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Benamazi ka Anjam

Benamazi ka anjam /बे नमाज़ी का अंजाम(Hindi/Urdu)

Benamazi ka Anjam
Benamazi ka Anjam 


इस्लाम में नमाज़ को ख़ास तौर से अहमियत दी गई है, यह इस्लाम का एक बुनियादी रुक्न है ! नमाज़ अल्लाह तआला की तरफ़ से बंदो पर फ़र्ज़ कर्दा सबसे आला तरीन इबादत है, क़ुर्ब इलाही का सबसे बेहतरीन ज़रिया है दीनी उमूर मे सबसे पहले नमाज़ का ही हिसाब लिया जाएगा, पाँचो नमाज़े दरमियाँन मे होने वाले गुनाहो का कफ़्फ़ारा बन जाती है ब-शर्त-ए-कि कबीरा गुनाहों का इर्तिकाब न किया जाए, एक सजदे के बदले में अल्लाह तआला बंदे का दर्जा बुलन्द फरमाता है और उसकी एक बुराई मिटा देता है.और बे-नमाज़ी (नमाज़ न पढ़ने वाला) का अंजाम कुरआन और हदीस की रौशनी में बहुत गंभीर बताया गया है। फुक़हा (इस्लामी विद्वानों) ने भी इसके बारे में कठोर विचार व्यक्त किए हैं। नीचे कुरआन, हदीस, और फुकहा के अक्वाल की रोशनी में बे-नमाज़ी का अंजाम पेश किया जा रहा हैक़ुरआन मजीद में इसे न पढ़ने वालों के लिए सख्त अंजाम का ज़िक्र है। कुछ आयतें जो बे-नमाज़ी के बारे में सख्त चेतावनी देती हैं:

    क़ुरआन में नमाज़ से मुतल्लिक:

    अल्लाह तआला ने कुरआन में नमाज़ को फर्ज़ करार दिया है।

     सुरह अल-बकरा में फरमाया गया:
    "और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात अदा करो, और जो रुकू करते हैं उनके साथ रुकू करो।"(सुरह अल-बकरा: 43)
    और सूरह अल-हिज्र में अल्लाह फरमाता है:
    "और अपने रब की इबादत करते रहो यहाँ तक कि यक़ीन (मौत) आ जाए।"(सूरह अल-हिज्र :99)
    🔅यह आयत स्पष्ट करती है कि एक मुसलमान के लिए नमाज़ तमाम फ्राइज़ और इबादतों में सबसे अहम इबादत है, जिसकी पाबंदी हमें हर हाल में करनी है !

    बे-नमाज़ी के लिए जहन्नम:

    Benamazi ka Anjam
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    बे-नमाज़ी के लिए जहन्नम की सजा का जि़क्र किया गया है:यह आयत इस बात की दलील है कि नमाज़ न पढ़ने वाले लोगों के लिए सख़्त अज़ाब है।
    प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ उस ने कमाया उस के बदले रेहन (गिरवी) है, सिवाय दाईं ओर वाले। जो जन्नत में होंगे और आपस में पूछेंगे, गुनहगारों से, 'तुम्हें किस चीज़ ने सक़र में (जहन्नम की घाटी में) डाल दिया?' वे कहेंगे, 'हम नमाज़ियों में से नहीं थे।'"(सूरह अल-मुद्दस्सिर :42-43)
    🔅 यह आयत साफ ज़ाहिर करती है कि जहन्नम में जाने का एक बड़ा कारण नमाज़ को छोड़ देना है।

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    नमाज़ से ग़ाफ़िल रहने वाले:

    अल्लाह तआला फरमाता है:
    "तो उन नमाज़ियों के लिए बड़ी ख़राबी है, जो अपनी नमाज़ में लापरवाही बरतते हैं।"(सूरह अल-मा'ऊन:4-5)
    🔅इस आयत में उन लोगों के लिए चेतावनी दी गई है जो या तो नमाज़ छोड़ देते हैं या जो नमाज़ पढ़ते तो हैं लेकिन ध्यान और नियमितता के साथ नहीं। या समय पर नहीं पढ़ते, उनके लिए अफसोस की बात है।जो दिखावे के लिए नमाज़ पढ़ते हैं, जो नमाज़ में लापरवाही बरतने वाले हैं या जिनकी इबादत में सच्चाई और खलूस (ईमानदारी) नहीं होती।और जो बिलकुल ही नमाज़ नहीं पढ़ते, उनके लिए इसका अंजाम और भी गंभीर है।

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    नमाज़ बुराई से रोकती है:

    अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है: "नमाज़ को क़ायम करो, निश्चित रूप से नमाज़ बुराई और बेहयाई से रोकती है।"(सूरह अल-आनकबूत:45)
    🔅इस आयत में नमाज़ की अहमियत बताई गई है कि यह इंसान को बुराई और पाप से रोकती है। इसलिए, जो नमाज़ नहीं पढ़ते, वे बुराई और पाप की तरफ़ बढ़ सकते हैं।

    नमाज़ से मुंह मोड़ने वाले:

    "और जो मेरे जिक्र (यानि नमाज़ और मेरी हिदायतों) से मुँह मोड़ेगा, उसके लिए संकीर्ण (तंग) जीवन होगा, और हम उसे क़ियामत के दिन अंधा उठाएँगे।"(सूरह ताहा :124)
    🔅 यहाँ नमाज़ को नज़रअंदाज़ करने या अल्लाह की याद से दूर रहने वाले लोगों को चेतावनी दी गई है कि उन्हें दुनिया में तंगी का जीवन और आखिरत में सजा मिलेगी।

    नमाज़ को छोड़ने वाले:

    कुरआन में उन लोगों का जिक्र किया गया है, जो नमाज़ को छोड़ते हैं या उसे हल्का समझते हैं:
    फिर उनके बाद कुछ नालायक जानशीन हुए, जिन्होंने नमाज़ गवा दी (नमाज़ को ज़ाया किया) और अपनी ख़्वाहिशों के पीछे चल पड़े। तो अनक़रीब उन्हें गुमराही की सज़ा मिलेगी।"(सूरत मरीयम :59)
    🔅 यह आयत उन लोगों के बारे में है जो पिछले नबी या उम्मत के अच्छे मार्ग पर चलने के बाद अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं। "ख़लफ" का अर्थ है कि एक नई पीढ़ी आई, जो पहले वालों के अच्छे कार्यों को छोड़कर अपनी इच्छाओं के पीछे चली गई।जिन्होंने नमाज़ को छोड़ दिया और अपनी इच्छाओं का अनुसरण किया, और चेतावनी दी गई है कि वे इसके लिए गुमराही की सजा पाएंगे।

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    हदीस में नमाज़ से मुतल्लिक :

    रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने नमाज़ को छोड़ने वालों के बारे में सख्त वॉर्निंग दी है। कई हदीसों में इसका अंजाम बताया गया है:

    नमाज़ का महत्व:

    हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने फरमाया:"नमाज़, इस्लाम का स्तंभ है। जिसने इसे क़ायम किया, उसने इस्लाम को क़ायम किया, और जिसने इसे छोड़ दिया, उसने इस्लाम को ढा दिया।"(अल-बुखारी)
    हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (र.अ.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
    "इस्लाम का आधार पाँच चीज़ों पर है: यह गवाही देना कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नहीं, मुहम्मद (ﷺ) अल्लाह के रसूल हैं, नमाज़ क़ायम करना, ज़कात देना, रमज़ान के रोज़े रखना और हज करना।"(सहीह बुखारी)
    🔅इसमें नमाज़ को इस्लाम के सबसे महत्वपूर्ण स्तंभों में से एक बताया गया है।

    बे-नमाज़ी का हाल:

    एक हदीस में है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:

    Benamazi ka Anjam
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    हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया:"हमारे और काफिरों के बीच अंतर करने वाली चीज़ नमाज़ है, जिसने नमाज़ छोड़ दी, उसने कुफ्र किया।" (सहीह मुस्लिम, हदीस नंबर 82)
    रसूल अल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया, "जो व्यक्ति जान-बूझकर नमाज़ छोड़ देता है, उसने गोया कुफ्र किया।" (सहीह बुखारी, हदीस नंबर 520):
    इस हदीस से स्पष्ट होता है कि जो व्यक्ति नमाज़ नहीं पढ़ता, वह कुफ्र के बहुत करीब है।
    🔅यहाँ पर रसूलुल्लाह (ﷺ) ने नमाज़ छोड़ने को कुफ्र के करीब बताया है, जिसका मतलब यह है कि जो व्यक्ति जानबूझकर नमाज़ नहीं पढ़ता, वह अपने ईमान को खतरे में डालता है।यह एक गंभीर चेतावनी है कि नमाज़ को छोड़ना ईमान के कमजोर होने की निशानी हो सकती है।

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    अल्लाह की नाराजगी:

    हदीस में ये भी आता है कि जो व्यक्ति जानबूझकर नमाज़ छोड़ता है, उस पर अल्लाह की ग़ज़ब और नाराज़गी है।
    हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
    "जो शख्स नमाज़ को जानबूझ कर छोड़ दे, उसका इस्लाम में कोई हिस्सा नहीं है।"(तबरानी)

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    कयामत के दिन सबसे पहला हिसाब:

    हज़रत अबू हुरैरा (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:

    "कयामत के दिन सबसे पहला हिसाब नमाज़ का होगा। अगर नमाज़ सही हुई, तो बाकी अमल भी सही होंगे। अगर नमाज़ खराब हुई, तो बाकी अमल भी खराब होंगे।"(तिर्मिज़ी)

    "सबसे पहले बंदे से क़यामत के दिन उसके नमाज़ के बारे में सवाल किया जाएगा। अगर उसकी नमाज़ सही होगी, तो उसके सारे आमाल सही होंगे, और अगर उसकी नमाज़ खराब हुई, तो उसके सारे आमाल खराब होंगे।"(सुनन अल-नसाई)

     

    फुकहा के अक्वाल:

    आइए फ़ुकहा और उलमा के क़वालात के ज़रिये इसे समझते हैं: इस्लामी फुकहा (विद्वानों) के अनुसार, नमाज़ को जानबूझकर छोड़ना एक बड़ा गुनाह है और इसके अंजामात बहुत सख्त हैं:

    1. इमाम अबू हनीफ़ा रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल

    इमाम अबू हनीफ़ा का कहना है कि जो व्यक्ति जान-बूझकर नमाज़ को छोड़ता है, वह फ़ासिक़ (पापी) कहलाता है, और उस पर तौबा करना वाजिब है। यदि वह तौबा किए बिना मर जाता है, तो अल्लाह की नज़रों में उसका अंजाम बहुत बुरा हो सकता है।

    2. इमाम मालिक रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल

    इमाम मालिक ने कहा है कि अगर कोई व्यक्ति जान-बूझकर नमाज़ छोड़ता है, तो उस पर सख़्ती से नसीहत करनी चाहिए। अगर वह फिर भी नमाज़ नहीं पढ़ता तो उसे इस्लामी हुकूमत के तहत सज़ा दी जानी चाहिए, ताकि दूसरे लोग भी नमाज़ के प्रति सजग रहें।

    3. इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल

    इमाम शाफ़ई का कहना है कि अगर किसी व्यक्ति ने जान-बूझकर नमाज़ छोड़ी और तौबा किए बिना दुनिया से चला गया, तो वह आख़िरत में सख्त अज़ाब का हक़दार है। उनके अनुसार, नमाज़ छोड़ने वाला व्यक्ति दीन से बाहर नहीं होता, लेकिन यह गुनाह उसे जहन्नम की सज़ा का पात्र बना सकता है।

    4. इमाम अहमद बिन हंबल रहमतुल्लाह अलैह का क़ौल

    इमाम अहमद का विचार सबसे कड़ा है। उनके अनुसार, अगर कोई जान-बूझकर नमाज़ छोड़ता है, तो वह इस्लाम से बाहर हो सकता है। उन्होंने इसे "कुफ़्र" के करीब बताया है, यानी जो व्यक्ति जान-बूझकर नमाज़ छोड़ता है, वह अपने ईमान को ख़तरे में डाल रहा है। उनके नज़दीक, इस शख्स पर तौबा करना और नमाज़ की तरफ़ लौटना बहुत ज़रूरी है!

    उलमा के अक़वाल :

    उलमा का कहना है कि क़यामत के दिन नमाज़ छोड़ने वालों को बहुत बड़ी बेइज्ज़ती का सामना करना पड़ेगा।

    ❶.अल्लामा इब्न क़ैयिम (रह.) फरमाते हैं: 

    "हश्र के मैदान में नमाज़ छोड़ने वाले को अल्लाह के सामने सिर झुकाना होगा, और उससे उसकी नमाज़ के बारे में सवाल किया जाएगा। जब वह नमाज़ छोड़ने की बात मानेगा, तो उसे अपमान और शर्मिंदगी झेलनी पड़ेगी।"

    ❷.इमाम ग़ज़ाली (रह.) कहते हैं:

     "क़यामत के दिन सबसे बड़ी बेइज्ज़ती नमाज़ न पढ़ने वाले की होगी, क्योंकि उसने अल्लाह के सबसे अहम हुक्म (आदेश) को छोड़ दिया। लोग उसे देखकर कहेंगे कि यही वो व्यक्ति है जिसने दुनिया में नमाज़ को मामूली समझा और आज इसका नतीजा भुगत रहा है।" नमाज़ इस्लाम का एक आधार स्तंभ है, और इसे छोड़ना एक बहुत ही खतरनाक काम है, जो इंसान को अल्लाह के ग़ज़ब (क्रोध) के करीब ले आता है।

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    ❸.इमाम इब्न तैयमिय्या (रह.) कहते हैं:

     कि जो व्यक्ति नमाज़ छोड़ता है, वह असल में खुद को आख़िरत (परलोक) में तबाही की ओर ले जा रहा है।
    🔆ये बातें इस ओर इशारा करती हैं कि नमाज़ छोड़ना किसी भी इंसान के लिए बहुत ही नुक़सानदेह है और इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।

    Conclusion:

    क़ुरआन, हदीस और फु़क़हा के अक्वाल से साफ़ तौर पर यह पता चलता है कि नमाज़ छोड़ने का अंजाम बहुत सख्त और खतरनाक है। नमाज़ छोड़ने को कुफ्र की ओर ले जाने वाला काम बताया गया है ! वह अल्लाह की नापसंदगी और अज़ाब का हकदार बन सकता है ! एक मुसलमान को इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि नमाज़ उसकी जिंदगी का सबसे अहम हिस्सा है, और इसे जानबूझकर छोड़ने से उसकी दीन और आख़िरत दोनों खतरे में पड़ सकते हैं।


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    بے نمازی کا انجام

    اسلام میں نماز کو خاص طور پر اہمیت دی گئی ہے، یہ اسلام کا ایک بنیادی رکن ہے! نماز اللہ تعالیٰ کی طرف سے بندوں پر فرض کردہ سب سے اعلیٰ ترین عبادت ہے، یہ قربِ الٰہی کا بہترین ذریعہ ہے۔ دینی امور میں سب سے پہلے نماز کا ہی حساب لیا جائے گا۔ پانچوں نمازیں درمیان میں ہونے والے گناہوں کا کفارہ بن جاتی ہیں بشرطیکہ کبیرہ گناہوں کا ارتکاب نہ کیا جائے۔ ایک سجدے کے بدلے میں اللہ تعالیٰ بندے کا درجہ بلند فرماتا ہے اور اس کی ایک برائی کو مٹا دیتا ہے۔ اور بے نمازی (نماز نہ پڑھنے والا) کا انجام قرآن اور حدیث کی روشنی میں بہت سنگین بتایا گیا ہے۔ فقہاء (اسلامی علما) نے بھی اس کے بارے میں سخت خیالات کا اظہار کیا ہے۔ نیچے قرآن، حدیث، اور فقہاء کے اقوال کی روشنی میں بے نمازی کا انجام پیش کیا جا رہا ہے۔ قرآن مجید میں اسے نہ پڑھنے والوں کے لیے سخت انجام کا ذکر ہے۔ کچھ آیات جو بے نمازی کے بارے میں سخت تنبیہ کرتی ہیں۔


    قرآن کی روشنی میں:

    نماز کی فرضیت: اللہ تعالیٰ نے قرآن میں متعدد جگہ نماز کی فرضیت کا ذکر کیا ہے
    سورہ البقرہ میں فرمایا گیا: "اور نماز قائم کرو اور زکوٰۃ ادا کرو اور جو رکوع کرتے ہیں ان کے ساتھ رکوع کرو۔" (سورہ البقرہ: 43)
    اور سورہ الحجر میں اللہ فرماتا ہے: "اور اپنے رب کی عبادت کرتے رہو یہاں تک کہ یقین (موت) آ جائے۔" (سورہ الحجر: 99)
    🔅یہ آیت واضح کرتی ہے کہ ایک مسلمان کے لئے نماز تمام عبادات اور فرائض میں کتنی اہم عبادت ہے جسکی پابندی ہمیں ہر حال میں کرنی ہے.
    نماز ترک کرنے والوں کی سزا: اللہ تعالیٰ فرماتے ہیں:

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    "پس وہ لوگ جو اپنی نمازوں میں سست ہیں، ان کے لیے سخت عذاب ہے۔" (المعارج 70:31)
     اللہ تعالیٰ نے فرمایا: "جنتی مجرموں سے پوچھیں گے کہ تمہیں جہنم میں کیا لے گیا؟ وہ کہیں گے کہ ہم نماز پڑھنے والوں میں سے نہ تھے۔" یہ آیت واضح کرتی ہے کہ نماز چھوڑنے والوں کا انجام جہنم ہے۔سورۃ المدثر (42-43)
    "پس ہلاکت ہے ان نمازیوں کے لئے جو اپنی نماز سے غافل ہیں۔" اس آیت سے معلوم ہوتا ہے کہ نہ صرف نماز چھوڑنا بلکہ اس میں غفلت برتنا بھی ہلاکت کا سبب ہے۔سورۃ الماعون (4-5)
     "اور جو میری یاد سے روگردانی کرے گا اس کے لیے دنیا کی زندگی میں تنگی ہوگی اور ہم اسے قیامت کے دن اندھا اٹھائیں گے۔"سورۃ طہ (124)
    🔅نماز اللہ کی یاد کا سب سے بڑا ذریعہ ہے، اور اس سے روگردانی کرنے والوں کے لیے دنیا اور آخرت دونوں میں سزا کا ذکر ہے۔اس آیت میں نماز نہ پڑھنے اور اللہ کی یاد سے غافل رہنے والوں کو قیامت کے دن کی رسوائی کی خبر دی گئی ہے کہ وہ اندھا کر کے اٹھائے جائیں گے۔
    سورۂ مریم (59-60):اللہ تعالیٰ فرماتا ہے:
    "پھر ان کے بعد وہ نالائق لوگ ان کے جانشین ہوئے جنہوں نے نمازیں ضائع کر دیں اور اپنی خواہشات کے پیچھے چل پڑے، تو عنقریب وہ گمراہی کے انجام سے دوچار ہوں گے، البتہ جو توبہ کرلے، ایمان لے آئے اور نیک عمل کرے، تو ایسے لوگ جنت میں داخل ہوں گے۔"

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    احادیث کی روشنی میں:

    نماز کا ترک کرنا: نبی کریم ﷺ نے فرمایا:
    "نماز دین کا ستون ہے، جو اسے قائم کرے، اس نے دین کو قائم کیا اور جو اسے چھوڑ دے، اس نے دین کو تباہ کر دیا۔" (ابن ماجہ)
    بے نمازی کی حالت: ایک حدیث میں نبی ﷺ نے فرمایا:
    "جو شخص نماز کو چھوڑتا ہے، وہ کافر ہے۔" (سنن ابن ماجہ)
    🔹حضرت جابر بن عبداللہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی کریم ﷺ نے فرمایا: "آدمی کے درمیان اور کفر و شرک کے درمیان فرق صرف ترکِ نماز ہے۔"(مسلم،حدیث نمبر: 82)
    🔅 اس حدیث میں نماز ترک کرنے کو کفر کے قریب کر دیا گیا ہے، یعنی نماز نہ پڑھنے والے کو کفر کا خطرہ لاحق ہو جاتا ہے۔
    🔹حضرت بریدہ رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی کریم ﷺ نے فرمایا: "ہمارے اور ان کے درمیان فرق نماز ہے، جس نے اسے چھوڑ دیا، اس نے کفر کیا۔"(ترمذی، کتاب الایمان)
    🔹حضرت عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما سے روایت ہے کہ نبی کریم ﷺ نے فرمایا: "جان بوجھ کر نماز چھوڑنے والا اسلام سے بری الذمہ ہو جاتا ہے۔"(احمد، مسند)
    🔹حضرت عبد اللہ بن عمرؓ کی روایت: نبی کریم ﷺ نے فرمایا:
    "جس نے جان بوجھ کر نماز چھوڑ دی، وہ اللہ کی ضمانت سے خارج ہو گیا۔" (مسند احمد)
    حضرت عبد اللہ بن عمرو بن العاص رضی اللہ عنہ روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:
    🔹"جو شخص اپنی نماز کو جان بوجھ کر چھوڑتا ہے، اس کا نام جہنم کے دروازے پر لکھا جاتا ہے، اور وہ حشر کے دن سب سے زیادہ رسوا ہوگا۔"(طبرانی)
    🔹ایک اور حدیث میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا:
    "قیامت کے دن سب سے پہلے نماز کا حساب لیا جائے گا۔ اگر نماز درست ہوئی تو باقی اعمال بھی درست ہوں گے، اور اگر نماز خراب ہوئی تو باقی اعمال بھی خراب ہوں گے۔"(ترمذی: 413)
    🔅یہ حدیث واضح کرتی ہے کہ قیامت کے دن نماز کو اولین اہمیت دی جائے گی۔ جو شخص نماز چھوڑے گا، اس کا انجام رسوائی اور ذلت ہوگا۔

     

    فقہاء کے اقوال:

    آئیے فقہاء اور علماء کے اقوال کے ذریعے اسے سمجھتے ہیں: اسلامی فقہاء کے مطابق، جان بوجھ کر نماز چھوڑنا ایک بڑا گناہ ہے اور اس کے انجام بہت سخت ہیں:

    1.امام ابوحنیفہ رحمۃ اللہ علیہ کا قول

    امام ابوحنیفہ فرماتے ہیں کہ جو شخص جان بوجھ کر نماز چھوڑتا ہے، وہ فاسق (گناہگار) کہلاتا ہے، اور اس پر توبہ کرنا واجب ہے۔ اگر وہ توبہ کیے بغیر مر جاتا ہے، تو اللہ کی نظر میں اس کا انجام بہت برا ہو سکتا ہے۔

    2.امام مالک رحمۃ اللہ علیہ کا قول

    امام مالک نے فرمایا کہ اگر کوئی شخص جان بوجھ کر نماز چھوڑتا ہے، تو اس کو سختی سے نصیحت کرنی چاہیے۔ اگر وہ پھر بھی نماز نہیں پڑھتا تو اسے اسلامی حکومت کے تحت سزا دی جانی چاہیے، تاکہ دوسرے لوگ بھی نماز کے متعلق چوکنا رہیں۔

    3.امام شافعی رحمۃ اللہ علیہ کا قول

    امام شافعی کا کہنا ہے کہ اگر کسی شخص نے جان بوجھ کر نماز چھوڑی اور توبہ کیے بغیر دنیا سے چلا گیا، تو وہ آخرت میں سخت عذاب کا حق دار ہے۔ ان کے مطابق، نماز چھوڑنے والا دین سے خارج نہیں ہوتا، مگر یہ گناہ اسے جہنم کی سزا کا مستحق بنا سکتا ہے۔

    4.امام احمد بن حنبل رحمۃ اللہ علیہ کا قول

    امام احمد کا نظریہ سب سے سخت ہے۔ ان کے مطابق، اگر کوئی جان بوجھ کر نماز چھوڑتا ہے، تو وہ اسلام سے خارج ہو سکتا ہے۔ انہوں نے اسے "کفر" کے قریب قرار دیا ہے، یعنی جو شخص جان بوجھ کر نماز چھوڑتا ہے، وہ اپنے ایمان کو خطرے میں ڈال رہا ہے۔ ان کے نزدیک، اس شخص پر توبہ کرنا اور نماز کی طرف لوٹنا بہت ضروری ہے!
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    علماء کی رائے:

    علماء کا کہنا ہے کہ قیامت کے دن نماز چھوڑنے والوں کو بہت بڑی بے عزتی کا سامنا کرنا پڑے گا۔

    علامہ ابن قیم رحمۃ اللہ علیہ فرماتے ہیں:

    "حشر کے میدان میں نماز چھوڑنے والے کو اللہ کے سامنے سر جھکانا ہوگا، اور اس سے اس کی نماز کے بارے میں سوال کیا جائے گا۔ جب وہ نماز چھوڑنے کی بات مانے گا تو اسے ذلت اور شرمندگی کا سامنا کرنا پڑے گا۔"

    امام غزالی رحمۃ اللہ علیہ کہتے ہیں:

    "قیامت کے دن سب سے بڑی بے عزتی نماز نہ پڑھنے والے کی ہوگی، کیونکہ اس نے اللہ کے سب سے اہم حکم کو چھوڑ دیا۔ لوگ اسے دیکھ کر کہیں گے کہ یہی وہ شخص ہے جس نے دنیا میں نماز کو معمولی سمجھا اور آج اس کا نتیجہ بھگت رہا ہے۔" نماز اسلام کا ایک ستون ہے، اور اسے چھوڑنا ایک انتہائی خطرناک عمل ہے جو انسان کو اللہ کے غضب کے قریب لے آتا ہے۔

    امام ابن تیمیہ رحمۃ اللہ علیہ کہتے ہیں:

    "امام ابن تیمیہ رحمہ اللہ فرماتے ہیں کہ جو شخص نماز کو چھوڑتا ہے، وہ عملاً اپنے آپ کو آخرت میں ہلاکت کی راہ پر ڈال دیتا ہے۔ اگر کوئی شخص نماز کو فرض ہونے کے باوجود جان بوجھ کر ترک کرتا ہے تو وہ کافر ہو جاتا ہے۔

    🔆 یہ باتیں اس طرف اشارہ کرتی ہیں کہ نماز چھوڑنا کسی بھی انسان کے لیے بہت نقصان دہ ہے اور اسے ہلکا نہیں لینا چاہیے۔

    حشر میں رسوائی کا منظر:

    بعض علماء نے اس کی تفصیل بیان کرتے ہوئے کہا ہے کہ قیامت کے دن بے نمازی کو اس حال میں اٹھایا جائے گا کہ وہ چہرے کے بل گھسٹتا ہوا آئے گا، اور لوگ اسے پہچانیں گے کہ یہ دنیا میں نماز سے غافل تھا۔ اس کے اعمال نامے میں سب سے پہلی ناکامی اس کی نماز کی کمی کی وجہ سے ہوگی۔

    نتیجہ:

    نماز اسلام کا اہم ترین رکن ہے اور اس کو جان بوجھ کر چھوڑنا قرآن، حدیث اور فقہاء و علماء کے اقوال کی روشنی میں کفر اور ہلاکت کا سبب ہے۔ بے نمازی کا آخرت میں سخت عذاب کا سامنا ہوگا اور اس کا انجام جہنم میں ہوگا، جب تک کہ وہ سچے دل سے توبہ نہ کرے۔
    حشر کے میدان میں بے نمازی کی رسوائی انتہائی خوفناک اور عبرتناک ہوگی۔ قرآن و حدیث میں نماز کو ترک کرنے والے کے لیے شدید وعید آئی ہے، اور علماء نے بھی واضح کیا ہے کہ نماز کو چھوڑنے والا قیامت کے دن شرمندگی اور ذلت کا سامنا کرے گا۔ اس لیے ہر مسلمان کو نماز کی پابندی کرنی چاہیے تاکہ وہ قیامت کے دن کی رسوائی سے بچ سکے۔
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    FAQs:

    सवाल 1: बे नमाज़ी का आख़िरत में क्या अंजाम होगा? 
    जवाब: इस्लाम के अनुसार, नमाज़ छोड़ने वाले का आख़िरत में सख़्त हिसाब-किताब होगा। क़ुरआन और हदीस में जिक्र किया गया है कि क़यामत के दिन सबसे पहले नमाज़ का हिसाब होगा, और जो इसमें नाकाम रहेगा, उसे सज़ा का सामना करना पड़ सकता है।

    सवाल 2: क्या दुनिया में बे नमाज़ी के असरात भी होते हैं?
     जवाब: जी हाँ, माना जाता है कि दुनिया में भी बे नमाज़ी के असरात होते हैं, जैसे कि दिल की सुकून की कमी, तंगी में मुबतिला होना, और ज़िंदगी में बरकत का न होना।

    सवाल 3: हदीस में बे नमाज़ी के बारे में क्या हिदायतें दी गई हैं? 
    जवाब: हदीस में बे नमाज़ी के लिए सख़्त हिदायतें हैं। एक हदीस के मुताबिक, नमाज़ छोड़ना और अल्लाह से दूरी इख्तियार करना, इंसान को गुमराही की तरफ ले जाता है।

    सवाल 4: बे नमाज़ी का असर घर और परिवार पर कैसे पड़ता है? 
    जवाब: बे नमाज़ी का असर परिवार पर भी पड़ता है, क्योंकि इससे घर में बरकत कम होती है और घर के दूसरे लोग भी अल्लाह की इबादत से दूर हो सकते हैं। बच्चों पर भी इसका नेगेटिव असर हो सकता है।

    सवाल 5: नमाज़ न पढ़ने वालों को इस्लाम में क्या नसीहत दी गई है?
     जवाब: इस्लाम में बे नमाज़ी को अल्लाह की तरफ़ रुख करने और नमाज़ की आदत डालने की नसीहत दी गई है, क्योंकि नमाज़ इबादत के साथ साथ इंसान की रूह को सुकून और हिदायत देती है।

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