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Namaz me Rafa alyadein/नमाज़ में रफा अल यदैन

Namaz me Rafa alyadein/नमाज़ में रफा अल यदैन 

Namaz me Rafa alyadein/नमाज़ में रफा अल यदैन
Namaz me Rafa alyadein/नमाज़ में रफा अल यदैन 


नमाज़ इस्लाम का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है, और इसे अदा करने का तरीक़ा हमारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत से साबित है। नमाज़ के अदा करने के तरीकों के कुछ मसलों पर मुख्तलिफ मकातिब ए फ़िक्र में मतभेद , इख्तालाफ़ है, जिनमें से एक है "Namaz me Rafa alyadein" यानी नमाज़ में विभिन्न मौकों पर हाथ उठाना है !

    रसूलुल्लाह (ﷺ) का हुक्म है :"मुझे जिस तरह नमाज़ पढ़ते देखते हो तुम भी उसी तरह नमाज़ पढ़ो"(सही बुख़ारी : 631)
    हज़रत अबु हुरेरा रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:“पांच नमाज़ें, उन गुनाहों को जो उन नमाज़ों के दर्मियान हुये, मिटा देती हैं। और (इसी तरह) एक जुम्अ: से दूसरे जुम्अः तक के गुनाहों को मिटा देता है, जबकि बड़े गुनाहों से बच रहा हो।"(मुस्लिम : 233)
    आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:"आदमी और शिर्क के दर्मियान नमाज़ ही रुकावट है।"(मुस्लिम : 82)

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      रफअुल यदैन का मतलब:

    रफअुल यदैन का मतलब है कि नमाज़ के दौरान तकबीर के मौक़ा पर दोनों हाथों को कंधों या कानों के लौ तक उठाना। यह खासतौर पर नमाज़ की शुरुआत (तकबीर तहरीमा), रुकू में जाते समय, और रुकू से उठते समय किया जाता है। यह नबी ﷺ की सुन्नत है और कई सारे अहादीस से साबित है!

      रफअुल यदैन के मुख्तलिफ स्थान:

    नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की सुन्नत से यह साबित है कि आप नमाज़ की शुरुआत, रुकू में जाते समय, और रुकू से उठते समय रफअुल यदैन करते थे।

    नमाज़ की शुरुआत (तकबीर तहरीमा) के समय:

    सहीह अहादीस से साबित है कि नबी ﷺ  नमाज़ के शुरुआत में रफ़ा अल यादें किया करते थे.इसकी दलील हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर की रवायत है :
    हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) नमाज़ की शुरुआत में हाथों को कंधों तक उठाते थे। (सहीह बुखारी: 735)
    यह हदीस नमाज़ के आग़ाज़ में रफ़ा अल यादैन के अमल को साबित करती है और इस पर तमाम मकातिब ए फ़िक्र का इत्तेफ़ाक़ है!

    रुकू में जाते और रुकू से उठते समय:

    नबी ﷺ  से यह भी साबित है की आप रुकु में जाते वक्त और रुकु से उठते वक्त भी रफ़ा अल यादैन करते थे !हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर की रवायत है :
    हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ियल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) रुकू में जाते और रुकू से उठते समय भी रफअुल यदैन करते थे। (सहीह बुखारी: 735, सहीह मुस्लिम: 390)
    यह हदीस इस बात की वजाहत करती है की नबी ﷺ  ना सिर्फ़ नमाज़ के आग़ाज़ में बल्कि रुकु में जाते और रुकु से उठते वक्त भी रफ़ा अल यादैन करते थे!

    सजदे में जाते और सजदे से उठते समय रफअुल यदैन नहीं होता:

    हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सजदे में जाते और सजदे से उठते समय हाथ नहीं उठाते थे। इससे यह बात साफ़ होती है कि सजदे के दौरान रफ'उल-यदैन (हाथ उठाना) नहीं किया जाता। अब्दुल्लाह बिन उमर (रज़ी अल्लाहु अन्हु) फरमाते हैं कि नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) सजदे में जाते और उठते समय हाथ नहीं उठाते थे। (सुनन अबू दाऊद: 748)

    इस हदीस से यह स्पष्ट होता है कि रफ'उल-यदैन केवल कुछ खास मौकों पर किया जाता था, जैसे कि तकबीर-ए-तहरीमा, रुकू में जाना और रुकू से उठना, लेकिन सजदे में जाते या उठते समय यह अमल नहीं किया जाता था।

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    तीसरी रकअत के लिए उठते समय (कुछ रिवायतों के अनुसार):

    कुछ रिवायतों में यह भी आता है कि नबी करीम (ﷺ) तीसरी रकअत के लिए उठते समय भी हाथ उठाते थे। हजरत नाफ़े से रवायत है: "हजरत इब्न उमर (رضی اللہ عنہ) जब तीसरी रकअत के लिए खड़े होते तो भी हाथ उठाते थे।" (सहीह बुखारी: 739) ये सभी मौके नबी करीम (ﷺ) की सुन्नत से साबित हैं, और इन पर अमल करना सुन्नत की पैरवी है।

    रफ'उल-यदैन सुन्नत-ए-नबवी है, और यह एक पसंदीदा (मुस्तहब) अमल है जो नबी करीम (ﷺ) से लगातार साबित है।
     हाथ उठाना सुन्नत की पैरवी का एक अमली इज़हार है, और जो व्यक्ति इस अमल को करता है अपनाता है, वह नबी करीम (ﷺ) के अमल की पैरवी करता है।

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    मुख्तलिफ इस्लामी मक्तब-ए-फिक्र का नज़रिया:

    रफअ-उल-यदैन (हाथ उठाने) के मुद्दे पर इस्लामी मक्तब-ए-फिक्र (धार्मिक विचारधाराओं) में मतभेद है। हदीसों के आधार पर हर मसलक का अपना एक विशेष नजरिया है। इसकी मुख्य वजह अलग-अलग रिवायतों (परंपराओं) और हदीसों की व्याख्याओं में फर्क है। यहां मुख्तलिफ मक्तब-ए-फिक्र का एक संक्षिप्त विवरण दिया गया है:

    (क) शाफई और हम्बली मक्तब-ए-फिक्र:

    यह  रफअ-उल-यदैन को नमाज का जरूरी हिस्सा मानते हैं और हर नमाज में तकबीर-ए-तहरीमा (नमाज की शुरुआत की तकबीर), रुकू में जाते और रुकू से उठते वक्त हाथ उठाना जरूरी समझते हैं। उनके अनुसार यह पक्की सुन्नत है और यह पैगंबर के तरीके का पालन करना है।

    (ख) हनफी मक्तब-ए-फिक्र:

    हनफी मसलक के अनुसार, रफअ-उल-यदैन सिर्फ नमाज की शुरुआत में यानी तकबीर-ए-तहरीमा के वक्त किया जाता है, जबकि रुकू में जाते या उठते वक्त इसे जरूरी नहीं समझा जाता। उनके अनुसार यह अमल शुरुआती दौर में किया गया था, लेकिन बाद में नबी ﷺ ने इसे छोड़ दिया।

    (ग) मालिकी मक्तब-ए-फिक्र:

    मालिकी मसलक में भी रफअ-उल-यदैन के बारे में अलग-अलग विचार हैं, लेकिन आमतौर पर इसे खास महत्व नहीं दिया जाता और इसे सिर्फ नमाज की शुरुआत में ही किया जाता है।

    रफअ-उल-यदैन की शरीअत में हैसियत

    रफअ-उल-यदैन हदीसों से साबित है और यह नबी ﷺ की सुन्नत है। सहाबा (पैगंबर के साथी) ने इस अमल को अपनाया क्योंकि उन्हें नबी ﷺ  और सुन्नत से मोहब्बत थी। इसलिए, आप भी इसे अपनाएं और अपनी मोहब्बत का सबूत दें।

    Conclusion:

    Namaz me Rafa alyadein (हाथ उठाने) का मसला इस्लामी फिक़्ह में एक सुन्नत अमल है, जो पैगंबर मुहम्मद ﷺ से साबित है। हालांकि, विभिन्न इस्लामी (मकतब-ए-फिक्र) में इसे करने या न करने के बारे में मतभेद हैं। कुछ  जैसे शाफई और हम्बली इसे हर नमाज़ के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानते हैं, जबकि हनफी और मालिकी इसे केवल नमाज़ की शुरुआत में लागू करते हैं। यह मतभेद विभिन्न हदीसों की व्याख्याओं और पैगंबर के अमल की विभिन्न रिवायतों के कारण है। लेकिन कुल मिलाकर, रफ़अ-उल-यदैन एक पसंदीदा और मुस्तहब सुन्नत है, जिसे अपनाना पैगंबर की सुन्नत पर अमल करने का एक तरीका है।


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    نماز میں رفع الیدین احادیث کی روشنی میں

    نماز اسلام کا ایک اہم ستون ہے، بنیادی رکن اور عبادت کا سب سے اہم ذریعہ ہے اور اس کی ادائیگی کا طریقہ سنت نبوی صلی اللہ علیہ وسلم سے واضح طور پر ثابت ہے۔ نماز کے طریقے اور اس کے احکام میں بہت سے مسائل ہیں جن پر مختلف مکاتب فکر میں اختلاف پایا جاتا ہے۔مختلف فقہی مسائل میں سے ایک مسئلہ "رفع الیدین" یعنی نماز میں ہاتھ اٹھانے کا ہے۔ 
    اس مضمون میں ہم رفع الیدین کے حوالے سے احادیث کا جائزہ لیں گے تاکہ اس عمل کی شرعی حیثیت اور اس کا مقام واضح ہو سکے۔

      رفع الیدین کا مفہوم


    رفع الیدین کا مطلب ہے نماز کے دوران مختلف مواقع پر دونوں ہاتھوں کو اٹھانا۔ یہ عمل خاص طور پر نماز کی تکبیر تحریمہ (نماز کے آغاز میں) رکوع میں جاتے وقت اور رکوع سے اٹھتے وقت کیا جاتا ہے۔ یہ سنت نبی کریم ﷺ سے ثابت ہے اور مختلف صحابہ کرام سے اس کی روایت کی گئی ہے۔

    رفع الیدین کے مقامات:

    نماز میں رفع الیدین کے مختلف مقامات نبی کریم ﷺ کی سنت سے ثابت ہیں۔ متعدد احادیث میں رفع الیدین کے مخصوص مواقع کا ذکر کیا گیا ہے، جن کا خلاصہ ذیل میں دیا جا رہا ہے:

    1. نماز کی ابتداء (تکبیر تحریمہ) کے وقت:

    صحیح احادیث سے ثابت ہے کہ نبی کریم ﷺ نماز کی ابتدا میں رفع الیدین کیا کرتے تھے۔ اس کی دلیل حضرت عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہ کی روایت ہے:

    عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہ سے روایت ہے کہ نبی کریم ﷺ جب نماز شروع کرتے تو دونوں ہاتھوں کو کندھوں تک اٹھاتے تھے۔(صحیح بخاری: 735)
    یہ حدیث نماز کے آغاز میں رفع الیدین کے عمل کو ثابت کرتی ہے اور اس پر تمام مکاتب فکر کا اتفاق ہے۔

    رکوع میں جاتے اور رکوع سے اٹھتے وقت رفع الیدین

    نبی کریم ﷺ سے یہ بھی ثابت ہے کہ آپ رکوع میں جاتے وقت اور رکوع سے اٹھتے وقت بھی رفع الیدین کیا کرتے تھے۔ حضرت عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہ سے روایت ہے:
    نبی کریم ﷺ جب رکوع میں جاتے تو رفع الیدین کرتے اور جب رکوع سے سر اٹھاتے وقت بھی رفع الیدین کرتے تھے۔
    (صحیح بخاری: 735، صحیح مسلم: 390)
    یہ حدیث اس بات کی وضاحت کرتی ہے کہ نبی کریم ﷺ نہ صرف نماز کے آغاز میں بلکہ رکوع میں جاتے اور اٹھتے وقت بھی رفع الیدین کرتے تھے۔

    رفع الیدین کا عمل سجدوں میں نہیں ہوتا

    حضرت عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہ سے مروی ہے کہ نبی کریم ﷺ سجدے میں جاتے اور سجدے سے اٹھتے وقت رفع الیدین نہیں کرتے تھے۔ اس سے یہ بات واضح ہوتی ہے کہ رفع الیدین کا عمل سجدوں میں نہیں کیا جاتا:
    عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہ فرماتے ہیں کہ نبی کریم ﷺ سجدے میں جاتے اور سجدے سے اٹھتے وقت رفع الیدین نہیں کرتے تھے۔(سنن ابوداؤد: 748)
    اس حدیث سے یہ بات واضح ہوتی ہے کہ رفع الیدین صرف مخصوص مواقع پر کیا جاتا تھا، جیسے کہ تکبیر تحریمہ، رکوع میں جانا اور رکوع سے اٹھنا، مگر سجدے میں جاتے یا اٹھتے وقت یہ عمل نہیں کیا جاتا تھا۔

     تیسری رکعت کے لیے کھڑے ہوتے وقت (بعض روایات میں):

    کچھ روایات میں یہ بھی آتا ہے کہ نبی کریم ﷺ تیسری رکعت کے لیے اٹھتے وقت بھی رفع الیدین کرتے تھے۔ حضرت نافع سے روایت ہے:
    ’’حضرت ابن عمر رضی اللہ عنہ جب تیسری رکعت کے لیے کھڑے ہوتے تو بھی رفع الیدین کرتے تھے۔‘‘
    (صحیح بخاری: 739)
    یہ تمام مقامات نبی کریم ﷺ کی سنت سے ثابت ہیں، اور ان پر عمل کرنا سنت کی پیروی ہے۔

      رفع الیدین کی حکمت اور فضیلت

    رفع الیدین سنت نبوی ہے، اور یہ ایک مستحب عمل ہے جو نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم سے تواتر کے ساتھ ثابت ہے۔ 
    سنت کی پیروی: رفع الیدین کرنا سنت کی اتباع کا ایک عملی اظہار ہے، اور جو شخص اس عمل کو کرتا ہے، وہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے عمل کی پیروی کرتا ہے۔

      فقہی مکاتب فکر کا نقطہ نظر

    رفع الیدین کے مسئلے پر اسلامی مکاتب فکر میں اختلاف موجود ہے۔ احادیث کی بنیاد پر ہر مکتب فکر کا اپنا ایک اجتہادی نقطہ نظر ہے. اس کی بنیادی وجہ مختلف روایات اور احادیث کی تشریحات میں فرق ہے۔ یہاں مختلف مکاتب فکر کا مختصر جائزہ پیش کیا جا رہا ہے:

    (الف) شافعی اور حنبلی مکتب فکر::

    رفع الیدین کو نماز کا مستقل حصہ سمجھتے ہیں اور ہر نماز میں تکبیر تحریمہ، رکوع میں جاتے اور رکوع سے اٹھتے وقت رفع الیدین کرنا ضروری سمجھتے ہیں۔ ان کے نزدیک یہ سنت موکدہ ہے اور نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کے طریقے کی پیروی اور سنت موکدہ  ہے۔

    (ب) حنفی مکتب فکر:

    حنفی فقہ کے مطابق رفع الیدین صرف نماز کے آغاز میں کیا جاتا ہے یعنی تکبیر تحریمہ کے وقت، جبکہ رکوع میں جاتے اور رکوع سے اٹھتے وقت رفع الیدین کو ضروری نہیں سمجھا جاتا۔ ان کے نزدیک یہ عمل ابتدائی دور میں کیا گیا تھا، لیکن بعد میں نبی کریم ﷺ نے اسے ترک کر دیا۔

    (ج) مالکی مکتب فکر:

    مالکی مکتب فکر میں بھی رفع الیدین کے بارے میں مختلف آراء ہیں، لیکن عمومی طور پر مالکی فقہ میں رفع الیدین کو اہمیت نہیں دی جاتی اور اسے صرف تکبیر تحریمہ کے وقت کیا جاتا ہے۔

      رفع الیدین کی شرعی حیثیت

    رفع الیدین احادیث سے ثابت ہے اور یہ نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کی سنت ہے، صحابہ کرام نے اس عمل کو اپنایا کیونکہ انھیں نبی کریم ﷺ  اور سنت سے محبت تھی.لہٰذا ! آپ بھی اسے اپنائے اور اپنی محبت کا ثبوت دیں.

      خلاصہ

    رفع الیدین نماز کے دوران نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم کا ایک سنت عمل ہے جو احادیث سے ثابت ہے۔ مختلف مکاتب فکر میں اس کے حوالے سے اختلافات پائے جاتے ہیں، لیکن یہ بات واضح ہے کہ یہ عمل ایک مستحب اور مستند سنت ہے۔ احادیث کی روشنی میں جو شخص رفع الیدین کرتا ہے، وہ سنت کی پیروی کرتا ہے، 

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    FAQs:

    सवाल 1: रफ़ा अल यदैन क्या है?
    जवाब: रफ़ा अल यदैन का मतलब है नमाज़ के दौरान जब इमाम या नमाज़ी 'अल्लाहु अकबर' कहता है, तो वह अपने हाथों को कंधों या कानों तक उठाता है। यह आमतौर पर तकबीर ए तहरीमा के दौरान किया जाता है।

    सवाल 2: रफ़ा अल यादैन कब किया जाता है?
    जवाब: रफ़ा अल यादैन आम तौर पर जब भी 'तकबीर' कहें, यानी तकबीर ए तहरीमा के वक्त किया जाता है। और रुकु में जाते वक्त और रुकु से उठते वक्त और तीसरी रकात के लिए खड़े होते वक्त रफ़ा अल यादैन किया जाता है!

    सवाल 3: क्या रफ़ा अल यादैन करना वाजिब है?
    जवाबरफ़ा अल यादैन करना सुन्नत है, और इसे छोड़ना मकरूह (नापसंद) है। हालांकि, अगर कोई इसे नहीं करता, तो उसकी नमाज़ सही है, लेकिन उसे यह सुन्नत अदा करने की कोशिश करनी चाहिए। रफ़ा अल यादैन को सुन्नत माना जाता है और यह नमाज़ का अहम अहम रूकन में शामिल है। इसे करना नबी ﷺ  से मोहब्बत की निशानी है !

    सवाल 4: क्या सभी मुसलमानों के लिए रफ़ा अल यादैन करना जरूरी है?
    जवाब: हां, सभी मुसलमानों के लिए रफ़ा अल यादैन करना सुन्नत है। हालांकि, इसके तरीकों में कुछ मतभेद हो सकते हैं, लेकिन सामान्यतः यह सभी इस्लामी मतों में एक आम प्रथा है।

    सवाल 5: क्या रफ़ा अल यादैन को करने के दौरान हाथों की स्थिति खास होती है?
    जवाब: हां, जब रफ़ा अल यादैन किया जाता है, तो हाथों को कंधों की ऊंचाई तक या कानों की लौ तक उठाना चाहिए ! ये हदीस से साबित है ! कानों को छूना या पकड़ना किसी भी हदीस से साबित नही है !

    सवाल 6: क्या रफ़ा अल यादैन हर प्रकार की नमाज़ में किया जाता है?
    जवाब: हाँ, रफ़ा अल यादैन फर्ज, नफ्ल, और सुन्नत हर नमाज़ों में किया जाता है, 

    सवाल 7: रफ़ा अल यादैन के समय क्या हाथों की स्थिति होनी चाहिए?
    जवाब: अहादीस में आया है कि हाथों को कंधों के बराबर या कानों की लौ तक उठाना चाहिए, और उंगलियों को सीधा किबला रुख रखना चाहिए।



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