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Rukoo ka Sunnat Tareeqa/रुकुअ़ का सुन्नत तरीक़ा

Rukoo ka Sunnat Tareeqa/रुकुअ़ का सुन्नत तरीक़ा 

Rukoo ka Sunnat Tareeqa/रुकुअ़ का सुन्नत तरीक़ा
Rukoo ka Sunnat Tareeqa/रुकुअ़ का सुन्नत तरीक़ा 


नमाज़ इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है, और यह मुसलमानों के लिए फ़र्ज़ इबादत है। नमाज़ के दौरान कई अरकान होते हैं, जैसे कि क़याम, रुकू, सज्दा, और क़अदा। इन सभी अरकान का अपना एक खास मक़सद और तरीका है। इस लेख में हम रुकू की अहमियत, उसकी विधि और क़ुरआन व हदीस की रौशनी में Rukoo ka Sunnat Tareeqa पर चर्चा करेंगे।

    रसूलुल्लाह (ﷺ) का हुक्म है :"मुझे जिस तरह नमाज़ पढ़ते देखते हो तुम भी उसी तरह नमाज़ पढ़ो"(सही बुख़ारी : 631)
    हज़रत अबु हुरेरा रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:“पांच नमाज़ें, उन गुनाहों को जो उन नमाज़ों के दर्मियान हुये, मिटा देती हैं। और (इसी तरह) एक जुम्अ: से दूसरे जुम्अः तक के गुनाहों को मिटा देता है, जबकि बड़े गुनाहों से बच रहा हो।"(मुस्लिम : 233)
    आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:"आदमी और शिर्क के दर्मियान नमाज़ ही रुकावट है।"(मुस्लिम : 82)

    रुकू की अहमियत:

     रुकू नमाज़ का एक ज़रूरी रुक्न है। इसका मतलब होता है झुककर अल्लाह की तस्बीह बयान करना। रुकू नमाज़ की पूरी प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा है और इसे बिना अदा किए नमाज़ मुकम्मल नहीं होती।

    क़ुरआन में रुकू का ज़िक्र:

    क़ुरआन मजीद में रुकू और सज्दा का बार-बार ज़िक्र आता है, जो इस बात को ज़ाहिर करता है कि ये अरकान नमाज़ का अहम हिस्सा हैं। अल्लाह तआला फरमाते हैं:"
    يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ارْكَعُوا وَاسْجُدُوا وَاعْبُدُوا رَبَّكُمْ وَافْعَلُوا الْخَيْرَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ"
    (सूरह अल-हज: 77)
    अनुवाद: "ऐ ईमान वालों! रुकू करो, सज्दा करो, और अपने रब की इबादत करो और भलाई करो ताकि तुम कामयाब हो जाओ।"इस आयत से यह साफ़ हो जाता है कि रुकू नमाज़ का एक अहम हिस्सा है, जिसे अदा करना हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है। अल्लाह तआला ने इसमें रुकू और सज्दा दोनों का ज़िक्र किया है, जो नमाज़ के दौरान अल्लाह की इबादत के तरीके हैं।

    हदीस में रुकू का ज़िक्र:

    हदीस में भी रुकू की अहमियत और उसका सही तरीका बयान किया गया है। रसूलुल्लाह ﷺ ने रुकू को नमाज़ के अहम अरकान में से एक बताया और इसे पूरी इत्मीनान और सही तरीके से अदा करने का हुक्म दिया।हज़रत अबू हुरैरा  (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने एक शख्स को नमाज़ के दौरान जल्दी-जल्दी रुकू और सज्दा करते हुए देखा। आप ﷺ ने उसे रोका और फरमाया:"فَارْكَعْ حَتَّى تَطْمَئِنَّ رَاكِعًا، ثُمَّ ارْفَعْ حَتَّى تَعْتَدِلَ قَائِمًا"
    (सहीह बुखारी)
    अनुवाद: "जब तुम रुकू करो, तो इत्मीनान के साथ झुको, फिर सीधा खड़े हो जाओ।"इस हदीस से मालूम होता है कि रुकू और नमाज़ के बाकी अरकान को पूरी इत्मीनान और तसल्ली के साथ अदा करना चाहिए। जल्दी-जल्दी अरकान अदा करने से नमाज़ की खूबसूरती और मक्सद फौत हो सकता है।

    रुकू का सही तरीका:

    रुकू का सही तरीका रसूलुल्लाह ﷺ की हदीसों से मालूम होता है। नमाज़ में रुकू के दौरान झुकने का एक खास तरीका है, जो हदीसों में बखूबी बयान किया गया है।

    रुकू में झुकने का तरीका:

    रसूलुल्लाह ﷺ जब रुकू करते, तो अपनी कमर को सीधा रखते थे और सिर को कमर के बराबर रखते थे। इसका मतलब है कि सिर न तो बहुत झुका होता था और न ही ऊपर उठा हुआ। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) से रिवायत है:"كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِذَا رَكَعَ جَعَلَ رَأْسَهُ حَدْرَ كَتِفَيْهِ"
    (मुस्नद अहमद)अनुवाद: "जब रसूलुल्लाह ﷺ रुकू करते, तो सिर को कंधों के बराबर रखते थे।"इस हदीस से हमें रुकू में सिर और पीठ को एक सीध में रखने का तरीका मालूम होता है, ताकि रुकू की सूरत मुकम्मल और सही हो।

    हाथों की पोजीशन:

    Rukoo ka Sunnat Tareeqa/रुकुअ़ का सुन्नत तरीक़ा
    Rukoo ka Sunnat Tareeqa/रुकुअ़ का सुन्नत तरीक़ा 



    रुकू के दौरान हाथों की पोजीशन भी हदीसों से साबित है। रसूलुल्लाह ﷺ अपने हाथों को घुटनों पर रखते थे और उंगलियों को फैला देते थे। हज़रत वाइल बिन हुज्र (रज़ि.) से रिवायत है:"كَانَ إِذَا رَكَعَ أَمْكَنَ كَفَّيْهِ مِنْ رُكْبَتَيْهِ وَفَرَّجَ أَصَابِعَهُ"
    (सनन अबू दाऊद)अनुवाद: "जब रसूलुल्लाह ﷺ रुकू करते, तो अपने हाथों को घुटनों पर रखते और उंगलियों को फैला देते थे।"इस हदीस से मालूम होता है कि रुकू के दौरान हाथों को घुटनों पर इस तरह रखना चाहिए कि पूरी तरह झुकने की हालत मालूम हो।

    रुकू में पढ़ी जाने वाली तस्बीह:

    रुकू में एक खास तस्बीह पढ़ना सुन्नत है। रसूलुल्लाह ﷺ रुकू में यह तस्बीह पढ़ते:
    "سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ"
    (सनन इब्न माजा)अनुवाद: "मेरे महान रब की पाकी बयान करता हूँ।"यह तस्बीह कम से कम तीन बार पढ़ी जाती है, लेकिन ज्यादा बार पढ़ना भी जायज़ है। इसका मकसद अल्लाह की अज़मत का एतराफ करना और अपनी बंदगी का इज़हार करना है।

    रुकू में सकून और इत्मीनान:

    नमाज़ में जब रुकू करते हैं तो सकून और इत्मीनान ज़रूरी है। रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया: "जब तुम रुकू करो, तो उस समय तक रुकू में रहो जब तक तुम्हें इत्मीनान न हो।" (सही बुख़ारी)

    इस हदीस से पता चलता है कि रुकू को जल्दबाजी में नहीं करना चाहिए, बल्कि पूरी शांति और इत्मीनान के साथ करना चाहिए।

    रुकू और विनम्रता (खुशू) का संबंध:

    रुकू के दौरान इंसान अल्लाह के सामने झुकता है और यह जताता है कि वह अपनी ताक़त और इख़्तियार को अल्लाह के सामने मानता है। रुकू में विनम्रता और नम्रता का इज़हार बहुत ज़रूरी है। अल्लाह तआला क़ुरआन में फ़रमाते हैं: "यक़ीनन ईमान वाले कामयाब हो गए, जो अपनी नमाज़ों में विनम्रता (खुशू) अपनाते हैं।" (सूरह अल-मुमिनून: 1-2)
    रुकू में विनम्रता से अल्लाह की बड़ाई और महानता का इज़हार होता है।

    रुकू के बाद खड़े होने का तरीका:

    रुकू के बाद खड़े होना और "समिअल्लाहु लिमन हमिदह" कहना सुन्नत है। हज़रत अबु हुरैरा (रज़ि०) से रिवायत है कि रसूल अल्लाह ﷺ जब रुकू से उठते तो फ़रमाते: "अल्लाह ने उसकी सुन ली जिसने उसकी तारीफ की।" (सही बुख़ारी)
    इसके बाद खड़े होकर "रब्बना व लकल हम्द" कहना भी सुन्नत है। और फिर सजदे की तरफ बढ़ते हैं !

    Conclusion:

    रुकू नमाज़ का एक महत्वपूर्ण और फ़र्ज़ हिस्सा है जिसे क़ुरआन और हदीस में साफ़ तौर पर बताया गया है। Rukoo ka Sunnat Tareeqa यह है कि नमाज़ी अपनी कमर और सिर को सीधा रखे, हाथों को घुटनों पर मज़बूती से रखे, और रुकू के दौरान "सुब्हान रब्बियल अज़ीम" कहकर अल्लाह की महानता को माने। रुकू में विनम्रता और इत्मीनान ज़रूरी है ताकि इंसान अल्लाह के सामने अपनी पूरी आज्ञाकारिता और नम्रता का इज़हार कर सके।


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    نماز میں رکوع کا سنت طریقہ:

    قرآن و حدیث کی روشنی میں نماز اسلام کے بنیادی ارکان میں سے ہے اور یہ بندے اور اس کے رب کے درمیان ایک مضبوط تعلق کی علامت ہے۔ نماز کے دوران مختلف ارکان ادا کیے جاتے ہیں جن میں قیام، رکوع، سجود اور قعدہ شامل ہیں۔ ان میں سے ہر رکن کا ایک مخصوص طریقہ اور مقصد ہے۔ رکوع نماز کا ایک اہم رکن ہے جس کا ادا کرنا فرض ہے اور اس کا صحیح طریقہ قرآن و حدیث سے ثابت ہے۔
    رسول اللہ ﷺ کا حکم ہے: "مجھے جس طرح نماز پڑھتے دیکھتے ہو، تم بھی اسی طرح نماز پڑھو۔" (صحیح بخاری: 631)
    حضرت ابو ہریرہ رضی اللہ عنہ روایت کرتے ہیں کہ نبی کریم ﷺ نے فرمایا: "پانچ نمازیں ان گناہوں کو مٹا دیتی ہیں جو ان نمازوں کے درمیان ہوئے ہوں، اور (اسی طرح) ایک جمعہ سے دوسرے جمعہ تک کے گناہوں کو مٹا دیتا ہے، جبکہ بڑے گناہوں سے بچا رہے۔" (مسلم: 233)
    آپ ﷺ نے فرمایا: "آدمی اور شرک کے درمیان نماز ہی رکاوٹ ہے۔" (مسلم: 82)

    رکوع کی اہمیت:

    رکوع نماز کا ایک لازمی حصہ ہے اور اس کے بغیر نماز مکمل نہیں ہوتی۔ رکوع کی اہمیت کو سمجھنے کے لیے ہمیں قرآن مجید اور احادیث کا مطالعہ کرنا ہوگا۔
    قرآن مجید میں رکوع کا ذکر:
    اللہ تعالیٰ قرآن مجید میں رکوع کا ذکر کرتے ہوئے فرماتے ہیں:"يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا ارْكَعُوا وَاسْجُدُوا وَاعْبُدُوا رَبَّكُمْ وَافْعَلُوا الْخَيْرَ لَعَلَّكُمْ تُفْلِحُونَ" (الحج: 77)

    ترجمہ: "اے ایمان والو! رکوع کرو، سجدہ کرو اور اپنے رب کی عبادت کرو اور نیک کام کرو تاکہ تم کامیاب ہو جاؤ۔"اس آیت میں رکوع کو عبادت کا ایک لازمی حصہ بتایا گیا ہے اور اس کے ساتھ سجدہ اور نیک عمل کرنے کا بھی حکم دیا گیا ہے، جو رکوع کی اہمیت کو ظاہر کرتا ہے۔

    حدیث میں رکوع کا ذکر:

    حضرت ابوہریرہؓ سے مروی ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:"إِذَا قَامَ أَحَدُكُمْ إِلَى الصَّلَاةِ فَلَا يَبْصُقْ أَمَامَهُ فَإِنَّمَا يُنَاجِي اللَّهَ مَا دَامَ فِي مُصَلَّاهُ، وَلَا عَنْ يَمِينِهِ، فَلْيَبْصُقْ عَنْ يَسَارِهِ، أَوْ تَحْتَ قَدَمِهِ"
     (صحیح بخاری:)
    اس حدیث میں نماز کے دوران اللہ تعالیٰ کے سامنے کھڑے ہونے کی عظمت بیان کی گئی ہے اور اس میں رکوع کی حالت بھی شامل ہے، کیونکہ نمازی رکوع کے دوران بھی اللہ کے حضور عاجزی کا اظہار کرتا ہے۔

    رکوع کا سنت طریقہ :

    رکوع کا صحیح طریقہ سنتِ رسول ﷺ کے مطابق بہت واضح اور معین ہے۔ رسول اللہ ﷺ نے رکوع کا جو طریقہ بتایا، وہ نہایت متوازن اور خشوع و خضوع کے ساتھ ہوتا ہے۔

    رکوع میں جسم کا جھکنا:

    رسول اللہ ﷺ جب رکوع کرتے تو کمر کو بالکل سیدھا رکھتے اور سر کو کمر کے برابر رکھتے، نہ زیادہ اونچا اور نہ زیادہ نیچا۔ حضرت عبداللہ بن عباسؓ سے مروی ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:"كَانَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ إِذَا رَكَعَ جَعَلَ رَأْسَهُ حَدْرَ كَتِفَيْهِ"(مسند احمد)
    ترجمہ: "رسول اللہ ﷺ جب رکوع کرتے تو سر کو کندھوں کے برابر رکھتے۔"اس حدیث سے معلوم ہوتا ہے کہ رکوع کے دوران جسم کا جھکنا متوازن ہونا چاہیے تاکہ خشوع کا اظہار ہو۔

    ہاتھوں کی پوزیشن:

    حضرت وائل بن حجرؓ سے مروی ہے کہ رسول اللہ ﷺ جب رکوع کرتے تو ہاتھوں کو گھٹنوں پر رکھتے اور انگلیاں پھیلا دیتے تھے:"كَانَ إِذَا رَكَعَ أَمْكَنَ كَفَّيْهِ مِنْ رُكْبَتَيْهِ وَفَرَّجَ أَصَابِعَهُ"(سنن ابو داؤد)
    ترجمہ: "رسول اللہ ﷺ جب رکوع کرتے تو اپنے دونوں ہاتھوں کو گھٹنوں پر مضبوطی سے رکھتے اور انگلیوں کو کھول دیتے۔"اس حدیث سے رکوع کے دوران ہاتھوں کو گھٹنوں پر رکھنے کا طریقہ واضح ہوتا ہے، تاکہ انسان رکوع کی حالت میں مکمل طور پر جھکا ہوا نظر آئے۔

    رکوع میں پڑھی جانے والی تسبیح:

    رکوع کے دوران خاص اذکار کا پڑھنا مسنون ہے۔ رسول اللہ ﷺ جب رکوع میں جاتے تو یہ تسبیح پڑھتے:"سُبْحَانَ رَبِّيَ الْعَظِيمِ"(سنن ابن ماجہ)
    ترجمہ: "پاک ہے میرا عظیم رب۔"یہ تسبیح کم از کم تین بار پڑھنا مستحب ہے۔ اس تسبیح سے اللہ تعالیٰ کی عظمت کا اقرار اور اس کی بڑائی بیان ہوتی ہے۔

    رکوع میں سکون اور اطمینان:

    نماز میں رکوع کرتے وقت سکون اور اطمینان کا ہونا ضروری ہے۔ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:"فَإِذَا رَكَعْتَ فَارْكَعْ حَتَّى تَطْمَئِنَّ رَاكِعًا"(صحیح بخاری)
    ترجمہ: "جب تم رکوع کرو، تو اس وقت تک رکوع میں رہو جب تک تمہیں اطمینان نہ ہو۔"اس حدیث سے معلوم ہوتا ہے کہ رکوع کو عجلت میں ادا نہیں کرنا چاہیے بلکہ مکمل سکون اور اطمینان کے ساتھ کرنا چاہیے۔

    رکوع اور خشوع کا تعلق:

    رکوع کے دوران انسان اللہ کے سامنے جھکتا ہے اور اس کا اظہار کرتا ہے کہ وہ اپنی طاقت و اختیار کو اللہ کے سامنے تسلیم کرتا ہے۔ رکوع میں خشوع یعنی عاجزی اور انکساری کا اظہار انتہائی اہم ہے۔ اللہ تعالیٰ قرآن میں فرماتے ہیں:"قَدْ أَفْلَحَ الْمُؤْمِنُونَ * الَّذِينَ هُمْ فِي صَلَاتِهِمْ خَاشِعُونَ" (المؤمنون: 1-2)
    ترجمہ: "یقیناً ایمان والے کامیاب ہو گئے، جو اپنی نمازوں میں خشوع اختیار کرتے ہیں۔"رکوع کے دوران خشوع سے اللہ کی بڑائی اور عظمت کا اظہار ہوتا ہے۔

    رکوع کے بعد کھڑے ہونے کا طریقہ:

    رکوع کے بعد کھڑے ہونا اور "سمع اللہ لمن حمدہ" کہنا سنت ہے۔ حضرت ابوہریرہؓ سے مروی ہے کہ رسول اللہ ﷺ جب رکوع سے اٹھتے تو فرماتے:"سَمِعَ اللَّهُ لِمَنْ حَمِدَهُ"(صحیح بخاری)
    ترجمہ: "اللہ نے اس کی سن لی جس نے اس کی حمد کی۔"اور پھر کھڑے ہونے کے بعد "ربنا ولک الحمد" کہنا مسنون ہے۔
    خلاصہ:
    رکوع نماز کا ایک اہم اور فرض رکن ہے جسے قرآن اور حدیث میں بہت وضاحت سے بیان کیا گیا ہے۔ رکوع کا سنت طریقہ یہ ہے کہ نمازی اپنی کمر اور سر کو سیدھا رکھے، ہاتھوں کو گھٹنوں پر مضبوطی سے رکھے، اور رکوع کے دوران "سبحان ربی العظیم" کی تسبیح پڑھ کر اللہ کی عظمت کا اقرار کرے۔ رکوع میں خشوع اور اطمینان کا ہونا ضروری ہے تاکہ بندہ اللہ کے سامنے اپنی عاجزی اور بندگی کا بھرپور اظہار کر سکے۔

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    FAQs:

    सवाल 1: रुकू का सुन्नत तरीक़ा क्या है?
    जवाब: रुकू का सुन्नत तरीक़ा यह है कि नमाज़ी अपनी कमर और सिर को सीधा रखे, ताकि दोनों एक सीध में हों। हाथों को घुटनों पर मज़बूती से रखे, उंगलियों को फैलाकर घुटनों को पकड़े, और रुकू के दौरान तीन बार या उससे ज़्यादा "सुब्हान रब्बियल अज़ीम" कहे।

    सवाल 2: रुकू के दौरान शरीर का कौन-सा हिस्सा सीधा रहना चाहिए?
    जवाब: रुकू में सुन्नत यह है कि कमर और सिर दोनों सीधा रहें और एक लाइन में हों। नमाज़ी को चाहिए कि वह सिर को बहुत नीचे या ऊपर न करे, बल्कि कमर और सिर को बराबर रखे।

    सवाल 3: रुकू में हाथ कहाँ रखें?
    जवाब: रुकू के दौरान हाथों को घुटनों पर मज़बूती से रखा जाए। उंगलियों को खुला रखा जाए ताकि घुटनों को सही तरीक़े से पकड़ सकें।

    सवाल 4: रुकू के दौरान कौन सी तसबीह पढ़ी जाती है?
    जवाब: रुकू के दौरान "सुब्हान रब्बियल अज़ीम" की तसबीह पढ़ना सुन्नत है। इसे तीन बार या उससे ज़्यादा बार पढ़ा जा सकता है।

    सवाल 5: क्या रुकू में जल्दबाज़ी करना सही है?
    जवाब: नहीं, रुकू में जल्दबाज़ी करना सुन्नत के खिलाफ़ है। रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया कि रुकू को इत्मीनान और शांति के साथ करना चाहिए। जल्दबाज़ी के बिना, पूरी तवज्जो और अदब के साथ रुकू अदा करना चाहिए।

    सवाल 6: रुकू से उठते समय क्या कहा जाता है?
    जवाब: रुकू से उठते समय "समिअल्लाहु लिमन हमिदह" कहा जाता है, जिसका मतलब है "अल्लाह ने उसकी सुन ली जिसने उसकी तारीफ की।" और फिर खड़े होकर "रब्बना व लकल हम्द" कहना सुन्नत है, जिसका मतलब है "ऐ हमारे रब! तेरे लिए सारी तारीफ है।"


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