम हमारे सामने है की हम अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला और नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के बताए रास्ते को छोड़ कर किस राह चल पड़े हैं ?
    अभी भी वक्त है संभल जाओ नही तो एक वक्त आएगा जो खुद बरेलवी उलमा अपने ही अवाम की खुराफात से खुद परेशान हाल होगी ! चीखेंगे चिल्लाएंगे पर कोई नहीं सुनेगा !
    अब इसे देखिए

    पहले जश्न में औरतों का नाम ओ निशान नही था लेकिन देखिए !!!!
    जब शैतानी राह अपनाएं हैं तो शैतान तो तैयार ही है उन राहों को हसीन बनाने के लिए और अपनी जाल में फंसाने के लिए

    अब ये सब देखने के बाद भी कोई अपनी आंखें बंद कर ले तो शैतान तो तैयार ही बैठा है ....



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    Conclusion:

    तो ये है नबी ﷺ  के नाम पर ईजाद की गई Eid Miladun Nabi ki Haqeeqat.अल्लाह से दुआ है के इन भटके हुए लोगों को रास्ता दिखाए और हम सबको क़ुरान-ओ-सुन्नत पे अमल करने की तौफ़ीक़ अता करे (आमीन)
    और हमारे दिल में अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से सच्ची मुहब्बत और इताअत करने की तौफीक अता फरमाए.


    FAQs:

    Que:1. ईद मिलादुन्नबी क्या है और इसे क्यों मनाया जाता है?

    Ans: ईद मिलादुन्नबी मनाने वालों का कहना है के 12 रबीउल अव्वल को मुहम्मद ﷺ की विलादत हुई थी और उनकी विलादत का दिन ख़ुशी का दिन है इसलिए हर साल इस दिन को बड़े जोशो-ख़रोश से मनाते हैं, नए कपड़े पहने जाते हैं, घरों में मिठाइयां और पकवान बनाये जाते हैं, और एक जुलूस भी निकाला जाता है जिसमे माइक और लाउडस्पीकर पर नारे लगाते हुए, शोर शराबों के बीच ये ख़ुशियां मनाते हैं।

    Que:2 ईद मिलाद के बारे में क़ुरान और हदीस में क्या हुक्म है ?

    Ans: ईद मिलादुन्नबी को मनाने का सुबूत न तो किसी हदीस में मिलता है और न ही क़ुरआन की किसी आयत में ईद मिलादुन नबी का ज़िक्र है. यह एक बिदत है

    Que:3 ईद मिलाद की शुरुवात कब और किसने करवाई ?

    Ans: तारीख़ की किताबों के हवाले से पता ये चला के इराक़ के शहर मौसूल का इलाक़ा इरबिल का बादशाह "मलिक मुज़फ्फर अबु-सईद" ने नबी-ए-करीम की वफ़ात के 600 साल बाद सबसे पहले इस्लाम में इस नयी ख़ुराफात को जन्म दिया और रबीउल अव्वल के महीने में उसके हुक्म से एक महफ़िल सजाई गयी जिसमें दस्तरख़्वान सजाया गया और सूफ़ियों को बुलाया गया फ़िर ढोल-तमाशे और नाचना-गाना हुआ जिसे ईद मिलादुन्नबी का नाम दिया गया।

    Que: क्या ईद मिलाद नबी ﷺ  या खुल्फा ए राशेदीन के ज़माने में मनाया गया ?

    Ans: ईद मिलादुन्नबी को कभी भी रसूलल्लाह ﷺ के ज़माने हयात में नहीं मनाया गया और न ही कभी आप ﷺ ने इसे मनाने का हुक्म दिया।
    इस तीसरी ईद को सहाबा-ए-कराम में से किसी ने नहीं मनाया और न ही कभी इस ईद के वजूद की तस्दीक़ की।
    ताबईन और तबा-ताबईन के दौर में भी कभी कहीं इस ईद का ज़िक्र नहीं मिलता और न ही उस ज़माने में भी किसी ने इस ईद को मनाया था।


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