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Sajdah e sahwa/सजदा-ए-सहव

Sajdah e sahwa/सजदा-ए-सहव

Sajdah e sahwa/सजदा-ए-सहव
Sajdah e sahwa/सजदा-ए-सहव



 नमाज़ इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है और एक महत्वपूर्ण इबादत है ! इसका सही तरीके से अदा होना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। कभी-कभी नमाज़ पढ़ते समय छोटी-छोटी गलतियाँ या भूल हो जाती हैं, जिन्हें सजदा -ए-सहव के ज़रिए उन भूलों को ठीक किया जाता है,नमाज़ के दौरान अगर कोई गलती हो जाए, चाहे वो भुल की वजह से हो, या कोई वाजिब (अनिवार्य कार्य) छूट जाए, तो उस गलती को सुधारने के लिए "Sajdah e sahwa" का हुक्म दिया गया है। यह एक विशेष सजदा होता है जो नमाज़ की कमी व बेसी को पूरा करता है। हदीस की रोशनी में, सजदा सहव की शरई हैसियत और उसकी अहमियत को समझना जरूरी है!


    सजदा-ए-सहव की अहमियत:

     Sajdah e sahwa का मकसद नमाज़ में की गई भूलों को सुधारना है, ताकि नमाज़ को पूरा और सही किया जा सके। हदीस में यह मसला विस्तार से बताया गया है। नबी करीम (ﷺ) की विभिन्न हदीसों से यह साबित होता है कि सजदा-ए-सहव किस प्रकार और कब करना चाहिए।

     सहीह बुखारी और सहीह मुस्लिम में हज़रत अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है कि नबी (ﷺ) ने फरमाया:
    "अगर तुममें से कोई व्यक्ति अपनी नमाज़ में कुछ भूल जाए, तो उसे सजदा सहव करना चाहिए।"(सहीह बुखारी 401, सहीह मुस्लिम 572)
    इस हदीस से यह साफ होता है कि यदि नमाज़ में कोई चूक हो जाए तो उसका सुधार Sajdah e sahwa से किया जाता है।
    नबी (ﷺ) का अपना अमल: सहीह मुस्लिम में एक हदीस है कि नबी (ﷺ) ने एक बार ज़ुहर या अस्र की नमाज़ में केवल दो रकात पढ़ी थीं और फिर सलाम फेर दिया। जब सहाबा ने उन्हें इस बारे में सूचित किया, तो उन्होंने वापस आकर बाकी की नमाज़ अदा की और फिर अंत में दो सजदा सहव किए। यह हदीस (सहीह मुस्लिम 573) यह दर्शाती है कि अगर नमाज़ में कोई रकात या अन्य महत्वपूर्ण कार्य छूट जाए, तो उसे पूरा करने के बाद सजदा सहव करना चाहिए।

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    सजदा-ए-सहव किन हालात में वाजिब होता है?

    ध्यान भटकने पर : अगर नमाज़ी का ध्यान भटक जाए और वह भूल जाए कि उसने कितनी रकातें पढ़ी हैं, तो उसे सही रकात का अंदाजा लगाकर अपनी नमाज़ पूरी करनी चाहिए और सजदा सहव करना चाहिए, जैसा कि हदीस में आता है:

    रकअत की गिनती में गलती: अगर कोई शख्स नमाज़ में रकअतों की गिनती में गलती कर ले, जैसे चार की जगह तीन रकअत पढ़ ले या चार के बजाय पाँच पढ़ ले, तो उसे Sajdah e sahwa करना चाहिए। 
    हज़रत अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से मروی है कि नबी (ﷺ) ने एक मर्तबा तीन रकअत नमाज़ पढ़ी, फिर सलाम फेरा। सहाबा ने पूछा, तो आपने सजदा-ए-सहव किया और नमाज़ पूरी की (सहीह बुखारी: 1227)।
    वाजिब का छूट जाना: 
    अगर नमाज़ में कोई वाजिब (जैसे तहियात में बैठना या दरूद शरीफ पढ़ना) तकबीर या अन्य महत्वपूर्ण ज़िक्र छूट जाए, तो Sajdah e sahwa के ज़रिए उस कमी को पूरा किया जा सकता है। 
    शक करना:
    अगर किसी को नमाज़ के दौरान यह शक हो जाए कि उसने कितनी रकअतें पढ़ी हैं—तीन या चार—तो उसे यकीन वाली बात को अपनाना चाहिए और शुबहात को छोड़ देना चाहिए। इसके बाद सजदा-ए-सहव करना ज़रूरी है। 
    अगर किसी को यह शंका हो कि उसने तीन रकात पढ़ी हैं या चार, तो उसे तीन मान लेना चाहिए और बाक़ी रकअत पूरी करके सजदा सहव करना चाहिए।
    हदीस में आता है कि नबी करीम (ﷺ) ने फरमाया, "जब तुममें से किसी को नमाज़ में शक हो कि उसने कितनी रकअतें पढ़ी हैं, तो वह जो यकीन हो उसे अपनाए और फिर सजदा-ए-सहव कर ले" (सहीह मुस्लिम: 571)।

    छोटी गलतियों का सुधार: एक और हदीस में आता है कि नबी (ﷺ) ने फरमाया:"अगर इमाम गलती करे और सजदा सहव करे, तो लोग भी उसके साथ सजदा सहव करें।"(सहीह तिर्मिज़ी 392)

    इससे यह पता चलता है कि अगर किसी छोटी गलती या सहव की वजह से सजदा सहव की जरूरत पड़े, तो उसे पूरी जमात भी इमाम के साथ अदा करेगी। यह सामूहिक रूप से सजदा सहव करने की एक मिसाल है। 

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    सजदा-ए-सहव का तरीक़ा:

     सजदा-ए-सहव का तरीक़ा बेहद आसान है। नमाज़ के आखिर में, सलाम फेरने से पहले या बाद में दो सजदे किए जाते हैं, जिनमें सामान्य सजदे की तरह तस्बीह पढ़ी जाती है। यह हदीस से साबित है कि नबी (ﷺ) ने कभी-कभी सजदा-ए-सहव को सलाम से पहले किया और कभी-कभी बाद में। 
    हज़रत अब्दुल्लाह इब्न मसूद (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से मروی है कि नबी (ﷺ) ने फरमाया, "अगर तुममें से कोई सजदा-ए-सहव करे, तो वह दो सजदे करे, चाहे सलाम से पहले हो या बाद में" (सहीह बुखारी: 1291)।

    नबी करीम ﷺ  का अमल:

    हज़रत अबू हुरैरा (रज़ी अल्लाहु अन्हु) से सहीह मुस्लिम में रिवायत है कि नबी करीम (ﷺ) ने एक बार नमाज़ में भूलकर दो रकात के बाद सलाम फेर दिया। सहाबा किराम (रज़ी अल्लाहु अन्हुम) ने इसकी तरफ़ इशारा किया, तो आप (ﷺ) ने बाकी नमाज़ पूरी की और फिर दो सजदे (सजदा-ए-सेहवा) किए। (सहीह मुस्लिम 573)

    नबी करीम (ﷺ) ने फरमाया: "जब तुममें से कोई नमाज़ में भूल जाए, तो वह दो सजदे (सजदा-ए-सेहवा) करे और इस तरह उसकी नमाज़ पूरी हो जाएगी।" (सहीह मुस्लिम 574)

    सजदा-ए-सहव करने का मौक़ा:

    सजदा-ए-सहव से पहले सलाम: 

    एक हदीस में आता है कि नबी (ﷺ) ने एक बार चार के बजाय तीन रकअतें पढ़कर सलाम फेर दिया। सहाबा ने इशारा किया, तो आपने वापस नमाज़ पूरी की और फिर सजदा-ए-सहव किया (सहीह बुखारी: 1226)।

    अतिरिक्त रकअतें पढ़ना

    अगर कोई व्यक्ति भूलवश अधिक रकअतें पढ़ ले, तो उसे सजदा-ए-सहव करना चाहिए। नबी (ﷺ) ने एक बार पाँच रकअतें पढ़ ली थीं, जब इस पर ध्यान दिलाया गया, तो आपने सजदा-ए-सहव किया (सहीह मुस्लिम: 572)।
    दो सजदे करना – 
    नबी (ﷺ) का तरीका यह था कि अगर कोई गलती होती, तो वे दो सजदे करते और फिर नमाज़ पूरी कर लेते। सहीह मुस्लिम और सहीह बुखारी में यह प्रक्रिया स्पष्ट रूप से वर्णित है।
    सजदा सहव का समय – 
    विभिन्न हदीसों के आधार पर, सजदा सहव कभी सलाम से पहले और कभी सलाम के बाद किया जा सकता है। दोनों तरीके नबी (ﷺ) से साबित हैं, जैसे कि हदीस में आता है:
    "नबी (ﷺ) ने एक बार सजदा सहव सलाम से पहले और एक बार बाद में किया।"(सहीह बुखारी 1224)


    Conclusion

    Sajdah e sahwa,जो नमाज़ में हुई भूलों को सुधारने का एक तरीका है। जिसका हुक्म और तरीका हदीसों से साफ तौर पर साबित है।  हदीसों में इसका उल्लेख बहुत विस्तार से किया गया है और इससे यह सिद्ध होता है कि अल्लाह ने अपनी रहमत से इंसान की भूलों को सुधारने के लिए इस आसान उपाय को पेश किया है। मुसलमानों को सजदा-ए-सहव के मसनून तरीको को अपनाते हुए अपनी नमाज़ को सुधारने और उसे संपूर्ण बनाने की कोशिश करनी चाहिए।ताकि मामूली भूल-चूक के बावजूद नमाज़ अल्लाह के सामने क़बूल हो सके।


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    سجدہ سہوا کا مسنون طریقہ:

    سجدہ سہو کا طریقہ حدیث کی روشنی میں نبی کریم ﷺ سے ثابت ہے اور مختلف مواقع پر آپ ﷺ نے سجدہ سہو کا حکم دیا اور خود بھی ادا فرمایا۔ سجدہ سہو کا مقصد نماز میں بھول چوک یا غلطی کو درست کرنا ہے، تاکہ نماز کی کمی یا کوتاہی پوری ہو جائے۔ سجدہ سہو کا طریقہ نبی کریم ﷺ کی سنت اور احادیث میں مختلف مواقع پر بیان ہوا ہے

     نماز میں زیادتی یا کمی ہو جانے کی صورت میں سجدہ سہو

    اگر نماز میں کوئی واجب عمل رہ جائے یا زیادتی ہو جائے (مثلاً رکعتوں کی تعداد میں اضافہ یا کمی)، تو سجدہ سہو واجب ہو جاتا ہے۔
    حضرت عبد اللہ بن مسعود (رضی اللہ عنہ) سے روایت ہے:
    "نبی کریم ﷺ نے فرمایا: جب کوئی شخص نماز میں بھول جائے تو وہ دو سجدے کرے (سجدہ سہو)۔"
    (صحیح مسلم: 572)

     سجدہ سہو کا وقت: سلام سے پہلے یا بعد

    سجدہ سہو کا وقت مختلف احادیث سے ثابت ہے کہ یہ سلام سے پہلے بھی کیا جا سکتا ہے اور سلام کے بعد بھی۔
    حضرت ابو سعید خدری (رضی اللہ عنہ) سے روایت ہے:
    "نبی کریم ﷺ نے فرمایا: جب تم میں سے کوئی نماز میں شک کرے کہ تین رکعتیں پڑھیں یا چار، تو وہ یقین پر عمل کرے (یعنی کم تعداد کو مانے) اور پھر سلام سے پہلے دو سجدے (سجدہ سہو) کرے۔"
    (صحیح مسلم: 571)

    ایک اور موقع پر نبی کریم ﷺ نے سلام کے بعد سجدہ سہو کیا:
    "نبی کریم ﷺ نے ایک مرتبہ پانچ رکعتیں پڑھیں، جب آپ کو بتایا گیا تو آپ نے سلام کے بعد دو سجدے (سجدہ سہو) کیے۔"(صحیح مسلم: 573)

     سجدہ سہو کا طریقہ

    سجدہ سہو کا طریقہ عام سجدوں کی طرح ہی ہے۔ جب کوئی نماز میں بھول جائے یا غلطی ہو جائے، تو وہ تلاوت یا تسبیح کے بعد، تشہد کے بعد، سلام سے پہلے یا سلام کے بعد دو اضافی سجدے کرے۔

    اگر سلام سے پہلے سجدہ سہو کرنا ہو تو:

    تشہد مکمل کرنے کے بعد دو سجدے کیے جاتے ہیں، پھر دوبارہ تشہد پڑھا جاتا ہے، درود پڑھا جاتا ہے اور سلام پھیرا جاتا ہے۔

    اگر سلام کے بعد سجدہ سہو کرنا ہو تو:

    نماز مکمل کرنے کے بعد سلام پھیر کر دو سجدے کیے جاتے ہیں، پھر دوبارہ تشہد اور درود پڑھا جاتا ہے، اور پھر سلام پھیرا جاتا ہے۔

     سجدہ سہو کے مواقع

    رکعتوں میں کمی بیشی: 

    اگر نماز میں رکعتوں کی تعداد کم یا زیادہ ہو جائے تو سجدہ سہو کرنا واجب ہوتا ہے۔

    واجب کا چھوٹ جانا:

     اگر نماز میں کوئی واجب عمل جیسے سورت فاتحہ یا رکوع , قعدہ اولیٰ، تکبیرات، یا کوئی اور لازمی ذکر چھوڑ دیا جائے، تو اس کی تلافی کے لیے سجدہ سہو کیا جاتا ہے۔

    رکعتوں میں شک:

     اگر نمازی کو رکعتوں کی تعداد میں شک ہو اور یقین نہ ہو کہ کتنی رکعتیں ادا کی ہیں، تو کم رکعتیں مان کر نماز مکمل کی جائے اور آخر میں سجدہ سہو کیا جائے۔

    نبی کریم ﷺ کا عمل

    نبی کریم ﷺ سے کئی مرتبہ سجدہ سہو کرنے کا عمل ثابت ہے۔ صحیح مسلم میں حضرت ابو ہریرہ (رضی اللہ عنہ) سے روایت ہے کہ نبی کریم ﷺ نے ایک مرتبہ نبی کریم ﷺ نے نماز میں بھول کر دو رکعت کے بعد سلام پھیر دیا۔ صحابہ کرامؓ نے توجہ دلائی، تو آپ ﷺ نے باقی نماز مکمل کی اور پھر دو سجدے کیے۔ (صحیح مسلم 573)
    "نبی کریم ﷺ نے فرمایا: جب تم میں سے کوئی نماز میں بھول جائے، تو وہ دو سجدے کرے اور اس طرح اس کی نماز مکمل ہو جائے گی۔"(صحیح مسلم: 574)

    نتیجہ

    سجدہ سہو ایک اہم سنت عمل ہے جو نماز میں بھول چوک یا غلطی کی تلافی کرتا ہے۔ نبی کریم ﷺ کے عمل اور احادیث کی روشنی میں یہ ثابت ہوتا ہے کہ اگر نماز میں کوئی واجب چھوٹ جائے، اضافہ ہو جائے یا شک کی حالت ہو، تو سجدہ سہو کرنا چاہیے۔ سجدہ سہو سے نماز کی کمی کو پورا کیا جا سکتا ہے اور نماز کی قبولیت کی امید کی جا سکتی ہے۔
    نبی کریم ﷺ کا طریقہ یہی تھا کہ جب بھی نماز میں کوئی کمی یا زیادتی ہوتی تو آپ ﷺ دو سجدے کرتے۔ سجدہ سہو نماز کی درستگی اور اس کی قبولیت کے لیے ایک سنت عمل ہے، جو ہر مسلمان کو نماز میں ہونے والی کسی بھی بھول کی صورت میں ادا کرنا چاہیے۔

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    سجدہ سہوا سے متعلق کچھ احادیث مبارکہ:

    نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے انہیں ظہر کی نماز پڑھائی اور دو رکعتوں پر بیٹھنے کے بجائے کھڑے ہو گئے، چنانچہ سارے لوگ بھی ان کے ساتھ کھڑے ہو گئے، جب نماز ختم ہونے والی تھی اور لوگ آپ صلی اللہ علیہ وسلم کے سلام پھیرنے کا انتظار کر رہے تھے تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے «الله أكبر‏» کہا اور سلام پھیرنے سے پہلے دو سجدے کئے، پھر سلام پھیرا۔( صحیح بُخاری:829)

    مالک نے ابن شہاب سے ، انھوں نے عبدالرحمن اعرج سے اور انھوں نے حضرت عبداللہ بن بحینہ ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ سے روایت کی ، کہا : رسول اللہ ﷺ نے ہمیں کسی ایک نماز کی دو رکعتیں پڑھائیں ، پھر ( تیسری کے لیے ) کھڑے ہو گئے اور ( درمیان کے تشہد کے لیے ) نہ بیٹھے تو لوگ بھی آپ کے ساتھ کھڑے ہو گئے ، جب آپ نے نماز پوری کر لی اور ہم آپ کے سلام کے انتظار میں تھے توآپ نے تکبیر کہی اور بیٹھے بیٹھے سلام سے پہلے دو سجدے کیے ، پھر سلام پھیر دیا ۔(صحیح مُسلم:1269)

    حضرت مغیرہ بن شعبہ ؓ بیان کرتے ہیں ، رسول اللہ ﷺ نے فرمایا :’’ جب امام دو رکعتیں پڑھ کر (تشہد پڑھے بغیر) کھڑا ہو جائے ، اگر مکمل طور پر سیدھا کھڑا ہونے سے پہلے اسے یاد آ جائے تو وہ بیٹھ جائے ، اور اگر وہ مکمل طور پر سیدھا کھڑا ہو جائے تو پھر نہ بیٹھے ، اور سہو کے دو سجدے کر لے ۔‘‘ ، رواہ ابوداؤد و ابن ماجہ ۔ (مشکوٰۃ المصابیح:1020)

    حضرت عطا بن یسار ، ابوسعید ؓ سے روایت کرتے ہیں ، انہوں نے کہا ، رسول اللہ ﷺ نے فرمایا :’’ جب تم میں سے کسی کو اپنی نماز کے بارے میں شک ہو اور اسے پتہ نہ چلے کہ اس نے کتنی رکعتیں پڑھی ہیں ، تین یا چار ، تو وہ شک دور کرے اور یقین پر بنیاد رکھے ، پھر سلام پھیرنے سے پہلے دو سجدے کرے ، اگر اس نے پانچ رکعت پڑھ لی ہیں تو یہ دو سجدے اس کی نماز کو جفت بنا دیں گے ، اور اگر اس نے یہ رکعت چار مکمل کرنے کے لیے پڑھی ہے تو پھر وہ دو سجدے شیطان کی تذلیل کے لیے ہوں گے ۔‘‘ مسلم ، امام مالک نے عطاء سے مرسل روایت کیا ہے ، اور ان کی روایت میں ہے :’’ اس نے ان دو سجدوں سے اس کو جفت بنا دیا ۔‘‘ رواہ مسلم و مالک ۔ (مشکوٰۃ المصابیح:1015)

    سلیمان بن بلال نے زید بن اسلم سے ، انھوں نے عطاء بن یسار سے اور انھوں نے حضرت ابو سعید خدری ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ سے روایت کی کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا : جب تم میں سے کسی کو اپنی نماز میں شک ہو جائے اور اسے معلوم نہ ہو کہ اس نے کتنی رکعتیں پڑھ لی ہیں ؟ تین یا چار ؟ تو وہ شک کو چھوڑ دے اور جتنی رکعتوں پر اسے یقین ہے ان پر بنیاد رکھے ( تین یقینی ہیں تو چوتھی پڑھ لے ) پھر سلام سے پہلے دو سجدے کر لے ، اگر اس نے پانچ رکعتیں پڑھ لی ہیں تو یہ سجدے اس کی نماز کو جفت ( چھ رکعتیں ) کر دیں گے ارو اگر اس نے چار کی تکمیل کر لی تھی تو یہ سجدے شیطان کی ذلت و رسوائی کا باعث ہوں گے ۔(صحیح مُسلم:1272)

    نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم نے نماز پڑھائی۔ ابراہیم نے کہا مجھے نہیں معلوم کہ نماز میں زیادتی ہوئی یا کمی۔ پھر جب آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے سلام پھیرا تو آپ صلی اللہ علیہ وسلم سے کہا گیا کہ یا رسول اللہ! کیا نماز میں کوئی نیا حکم آیا ہے؟ آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے فرمایا آخر کیا بات ہے؟ لوگوں نے کہا آپ نے اتنی اتنی رکعتیں پڑھی ہیں۔ یہ سن کر آپ صلی اللہ علیہ وسلم نے اپنے دونوں پاؤں پھیرے اور قبلہ کی طرف منہ کر لیا اور ( سہو کے ) دو سجدے کئے اور سلام پھیرا۔ پھر ہماری طرف متوجہ ہوئے اور فرمایا کہ اگر نماز میں کوئی نیا حکم نازل ہوا ہوتا تو میں تمہیں پہلے ہی ضرور کہہ دیتا لیکن میں تو تمہارے ہی جیسا آدمی ہوں، جس طرح تم بھولتے ہو میں بھی بھول جاتا ہوں۔ اس لیے جب میں بھول جایا کروں تو تم مجھے یاد دلایا کرو اور اگر کسی کو نماز میں شک ہو جائے تو اس وقت ٹھیک بات سوچ لے اور اسی کے مطابق نماز پوری کرے پھر سلام پھیر کر دو سجدے ( سہو کے ) کر لے۔ (صحیح بُخاری:401)

    ابن ابی احمد کے آزاد کردہ غلام ابو سفیان سے روایت ہے کہ اس نے کہا : میں نے حضرت ابو ہریرہ ‌رضی ‌اللہ ‌عنہ کو یہ کہتے ہو ئے سنا کہ رسول اللہ ﷺ نے ہمیں عصر کی نماز پڑھائی اور دو رکعتوں میں سلام پھیر دیا ۔ ذوالیدین ( نامی شخص ) کھڑا ہوا اور کہا : اے اللہ کے رسول ! نماز کم کر دی گئی ہے یا آپ بھول گئے ہیں ؟ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا : ایسا کوئی کام نہیں ہوا ۔ اس نے عرض کی : اے اللہ کے رسول ! کوئی ایک کام تو ہوا ہے ۔ تب رسول اللہ ﷺ لوگوں کی طرف متوجہ ہوئے اور پوچھا : کیا ذوالیدین نے سچ کہا ؟ انھوں نے کہا : جی ہاں ! اے اللہ کے رسول ! تو رسول اللہ ﷺ نے جو نماز رہ گئی تھی پوری کی ، پھر بیٹھے بیٹھے سلام پھیرنے کے بعد دو سجدے کیے ۔(صحیح مسلم:1290)

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    FAQs:

    सवाल 1: सजदा-ए-सहवा कब करना पड़ता है?
    जवाब: सजदा-ए-सहवा तब किया जाता है जब नमाज़ के दौरान कोई भूल हो जाती है, जैसे:

    कोई जरूरी रुक्न (जैसे रुकू या सजदा) भूल जाना।
    नमाज़ की रकातें कम या ज्यादा पढ़ लेना।
    कोई वाजिब (जैसे तशहुद) को भूल जाना।

    सवाल 2: सजदा-ए-सहवा का हुक्म क्या है?
    जवाब: अगर नमाज़ में भूल होती है, तो सजदा-ए-सहवा करना वाजिब (अत्यधिक आवश्यक) है। यह हदीस से साबित है कि नबी (ﷺ) ने भूल होने पर सजदा-ए-सहवा किया और सहाबा को भी इसकी तालीम दी।

    सवाल 3: सजदा-ए-सहवा का तरीका क्या है?
    जवाब: सजदा-ए-सहवा इस तरह किया जाता है:

    आखिरी तशहुद (तहियात) पढ़ने के बाद सलाम से पहले दो सजदे किए जाते हैं। हदीस से सलाम के बाद भी सजदा-ए-सहव साबित है! इन सजदों से पहले "अल्लाहु अकबर" कहा जाता है।

    सवाल 4: अगर किसी ने भूल से नमाज़ में एक रकात ज्यादा पढ़ ली, तो क्या करना चाहिए?
    जवाब: अगर कोई एक रकात ज्यादा पढ़ लेता है, तो उसे नमाज़ के अंत में सजदा-ए-सहवा करना चाहिए। यह हदीस से साबित है कि नबी (ﷺ) ने एक बार चार के बजाय पाँच रकातें पढ़ीं, और फिर सजदा-ए-सहवा किया (सहीह बुखारी 1226)।

    सवाल 5: अगर नमाज़ में वाजिब (जैसे तशहुद) को भूल जाए, तो क्या सजदा-ए-सहवा करना होगा?
    जवाब: हां, अगर नमाज़ में कोई वाजिब काम (जैसे तशहुद, क़ुनूत की दुआ, रुकुअ) छूट जाए, तो नमाज़ के अंत में सजदा-ए-सहवा करना जरूरी है।

    सवाल 6: क्या सजदा-ए-सहवा इमाम और मुक्ति दोनों पर लागू होता है?
    जवाब: हां, अगर इमाम सजदा-ए-सहवा करता है, तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ने वाले मुक्ति को भी सजदा-ए-सहवा करना चाहिए। इमाम की भूल पर सबकी नमाज़ का सुधार सजदा-ए-सहवा द्वारा होता है।

    सवाल 7: क्या सजदा-ए-सहवा नमाज़ को सही कर देता है?
    जवाब: हां, सजदा-ए-सहवा नमाज़ में होने वाली भूल, कमी बेसी को पूरा कर देता है और नमाज़ को पूरा बना देता है। यह हदीसों से सिद्ध है कि नबी (ﷺ) और उनके सहाबा ने नमाज़ की भूलों को सुधारने के लिए सजदा-ए-सहवा किया।

    सवाल 8: अगर कोई सजदा-ए-सेहवा करना भूल जाए, तो क्या नमाज़ दोबारा पढ़नी पड़ेगी?
    जवाब: अगर नमाज़ खत्म होने के बाद याद आए कि सजदा-ए-सेहवा करना था, तो अगर थोड़े समय में याद आए, तो सजदा-ए-सेहवा कर लेना चाहिए। अगर काफी समय बीत चुका हो, तो नमाज़ को दोबारा पढ़ लेना बेहतर है।

    सवाल 9: क्या सजदा-ए-सहवा केवल फर्ज़ नमाज़ के लिए है या नफ्ल और सुन्नत नमाज़ों में भी किया जा सकता है?
    जवाब: सजदा-ए-सहवा सभी प्रकार की नमाज़ों में किया जा सकता है, चाहे वह फर्ज़, वाजिब, सुन्नत या नफ्ल हो। हदीसों में नमाज़ के प्रकार की कोई विशेष शर्त नहीं है।

    सवाल 10: क्या सजदा-ए-सहवा के बिना नमाज़ मुकम्मल मानी जाएगी?
    जवाब: अगर सजदा-ए-सहवा वाजिब हो और कोई बिना इसे किए नमाज़ खत्म कर दे, तो उसकी नमाज़ मुकम्मल नहीं मानी जाएगी। सजदा-ए-सहवा करना अनिवार्य है जब नमाज़ में कोई भूल होती है, ताकि नमाज़ की कमी पूरी हो सके।

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