Breaking Tickers

Nabi ﷺ ka Ummi hona ek Moajjazah

Nabi ﷺ ka Ummi hona ek Moajjazah/ नबी ﷺ का उम्मी होना एक चमत्कार

Nabi ﷺ ka Ummi hona ek Moajjazah
Nabi ﷺ ka Ummi hona ek Moajjazah


हज़रत मोहम्मद ﷺ इस्लाम के आखिरी नबी और रसूल हैं, जिन्हें अल्लाह ने पूरी इंसानियत की हिदायत और रहनुमाई के लिए भेजा। आपकी जिंदगी और आपकी तालीमात (शिक्षाएँ) न सिर्फ़ मुसलमानों के लिए बल्कि पूरी इंसानियत के लिए एक बेहतरीन नमूना मानी जाती हैं।! आप ﷺ का एक नाम उम्मी था यानी आप पढ़ना और लिखना नहीं जानते थे ! Nabi ﷺ ka Ummi hona ek Moajjazah है यानी पढ़ना-लिखना न जानना , यह भी एक बहुत बड़ा चमत्कार है ! और यह अल्लाह की तरफ़ से एक हिक्मत के रूप में था !

    नबी करीम ﷺ पढ़ना लिखना नहीं जानते थे ज़हन से यह बात निकाल दें कि यह आप ﷺ की खामी थी! नहीं ! बिल्कुल नहीं ! बल्कि Nabi ﷺ ka Ummi hona ek Moajjazah है,एक बहुत बड़ा चमत्कार था ! अल्लाह ने क़ुरान में कई जगह उम्मी से मुतल्लिक बयान किया है और अल्लाह ने इसकी वजह भी बताई है!

    नबी ﷺ का उम्मी होना, यानी अशिक्षित होना,उनकी नबुव्वत के दिव्य चमत्कारों में से एक है, जो यह साबित करता है कि उनका ज्ञान और मार्गदर्शन केवल अल्लाह ही की ओर से था और अल्लाह की तरफ से दी गई हिदायतों की प्रामाणिकता को और मजबूत करता है। जिसका बयान क़ुरान में यूं हुआ है
    " (ऐ नबी) तुम इससे पहले कोई किताब नहीं पढ़ते थे और न अपने हाथ से लिखते थे, अगर ऐसा होता तो बातिल-परस्त (असत्यवादी) लोग शक में पड़ सकते थे।(अल अंकबूत: 48)

    आप ﷺ के उम्मी होने की हिक्मत

    नबी करीम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को अल्लाह तआला ने "उम्मी" (अशिक्षित) बनाया, यानी आप पढ़ते-लिखते नहीं थे। इस आयत में इसकी हिकमत बयान की गई है कि उम्मी होने के बावजूद जब आपकी मुबारक ज़ुबान से क़ुरआन पाक उतरा, तो यह खुद एक बहुत बड़ा मोज़िज़ा (चमत्कार) था। वह शख्स जिसने कभी पढ़ना-लिखना नहीं सीखा, वह इतना फसीह (शुद्ध) और बलीग़ (प्रभावी) कलाम पेश कर रहा है, जिसकी मिसाल देने में पूरा अरब असमर्थ हो गया। क़ुरआन पाक फरमा रहा है कि अगर आप पढ़े-लिखे होते, तो आपके विरोधियों को यह कहने का मौका मिल सकता था कि आपने कहीं से पढ़कर ये बातें इकट्ठी की हैं। हालांकि, यह ऐतराज़ (आरोप) भी बेमानी होता, लेकिन अब तो यह कहने का कोई बहाना भी नहीं बचा।

    Read This: Be namazi ka Anjam

    Note

    नबी ﷺ का उम्मी होना उनके द्वारा लाए गए संदेश की प्रामाणिकता को बढ़ाता है। इस्लामी शिक्षाओं में यह माना जाता है कि अगर नबी ﷺ पढ़ना-लिखना जानते, तो लोग यह दावा कर सकते थे कि उन्होंने क़ुरआन को किसी अन्य धार्मिक ग्रंथ से सीखा या उसे खुद लिखा है। लेकिन उनकी अशिक्षा ने इस प्रकार के सभी संदेहों को समाप्त कर दिया।कुरआन जब नाज़िल हुआ तो उस वक्त बड़े बड़े शोअ़रा और जो पढ़े लिखे इंसान थे वो परेशान हो गए, हैरत ज़दह हो गए की जो इंसान पढ़ना लिखना नहीं जानता है भला वो कैसे ये कलाम पढ़ रहा है ?वह इतना फसीह (शुद्ध) और बलीग़ (प्रभावी) कलाम पेश कर रहा है? कहां से ये कलाम ला रहा है ? यह एक मोअज्जह से कम नहीं था ! अगर आप ﷺ पढ़ें लिखे होते तो इन्हें जरूर ये शक होता कि ये शख़्स खुद ये कलाम बना रहा है यह कलाम अल्लाह की तरफ़ से नहीं है ! लेकिन अल्लाह ने उनका ये ऐतराज़ भी दूर कर दिया कि अब वो कोई ऐतराज़ कर सके. ये है अल्लाह की हिक्मत . सुब्हान अल्लाह!!!!!!!

    *•┈━━━━•❄︎•❄︎•━━━━┈•*


    अब आईए हम क़ुरआन, हदीस और फुक़हा के अक़वाल की रौशनी में इस के मुतल्लिक़ पढ़ें , जानें और समझें !

    लफ़्ज़ उम्मी का मतलब:

    नबी मुकर्रम (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सिफ़ाती नामों में से एक नाम "उम्मी" भी है।
    यह एक अरबी शब्द है, तो सबसे पहले अरबी भाषा में इसका अर्थ देखते हैं:
    "उम्मी" शब्द "उम्म" से निकला है, जिसका एक अर्थ है "मूल" या "जड़"।
    "उम्मी" का एक और अर्थ है, फितरत (स्वभाव) पर बना रहे, यानी जैसा पैदा हुआ वैसा ही रहे, अर्थात जिसने पढ़ना-लिखना न सीखा हो।
    "उम्मी" का एक अर्थ "उम्मुल-क़ुरा" है, जो कि मक्का मुअज़्ज़मा (पवित्र मक्का) का एक नाम है।
    "उम्मी" का एक और अर्थ है, जो लिखना-पढ़ना न जानता हो। (क़ामूस, ताज अल-उरूस, सिहाह आदि)

    क़ुरआन में उम्मी का बयान

    क़ुरआन के विभिन्न स्थानों पर नबी ﷺ को "उम्मी" कहा गया है। "उम्मी" शब्द अरबी भाषा में उस व्यक्ति को कहा जाता है जो पढ़ना-लिखना न जानता हो। यह शब्द न केवल उनकी मानवता और साधारणता को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि नबी ﷺ का ज्ञान दिव्य रूप से प्रदत्त था ! क़ुरआन की आयत इस प्रकार है:
    "जो लोग उस रसूल (मुहम्मद ﷺ) की पैरवी करते हैं, जो उम्मी नबी हैं, जिनका ज़िक्र वे लोग अपनी किताबों में लिखित पाते हैं, (वह रसूल) उन्हें नेकी का हुक्म देते हैं और बुराई से रोकते हैं।"(सूरह अल-आराफ़ :157)
    यहां "उम्मी" शब्द स्पष्ट रूप से यह दर्शाता है कि नबी ﷺ पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे! यह आयत बताती है कि पैगंबर ﷺ उम्मी थे, जो क़ुरआन की दिव्यता और उनके नबी होने का प्रमाण है। यह दिखाता है कि उन्होंने किसी भी किताब को पढ़कर या लिखकर ज्ञान प्राप्त नहीं किया था, बल्कि उन्हें अल्लाह की ओर से ज्ञान प्राप्त हुआ।

    इस आयत में "उम्मी" शब्द विशेष रूप से प्रयोग किया गया है, जो यह दर्शाता है कि नबी मुहम्मद ﷺ पढ़े-लिखे नहीं थे। उनके अशिक्षित होने के बावजूद, उन्होंने अल्लाह का संदेश पूरी मानवता तक बिना किसी त्रुटि के पहुँचाया। यह उनके नबी होने का चमत्कार है कि बिना औपचारिक शिक्षा के उन्होंने दुनिया के सबसे महान धार्मिक ग्रंथ, क़ुरआन, को पूरी सटीकता के साथ पेश किया।
    "कह दो, 'मैंने अपनी आस्था को अल्लाह के सामने पूरी तरह समर्पित किया है और जो लोग किताब नहीं जानते (उम्मी हैं), उन्हें भी।'"सूरह अल-इम्रान (3:20)
    यहाँ पर "किताब नहीं जानते" का अर्थ उन लोगों से है जो पढ़ना-लिखना नहीं जानते। इस आयत में भी नबी ﷺ की उम्मी स्थिति को स्पष्ट किया गया है।

    सूरह अल-इंक़ितार में भी यह उल्लेख मिलता है:
    "और आप उससे पहले न कोई किताब पढ़ते थे और न ही उसे अपने हाथ से लिखते थे, ऐसा होता तो झुठलाने वाले संदेह करते।"सूरह अल-इंक़ितार (29:48)
    यह आयत स्पष्ट करती है कि नबी ﷺ ने पहले कभी पढ़ा या लिखा नहीं था, और यदि उन्होंने किया होता, तो लोग उन पर झूठ का आरोप लगाते। यह आयत नबी ﷺ के पढ़ने-लिखने से अनभिज्ञ होने की सबसे स्पष्ट दलीलों में से एक है।

    Read This: Nabi ﷺ par Darood padhna

    हदीस में उम्मी से मुतल्लिक बयान

    हदीस के माध्यम से भी यह सिद्ध होता है कि नबी ﷺ पढ़ना और लिखना नहीं जानते थे। एक महत्वपूर्ण हदीस इस संदर्भ में बुखारी और मुस्लिम की पुस्तकों में मिलती है, जो उस समय की है जब जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) पहली बार नबी ﷺ के पास वह्यी (प्रकाशना) लेकर आए थे।

    सहीह बुखारी की हदीस में है कि 
    "जब हज़रत जिब्रईल ने कहा 'इक़रा' (पढ़ो), तो नबी ﷺ ने जवाब दिया: 'मैं पढ़ नहीं सकता।' फिर हज़रत जिब्रईल ने दुबारा कहा: 'इक़रा', और नबी ﷺ ने फिर वही जवाब दिया।"

    यह घटना उस समय की है जब नबी ﷺ को पहली वह्यी दी जा रही थी। इस हदीस से साफ़ तौर पर पता चलता है कि नबी ﷺ पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे। इसके बाद जिब्रईल (अलैहिस्सलाम) ने उन्हें फिर से "इक़रा" कहकर पढ़ने का हुक्म दिया, और नबी ﷺ ने वही उत्तर दिया। इस वाकये से साबित होता है कि नबी ﷺ को इल्म अल्लाह की ओर से दिया गया था, न कि किसी शैक्षिक ज्ञान का नतीजा था।
    इस प्रकार, क़ुरआन और हदीस से यह साबित होता है कि नबी ﷺ पढ़ना लिखना नहीं जानते थे, और यह उनकी नबुव्वत का एक चमत्कारिक पहलू है, क्योंकि उन्होंने बिना किसी शिक्षा के अल्लाह के संदेश को सही रूप में प्रस्तुत किया।

    Read This: Eid Milad un Nabi ﷺ ki Haqeeqat

    फुक़हा के अक्वाल 

    इस्लामी फुकहा और विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि नबी मुहम्मद ﷺ का पढ़ना-लिखना न जानना उनकी नबुव्वत के चमत्कारों में से एक है। उनके इस विशेष गुण ने साबित कर दिया कि क़ुरआन, जो इतनी उच्च स्तरीय भाषा और गहन ज्ञान का स्रोत है, केवल अल्लाह की ओर से ही हो सकता है, न कि किसी मानव द्वारा लिखा गया। इस पर विचार करते हुए, फुकहा ने निम्नलिखित बातें कही हैं:

    इमाम नववी कहते हैं:

    इमाम अल-नववी का कहना है कि नबी ﷺ के पढ़ना-लिखना न जानने से यह सिद्ध होता है कि उन्होंने किसी अन्य स्रोत से जानकारी प्राप्त नहीं की, बल्कि जो कुछ उन्होंने बताया, वह सीधे अल्लाह से मिला हुआ ज्ञान था।यदि वह पढ़े-लिखे होते, तो लोग उनके ज्ञान को सांसारिक ज्ञान समझ सकते थे।"इमाम नववी, शरह सह़ीह़ मुस्लिम, किताब-उल-ईमान

    इमाम ग़ज़ाली ने भी इसी बात पर ज़ोर दिया है:

    इमाम अल-ग़ज़ाली, एक प्रसिद्ध इस्लामी विद्वान, अपने लेखों में नबी ﷺ की अशिक्षित स्थिति पर बल देते हैं। वे कहते हैं कि नबी ﷺ का उम्मी होना खुद एक चमत्कार है, क्योंकि उनकी शिक्षाएं और क़ुरआन की दिव्यता इस बात का प्रमाण हैं कि यह ज्ञान अल्लाह की तरफ से आया है न कि किसी मानवीय साधन से।इमाम अल-ग़ज़ाली, इह्या उलूम अल-दीन, किताब-उल-इल्म

    इमाम इब्न कसीर:

    इब्न कसीर ने अपनी तफ़सीर में इस बात पर जोर दिया है कि नबी मुहम्मद ﷺ का उम्मी होना एक स्पष्ट प्रमाण है कि क़ुरआन मानव-निर्मित नहीं है। यह अल्लाह का एक ऐसा संदेश है, जो एक ऐसे व्यक्ति के माध्यम से आया जिसने न तो कोई पुस्तक पढ़ी थी और न ही लिखना जानता था!  इब्न कसीर, तफ़सीर इब्न कसीर, सूरह अल-आराफ़ (7:157)

    नबी ﷺ का उम्मी होना: चमत्कार और तर्क

    नबी ﷺ का उम्मी होना इस्लाम के सबसे बड़े चमत्कारों में से एक माना जाता है। उनका यह विशेष गुण इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने जो ज्ञान और शिक्षा दी, वह अल्लाह की ओर से थी। यदि नबी ﷺ पढ़े-लिखे होते, तो इस बात की गुंजाइश रहती कि लोग उन पर आरोप लगाते कि उन्होंने किसी किताब या शिक्षक से यह ज्ञान प्राप्त किया। लेकिन उनके उम्मी होने के कारण यह संदेह समाप्त हो जाता है।

    उस समय के मक्का के समाज में लिखने और पढ़ने का ज्ञान बहुत सीमित था। नबी ﷺ ने जो संदेश प्रस्तुत किया, उसकी गहराई, ज्ञान और प्रेरणा किसी मानव की क्षमता से परे थी। यह बात स्वयं मक्का के काफ़िर भी मानते थे कि नबी ﷺ ने किसी भी अन्य स्रोत से शिक्षा नहीं प्राप्त की थी।

    इसके अलावा, इस्लामिक विद्वानों का मानना है कि नबी ﷺ का उम्मी होना, अल्लाह के संदेश को समझने और उसे सच्चाई के साथ प्रचारित करने की उनकी क्षमता पर कोई असर नहीं डालता था। इसके विपरीत, यह उनके ईश्वर प्रदत्त ज्ञान की सत्यता और गहराई का सबूत है।

    Read This: Eid Milad kaise manayen

    Conclusion:

    क़ुरआन, हदीस और फुक़हा के विचारों के आधार पर यह स्पष्ट है कि हज़रत मुहम्मद ﷺ पढ़ना-लिखना नहीं जानते थे। उनका उम्मी होना इस बात का प्रमाण है कि उन्होंने जो कुछ भी सिखाया, वह केवल अल्लाह की ओर से था और किसी मानव शिक्षा का परिणाम नहीं था। इस्लामिक इतिहास और विद्वानों ने इस विशेषता को नबी ﷺ की नबुव्वत के एक प्रमुख प्रमाण के रूप में देखा है, जो उनके संदेश की सच्चाई और क़ुरआन की दिव्यता को स्थापित करता है।
    इसलिए, नबी ﷺ का अशिक्षित होना इस्लामी शिक्षाओं में एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण पहलू माना जाता है, जो उनके जीवन और नबुव्वत के चमत्कारी पहलुओं में से एक है।

    *•┈━━━━•❄︎•❄︎•━━━━┈•*

     نبی کریم ﷺ کا اُمی ہونا(پڑھنا لکھنا نہ جاننا) ایک معجزہ 

    نبی کریم ﷺ کا  "امی" ہونا یعنی پڑھنا اور لکھنا نہ جاننا ایک اہم موضوع ہے جس کا تذکرہ قرآن اور احادیث میں واضح طور پر کیا گیا ہے۔ نبی کریم ﷺ کا پڑھنا لکھنا نہ جاننا ایک الہی حکمت کے تحت تھا۔اس سے یہ بھی ظاہر ہوتا ہے کہ اللہ تعالیٰ نے اپنے پیغمبروں کو معجزاتی علم سے نوازا تھا .آپ ﷺ کی تعلیمات اور کردار ایک معجزاتی حیثیت رکھتے ہیں، اور اس میں آپ ﷺ کا اُمی ہونا یعنی ناخواندہ ہونا ایک اہم پہلو ہے۔آپ ﷺ نے اللہ کی وحی کو بغیر لکھنے پڑھنے کے باوجود دنیا تک پہنچایا۔اس موضوع کو سمجھنے کے لیے ضروری ہے کہ ہم قرآن مجید اور احادیث کی تعلیمات کو سامنے رکھیں۔

    "اُمی" کا مطلب 

    اُمی" کا مطلب ہے "ان پڑھ" یعنی ایسا شخص جس نے لکھنا پڑھنا نہ سیکھا ہو یا باضابطہ تعلیم حاصل نہ کی ہو۔ لفظی طور پر، "اُمی" کا ترجمہ ہے "ماں کی طرف منسوب" (عربی میں "اُم" سے ماخوذ)، یعنی ایسا فرد جو اپنی پیدائش کی حالت میں ہی ہے، جیسے ماں نے اسے جنم دیا تھا،
    نبی مکرم (صلی اللہ علیہ وسلم) کے صفاتی ناموں میں سے ایک نام "اُمی" بھی ہے۔ یہ ایک عربی لفظ ہے، "اُمی" لفظ "اُم" سے نکلا ہے، جس کا ایک معنی ہے "اصل" یا "جڑ"۔ "اُمی" کا ایک اور معنی ہے، فطرت (مزاج) پر قائم رہنا، یعنی جیسا پیدا ہوا ویسا ہی رہے، یعنی جس نے پڑھنا لکھنا نہ سیکھا ہو۔ "اُمی" کا ایک معنی "اُمّ القریٰ" ہے، جو کہ مکہ معظمہ (مقدس مکہ) کا ایک نام ہے۔ "اُمی" کا ایک اور معنی ہے، جو لکھنا پڑھنا نہ جانتا ہو۔ (قاموس، تاج العروس، صحاح وغیرہ)

    نبی کریم ﷺ کا "امی" ہونا

    نبی کریم صلی اللہ علیہ وسلم پڑھنا لکھنا نہیں جانتے تھے، ذہن سے یہ بات نکال دیں کہ یہ آپ ﷺ کی کوئی کمی تھی، بلکہ نبی ﷺ کا اُمی ہونا ایک معجزہ تھا، ایک بہت بڑا معجزہ! جس کا ذکر اللہ نے قرآن میں کئی مقامات پر کیا ہے اور اللہ نے اس کی وجہ بھی بتائی ہے۔
    نبی ﷺ کا اُمی ہونا، یعنی ناخواندہ ہونا، آپ کی نبوت کے الٰہی معجزات میں سے ایک ہے، جو یہ ثابت کرتا ہے کہ آپ کا علم اور رہنمائی صرف اللہ ہی کی جانب سے تھی اور اللہ کی طرف سے دی گئی ہدایات کی حقانیت کو اور مضبوط کرتی ہے۔ جس کا ذکر قرآن میں یوں کیا گیا ہے۔
    قرآن مجید میں کئی جگہوں پر نبی کریم ﷺ کا "امی" یعنی لکھنا پڑھنا نہ جاننے کا ذکر ملتا ہے۔ لفظ "امی" بنیادی طور پر اس شخص کے لیے استعمال ہوتا ہے جو رسمی تعلیم حاصل نہ کرسکا ہو یا جو پڑھنا لکھنا نہیں جانتا۔ قرآن مجید میں ارشاد ہوتا ہے:"هُوَ الَّذِي بَعَثَ فِي الْأُمِّيِّينَ رَسُولًا مِنهُم"(سورة الجمعة: 2)
    ترجمہ: "وہی ہے جس نے امیوں میں انہی میں سے ایک رسول بھیجا۔"

    یہ آیت اس بات کی تصدیق کرتی ہے کہ نبی کریم ﷺ ایک ایسے معاشرے سے آئے تھے جہاں رسمی تعلیم کا رواج کم تھا اور آپ ﷺ خود بھی کسی انسانی استاد کے تحت تعلیم یافتہ نہیں تھے۔

    وحی کی ابتدا اور نبی کریم ﷺ کا رد عمل

    جب حضرت جبرائیل علیہ السلام پہلی مرتبہ نبی کریم ﷺ پر وحی لے کر آئے تو آپ ﷺ کو پڑھنے کا حکم دیا۔ صحیح بخاری میں یہ واقعہ یوں مذکور ہے:
    حضرت جبرائیل علیہ السلام نے کہا: "اقرأ"نبی کریم ﷺ نے فرمایا: "ما أنا بقارئ"
    ترجمہ: "میں پڑھنے والا نہیں ہوں۔"(صحیح بخاری، کتاب بدء الوحی)
    یہ واقعہ اس بات کا ثبوت ہے کہ نبی کریم ﷺ نے زندگی کے ابتدائی حصے میں کسی سے پڑھنا سیکھا نہ تھا اور آپ ﷺ کا جواب "ما أنا بقارئ" پڑھنے کی عدم مہارت کی طرف اشارہ کرتا ہے۔

    Read This: Subah O shaam ke azkaar

    قرآن مجید کا اعجاز

    نبی کریم ﷺ کا پڑھنا لکھنا نہ جاننا قرآن کے معجزاتی پہلوؤں میں سے ایک ہے۔ اللہ تعالیٰ نے اپنے رسول ﷺ کو ایک ایسی کتاب عطا کی جو ہر لحاظ سے جامع، فصیح اور بلیغ ہے، حالانکہ آپ ﷺ نے کبھی کسی انسان سے علم حاصل نہیں کیا۔ اللہ تعالیٰ نے قرآن میں اس پہلو کی وضاحت کرتے ہوئے فرمایا:

    • "وَمَا كُنتَ تَتْلُوا مِن قَبْلِهِ مِن كِتَابٍ وَلَا تَخُطُّهُ بِيَمِينِكَ إِذًا لَّارْتَابَ الْمُبْطِلُونَ"(سورة العنكبوت: 48)
    • ترجمہ: "اور تم اس سے پہلے کوئی کتاب نہیں پڑھتے تھے اور نہ ہی اپنے ہاتھ سے کچھ لکھتے تھے، ورنہ باطل پرست شبہ میں پڑ جاتے۔"
    • آپ نے رسمی تعلیم کسی انسان سے حاصل نہیں کی تھی، اور آپ کو علم اللہ تعالیٰ نے وحی کے ذریعے دیا۔ اس کا ذکر قرآن میں بھی ملتا ہے:
    • یہ آیت نبی ﷺ کے "امی" ہونے کی طرف اشارہ کرتی ہے، جس کا مطلب یہ ہے کہ آپ نے کتابی تعلیم نہیں لی تھی، بلکہ آپ کا علم اللہ تعالیٰ کی طرف سے وحی کے ذریعے آیا۔
    • یہ آیت واضح کرتی ہے کہ اگر نبی کریم ﷺ لکھنا پڑھنا جانتے ہوتے، تو لوگ آپ ﷺ کے معجزے پر شبہ کرتے اور کہتے کہ یہ کتاب آپ نے خود لکھی ہے۔

    قرآن کی روشنی میں

    قرآن مجید میں اللہ تعالیٰ نے نبی ﷺ کے اُمی ہونے کا تذکرہ واضح طور پر کیا ہے۔ سب سے زیادہ معروف آیت جو اس بات کی گواہی دیتی ہے، وہ سورۃ الاعراف کی یہ آیت ہے:

    • "الَّذِينَ يَتَّبِعُونَ الرَّسُولَ النَّبِيَّ الْأُمِّيَّ" ترجمہ: وہ لوگ جو رسول، نبی اُمی کی پیروی کرتے ہیں۔(الاعراف: 157)
    • اس آیت میں لفظ "اُمّی" کا مطلب وہ شخص ہے جو لکھنا پڑھنا نہیں جانتا۔ نبی کریم ﷺ کا اُمی ہونا اس بات کی دلیل ہے کہ قرآنِ مجید کا نزول اللہ تعالیٰ کی طرف سے ایک معجزہ تھا، اور آپ ﷺ کا علم کسی انسانی تعلیم یا مطالعے کا نتیجہ نہیں تھا، بلکہ خالصتاً وحی پر مبنی تھا۔
    اسی طرح سورۃ العنکبوت میں اللہ تعالیٰ فرماتے ہیں:
    • "وَمَا كُنتَ تَتْلُوا۟ مِن قَبْلِهِۦ مِن كِتَـٰبٍۢ وَلَا تَخُطُّهُۥ بِيَمِينِكَ ۖ إِذًۭا لَّٱرْتَابَ ٱلْمُبْطِلُونَ" (العنکبوت: 48)
    • ترجمہ: اور آپ ﷺ اس سے پہلے کوئی کتاب نہیں پڑھتے تھے اور نہ اپنے ہاتھ سے لکھتے تھے، اگر ایسا ہوتا تو باطل پرست شبہ کرتے۔
    • یہ آیت بھی اس بات کو واضح کرتی ہے کہ نبی ﷺ کا پڑھنا لکھنا نہ جاننا ایک حقیقت ہے اور اس میں اللہ کی حکمت شامل ہے تاکہ کوئی شک و شبہ پیدا نہ ہو۔
    • هُوَ الَّذِي بَعَثَ فِي الْأُمِّيِّينَ رَسُولًا مِنْهُمْ (ترجمہ: وہی ہے جس نے اُمیوں میں انہی میں سے ایک رسول بھیجا۔)سورۃ الجمعہ، آیت 2
    • یہاں اللہ تعالیٰ نے نبی ﷺ کو "اُمیوں" یعنی ایک ایسی قوم میں رسول بنا کر بھیجا جو علم و کتابت سے ناواقف تھی۔

    حدیث کی روشنی میں نبی ﷺ کا امی ہونا

    احادیث میں بھی نبی کریم ﷺ کے امی ہونے کا ذکر ملتا ہے۔ ایک حدیث میں سیدنا عبداللہ بن عمر رضی اللہ عنہما روایت کرتے ہیں کہ رسول اللہ ﷺ نے فرمایا:
    "إنَّا أُمَّةٌ أُمِّيَّةٌ، لا نَكْتُبُ، ولا نَحْسُبُ"(صحیح بخاری، حدیث نمبر 3638)
    ترجمہ: "ہم ایک ان پڑھ امت ہیں، ہم نہ لکھتے ہیں اور نہ حساب کتاب کرتے ہیں۔"
    یہ حدیث نہ صرف نبی ﷺ کے امی ہونے کا ذکر کرتی ہے، بلکہ آپ ﷺ کی امت کے عمومی حالت کی بھی عکاسی کرتی ہے کہ وہ بھی رسمی تعلیم سے محروم تھے۔ وہ لکھنا پڑھنا نہیں جانتے تھے، لیکن اس کے باوجود اللہ نے آپ ﷺ کو کامل علم عطا فرمایا۔
    ایک اور روایت جو اس حوالے سے پیش کی جاتی ہے وہ یہ ہے:
    • حضرت عائشہؓ سے روایت ہے کہ رسول اللہ ﷺ نے صلح حدیبیہ کے موقع پر معاہدہ لکھوایا۔ جب معاہدے کی شرائط لکھتے وقت "محمد رسول اللہ" لکھا گیا، تو کفارِ مکہ نے اس پر اعتراض کیا کہ ہم آپ کو رسول اللہ نہیں مانتے، اس پر نبی کریم ﷺ نے فرمایا کہ "محمد بن عبداللہ" لکھ دو۔ آپ ﷺ نے حضرت علیؓ سے کہا کہ یہ الفاظ مٹا دیں، لیکن حضرت علیؓ نے اس احترام کی وجہ سے یہ کرنے سے انکار کر دیا، تو رسول اللہ ﷺ نے خود اس جگہ کی نشاندہی کی اور اسے مٹا دیا۔
    • یہ واقعہ اس بات کی مزید دلیل ہے کہ نبی ﷺ خود لکھنا نہیں جانتے تھے، لیکن آپ کو تحریر کی جگہ اور الفاظ کی شناخت کا علم اللہ کی طرف سے حاصل تھا

    حکمت:

    نبی کریم ﷺ کا اُمی ہونا ایک اہم الہی حکمت کا حصہ تھا۔ اس سے یہ ثابت ہوتا ہے کہ آپ ﷺ نے کسی دنیاوی استاد یا کتاب سے تعلیم حاصل نہیں کی، بلکہ آپ ﷺ کا علم خالصتاً اللہ تعالیٰ کی طرف سے عطا کردہ وحی پر مبنی تھا۔ اس سے قرآن مجید کی سچائی اور آپ ﷺ کی نبوت کا اعجاز اور زیادہ واضح ہو جاتا ہے۔

    علم کا مقام:

     نبی کریم ﷺ کی "امی" ہونے کے باوجود آپ نے اپنی تعلیمات اور کردار کے ذریعے علم و حکمت کی ایک عظیم مثال قائم کی۔ آپ نے اپنی زندگی میں علم کی اہمیت کو نمایاں کیا اور آپ کی تعلیمات آج بھی رہنمائی فراہم کرتی ہیں۔

    نتیجہ:

    نبی کریم ﷺ کا پڑھنا لکھنا نہ جاننا ایک الٰہی حکمت کے تحت تھا تاکہ قرآن کا معجزہ اور زیادہ واضح ہو۔آپ ﷺ کی تعلیمات اور علم خالصتاً الہامی اور معجزاتی تھے۔ آپ ﷺ کو اللہ تعالیٰ نے بغیر کسی انسانی تعلیم کے علم عطا کیا اور آپ ﷺ پر نازل ہونے والی وحی ایک عظیم معجزہ بن گئی۔ قرآن اور احادیث کی روشنی میں یہ بات ثابت ہوتی ہے کہ نبی کریم ﷺ امی تھے، یعنی لکھنا پڑھنا نہیں جانتے تھے، اور یہی پہلو آپ ﷺ کے پیغمبرانہ مشن کا ایک اہم حصہ ہے۔اور آپ ﷺ کی نبوت کی سچائی کو ثابت کرتا ہے بلکہ اس سے یہ بھی ظاہر ہوتا ہے کہ قرآن مجید انسان کی تخلیق نہیں بلکہ اللہ تعالیٰ کا کلام ہے۔


    *•┈━━━━•❄︎•❄︎•━━━━┈•*

                  👍🏽      ✍🏻     📩        📤     🔔
              Like comment save share subscribe 



    FAQs:

    सवाल: उम्मी होने का क्या मतलब है?
    जवाब: उम्मी होने का मतलब है कि किसी व्यक्ति ने औपचारिक शिक्षा या लिखाई-पढ़ाई नहीं की है। पैग़ंबर मोहम्मद ﷺ का उम्मी होना इस बात की दलील है कि उनका ज्ञान और इल्म अल्लाह की तरफ से था, किसी इंसानी पढ़ाई या शिक्षा का नतीजा नहीं था।

    सवाल 1: नबी ﷺ को उम्मी क्यों कहा जाता है?
    जवाब: नबी ﷺ को उम्मी इसलिए कहा जाता है क्योंकि वे पढ़े-लिखे नहीं थे। उम्मी का मतलब है 'जो पढ़-लिख न सके'। इसका मकसद यह दिखाना था कि अल्लाह ने अपनी किताब (क़ुरआन) ऐसे इंसान पर उतारी, जिसने किसी शिक्षक से पढ़ाई नहीं की थी। फिर भी, उन्होंने एक ऐसी किताब पेश की जो भाषा, ज्ञान और हिकमत में बेजोड़ थी।

    सवाल 2: उम्मी होने का नबी ﷺ के पैगंबर होने से क्या ताल्लुक़ है?
    जवाब: उम्मी होने के बावजूद नबी ﷺ ने क़ुरआन जैसी महान किताब को लोगों के सामने पेश किया, जो उनके पैगंबर होने की एक अहम दलील है। पढ़ा-लिखा न होने के बावजूद उन्होंने जो ज्ञान दिया, वह अल्लाह की तरफ़ से एक मोजिज़ा (चमत्कार) समझा जाता है।

    सवाल 3: क्या उम्मी होने का मतलब ये है कि नबी ﷺ को ज्ञान की कमी थी?
    जवाब: नहीं। उम्मी होने का यह मतलब नहीं है कि उनमें ज्ञान की कमी थी। उनका ज्ञान अल्लाह की तरफ से सीधे तौर पर हासिल था। उन्होंने अल्लाह की रहनुमाई में ऐसे इल्मी और दीन के उसूल दिए जो मानवता के लिए हमेशा के लिए मिसाल बन गए।

    सवाल 4: उम्मी होने का क़ुरआन की सच्चाई से क्या संबंध है?
    जवाब: उम्मी होने की वजह से यह साबित होता है कि क़ुरआन अल्लाह का कलाम है और इंसानी शब्दों का संकलन नहीं। अगर नबी ﷺ पढ़े-लिखे होते तो यह शक हो सकता था कि क़ुरआन उनके इल्म या तजुर्बे का नतीजा है। लेकिन उनके उम्मी होने से यह साफ हो जाता है कि क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से ही उतारा गया है।

    सवाल 5: उम्मी होने की हिकमत क्या है?
    जवाब: उम्मी होने की हिकमत यह है कि इसमें अल्लाह का एक खास मोजिज़ा (चमत्कार) है। इससे साबित होता है कि कुरआन नबी ﷺ की अपनी तालीम का नतीजा नहीं, बल्कि अल्लाह की भेजी हुई किताब है।

    सवाल 6: उम्मी होने का ज़िक्र कुरआन में कहां हुआ है?
    जवाब: उम्मी होने का ज़िक्र कुरआन की कई आयतों में हुआ है, जैसे कि सुरह अल-आराफ (7:157) और सुरह अल-जुमुआ (62:2), जिसमें नबी ﷺ को उम्मी नबी कहा गया है।


    Post a Comment

    0 Comments