Muslim ummat aur shirk/मुस्लिम उम्मत और शिर्क
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Muslim ummat aur shirk/मुस्लिम उम्मत और शिर्क |
Muslim ummat aur shirk: सहीह बुखारी और मुस्लिम की हदीस में है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: अल्लाह की कसम, मुझे इस बात का डर नहीं है कि तुम मेरे बाद शिर्क करोगे, बल्कि मुझे डर है कि तुम इस दुनिया को हासिल करने के लिए प्रलोभित हो जाओगे (यानी नतीजा यह होगा कि तुम आख़िरत से बेखबर हो जाओगे!(बुखारी: 1344 और मुस्लिम: 2299 )
Muslim ummat aur shirk इस टॉपिक पर आगे बढ़ने से पहले आइए तौहीद और शिर्क से मुतल्लिक मुख्तसर में कुछ जान लें.
तौहीद की परिभाषा/ तारीफ़
तौहीद का मतलब है अल्लाह की वहदानियत यानी एकता में यक़ीन रखना। यह ईमान रखना कि सिर्फ अल्लाह ही इबादत के लायक़ है, उसका कोई शरीक या बराबर का हिस्सा नहीं है, और वह अकेला ही सृष्टि/ कायनात का मालिक और पालनहार है।इसके विपरीत, 'शिर्क' है यानी अल्लाह के साथ किसी को साझीदार ठहराने या उसकी इबादत में, दुआ में किसी और को शामिल करना है! इस्लाम में शिर्क सबसे बड़ा और गंभीर पाप है, जिसे कुरान और हदीस में कड़ी सजा की चेतावनी दी गई है।
शिर्क की परिभाषा/ तारीफ़
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Muslim ummat aur shirk/मुस्लिम उम्मत और शिर्क |
शिर्क का मतलब होता है अल्लाह के साथ किसी और को साझी ठहराना या उसकी जगह किसी और की इबादत करना! इस्लाम में इसे सबसे बड़ा गुनाह माना जाता है, क्योंकि यह तौहीद (अल्लाह की एकता) के खिलाफ है! अल्लाह के सिवा किसी और को इबादत, ताक़त, या मदद के लिए अल्लाह का शरीक ठहराना ही शिर्क है! मतलब यह है कि अगर कोई व्यक्ति अल्लाह के सिवा किसी और को उसकी जगह या उसके समान समझता है, उसकी इबादत करता है, किसी से दुआ के जरिया कुछ मांगता है या किसी अन्य शक्ति को अल्लाह के समान मानता है, तो वह शिर्क का दोषी होता है! कुरान की नज़र में शिर्क
कुरान शरीफ में कई स्थानों पर शिर्क की निंदा की गई है और इसे सबसे बड़ा अन्याय कहा गया है। कुछ महत्वपूर्ण आयतें निम्नलिखित हैं:
"वास्तव में, अल्लाह इस बात को नहीं माफ करेगा कि उसके साथ शिर्क किया जाए, और इसके अलावा अन्य गुनाहों को जिसे चाहे माफ कर देगा।"सूरह अन-निसा (4:48)
"निश्चय ही शिर्क बहुत बड़ा अन्याय है।"सूरह लुक़मान (31:13)
इन आयतों से साफ़ ज़ाहिर है कि शिर्क एक ऐसा गुनाह है जिसे अल्लाह माआ़फ़ नहीं करेगा, अगर किसी ने इसके साथ दुनिया से विदा लिया।
हदीस की नज़र में शिर्क
हदीसों में भी शिर्क के बारे में बहुत स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं। पैगंबर मुहम्मद (ﷺ) ने शिर्क को सबसे बड़ा गुनाह बताया और इस से बचने की कड़ी हिदायत दी है।
"जो व्यक्ति इस अवस्था में मरा कि उसने अल्लाह के साथ किसी को साझीदार ठहराया, वह जहन्नम में जाएगा।"(सहीह मुस्लिम )
"पैगंबर (ﷺ) ने कहा: क्या मैं तुम्हें सबसे बड़े गुनाहों के बारे में न बताऊँ? शिर्क करना, और माता-पिता की नाफरमानी।"(सहीह बुखारी)
कुरान और हदीस दोनों में शिर्क के खिलाफ साफ़ निर्देशों के बावजूद आज कुछ मुस्लिम उम्मत में शिर्क के मुख्तलिफ शकल देखने को मिलते हैं। कभी-कभी अज्ञानता, सांस्कृतिक प्रभाव या धार्मिक अंधविश्वास के कारण लोग शिर्क में पड़ जाते हैं। कुछ लोग धार्मिक व्यक्तियों, मज़ारों, दरगाहों या अन्य धार्मिक स्थानों पर जाकर अल्लाह के अलावा किसी और से मदद मांगते हैं, जो कि शिर्क की श्रेणी में आता है।
Read this: Shirk Kya hai ?
शिर्क के प्रकार
शिर्क को दो हिस्सों में बांटा गया है:
शिर्क-ए-अकबर (बड़ा शिर्क):
शिर्क ए अकबर (बड़ा शिर्क) का मतलब है अल्लाह के साथ किसी को उसके दर्जे में बराबर ठहराना या उसकी इबादत में किसी और को शामिल करना। यह इस्लाम में सबसे गंभीर गुनाह है। शिर्क ए अकबर के उदाहरणों में कब्र परस्ती, बुत परस्ती, किसी और को अल्लाह के जैसा मानना, या किसी और की इबादत करना शामिल है। इसका अंजाम यह है कि अगर कोई इंसान बिना तौबा किए इस हालत में मरता है, तो उसे माफ़ नहीं किया जाता!
शिर्क-ए-असगर (छोटा शिर्क):
शिर्क ए असगर (छोटा शिर्क) का मतलब है ऐसे कार्य या बातें जो सीधे अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं ठहराते, लेकिन उनमें किसी और की अहमियत या दिखावे का तत्व शामिल हो।इसके उदाहरणों में रिया (दिखावा) शामिल है, जैसे कि किसी धार्मिक कार्य को सिर्फ लोगों को दिखाने के लिए करना, न कि अल्लाह की रज़ा के लिए!यह उतना गंभीर नहीं होता जितना शिर्क ए अकबर,
ये अगर शिर्क और बुत परस्ती नही है तो क्या है ?
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Muslim ummat aur shirk/मुस्लिम उम्मत और शिर्क |
क्या मुस्लिम उम्माः कभी शिर्क नही कर सकती ?
अब आएं बुखारी और मुस्लिम की उस हदीस की तरफ जिस में नबी ﷺ ने फ़रमाया कि मेरी उम्मत शिर्क नही करेगी ! इस एक हदीस को दलील बनाकर सुन्नी हजरात कहते हैं की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फरमान है की मुस्लिम उम्मत कभी शिर्क नही कर सकती ! और वह लोग शिर्क के सारे दरवाजे पार कर जाते हैं! ये बस जाहिलियत और इल्म की कमी की वजह से है और कुछ नही!
यह बात अच्छी तरह ज़हन नसीं कर लें की यह हदीस पूरी उम्मत के लिए नहीं है बल्कि उम्मत के कुछ लोगों के लिए। और ये वे लोग हैं जिनके बारे में नबी ﷺ ने कहा था कि एक समूह यानी जमाअ़त कयामत के दिन तक सच्चाई पर क़ायम रहेगी, जो सहाबा के नक्शे कदम पर चलेगी! आप ﷺ ने फरमाया: "ये वे लोग होंगे जो मेरे और मेरे साथियों के नक्शे कदम पर चलेंगे! (जामा तिर्माजी:2641)
और सुन्न इब्ने माजा में हदीस है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:मेरी उम्मत में से एक गरोह हमेशा अल्लाह की सहायता से सत्य के प्रति हक पर क़ायम रहेगा, विरोधियों का विरोध उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा! (जिल्द 1, हदीस:10)
तो बात साफ है की नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने उसी एक जमाअत के मुतल्लिक इतला दी है की यह कयामत तक शिर्क नही करेगी!
अब ज़ाहिर सी बात है कि जब यह जमाअ़त/मंडली शिर्क नही करेगी तभी तो क़ियामत के दिन तक बनी रहेगी। जब शिर्क में शामिल हो जाएगी तो क़ियामत के दिन तक कैसे रहेगी? इससे साफ़ ज़ाहिर है यह हदीस उसी समूह के बारे में है जो कभी शिर्क नहीं करेगा!
अब रही बात कलमा गो मुशरिक की, यदि इस हदीस को आधार के रूप में लिया जाए कि मुस्लिम उम्मह कभी शिर्क नही करेगी क्योंकि पैगंबर ﷺ ने ऐसा कहा है, तो कई ऐसी कुरआन की आयतें और हदीस हैं जो कहती हैं कि मुस्लिम उम्माह में से कुछ लोग शिर्क करेंगे! आईए वो दलील भी देखते हैं!
ईमान के साथ जुल्म की मिलावट
अल्लाह फ़रमाता है: जो लोग ईमान लाए और अपने ईमान को शिर्क के साथ नहीं मिलाते, ऐसों ही के लिए शांति है और वे सीधे रास्ते पर चल रहे हैं। {सूरह अल-अनआम: 82}
जब आयत"जो लोग ईमान लाए और अपने ईमान के साथ जुल्म की मिलावट नही की" नाज़िल हुई तो मुसलमानों को बड़ा सदमा लगा और उन्होंने कहा, "हममें से ऐसा कौन है जिसने अपने ईमान के साथ ज़ुल्म की मिलावट न की होगी ? नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा, "इसका मतलब यह नहीं है, यहां ज़ुल्म से मुराद शिर्क है! क्या तुमने नहीं सुना कि लुकमान अलैहेस्सलाम ने अपने बेटे को चेतावनी देते हुए कहा: हे बेटे! किसी को अल्लाह के साथ शरीक न करना, वास्तव में, शिर्क बहुत बड़ा ज़ुल्म है,अन्याय है,
(सहीह बुखारी: 3429)
Note: कुरान की इस आयत और हदीस से यह स्पष्ट है कि ईमान वाले भी शिर्क कर सकते हैं। अन्यथा, लुकमान अलैहिस्सलाम अपने बेटे को नसीहत क्यों करते जबकि उनका बेटा ईमान वाला था!
शिर्क तमाम नेक अमाल बर्बाद कर देता है:
सुरह अल जुमर आयत 64 और 65 में अल्लाह का फ़रमान है की: ऐ नबी ! तुम्हारी तरफ और इन पैगंबरों की तरफ जो तुमसे पहले हो चुके हैं यही वहृइ भेजी गई है के अगर तुमने शिर्क किया तो तुम्हारे अमल बर्बाद हो जायेंगे और तुम नुक़सान उठाने वालों में हो जाओ गे!
Note: यहां ध्यान देने वाली बात है की इस आयत में अल्लाह का खुला फ़रमान है की अगर नबी भी शिर्क करते तो उनके अमल बर्बाद हो जाते! अंबिया अलैहे सलाम तो पक्के ईमान वाले और अल्लाह के तरफ से भेजे हुवे पैगंबर थे तो भला वो शिर्क कैसे करते फिर भी अल्लाह उन्हें तनबियाः कर रहा है शिर्क ना करने से ,शिर्क से बचने के लिए क्यूं की शिर्क बहुत बड़ा गुनाह है! और आज के कब्र परस्त, पीर परस्त बोलते हैं की हम कभी शिर्क कर ही नहीं सकते क्यूं की नबी ﷺ ने फ़रमा दिया है की हम शिर्क नही करेंगे.
और सहीह मुस्लिम की हदीस में नबी ﷺ का फ़रमान है कि अगर किसी मुसलमान के जनाज़े यानी अंतिम संस्कार में 40 लोग शामिल हों जो अल्लाह के साथ शिर्क नही करते हों, तो अल्लाह उस मैय्यत के हक़ में उनकी दुआ स्वीकार करता है। (सहीह मुस्लिम: 948, 2199)
Note: अगर मुस्लिम उम्मह से शर्क ख़त्म हो गया होता तो नबी करीम ﷺ को यह बात कहने की ज़रूरत ही नहीं थी ! चूंकि जनाज़ा तो मुसलमान बंदे ही पढ़ते हैं कोई और नहीं!
नबी ﷺ का एक और फ़रमान पढ़िए! नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया: तुम लोग पहली उम्मतों के क़दम ब क़दम पैरवी करोगे की अगर वह लोग किसी गोह के सुराख में दाख़िल हुवे तो तुम भी उसमे दाखिल होगे ! हमने पुछा या रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम! क्या आपकी पहली उम्मतों से मुराद यहूदियों और ईसाइयों से है? आप (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा, "फिर कौन हो सकता है ?" (सहीह अल-बुखारी: 3756)
अब अगर कोई पूछे कि पहले लोगों का अमल क्या था तो जवाब यही मिलेगा की उनका अमल शिरकिया था!
Note: अब गौर करने वाली बात है कि शिर्क करने वाले नबी ﷺ की उस फरमान को पकड़ कर बैठे हैं को मेरी उम्मत शिरक नही करेगी और इस फ़रमान पर ईमान क्यों नहीं की " तुम लोग पहली उम्मतों के क़दम ब क़दम पैरवी करोगे"
यदि उम्मत शिर्क नहीं कर सकती, तो नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने यह क्यों कहाः और मैं अपनी उम्मत पर गुमराह कर देने वाले इमामों से डरता हूं, और जब मेरी उम्मत में तलवार रख दी जाएगी तो फिर वह उसे कयामत तक नहीं उठाएगी,और कयामत उस वक्त तक क़ायम नही होगी जब तक मेरी उम्मत के कुछ लोग मुश्रिकों से न मिल जाएं और कुछ बुतों को पूजने न लग जाएं! (अबू दाऊद: 4252)
Note: अबू दाऊद की हदीस से तो साफ ज़ाहिर हो गया की उम्मत में से कुछ लोग मुश्रिकों से मिलेंगे और बुत परस्ती करेंगे ! और ये मंज़र आज नज़र आ ही रहा है !
और आज देख लीजिए बुतों की पूजा और पहली उम्मतों वाला अमल शुरू हो गया है.
नबी करीम ﷺ की कब्र हुजरे में क्यूं ?
नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने अपनी वफात के वक्त कहा कि यहूदियों और ईसाइयों पर अल्लाह की लानत हो कि उन्होंने अपने पैगम्बरों की कब्रों को मस्जिदों में बदल दिया। आयशा रज़ी अल्लाह अन्हा ने कहा, "अगर ऐसा कोई डर नहीं होता, तो नबी ﷺ की कब्र खुली रहती (और हुजरे में नहीं) क्योंकि मुझे डर है कि कहीं आप ﷺ की कब्र को भी मस्जिद न बना ली जाए।" (सहीह बुखारी: 1330)
Note: आख़िर हज़रत आयशा (रज़ी.) को यह डर क्यों था? जब नबी ﷺ ने फरमा दिया कि मेरी उम्मा शिर्क नहीं करेगी, तो आयशा (राजी.) को यह डर क्यों था कि लोग कब्र ए रसूल पर शिर्क शुरू कर देंगें ? चूंकि कब्र की ज़यारत तो मुसलमान ही करेंगें, गैर-मुस्लिम नहीं।
चूंकि अम्मा सिद्दीका आयशा (राज़ी.) को नबी करीम ﷺ की फ़रमान का मतलब पता था इस लिए हुज्रे में कब्र बनाया गया और वो यह भी जानती थी कि आप ﷺ ने शिर्क न करने वाली बात पूरी उम्म्त के लिए नही बल्कि कुछ खास लोगों के लिए कही हैं !
अब सोचने वाली बात है की उस ज़माने में भी मां आयशा को शिर्क का डर था, जबकि वह समय सबसे अच्छा समय था। नबी ﷺ ने उस ज़माने को बेहतरीन ज़माना बताया था.
लेकिन आज के बरेलवी उलमा को शिर्क का कोई डर नहीं है और वे अपने लोगों को धोखा देते हैं कि मुस्लिम उम्मत कभी शिर्क नही कर सकती।
वफात से 5 दिन पहले नबी ﷺ की नसीहत:
अगर मुस्लिम उम्मा शर्क नही कर सकती तो नबी ﷺ ने अपनी वफात से 5 दिन पहले ये नसीहत क्यूं की:
खबर दार, तुमसे पहले लोग अपने पैगम्बरों और नेक लोगों की कब्रों को इबादतगाह बना लिया करते थे, खबर दारा! कब्रों को इबादतगाह/ सजदहगाह न बनाना, मैं तुम्हें इससे मना करता हूं। (सहीह मुस्लिमः 1188)
* एक सहाबी ए रसूल ईमानवाले होकर मुश्रिक हो गये, फिर यह उम्मत कैसे शिर्क नही कर सकती?
अनस रज़ी. बयान करते हैं कि एक आदमी नबी ﷺ के लिए वही लिख करता था। वह इस्लाम से मुर्तद हो कर मुश्रिकीन से जा मिला तो नबी ﷺ ने कहा: " धरती उसे स्वीकार नहीं करेगी।" "अबू तलहा ने मुझे बताया कि वह शख्स जिस जगह मरा था वहां वह गए तो उसे जमीन पर पड़ा देखा और कहा: उसे क्या हुआ है? लोगों ने कहा कि हमने उसे कई बार दफनाया, लेकिन ज़मीन (कब्र) इसे स्वीकार नहीं करती।जमीन इसे बाहर फेंक देती है! मुत्तफिक अलैहे. (मिशकात अलमासाबीह:5898)
Note: पहले लोगों का अमल भी यही था के नेक लोगों और पैगंबरों की कब्रों को इबादतगाह बना लिया करते थे जिसके मुतल्लिक नबी करीम ﷺ ने सख़्ती माना किया था और आज की उम्मत का भी यही हाल है फिर भी कहते हैं की हम शिर्क नही करते. अफ़सोस की नबी की बात को भी पशे पुस्त डाल दिया!
नबी ﷺ का अल्लाह से अपनी कब्र को शिर्क से महफूज़ रखने के लिए दुआ करना
मिशकात अल मसाबीह हदीस नंबर 750 में,मुस्नद इमाम अहमद और मुवत्ता इमाम मालिक के हवाले से दर्ज है की:
हज़रत अता-बिन-यसार (रह०) बयान करते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : ऐ अल्लाह! मेरी क़ब्र को बुत न बनाना कि उसकी पूजा की जाए अल्लाह उन लोगों पर सख़्त नाराज़ हो जिन्होंने नबी (अलैहि०) की क़ब्रों को सजदागाह बना लिया!
इस हदीस में नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने अपनी क़ब्र को इबादत की जगह न बनने की दुआ की, ताकि मुसलमान शिर्क यानी बुतपरस्ती से बचें और तौहीद (अल्लाह की एकता) पर कायम रहें।Note: अब यहां सोचने वाली बात है कि नबी ﷺ के कब्र पे अगर कोई जाने वाले होते तो वो मुसलमान ही होते कोई गैर मुस्लिम नहीं तो सवाल पैदा होता है की अगर मुस्लिम उम्मत में शिर्क नही है तो नबी ﷺ ने क्यूं अल्लाह से दुआ की के मेरी कब्र को बुत न बनाना ?
और अल्लाह ने दुआ कबूल की और आप ﷺ की कब्र ए मुबारक कयामत तक के लिए अम्मा आएशा के जरिया महफूज़ करवा दिया!
नबी ﷺ की शफाअत:
आप ﷺ का फरमान है : "मेरी शफ़ाअत मेरी उम्मत के हर उस शख्स के लिए होगी जो इस हाल में मरे के उसने अल्लाह के साथ किसी को शरीक नहीं किया हो यानी उसने किसी को भी अल्लाह के साथ नहीं जोड़ा है। यानी शिर्क न किया हो
Note: जब नबी ﷺ को उम्मत के शिर्क करने का डर नहीं था तो फिर उन्होंने अपनी शफ़ाअत के लिए शिर्क न करने की शर्त क्यों रखी? कोई कुछ बताएगा . और शफ़ाअत तो मोमिन की ही होगी किसी काफ़िर की नही !
शिर्क से बचना क्यूं जरूरी है ?
शिर्क से बचना बहुत ही जरूरी है क्योंकि यह अल्लाह के साथ किसी और को बराबरी देना है, जो इस्लाम में सबसे बड़ा पाप है। इस्लामी तालीमत में एक ही अल्लाह है और इसकी ही इबादत करनी चाहिए। क़ुरान और हदीस में वाज़ह तौर पर बताया गया है की अल्लाह ताअला शिर्क को कभी मआफ नही करेगा,जब तक इंसान सच्ची तौबा न कर ले !
शिर्क करने से अल्लाह नाराज़ होते हैं और अगर इंसान बिना तौबा किए मर जाए तो उसे जन्नत नहीं मिलेगी।
शिर्क से बचने का मतलब है कि हमें अल्लाह की इबादत में किसी और को शामिल नहीं करना चाहिए, न किसी और से दुआ मांगनी चाहिए, न किसी और को अल्लाह जैसा मानना चाहिए।
शिर्क से बचने के अहम वजूहात ये हैं :
1. तौहीद का तहफ्फूज:
इस्लाम की बुनियाद तौहीद यानी अल्लाह की वहदानियत पर है ! शिर्क ,अल्लाह की वहदानियत के खिलाफ है और उसकी मुखालिफत करता है !
2. नाकाबिल ए मआफि गुनाह:
शिर्क एक ऐसा गुनाह है जिसे अल्लाह मआफ़ नही करता, जब तक की इंसान शिर्क से तौबा न कर ले !
3. आखिरत में सजा:
जो लोग शिर्क करते है और बगैर तौबा के मर जाते हैं, उन के लिए जन्नत के दरवाज़े बंद हो जाते हैं और उन्हें जहन्नुम में डाल दिया जायेगा !
4. अल्लाह के हक़ में ना इंसाफी :
अल्लाह ने इंसान को अपनी ईबादत के लिए पैदा किया है ! शिर्क अल्लाह के हक़ के खिलाफ़ वर्जी है और इस के साथ ना इंसाफी है !
इन तमाम वजूहात के बिना पर, शिर्क से बचना ईमान को महफूज़ रखने और अल्लाह की रजा हासिल करने के लिए इंतहाई जरूरी है !
शिर्क से बचने के उपाय
मुस्लिम उम्मत के लिए शिर्क से बचना बहुत जरूरी है क्योंकि शिर्क सारे नेकी को बर्बाद कर देता है !शिर्क से बचने के लिए कुछ खास बातों का खयाल रखना चाहिए , जिनसे आप अपने ईमान को मजबूत रख सकते हैं और अल्लाह की एकता पर यक़ीन बनाए रख सकते हैं:
1. तौहीद की समझ बढ़ाएं : अल्लाह की एकता (तौहीद) के बारे में गहराई से जानें और समझें कि सिर्फ अल्लाह ही इबादत के लायक है। इस से शिर्क से बचना आसान हो जाएगा?
2. क़ुरान और हदीस का इल्म हासिल करें : क़ुरान और हदीस में शिर्क और तौहीद के बारे में दी गई तालीमत को समझें ,अमल करें और इसे अपनी ज़िंदगी में लागू करें। अल्लाह के फरमान को जानें इस से आप शिर्क से दूर रहेंगे!
3. सिर्फ अल्लाह से दुआ करें :
किसी भी परेशानी, ज़रूरत या खुशी में सिर्फ अल्लाह से मदद मांगें। किसी और को अल्लाह के बराबर मानकर उससे दुआ न करें। बिलकुल मुख्लिस हो कर अल्लाह को पुकारें अल्लाह आप की दुआ कबूल करेगा !
4. कब्र परस्ती और शख्सियत परस्ती से दूर रहें : कब्र परस्ती और शख्सियत परस्ती ने शिरक में बहुत बढ़ावा दिया है! किसी भी दूसरी चीज़ को अल्लाह का साझीदार मानने से दूर रहें ! अल्लाह और अल्लाह के नबी ﷺ ने सख्ती से इसके मुतल्लिक मना फरमाए है!
5. अल्लाह पर मुकम्मल यक़ीन रखें :
मुश्किलों में या किसी भी हालात में सिर्फ अल्लाह पर भरोसा करें! किसी और से उम्मीद या भरोसा करना शिर्क की ओर ले जा सकता है ! जब अल्लाह खुद हमारी दुआ सुनने के लिए हर वक्त तैयार है तो क्यूं दूसरों को मुश्किल वक्त में पुकारें ?
6. समाज और परिवार में सही इस्लामी तालीमात को बताएं : अपने परिवार और समाज में भी तौहीद की सही जानकारी और तलीमात दें ताकि वे भी शिर्क से दूर रहें और अल्लाह की वहदानियत को समझ सकें !
7. गुमराही वाले रास्ते से बचें :
कई बार शिर्क ना इल्मी के कारण होता है,गुमराह करने वालों से बचें ! किसी भी बात या अमल की बगैर तस्दीक किए न अपनाएं ! लिहाज़ा! उन लोगों, जगहों और विचारों से दूर रहें जो आपको शिर्क की ओर ले जा सकते हैं ! सही इस्लामी माहौल में रहें!
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Conclusion:
Muslim ummat aur shirk लिहाज़ा! इन सभी तर्कों से साबित होता है कि नबी ﷺ की उम्मत के शिर्क न करने वाली पेशन गोई/ भविष्यवाणी पूरी उम्मत के लिए नहीं है, बल्कि एक विशेष समूह जमाअ़त के लिए है। उस समूह के लिए, जिसके बारे में नबी ﷺ ने कहा था कि एक समूह, जमाअ़त हमेशा कयामत तक हक़ पर क़ायम रहेगी.
अब अपने आप को शिर्क से पाक हैं सोचने वाले गौर ओ फिक्र करें की आज वो इस हदीस की आड़ लेकर क्या कर रहे हैं. उनका अमल शिर्किया है या नहीं ! अगर पकड़ हो गई तो आप ﷺ की शफ़ाअत भी नसीब नहीं होगी!
अल्लाह ताला से दुआ है की अल्लाह हमें शिर्किय अमाल से बचाए और सहीह राह पर चलने की तौफीक अता फरमाए! आमीन या रब..
FAQs:
1. Que: शिर्क का मतलब क्या है?
Ans: शिर्क का मतलब अल्लाह के साथ किसी और को साझीदार ठहराना है, यानी अल्लाह के अलावा किसी और को अल्लाह के बराबर मानना, उसकी इबादत करना या उससे मदद मांगना।
2. Que: शिर्क इस्लाम में सबसे बड़ा पाप क्यों माना जाता है?
Ans: शिर्क इस्लाम में सबसे बड़ा पाप इसलिए माना जाता है क्योंकि यह तौहीद (अल्लाह की एकता) का उल्लंघन करता है, जो इस्लाम का सबसे बुनियादी और महत्वपूर्ण सिद्धांत है। क़ुरान में अल्लाह ने कहा है कि वह शिर्क को कभी माफ नहीं करेंगे, जब तक इंसान सच्ची तौबा न करे।
3. Que: शिर्क से बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपाय क्या है?
Ans: शिर्क से बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपाय है कि इंसान तौहीद की सही समझ रखे और सिर्फ अल्लाह की इबादत करे। किसी भी चीज़ या व्यक्ति को अल्लाह के बराबर या उससे ऊंचा न माने और सिर्फ अल्लाह से ही मदद मांगे।
4. Que: मुस्लिम उम्मत पर शिर्क का क्या असर हो सकता है?
Ans: शिर्क करने से मुस्लिम उम्मत में एकता और ईमान की मजबूती खत्म हो सकती है। शिर्क से समाज में बुतपरस्ती, गलत आस्थाएं और अधार्मिक गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं, जो उम्मत को कमजोर कर देती हैं और अल्लाह की नाराज़गी का कारण बनती हैं।
5. Que: क्या शिर्क के बिना की गई सभी गलतियाँ माफ की जा सकती हैं?
Ans: हाँ, अगर इंसान सच्चे दिल से तौबा करता है तो अल्लाह किसी भी पाप को माफ कर सकते हैं, सिवाय शिर्क के। शिर्क अल्लाह के साथ सबसे बड़ी नाइंसाफी है और इसके बिना तौबा किए मरने पर इसे माफ नहीं किया जाएगा।
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