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Sajde ka Sunnat Tareeqa/सज्दे का सुन्नत तरीक़ा

Sajde ka Sunnat Tareeqa/सज्दे का सुन्नत तरीक़ा 

Sajde ka Sunnat Tareeqa/सज्दे का सुन्नत तरीक़ा
Sajde ka Sunnat Tareeqa/सज्दे का सुन्नत तरीक़ा 



Sajde ka Sunnat Tareeqa का जानना हर नमाज़ी के लिए बहुत जरूरी है! सज्दा नमाज़ का सबसे अहम और मुबारक हिस्सा है। सज्दा वह वक्त होता है जब बंदा अल्लाह के सामने झुकता है तो उस वक्त उसके बहुत करीब होता है। सज्दा इबादत का वो अमल है, जिसमें बंदा अपनी पेशानी, दोनों हाथ, दोनों घुटने और पांव के अंगूठों को जमीन पर रखकर अल्लाह की तस्बीह और हम्द करता है। यह नमाज़ का सबसे ख़ास और मुक़द्दस हिस्सा है, जिसकी तस्दीक क़ुरआन और हदीस में बार-बार की गई है।


    रसूलुल्लाह (ﷺ) का हुक्म है :"मुझे जिस तरह नमाज़ पढ़ते देखते हो तुम भी उसी तरह नमाज़ पढ़ो"
    (सही बुख़ारी : 631)
    हज़रत अबु हुरेरा रज़ि० रिवायत करते हैं कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया:“पांच नमाज़ें, उन गुनाहों को जो उन नमाज़ों के दर्मियान हुये, मिटा देती हैं। और (इसी तरह) एक जुम्अ: से दूसरे जुम्अः तक के गुनाहों को मिटा देता है, जबकि बड़े गुनाहों से बच रहा हो।"(मुस्लिम : 233)
    आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फरमाया:"आदमी और शिर्क के दर्मियान नमाज़ ही रुकावट है।"(मुस्लिम : 82)

     सज्दा की अहमियत

    सज्दा का मक़सद अल्लाह के सामने अपने आपको पूरी तरह से झुका देना और उसकी अज़मत और बड़ाई को मानना है। अल्लाह तआला ने क़ुरआन में सज्दा करने वाले को कामयाब करार दिया है, क्योंकि यह इबादत की सबसे ऊंची सूरत है।

     क़ुरआन में सज्दा का ज़िक्र

    अल्लाह तआला ने क़ुरआन मजीद में फरमाया:
    "فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ * وَاسْجُدْ وَاقْتَرِبْ"  
    (सूरह अल-अलक: 96:19)
     "अपने अज़ीम रब के नाम की तस्बीह करो और सज्दा करो और (उसके) करीब हो जाओ।"
    इस आयत से ये साफ़ ज़ाहिर होता है कि सज्दा करने से इंसान अल्लाह के करीब होता है। सज्दा वह हालत है जब बंदा अल्लाह से अपनी बंदगी का सबसे ज्यादा इज़हार करता है और अपनी विनम्रता दिखाता है।

    हदीस में सज्दा का बयान 

    हदीस में भी सज्दा की अहमियत को बार-बार बयान किया गया है। रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
    "أَقْرَبُ مَا يَكُونُ الْعَبْدُ مِنْ رَبِّهِ وَهُوَ سَاجِدٌ، فَأَكْثِرُوا الدُّعَاءَ"  
    (सहीह मुस्लिम)
     "बंदा अपने रब के सबसे करीब उस वक्त होता है जब वह सज्दे में होता है, लिहाज़ा इस हालत में ज्यादा दुआ करो।"

    इस हदीस से मालूम होता है कि सज्दा एक ऐसी हालत है जिसमें अल्लाह तआला अपने बंदे के सबसे करीब होता है। सज्दा में अल्लाह से दुआ करना, उससे मदद मांगना और उसकी बड़ाई बयान करना सबसे बेहतर माना गया है।

     सज्दा का सुन्नत तरीका

    रसूलुल्लाह ﷺ ने नमाज़ के हर हिस्से को सही तरीके से अदा करने का तरीका सिखाया है, जिसमें सज्दा का सुन्नत तरीका भी शामिल है। इसमें हर हिस्सा, जैसे कि हाथों, घुटनों, पांव, और सिर का सही इस्तेमाल करना शामिल है। सुन्नत के मुताबिक सजदा करने का सही तरीका ये है:

    तकबीर कहना: जब सजदे में जाने लगे तो "अल्लाहु अकबर" कहें।
    घुटनों को जमीन पर रखना: पहले दोनों हाथों को ज़मीन पर घुटनों से पहले रखें फ़िर घुटने रखें! इसमें उलमा का इख्तिलाफ़ है !
    दोनों हाथों को जमीन पर रखना: फिर दोनों हाथों को इस तरह जमीन पर रखें कि अंगुलियां क़िबले की तरफ हों।
    नाक और माथा जमीन पर रखना: दोनों नाक और माथे को जमीन पर टिकाएं। यह सुन्नत का हिस्सा है कि नाक और माथा दोनों एक साथ जमीन पर रखें।
    कोहनियों को ऊपर उठाना: कोहनियों को जमीन से ऊपर रखें और बाजुओं को बगलों से दूर रखें, ताकि बगलें खुली रहें।
    पैरों की अंगुलियों को मोड़ना: दोनों पैरों की अंगुलियों को इस तरह मोड़ें कि वे क़िबले की तरफ हों।
    सजदे में दुआ: सजदे में "सुब्हाना रब्बियल आला" (سبحان ربي الأعلى) तीन बार कहना सुन्नत है। इसका मतलब है: "मेरा रब, जो सबसे बुलंद है, उसकी तस्बीह करता हूँ।"

    पहले घुटने या पहले हाथ

    सजदे में जाते समय पहले हाथ रखना चाहिए या घुटने, इस पर उलेमा और फुक़हा में मतभेद है। इसके लिए दोनों के अपने-अपने तर्क और दलीलें हैं। आइए दोनों मतों की दलीलों को देखें:

    1. पहले घुटने रखना:

    कुछ उलेमा का मानना है कि सजदे में जाते समय पहले घुटने जमीन पर रखने चाहिए। इसकी दलील वे हज़रत वाइल बिन हजर (रजि.) की हदीस से लेते हैं:

    इस राय के समर्थन में वह हदीस पेश की जाती है जिसमें हज़रत वाइल बिन हजर (र.अ.) से मर्वी है कि: हज़रत वाएल इब्न हुजर (रजि.) बयान करते हैं कि उन्होंने देखा कि नबी (स.अ.व.) ने सजदे में जाते समय पहले अपने घुटने अपने हाथों से पहले जमीन पर रखे।
    (अबू दाऊद: 838,तिर्मिज़ी:268) (ये दोनों हदीसें ज़ईफ़ हैं)
    यह तरीका हनफी मसलक में अपनाया जाता है, और उनके अनुसार यह नबी (ﷺ) की सुन्नत के करीब है। घुटने पहले रखना अधिक विनम्रता का प्रतीक माना गया है।

    2. पहले हाथ रखना:

    दूसरे मत के अनुसार, सजदे में जाते समय पहले हाथ जमीन पर रखने चाहिए। इसकी दलीलें ये हैं:
    हदीस: हदीस: "हज़रत अबू-हुरैरा (रज़ि०) ने बयान किया कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फ़रमाया : जब तुम में से कोई सजदा करे तो ऐसे न बैठे जैसे कि ऊँट बैठता है, चाहिये कि अपने हाथ घुटनों से पहले रखे।"(अबू दाऊद, हदीस: 840,निसाई)

    इस हदीस से यह समझा जाता है कि ऊँट पहले अपने हाथ जमीन पर रखता है, इसलिए मुसलमान को इसके उलट पहले घुटने रखना चाहिए।और यह तर्क दिया जाता है कि नबी (स.अ.व.) का तरीका पहले घुटने रखना था, इसलिए इसी को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
    यह तरीका मालिकी और कुछ हनबली मसलकों में प्रचलित है, और इसे ऊँट की तरह बैठने से बचने के रूप में समझा जाता है।

    इन मतभेदों के आधार पर अधिकतर उलेमा का मानना है कि दोनों तरीके सुन्नत में शामिल हैं, और किसी भी तरीके को अपनाया जा सकता है।दोनों तरीकों के पक्ष में हदीसें मौजूद हैं, और उलेमा इस पर सहमत हैं कि जो तरीका अपनाया जाए, नीयत सुन्नत के अनुसार ही होनी चाहिए।

    सज्दा के दौरान शरीर के हिस्सों का इस्तेमाल

    रसूलुल्लाह ﷺ ने सज्दा के दौरान शरीर के किन हिस्सों को ज़मीन पर रखना है, यह बखूबी सिखाया है। हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:

    "أُمِرْتُ أَنْ أَسْجُدَ عَلَى سَبْعَةِ أَعْظُمٍ"  
    (सहीह बुखारी व सहीह मुस्लिम)
     "मुझे सात हड्डियों पर सज्दा करने का हुक्म दिया गया है।" 

    यह सात हड्डियां हैं:

    1. दोनों हाथों की हथेलियां
    2. दोनों घुटने
    3. दोनों पैर के अंगूठे 
    4. और पेशानी (जिसमें नाक भी शामिल है)
    यह सुन्नत तरीका है जिसमें इन सात हिस्सों को ज़मीन पर रखना ज़रूरी है।

     सज्दा में हाथों की पोजीशन

    सज्दा के दौरान हाथों और पैरों की पोजीशन का भी खास ख्याल रखना चाहिए। रसूलुल्लाह ﷺ ने हुक्म दिया कि सज्दा करते समय हाथों को फैला कर न रखा जाए, बल्कि उन्हें ज़मीन पर अच्छी तरह रखा जाए और बाजुओं को पहलुओं से दूर रखा जाए। हज़रत अबू हुरैरा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमाया:
    "وَإِذَا سَجَدَ فَرَّجَ بَيْنَ يَدَيْهِ حَتَّى تَبْدُوَ إِبْطَاهُ"  
    "जब तुम सज्दा करो, तो अपने हाथों को फैलाओ मत, बल्कि उन्हें ज़मीन पर अच्छी तरह से रखो और बाजुओं को पहलुओं से अलग रखो।"  
    (सहीह बुखारी)

    इस हदीस से मालूम होता है कि सज्दा करते वक्त हाथों को ज़मीन पर सही तरीके से रखना चाहिए और बाजुओं को पहलुओं से दूर रखना चाहिए। यह तरीका नमाज़ की विनम्रता और आदाब का प्रतीक है।

    सज्दा में पांव की पोजीशन

    सज्दा करते वक्त पांव के अंगूठों को ज़मीन पर टिकाना और पांवों को मिलाकर रखना सुन्नत है। हज़रत आयशा (रज़ि.) से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ सज्दा करते वक्त अपने पांवों को मिलाते थे और अंगूठों को ज़मीन पर रखते थे।  
    (सहीह मुस्लिम)
    इसके साथ ही पांवों को मिलाकर रखना चाहिए और दोनों पैर के अंगूठों को जमीन पर टिकाना चाहिए। यह पोज़ीशन सज्दा को सुन्नत के अनुसार अदा करने में मदद करती है।

    सज्दा में पढ़ी जाने वाली तस्बीह

    सज्दा करते वक्त रसूलुल्लाह ﷺ ने यह तस्बीह पढ़ने की तालीम दी है:

    "سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى"  
    (सहीह मुस्लिम)

     "अपने अज़ीम रब की पाकी बयान करता हूँ।"

    यह तस्बीह कम से कम तीन बार पढ़ी जाती है, लेकिन ज्यादा बार पढ़ना भी जायज़ है। इसका मकसद अल्लाह की बड़ाई और उसकी महानता का इज़हार करना है।

    सज्दा के बाद कुछ देर बैठना

    सज्दा के बाद सीधे खड़े होने से पहले बैठना (जिसे "जुलूस" कहते हैं) सुन्नत है। इस दौरान "अल्लाहुम्मा ग़फिरली" या दूसरी दुआएं पढ़ना भी मसनून (सुन्नत) है। रसूलुल्लाह ﷺ यह तरीका अपनाते थे और सज्दा के बीच में बैठने की यह प्रक्रिया नमाज़ की विनम्रता को बढ़ाती है।

     सज्दा का आदाब और विनम्रता

    सज्दा करते वक्त पूरी विनम्रता और अदब के साथ अल्लाह की इबादत की जाती है। यह वह हालत है जब इंसान पूरी तरह से झुकता है और अल्लाह से अपनी बंदगी का इज़हार करता है। सज्दा का मक्सद सिर्फ शारीरिक झुकाव नहीं, बल्कि दिल और रूह को भी अल्लाह के सामने झुकाना है। हदीस में आता है कि रसूलुल्लाह ﷺ सज्दा करते वक्त पूरे तवज्जोह के साथ अल्लाह की तरफ मुखातिब होते थे।

     Conclusion:

    सज्दा नमाज़ का एक अहम रुक्न है, जिसमें बंदा अल्लाह के सामने अपनी पूरी बंदगी और विनम्रता का इज़हार करता है। क़ुरआन और हदीस में सज्दा की अहमियत और उसका सही तरीका बार-बार बयान किया गया है। रसूलुल्लाह ﷺ ने हमें Sajde ka Sunnat Tareeqa सिखाया, जिसमें शरीर के सात अंगों को ज़मीन पर रखना, हाथों और पांवों की सही पोजीशन, और तस्बीह पढ़ने का तरीका शामिल है। सज्दा एक बंदे और उसके रब के बीच का सबसे करीबी पल है, और इसे पूरे अदब और ध्यान के साथ अदा करना चाहिए, ताकि अल्लाह की रहमत और बरकत हासिल की जा सके और अल्लाह के करीब होने का सबसे अच्छा जरिया बना सके।


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    سجدہ کرنے کا مسنون طریقہ 

    نماز اسلام کے پانچ بنیادی ارکان میں سے ایک ہے اور اس کے ہر رکن کی ادائیگی کا ایک مخصوص طریقہ ہے جو سنت نبوی ﷺ سے ثابت ہے۔ ان ارکان میں سجدہ نماز کا ایک اہم حصہ ہے، جو مسلمان کی مکمل عاجزی اور اللہ تعالیٰ کے سامنے انکساری کا اظہار کرتا ہے۔ سجدہ وہ لمحہ ہوتا ہے جب بندہ اللہ کے سب سے زیادہ قریب ہوتا ہے اور اپنی پیشانی زمین پر رکھ کر اللہ کی عظمت کا اعتراف کرتا ہے۔ اس مضمون میں ہم قرآن اور حدیث کی روشنی میں سجدے کے سنت طریقے پر تفصیل سے بات کریں گے۔

    قرآن مجید میں سجدہ کا ذکر:

     قرآن مجید میں سجدہ سے متعلق ذکر کیا گیا ہے۔ اللہ تعالیٰ نے متعدد مقامات پر سجدہ کرنے کا حکم دیا اور اس کو اپنی قربت کا ذریعہ قرار دیا ہے۔

    اللہ تعالیٰ قرآن مجید میں فرماتے ہیں:

    "فَسَبِّحْ بِاسْمِ رَبِّكَ الْعَظِيمِ * وَاسْجُدْ وَاقْتَرِبْ" (سورۃ العلق، 96:19)
    "اپنے عظیم رب کے نام کی تسبیح کرو اور سجدہ کرو اور (اللہ کے) قریب ہو جاؤ۔"
    اس آیت سے واضح ہوتا ہے کہ سجدہ اللہ کی قربت کا ایک ذریعہ ہے۔ جب مسلمان سجدہ کرتا ہے تو وہ اپنی عاجزی اور اللہ کی بڑائی کا اعتراف کرتا ہے۔

    حدیث میں سجدہ کی اہمیت :

    رسول اللہ ﷺ نے بھی سجدہ کی اہمیت کو واضح طور پر بیان کیا ہے۔ ایک حدیث میں رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:
    "أَقْرَبُ مَا يَكُونُ الْعَبْدُ مِنْ رَبِّهِ وَهُوَ سَاجِدٌ، فَأَكْثِرُوا الدُّعَاءَ" (صحیح مسلم)
    "بندہ اپنے رب کے سب سے زیادہ قریب اس وقت ہوتا ہے جب وہ سجدہ میں ہوتا ہے، پس اس حالت میں زیادہ دعا کرو۔"
    اس حدیث سے معلوم ہوتا ہے کہ سجدہ ایک ایسی حالت ہے جس میں اللہ تعالیٰ کے ساتھ بندے کا رشتہ اور قربت سب سے زیادہ مضبوط ہوتی ہے۔ اس دوران دعا کرنے کی تلقین کی گئی ہے کیونکہ یہ حالت اللہ کی رحمت اور قبولیت کا وقت ہے۔

    سجدہ کا سنت طریقہ:

    سجدہ کرنے کا صحیح طریقہ رسول اللہ ﷺ نے خود سکھایا اور یہ طریقہ احادیث میں واضح طور پر موجود ہے۔ سجدے کے دوران جسم کے مخصوص اعضا کا زمین پر لگنا اور دعا کا پڑھنا ایک اہم سنت ہے۔

    جسم کے سات اعضا کا زمین پر لگنا:

    رسول اللہ ﷺ نے فرمایا کہ سجدہ کرتے وقت جسم کے سات اعضا زمین پر لگنے چاہئیں۔ حضرت عبداللہ بن عباس (رضی اللہ عنہ) روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:

    "أُمِرْتُ أَنْ أَسْجُدَ عَلَى سَبْعَةِ أَعْظُمٍ" (صحیح بخاری و صحیح مسلم)

    "مجھے سات ہڈیوں پر سجدہ کرنے کا حکم دیا گیا ہے۔"
    یہ سات اعضا درج ذیل ہیں:

    1. پیشانی (جس میں ناک بھی شامل ہے)
    2. دونوں ہاتھوں کی ہتھیلیاں
    3. دونوں گھٹنے
    4. دونوں پاؤں کے انگوٹھے
    یہ سنت طریقہ ہے اور سجدہ کرتے وقت ان سات اعضا کا زمین پر لگنا ضروری ہے۔

    ہاتھوں اور پیروں کی پوزیشن:

    سجدہ کرتے وقت ہاتھوں اور پیروں کی پوزیشن بھی سنت کے مطابق ہونی چاہیے۔ رسول اللہ ﷺ نے ہاتھوں کو گھٹنوں سے آگے رکھنے اور ان کو زمین پر اچھی طرح رکھنے کا حکم دیا۔ حضرت ابوہریرہ (رضی اللہ عنہ) روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:

    "جب تم سجدہ کرو، تو اپنی کہنیوں کو پہلو سے دور رکھو اور ہاتھوں کو زمین پر اچھی طرح رکھو۔"(صحیح بخاری)
    اسی طرح پاؤں کے انگوٹھوں کو زمین پر ٹکانا اور پاؤں کو ملانا بھی سنت ہے۔

    سجدہ میں پڑھی جانے والی تسبیح

    سجدے کے دوران رسول اللہ ﷺ نے ایک مخصوص تسبیح پڑھنے کی تلقین کی ہے:

    "سُبْحَانَ رَبِّيَ الأَعْلَى" (صحیح مسلم)
    "پاک ہے میرا رب جو سب سے بلند ہے۔"
    یہ تسبیح کم از کم تین مرتبہ پڑھی جاتی ہے، لیکن زیادہ مرتبہ بھی پڑھنا جائز ہے۔ اس کا مقصد اللہ تعالیٰ کی عظمت اور پاکیزگی کا اعتراف کرنا ہے۔

    سجدے کے بعد بیٹھنے کا طریقہ

    سجدے کے بعد اٹھ کر بیٹھنا، جسے "جلسہ" کہا جاتا ہے، سنت ہے۔ اس دوران "اللَّهُمَّ اغْفِرْ لِي" یا کوئی اور دعا پڑھنا بھی سنت ہے۔

    سجدہ میں عاجزی اور انکساری

    سجدہ اللہ کے سامنے مکمل عاجزی اور انکساری کا اظہار ہے۔ سجدہ کرتے وقت دل اور جسم دونوں کو اللہ کے سامنے جھکانا ضروری ہے۔ یہ عبادت کا سب سے عاجزانہ اور اہم پہلو ہے، جہاں بندہ اپنی بے بسی اور اللہ کی عظمت کا اظہار کرتا ہے۔

    نتیجہ:

    سجدہ نماز کا ایک اہم اور عظیم حصہ ہے، جو بندے کو اللہ کے قریب لاتا ہے۔ قرآن اور حدیث میں سجدے کی اہمیت کو واضح طور پر بیان کیا گیا ہے اور اس کا سنت طریقہ ہمیں رسول اللہ ﷺ سے ملتا ہے۔ جسم کے سات اعضا کا زمین پر لگنا، تسبیح پڑھنا اور ہاتھوں و پیروں کی صحیح پوزیشن کو اپنانا سنت کے مطابق سجدہ کی ادائیگی کے لیے ضروری ہے۔ سجدے میں بندہ اپنے ربّ کے بہت قریب ہوتا ہے لہٰذا! سجدے
    میں کثرت سے دعائیں کیا کریں

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    FAQs:

    सवा: सजदह में बैठने का सुन्नत तरीक़ा क्या है?
    वाब: दोनों हाथों को जांघों या घुटनों पर रखें। हाथ की अंगुलियां न बहुत ज्यादा फैली हों और न बंद हों।दाहिने पैर को खड़ा रखें और उसकी अंगुलियां क़िबले की तरफ होनी चाहिए।बाएं पैर को मोड़कर उस पर बैठें। बाएं पैर का ऊपरी हिस्सा जमीन से लगा होना चाहिए और पंजा बाहर की तरफ हो।

    सवाल: दो सज्दों के दरम्यान में क्या पढ़ना चाहिए ?
    जवाब: दो सजदों के दरम्यान यानी जलसा में "رَبِّ اغْفِرْ لِي، رَبِّ اغْفِرْ لِي"("रब्बिग़फिर ली, रब्बिग़फिर ली") पढ़ना चाहिए!
    इसका मतलब है: "ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर दे, ऐ मेरे रब, मुझे माफ़ कर दे"।

    सवाल: क्या सजदे में कोहनियों को जमीन पर रखना चाहिए?
    जवाब: नहीं, मसनून तरीका यह है कि कोहनियों को जमीन से ऊपर रखा जाए। कोहनियों को ऊपर उठाकर बगलों को थोड़ा खुला रखना चाहिए।

    सवाल: सजदे में पैरों की उंगलियों का क्या मसनून तरीका है?
    जवाब: मसनून तरीका यह है कि सजदे में दोनों पैरों की उंगलियों को मोड़कर क़िबले की तरफ रखा जाए।

    सवाल: सजदे में क्या पढ़ा जाता है ?
    जवाब: सजदे में "सुब्हाना रब्बियल आला" (سبحان ربي الأعلى) तीन बार कहना सुन्नत है। इसका मतलब है: "मेरा रब, जो सबसे बुलंद है, उसकी तस्बीह करता हूँ।"

    सवाल: जल्साऐ-इस्तराहत क्या है ?
    जवाब: पहली या तीसरी रकात के बाद दूसरा सज्दा कर चुकने पर अगली रकअत के लिए उठने से पहले कुछ देर सकून से बैठने को जल्साऐ-इस्तराहत कहते हैं !

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