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Tauheed Aur Shirk/ तौहीद और शिर्क ( part:3)

Tauheed Aur Shirk / तौहीद और शिर्क (part:3)

Tauheed Aur Shirk/ तौहीद और शिर्क ( part:3)
Tauheed Aur Shirk


हमने पिछले भाग में जाना की Tauheed Aur Shirk क्या है? एक मोमिन के लिए तौहीद की कितनी बड़ी अहमियत है और शिर्क कितना बड़ा ज़ुल्म है इससे हमारे सारे आमाल बर्बाद हो जायेंगे ! अब Tauheed Aur Shirk part:3 की तरफ  चलते हैं की शिर्क करने से और क्या क्या हम नुकसान उठाने वाले हैं ? 


    शिर्क करने का नुक़सान

    अल्लाह तआला फ़रमाता है :
    जो भी अल्लाह के साथ शिर्क करे, अल्लाह ने उस पर जन्नत को हराम कर दिया है और उसका ठिकाना आग है और इन ज़लिमो के लिए कोई मददगार नहीं। { माहिदा आयत 72}


    शिर्क का सबसे बड़ा नुक़सान ये है कि शिर्क करने वाले पर जन्नत हराम है।
    रसूलअल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :
    “जो कोई इस हाल में मारे की वो अल्लाह के सिवा किसी और को पुकारता हो तो वो जहन्नम में दाख़िल होगा। {बुख़ारी 4497, मुस्लिम 92}
    शिर्क करने वाले को उसके नेक आमाल फ़ायदा नहीं देते:
    शिर्क नेक आमल को आग की तरह जलाता चला जाता है। क़ुरआन ए पाक में अल्लाह तआला ने हज़रत इब्राहिम, इस्हाक़, याक़ूब, दाऊद और सुलेमान अलैहिमुस्सलम समेत 18 पैगंबरो का नाम लेकर फ़रमाया,
    "अगर ये सब शिर्क करते हैं (18 अंबिया जिनमे ये सब बड़े बड़े अंबिया शमील है) तो इनके भी आमल इनसे ज़या हो जाते हैं।"
    { सूरह अनाम -: आयत:88}
    तो कोई पैगंबर भी क्यों ना हो लेकिन अगर वो भी शिर्क करे तो उनके भी आमाल ज़ाया हो सकते हैं! लेकिन अल्लाह ने अंबिया को शिर्क से पाक बनाया है !


    मुसलमान भी शिर्क कर सकता है ?

    ला इलाहा'इल्लाह मुहम्मदुर रसूल अल्लाह पढ़ने वाला भी मुशरिक हो सकता है —
    रसूलअल्लाह ﷺ ने फ़रमाया :
    "तुम यक़ीनन अपने से पहली उम्मातो की पैरवी करोगे, और पहली उम्मातो से आपकी मुराद यहूद व नसारा है"।(सही बुख़ारी: 3456, मुस्लिम : 2669)

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    अल्लाह तआला फ़रमाता है :

    "क्या तू ने उन्हे नहीं देखा जिनहे किताब का कुछ हिस्सा मिला है के वो बुत और ताग़ूत पर ईमान लाते हैं"।[ सूरह निसा : आयत 51]

    रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा:"क़यामत उस वक़्त तक क़ायम ना होगी जब तक मेरी उम्मत की एक जमात मुशरिको से ना जा मिले और मेरी उम्मत के बहुत से लोग बुत परस्ती ना करे"।[तिर्मिज़ी 2219, सही]

    जब किसी क़ब्र की इबादत हो तो उसको बुत परस्ति कहा जाएगा।

    आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा:
    “ऐ अल्लाह मेरी क़ब्र को बुत ना बनाना जिसकी इबादत की जाए। अल्लाह का उस क़ौम पर सख़्त गज़ब नाज़िल होता है जो अपने नबियो की क़ब्रों को इबादत गाह बना लेते हैं”।
    [मुवत्ता इमाम मलिक 9:88]
    आयशा रज़ि अल्लाहू अन्हा फ़रमाती है के सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आख़िरी वक़्त में फ़रमाया:
    "यहुद वा नसार पर अल्लाह की लानत हो, उन्होने अपने अंबिया की क़ब्रों को सजदा गाह बना लिया।" अगर इस बात का ख़ौफ़ ना होता के सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्र को भी सजदा गाह बना लिया जाएगा तो आप को बंद हुजरे में दफन न किया जाता और आप की भी क़ब्र खुली होती है।[बुख़ारी:1390, मुस्लिम:529]

     

    Tauheed Aur Shirk/ तौहीद और शिर्क ( part:3)
    Tauheed Aur Shirk

    मुआशरे में शिर्क फैलने की एक अहम वजह ये है के शैतान औलिया अल्लाह से मुहब्बत को आड़ बनाकर ग़ुलू करवाता है।
    क़ौम नूह को देखिए =>"वड्ड, सुवा, यऊक़, यग़ूस, नस्र नूह की क़ौम के सालेहींन थे जिन की लोगो ने बाद में परस्तिश (इबादत) शूरु कर दी"।[बुख़ारी 6:442]
    "और उन्होन कहा के तुम अपने माबूदो को हरगिज़ ना छोड़ना और वड्ड, सुवा,यग़ूस, यऊक़, नस्र को कभी ना छोड़ना"।[कुरान 71:23]

    मुशरिकीन मक्का भी अल्लाह को इलाह मानते मगर अल्लाह के अलावा और बहुत से इलाह बनाए हुए थे और अल्लाह को सबसे बड़ा इलाह मानते थे।
    इस्लिये नबी की दावत पर मुशरिक कहने लगे:
    "क्या उसने इतने सारे मबुदो की जगह बस एक ही माबूद बना लिया, ये तो बड़ी अजीब बात है"[कुरान 38:5]

    (उनसे) कहिये, अपना हाल तो बताओ अगर तुम पर अल्लाह का कोई अज़ाब आजाये या क़यामत आ पाहुंचे तो क्या तुम अल्लाह के सिवा किसी और को पुकारोगे। अगर तुम सचे हो [तो बताओ] बल्के तुम उसी [अल्लाह] को पुकारोगे, फिर जिस दुख के लिए तुम पुकारोगे अगर वो चाहे तो उसको दूर कर देगा और जिन को तुम शरीक बनाते हो उस वक़्त उन सबको भूल जाओगे।
    [अल अनाम: 40,41]


    मक्का के मुशरिकीन गैरुल्लाह की इबादत क्यों करते थे ?

    अल्लाह इसका जवाब देता है:
    "हम उनकी इबादत सिर्फ़ इसलिये करते हैं के वो अल्लाह की नज़दीक़ी के मर्तबे तक हमारी रसाईं करा दें"।[ सूरह ज़ुमर: 3]
    यानी मुशरिकीन मक्का ग़ैरुल्लाह को अपना सिफ़रिशी और अल्लाह के क़रीब का ज़रिया समझते थे ।
    "वो कहते हैं के ये अल्लाह के पास हमारे सिफ़रीशी है"।[ सूरा यूनुस: 18]

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    क्या आज नेक लोगों की क़ब्रों को सजदहगाह नही बनाया जाता ?

    आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने कहा, "ये ऐसे लोग है जब इनमे से कोई नेक बंदा मर जाता तो उसकी क़ब्र पर सज्दा गाह बना देते हैं और तस्वीर बना देते हैं। ये अल्लाह के नज़दीक बदतरीन मख़लूक़ है”[बुख़ारी : 427, मुस्लिम : 528]

     

    Tauheed Aur Shirk/ तौहीद और शिर्क ( part:3)
    Tauheed Aur Shirk


    इसिलिए क़ुरआन मे अल्लाह फ़रमाता है:
    "बेशक तुम अल्लाह के सिवा जिन को पुकारते हो वो तुम जैसे बंदे ही है"।
    (सूरह अल'आराफ : 194)
    जिन औलिया अल्लाह को मुशरिकीन पुकारते थे उनके बारे मैं बताया:
    "मुर्दे है, ज़िंदा नहीं। उनको ये भी मलूम नहीं के ये कब उठाये जायेंगे"।[कुरान 16:21]
    "और जब [क़यामत के दिन] लोग जमा किए जाएंगे वो उनके दुश्मन हो जाएंगे और उनकी इबादत का इंकार कर देंगे।[कुरान 46:6]
    अल्लाह की ज़ात में शिर्क का मफ़हूम ये है कि "ना उससे कोई पैदा हुआ नहीं वो किसी से पैदा हुआ"(क़ुरआन 112: 3)
    "यक़ीनन वो काफ़िर है जो कहते हैं के ईसा इब्ने मरियम ही अल्लाह है"(कुरान 5:72)
    और उन्होन उसके बाज़ बंदो को उसका जुज़ ठहरा दिया। बेशक (ऐसा) इंसान खुल्लम खुला न शुक्रा है"(कुरान 43:15)
    आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को अल्लाह के नूर मैं से नूर कहना अल्लाह का जुज़ बनाने के बराबर है-शिर्क है।

    शिर्क की जड़ (रूट)मुहब्बत मे ग़ुलु:

    शिर्क की सबसे बुनियादी वजह या सबसे बुनियादी सबब किसी की मुहब्बत मे ग़ुलु है। किसी भी नेक इंसान, किसी भी पैग़म्बर की मुहब्बत मे ग़ुलु, मुहब्बत मे हद से बढ़ने को कहते हैं। हद से बढ़ने का मतलब ये है कि इंसान, उस इंसान मुहब्बत में अल्लाह के अहकाम को भूल जाए। अल्लाह के हुदूद को पामाल करने लगे। उस इंसान की मुहब्बत अल्लाह की मुहब्बत से बढ़ जाए।
    क़ौम ए नूह की मिसाल आपके सामने है कि उनके बड़े बड़े बुत ; याद, सवा इनको पूजते थे और ये उनके क़ौम के बुज़ुर्गाने दींन के नेक लोगों के बुत थे। इनके यहां जब कोई शख़्स बहुत नेक होता और अपनी नेकी मैं बहुत मशहूर हो जाता तो लोग उसकी बात को अल्लाह की बात के बराबर या उससे भी बढ़कर क़रार देने लगते। और जब वो फ़ौत हो जाता तो उसका बुत बना कर उसे पूजने लगते और कहते कि इन्होंने हमको अल्लाह से मिलाया है, लिहाज़ा हमारे ख़ुदा यही हैं।
    जैसे एक उर्दू का भी शेर है :
    "हक़ीक़त मैं देखो तो ख़्वाजा ख़ुदा है
    ख़्वाजा के दर पर सज्दा रवा है"
    अब ये मोइनुद्दीन चिश्ती की तरफ़ इशारा है।
    ख़्वाजा को ख़ुदा कैसे बना लिया उन्होंने ख़ुद से?
    क्योंकि वो पहले ख़्वाजा से इम्प्रेस हुए फ़िर उनकी इबादत से फ़िर उनके तक़वे से फ़िर उनसे मुहब्बत करने लगे फ़िर उनकी मुहब्बत अक़ीदत मैं बदली और अक़ीदत शिर्क मैं बदल गया, इसका यह मतलब नहीं के किसी से मुहब्बत नहीं करनी चाहिए।
    जहां अल्लाह की ख़ातिर की हुई मुहब्बत इंसान को अर्श ए इलाही के साये तले जगह देगी वही मुहब्बत मैं हद से बढ़ना शिर्क तक ले कर चला जाता है !

     हद से बढ़ने से मुराद क्या है ?

    ये है की अल्लाह के हुकम को पीछे छोड़ देना और उसके मख़लूक़ के हुकम को आगे ले आना, अल्लाह को सजदा करने के बजाए उसके मखलूक को सजदह करना, अल्लाह से दुआ मांगने के बजाए उनके आगे दुआ मांगने लगना, अल्लाह की मुहब्बत से बढ़कर अपने पीरो , बुजुर्गों और औलिया से मुहब्बत करने लगना, 
    जैसा कि अल्लाह ने कुरान में फ़रमाया है :
    जब अकेले अल्लाह का ज़िक्र किया जाता है तो आख़िरत पर ईमान न रखनेवालों के दिल कुढ़ने लगते हैं और जब उसके सिवा दूसरों का ज़िक्र होता है तो यकायक वो ख़ुशी से खिल उठते हैं।(अल ज़ुमर:45)
    और कुरान में ईमान वालों के लिए आता है, 
    "वो लोग जो ईमान लाए हैं वो अल्लाह की मोहब्बत में सब से ज़्यादा शदीद होते हैं"।
    और फिर अल्लाह कहता है :सच्चे ईमानवाले तो वो लोग हैं जिनके दिल अल्लाह का ज़िक्र सुनकर काँप उठते हैं और जब अल्लाह की आयतें उनके सामने पढ़ी जाती हैं तो उनका ईमान बढ़ जाता है और वो अपने रब पर भरोसा रखते हैं, (अल अंफाल:2)

    इसका ये मतलब नहीं है की किसी इंसान से मोहब्बत नहीं होनी चाहिए या ज़्यादा मोहब्बत नहीं होनी चाहिए। बेशक होनी चाहिए लेकिन उसकी एक हद होनी चाहिए!
    जैसे की आप नबी ﷺ से मुहब्बत करते हैं तो आपकी मुहब्बत ईमान का हिसा है, कोई शख़्स उस वक़्त तक मोमिन नहीं हो सकता है जब तक वो आप ﷺ को अपने वाल्दैन से, अपनी औलाद से, तमाम इंसानों से बढ़कर मुहब्बत ना करे,

    लेकिन इस मुहब्बत की हद क्या है ?

    हद यह है की सब इंसानो से ज़्यादा लेकिन इस कदर भी ज्यादा नही के अल्लाह के बराबर हो जाए क्योंकि अगर बराबर आ गए तो ये शिर्क हो गया! अल्लाह से बढ़ कर भी नहीं! बाज़ औक़ात क्या होता है हम किसी नेक बुजुर्ग हस्ती या नबी के मुहब्बत में उसे अल्लाह से भी बढ़ा देते है जैसे की हाली ने कहा कि:
     “पैग़म्बरो का रुतबा अल्लाह से बढ़ाए”

    अल्लाह तआला ने पैग़म्बरों को इंसानियत की रहनुमाई के लिए चुना और उन्हें इस मक़ाम पर फाइज़ किया। वो अल्लाह के प्यारे हैं, मगर अल्लाह से बढ़कर नहीं। अल्लाह के हुक्म और उसके इरादे के बिना किसी की हैसियत नहीं।"
    अब जरा गौर करें की इसाइओं के पास शिर्क कहा से आया? हज़रत ईसा (अस) की मोहब्बत मैं वो इस हद तक बढ़ गए थे उनकी अक़ीदत और एहतराम में के उन्हें खुदा का बेटा बना दिया, किसी भी नेक इंसान की मोहब्बत एक पसंदीदा अमल है लेकिन मुहब्बत में गुलु जाइज़ नही !

    नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का फ़रमान है कि: 
    और नबी ﷺ का फरमान है की जो जिस से मुहब्बत करता है वो कयामत के दिन उसी के साथ उठाया जाएगा 
    इसका मतलब ये नही की मुहब्बत में गुलू करे और उसकी परस्तीस शुरू कर दे! ऐसा नहीं है बल्कि इंसान जिस से मोहब्बत करता है उस के नक़्शे क़दम पे चले उसके बताए रास्ते को अपनाएं!
    सहाबा ए कराम कहते हैं की इस हदीस को सुन कर हमे इतने ख़ुशी हुई के शायद इससे पहले कभी हुई हो। क्यूंकी हम हुज़ूर ﷺ को अपनी जान माल हर चीज़ से बढ़ कर चाहते थे।
    आप ﷺ से बहुत ज़्यादा मोहब्बत रखते थे
     

     सहाबा ए कराम ने नबी ﷺ को अल्लाह के नबी और रसूल ही समझे कभी आप ﷺ की मोहब्बत में गुलू नहीं की और ना ही कभी अल्लाह के बराबर समझा और ना ही कभी दर्जा हद से आगे बढ़ाया !

    दिलों का हाल

    किसी भी सालेह इंसान जिसको आप नेक समझते हों वो नेक है या नहीं, असल नेकी तो अल्लाह ही को पता है और अल्लाह ही दिलों का हाल जानता है हम किसी से उसका मामला सिर्फ़ उसके ज़ाहिर पर करते हैं.दिलों का हाल हम नहीं जानते के कोई अंदर से क्या है लिहाज़ा किसी भी इंसान जिसे आप नेक समझते हों और उस से आप मुहब्बत रखते हो, ख़्वाह वो मौजुदा दौर का हो या पिछले दोर का!  मसलन आप देखते हैं की जब हम सहाबा या साहबियात से मुतल्लिक पढ़ते हैं तो हमारी आंखों से आँसू आ जाते हैं। बाज़ औक़ात हमारे दिल में उनके लिए बहुत मोहब्बत पैदा होती है, इसमे कोई हरज नहीं, नेक लोगो से मोहब्बत करना उनके रास्ते पे चलना, उनके तरीक़े को अपनाना, उनको अपना आदर्श बनाना इसमे कोई बुरा नही है। बुरा तब है जब हम उनकी मुहब्बत में अल्लाह के हुक्म और अल्लाह के नबी ﷺ के फ़रमान की मुखालिफत और नाफरमानी करें !अल्लाह के कलाम के बदले किसी शख्स के बात को तरजीह दें!

    सूरह फातिहा में है कि, "हमे सीद्धा रास्ता दिखा उन लोगो का रास्ता जिन पर तूने इन'आम किया" यानि जिन्हे तूने हिदायत दी, जो तेरी तरफ़ जाते हैं, तुझसे मिलाते हैं, तुझ से जोड़ते हैं, तो कोई ऐसा इंसान ख़्वा माज़ी का हो या हाल का हो ख़्वा किसी मुल्क शहर का हो, कोई भी इंसान जिससे ताल्लुक़ अल्लाह की मोहब्बत में इज़ाफे का सबब बने।
    अल्लाह तआला के क़ुर्ब (नज़दीकी) का सबब बने, वो सारी मोहब्बत जायज़ है और पसंदीदा हैं और एक तरह से इबादत है। ऐसी ही मोहब्बत इबादत है, हर मोहब्बत इबादत नहीं होती।

    मुहब्बत में एहतियात ज़रूरी है

    अगर हम किसी भी इंसान से अल्लाह के लिए मोहब्बत करते हैं तो कभी ऐसा न हो की हम उस इंसान की किसी ग़लत बात को हम सही कहने लगे या उसके किसी ग़लत अमल को हम सही कहने लगे, और उस तास्सुब में मुब्तला होकर उसके हक़ मैं दलाइल देना शूरु करदे के नहीं-नहीं ये बात फलां ने फ़रमाई है, और फलां मेरा पसंदीदा है, लिहाज़ा अगर वो ग़लत भी कहेगा तो मैं उसको भी सही समझूँगा, नहीं !!"
    कोई भी इंसान अल्लाह और उसके रसूल की बात से टकराती हुई बात कहे तो उसकी बात नहीं ली जाएगी। ख़्वा वालिदैन ही क्यों ना हो, औलाद ही क्यूं ना हो, उस्ताद ही क्यूं ना हू, कोई और इंसान ही क्यों ना हो, क्यों के जहां मोहब्बत इबादत है वह मोहब्बत में एतेदाल से बढ़ाना शिर्क की तरफ़ ले जाता है। 
    अब ये एक बारीक सा फ़र्क़ है, आप में से हर एक को ये फ़र्क़ मालूम होना चाहिए। क्योंकि हमने देखा है के हमारे यहां अक्सर दो extreme (चरम) है। ये तो एक ऐसी extreme है जो किसी भी नेक इंसान का ऐसा गरबीदह बना देते हैं के अल्लाह, रसूल, दींन, तालीम शरीयत, हर चीज़ भूल जाते हैं। सब शरीयत पिछे चली जाती है। सब अल्लाह के हुक्म पीछे नमाज़ रोज़ा से भी जाते हैं लोग वो कहते हैं कि यही हमारे सब कुछ हैं। ये हमें आगे पार करा देंगे। फ़िर उनको उन्ही से अपने तमाम रिश्ते इस्तेवार करते हैं, हत्ते के अल्लाह से मांगना भूल जाते हैं और उनसे मांगना शुरू कर देते हैं, उनके दर पे सजदा रवा है कहना शुरू कर देते हैं

    Read This: Shirk Kya hai ?


    दूसरी extreme(चरम) क्या है ?
    के इंसान हर मोहब्बत को ये कह के ख़त्म करदे के नहीं ये तो शिर्क है, या किसी से भी ज़्यादा मुहब्बत नहीं करनी चाहिए के ये नापसंदीदा है, नहीं" यानि आप किसी से भी कहीं तक भी मुहब्बत कर सकते हैं,
    नापसन्दीदा उस वक़्त होता है वो जब आप उसके हुकुम हो एहम क़रार दे और अल्लाह के हुक्म को पीछे कर दें। उसकी सोहबत में बैठे के आप नमाज़ ताख़ीर से पढ़े,
    के जी हम अल्लाह की बात कर रहे हैं क्यूं की बाज़ औक़ात इंसान कहता है की मुझे फलां से अल्लाह की ख़ातिर मोहब्बत है और उसकी मजलिस में मैं बैठ कर अल्लाह की मोहब्बत महसूस कर सकता हूं। अब आप बैठ गए मजलिस में, अब ऐसे बैठे के न आप ख़ुद नमाज़ पढे़ न उसे पढ़ने दि, या ख़ुद भी पढ़ी तो देर से पढ़ी, और उसको भी देर करा दी है।

    बहरहाल शिर्क का दरवाज़ा यहां से खुलता है, किसी की मोहब्बत में ग़ुलु और इस तरह के इसके मुक़ाबले में अल्लाह तआला की ज़ात पीछे चली जाए। अल्लाह के रसूल ﷺ की सुन्नत पीछे चली जाए, ऐसे में फ़िर क्या किया जाए?
    अहतियात कैसे की जाए? क्योंकि इंसान के लिए एतेदाल (आस्तिक/विश्वास) पर क़याम रहना निहायत मुश्किल है।

    रसूल अल्लाह क़यामत के दिन किन लोगो की सिफ़ारीश नहीं करेंगे

    हमारे मुआशरे में एक ग़लत फ़हमी है कि हमारे इल्म में ये है के क़यामत के दिन रसूल-अल्लाह सलअल्लाहू अलैहि वसल्लम अपने हर उम्मती की सिफ़ारिश करेंगे जब कि अगर हम सही हदीस पढ़ते हैं तो इससे बिल्कुल उल्टी बात हमे पता चलेगी।
    क़यामत के दिन जो अल्लाह के साथ औरो को शरीक करेंगे (औरो को पुकारेगा या औरो के आगे सजदा करेगा) उसकी सिफ़रिश रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नहीं करेंगे:
    हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहु अन्हु कहते हैं रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया, हर नबी के लिए एक दुआ ऐसी है जो ज़रूर क़बूल होती है तमाम अंबिया ने वो दुआ दुनिया मैं ही माँग ली, लेकिन मैं ने अपनी दुआ क़यामत के दिन अपनी उम्मत की शफाअत के लिए महफूज़ कर राखी है, मेरी शफाअत इन शा अल्लाह हर उस शख़्स के लिए होगी जो इस हाल मैं मरा के उसने किसी को अल्लाह अज़्ज़ोवजल के साथ शारीक नहीं किया(सही मुस्लिम हदीस: 399)

    क़यामत के उन लोगो की भी सिफ़ारिश रसूलअल्लाह नहीं करेंगे जिन लोगो ने दींन में नई बातो का इजाद किया होगा मतलब जिन्होन बिद्दत किया होगा:
    रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हौज़-ए-क़ौसर से अपने उम्मतियो को पानी पिला रहे होंगे और उन रोक दिया जाएगा, इनको भी नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम यही समझेंगें के ये मेरे फ़रमाबरदार उम्मती हैं लेकिन आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से कहा जाएगा कि आप को नहीं मालूम के इन्होंने आप के बाद दींन मैं क्या-क्या नयी चीज़े ऐजाद कर ली थी तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाएंगें “इन के लिए (रहमत से) दूरी हो! इन के लिए दूरी हो! जिन्होंने मेरे बाद दींन को बदल डाला।”
    [सही बुख़ारी : 6584]

    Conclusion:

    Tauheed Aur Shirk के फ़र्क़ को समझें, शिर्क एक बहुत ही संजीदह मुआमला है लिहाज़ा इससे बचने की कोशिश करें वरना हमारे सारे अमाल बर्बाद हो जायेंगें! और बिदअत भी हमारे अमाल और नेकियों में रुकावट होगी ! क्योंकि क़यामत के दिन बिदअतियों की भी सिफ़ारिश रसूल अल्लाह नहीं करेंगे।
    अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हमे बिदअत और शिर्क से बचाए और वही दींन पर अमल करने की तौफ़ीक अता करे जो दींन रसूल अल्लाह छोड़ कर गए थे, आमीन।
    Continue...........

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    FAQs:


    Que: क्या क़ब्र परस्ती को बुत परस्ती कहा जा सकता है?
    Ans: हां ! क़ब्र परस्ती बुत परस्ती में शामिल है जैसा कि इस हदीस से वाजह है
    “ऐ अल्लाह मेरी क़ब्र को बुत ना बनाना जिसकी इबादत की जाए। अल्लाह का उस क़ौम पर सख़्त गज़ब नाज़िल होता है जो अपने नबियो की क़ब्रों को इबादत गाह बना लेते हैं”।[मुवत्ता इमाम मलिक 9:88]

    Que: किसी पीर,बुजुर्ग या वाली अल्लाह की मुहब्बत में गुलू का अंजाम क्या है ?
    Ans: किसी पीर या बुजुर्ग की मुहब्बत में गुलू करना उसे शिर्क तक पहुंचा सकता है !

    Que: शिर्क की अहम जड़ या वजह क्या है?
    Ans: शिर्क की सबसे बुनियादी वजह किसी की मुहब्बत मे ग़ुलु है। किसी भी नेक इंसान, किसी भी पैग़म्बर की मुहब्बत मे ग़ुलु, मुहब्बत मे हद से बढ़ने को कहते हैं। हद से बढ़ने का मतलब ये है कि इंसान, उस इंसान की मुहब्बत में कर अल्लाह के अहकाम को भूल जाए। अल्लाह के हुदूद को पामाल करने लगे। उस इंसान की मुहब्बत अल्लाह की मुहब्बत से बढ़ जाए।

    Que: क्या शिर्क करने वालों की कोई नेकी क़बूल होगी ?
    Ans: शिर्क कितना अज़ीम गुनाह है कि अल्लाह तआ़ला ने आम इन्सान तो क्या नबीयों तक को भी नसीहत कर दी कि अगर तुमने शिर्क किया तो हम तुम्हें भी नहीं छोड़ेंगे !"और अगर वो लोग शिर्क करते तो जो अमल वो करते थे सब बेकार हो जाते ! तो फिर हम आम इंसानों की क्या हैसीयत है! शिर्क करने वाले की कोई भी नेकी कबूल नहीं की जाएगी !

    Que: क़यामत के दिन नबी ﷺ किनकी शफ़ाअत नहीं करेंगें?
    Ans: क़यामत के दिन जो अल्लाह के साथ औरो को शरीक करेंगे (औरो को पुकारेगा या औरो के आगे सजदा करेगा) उसकी सिफ़रिश रसूलअल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम नहीं करेंगे: क्यूं की नबी ﷺ का फ़रमान है कि "मेरी शफाअत इन शा अल्लाह हर उस शख़्स के लिए होगी जो इस हाल मैं मरा के उसने किसी को अल्लाह अज़्ज़ोवजल के साथ शारीक नहीं किया" (सही मुस्लिम, किताब अल-ईमान, हदीस 399)

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