Breaking Tickers

Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (Part:4)

Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (Part:4)



Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (Part:4)
Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क


पिछले भाग में आप ने Tauheed aur shirk से मुतल्लिक पढ़ा कि मुस्लिम उम्मत में भी शिर्क हो सकता है और कब्र परस्ती भी बुत परस्ती ही है जो नबी ﷺ के फ़रमान से पता चलता है "ऐ अल्लाह मेरी क़ब्र को बुत ना बनाना जिसकी इबादत की जाए"! और नेक लोगों की कब्रों को सजदह गाह बना लिया गया !
अब आईए Tauheed aur shirk part:4 में तौहीद और शिर्क से मुतल्लिक कुछ और जानकारी हासिल करें।



      इस्लाम में शिर्क को सबसे बड़ा गुनाह माना गया है, क्योंकि यह अल्लाह की एकता का इनकार है। शिर्क में किसी और को अल्लाह के बराबर समझा जाता है, और कुरआन में इसे सख्ती से मना किया गया है।
    अल्लाह तआ़ला फ़रमाता हैं :बेशक अल्लाह नहीं बख़्शेगा की उस के साथ शिर्क किया जाए और बख़्श देगा जो इस के इलावा होगा, जिसे वो चाहेगा। और जो कोई अल्लाह के साथ शिर्क करे, तो वो गुमराही मे बहुत दूर निकल गया!(सूरह निसा: 116)
    जिसने अल्लाह के साथ किसी को शरीक किया, अल्लाह ने उसपर ज़न्नत हराम कर दिया उसका ठिकाना जहन्नम है और जालिमो का कोई मददगार न होगा (सुरह् अलमईदा:72)

    नेक लोगो की तारीफ़ में इज़ाफ़ा:-

    नेक लोगो से ज़्यादा मुहब्बत और तारीफ़ एक बुनियाद होती है शिर्क और बुत-परस्ती की।
    बुद्धा और ईसा (अलैहिस्सलाम) की तस्वीर की इबादत बौद्धिज़म और इसाइयत में साफ़ मिसाल है जो बयान करती है दौर ए हाज़िर की बुतपरस्ती जो नेक लोगो की हद से ज़्यादा मोहब्बत और तारीफ़ करने की वजह से हुई।
    रसूलअल्लाह को भी इस ख़तरे का अंदेशा था, इसी लिए रसूलअल्लाह ने अपने सहाबाओ और मुसलमानो को उनकी असल ज़ात से बढ़ा-चढ़ा कर तारीफ़ करने को मना किया था।
    उमर इब्न ख़त्ताब रज़ि अल्लाहु अन्हु रिवायत करते हैं के रसूलअल्लाह ﷺ ने फरमाया:
    "मेरी तारीफ़ में इज़ाफ़ा मत करना जेसे की ईसाइयों ने ईसा इब्न मरियम की करी थी। बेशक मैं अल्लाह का ग़ुलाम हूं, इसी लिए मुझे अब्दुल्ला वे रसूलअल्लाह कह कर पुकारा करो (अल्लाह का बंदा और रसूल)।{सहीह अल बुख़ारी, हदीस - 654}
    Read This: Deen me guloo

    चुंकी उस वक़्त ये इसाइयो और याहूदियो का अमल था रसूलो और नेक बुज़ुर्गो की क़ब्रों को इबादतगाह बनाने की, तो रसूलअल्लाह ﷺ ने लानत फरमाई थी इस अमल पर।
    रसूलअल्लाह ने उन लोगो को भी लानत फरमाई थी जो आइंदा ऐसा अमल करेंगे, इसलिए ताकि ये बात साफ़ हो जाए की इस्लाम कितना पाक-साफ़ है इन मुशरिकाना अमलो से और ताकि लोगो को नेक बुज़ुर्गो की तारिफ़ो में इज़ाफ़ा करने के ख़तरे से आगाह किया जाए।
    एक मर्तबा रसूल अल्लाह ﷺ की बीवी उम्मे सलमाह रज़ि अल्लाहु अन्हा ने रसूलअल्लाह से एक गिरजा (चर्च) जो के इथियोपिया में था उसका ज़िक्र किया जिस्म तस्वीरे थी (दीवारो पर) ।
    ये सुन कर आप ﷺ ने फरमाया:
    ये लोग ऐसे है के जब इन लोगो मे से कोई नेक बंदा मर जाता है, तो ये लोग उनकी क़ब्र पर इबादत की जगह बना लेते हैं और रंग (पेंट) देते हैं उसको कुछ तस्वीरों से। ये अल्लाह के नज़दीक़ सबसे बदतरीन मख़लुक़ हैं।
    {सहीह अल बुख़ारी-427, सही मुस्लिम-1076}
    रसूलअल्लाह का बयान "सबसे बदतरीन मख़लुक़" उन इमारत बनाने वालो के लिए साफ़ ज़ाहिर करती है की ये अमल सख़्त मना है इस्लाम में बिना कोई रिआयत के। इस सबसे बदतरीन लानत की वजह ये अमल की हक़ीक़त है जो दो अहम ज़र्रे है बुतपरस्ती के:
    1. क़ब्र के ऊपर इमारत बनाना
    2. तस्वीर बनाना
    ये दोनो अमल हमेशा शिर्क की तरफ़ ले जाते हैं जो की नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम के बुतों के कहानी से साफ़ ज़ाहिर होता है।

    शिर्क की सूरत:-

    रसूलअल्लाह ﷺ ने बहुत ही साफ़ अल्फाज़ो में ब्यान किया है की तौहीद आने के बाद शिर्क कैसे फेला।
    रसूलअल्लाह ﷺ के सहाबाओ ने सूरह नूह की आयत 23 की तफ़सीरो से हमे बिलकुल साफ़ तस्वीर दिखाई है, जहां अल्लाह अज़्ज़ोवजल ने ब्यान किया है नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम को जबके नूह अलैहिस्सलाम ने उनको सिर्फ़ एक अल्लाह की इबादत करने की दावत दी।
    और कहा उन लोगों ने हरगिज़ अपने माबूदों को न छोड़ना और ना वद और सुवा और याघूस और याऊक और ना नसर को (छोड़ना)।
    ( सूरह नूंह-71, आयत 23)

    इब्न अब्बास रज़ि अल्लाहु अन्हु इस आयत की तफ़सीर में कहते हैं
    “सभी बुत जिनकी इबादत नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम करती थी उन्ही बुतो की इबादत अरब के लोग भी बाद में करने लगे। वद जो के दावततुल-जंदल इलाक़े में था क़ौमी खुदा हो गया क़ल्ब क़ौम का ख़ुदा, सुवा को हुदायल क़ौम ने (ख़ुदा) इख़्तियार कर लिया था, घुतायफ क़ौम जो के सबा के पास आबाद थी इन्होंने याउक को ख़ुदा इख़्तियार किया और नासर बन गया खुदा धुल काला क़ौम का जो के हिमायर नस्ल के थे।
    ये बुतो का नाम रखा गया था कुछ नेक लोगो के नाम पे जो के नूह अलैहिस्सलाम की क़ौम मैं से थे। जब ये नेक लोग फौत हो गए तब शैतान ने इन लोगो को उनके नाम के साथ उनके बुत बनाने पर बहकाया।
    ये बुत लोगो के पसंदीदा मिलने के जगह पर रखे गए ताकि ये नेकियो की याद दिलाए और उन के ज़माने में किसी ने भी इन बुतो की इबादत नहीं की थी।
    फ़िर जब इन की नस्ले मर गई, तो इन बुतो के बनाना के मक़सदो को भुला दिया गया, शैतान उन की औलादो के पास आया और उनसे कहा कि उनके बुज़ुर्ग उन बुतो की इबादत करते थे क्योंकि उन बुतो की वजह से ही बारिश होती थी।
    उनकी औलादो को बेवकूफ बना दिया गया और फ़िर वो बुतो की इबादत करने लगे। उनकी आने वाली नस्लें भी फिर उन बूतो की इबादत करती रहीं।
    सहीह अल बुख़ारी, तफ़सीर क़ुरआन (तफ़सीर नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) [60:442]
    ये तफ़सीर जो रसूल ﷺ के सहाबी ने दी हैं इससे ये साफ़ मालूम होता है की किस तरह से तौहीद का ईमान होने के बावजूद बाद में मुशरिकाना अक़ाइद में तब्दील हो जाता है। ये यक़ीन दिलाती है बिगड़े हुए नामुने की, शनाख़्त करती है तारीख़ में बुज़ुर्गो की इबादत की बुनियाद को और ये वज़ाहत करती है के इस्लाम में क्यू इंसान और जानवर की बुत या तस्वीर की शक्ल की अक्सरियत (depiction) बनाने के ख़िलाफ़ है।
    ये मुमानियत हमे मूसा अलैहिस्सलाम की किताबो में भी मिलती हैं।
    और दुसरी तरफ़ ख़ातीमुन नबीयींन ﷺ ने ख़बरदार किया था उन लोगों को जो तस्वीरे और मुर्तिया बनाते थे, उसके साथ-साथ उन लोगो को भी जो इन चीज़ो को टांग कर नुमाइश करते हैं, के अल्लाह उन लोगों को सख़्त आज़ब देगा आख़िरत में।

    Read This: Taweez aur gande ki Haqeeqat
    मां आयशा बिन्ते अबू बक्र (रज़ि अल्लाहु अन्हा) ने कहा,
    एक बार रसूलअल्लाह आए मुझे देखने के लिए और मैंने उनी पर्दा से अलमारी ढांकी हुई थी जिसपे पंखो के घोड़े की तसवीर बनी हुई थी। और जब रसूलअल्लाह ने वो पर्दा देखा तो उनके चेहरे का रंग उड़ गया और उन्होन कहा, ऐ आयशा, वो जिनको सबसे सख़्त सज़ा मिल रही होगी क़यामत के दिन वो लोग होंगे जो अल्लाह की तख़लीक़ के काम मैं मुक़ाबला करेंगे।
    उन लोगों को सज़ा होगी और जो उन्होंने बनाया है उन लोगो को उनमे जान डालने को कहा जाएगा।
    फिर रसूलअल्लाह ये कहते गए, 'बेशक फ़रिश्ते उस घर में नही जाते हैं जिसमे तस्वीर या फ़िर बुत मौजुद हो।'
    आयशा रज़ि अल्लाहू अन्हा ने फिर कहा
    "इस्लिये हम लोगो ने परदेह को टुकडो में काट दिया और उससे एक या दो तकिया बना लिया।"(सही बुख़ारी : 838, सही मुस्लिम : 5254)

    क्या रसूल अल्लाह ﷺ की वफ़ात के बाद सहाबा उनकी क़ब्र पर मदद हासिल करने आते थे?

    अनस (रज़ि अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है की जब भी सूखा पड़ता (बारिश की कमी होती) तो उमर रज़ियल्लाहू अन्हु अल-अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब रज़ि अल्लाहु अन्हु से अल्लाह से बारिश की दुआ करने को कहते । वो कहते — ऐ अल्लाह, हम अपने नबी से बारिश की दुआ करने को कहते थे और आप बारिश की रहमत करते थे और अब (जब रसूलअल्लाह ﷺ की वफ़ात हो गयी) हम उनके चाचा से दुआ करने को कहते हैं। ऐ अल्लाह! हमें बारिश अता फरमा, और फ़िर बारिश होती।
    साहिह अल बुख़ारी, बारिश के लिए अल्लाह का आह्वान (इस्तिस्क़ा) 1010]
    इस हदीस से सबित हुआ की रसूलअल्लाह की फ़ौत होने के बाद सहाबा रसूल की क़ब्र पे जा कर नहीं बल्कि रसूल के चाचा से दुआ करवाते थे क्योंकि जो शख़्स फौत हो जाता है उस से मदद मांगना हराम है और ज़िंदो से मदद मांगना जायज़ है।
    ज़ुबैर बिन मुतइम रिवायत करते हैं: एक ख़ातून आईं रसूलअल्लाह ﷺ के पास और उन्होन उनके पास वापस आने का हुक्म दिया था। ख़ातून ने फ़रमाया अगर आप नही हुए तो, जैसे वो कहना चाहता हो की अगर आप फौत हो गए तो? "रसूलअल्लाह ﷺ ने फ़रमाया की अगर तुम मुझे न पाना तो अबू बक्र के पास जाना।”
    सही बुख़ारी (वॉल्यूम 5, किताब 57, हदीस 11)
    सही बुख़ारी (वॉल्यूम 9, किताब 89, हदीस 327)
    सही बुख़ारी (वॉल्यूम 9, किताब 92, हदीस 459)
    ये एक ख़ूबसूरत हदीस है रसूल ﷺ से मदद मांगने के ख़िलाफ़ वरना हदीस के अल्फाज़ होने चाहिये की अगर मैं ना हुआ तो मेरी क़ब्र पर आना।

    आज के मुशरिकीन और कब्र परस्त :-

    Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (Part:4)
    Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क 



    आज के क़ब्र परस्त कहते हैं के हम "क़ब्रों" की इबादत नहीं करते और हम उन क़ब्र वालों को अल्लाह नहीं समझते, उन्हे ख़ालिक और मलिक नहीं समझते, और ना ही उन्हें अल्लाह समझ कर उनसे "मदद" मांगते हैं, बल्कि यह अल्लाह के 'नेक' बंदे थे, इन्हे भी अल्लाह तआला ने कुछ इख्तियारत दे रखे हैं और हम इनके ज़रीये से अल्लाह का 'क़ुर्ब' हासिल करते हैं
    पर इन अक़्ल के अंधों को ये तक नहीं पता के मुशरिकिन भी जिन नबियों और वालियों के बुत (आइडल) और क़ब्रें बनाकर 'पुजते' थे, वो भी उन्हे अल्लाह समझ कर उनकी इबादत और उनसे मदद नहीं मांगते थे, बल्कि मुशरिक भी मानते थे के ज़मीन व आसमान और सारी कायनात का ख़ालिक, मालिक और परवदीगार सिर्फ़ अल्लाह ही है और वही वाहिद हस्ती है जिसके हाथ में "क़ायनात" की तदबीर और तसर्रुफ़ है
    अल्लाह ने कुरान में फ़रमाया :
    “ऐ नबी! इनसे पूछिये के तुमको ज़मींन और आसमान से कौन 'रिज़्क' देता है? या वो कोन है जो कानो और आंखों पर पूरा इख़्तियार रखता है और वो कौन है जो ज़िंदे को मुर्दे से निकालता है और मुर्दे को ज़िंदा से निकालता है और वो कौन है जो तमाम कामो की तदबीर करता है? ज़रूर वो यही कहेंगे के 'अल्लाह' तो उनसे कहिए के फ़िर क्यों नहीं डरते''
    (सुरह यूनुस, आयत 31)
    “ऐ नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) उनसे पुछिये तो सही, के ज़मीन और उसपर रहने वाली मख़लूक़ किसकी है? बतलाओ अगर जानते हो? वो फ़ौरन जवाब देंगे के अल्लाह ही की है, कह दीजिये के फ़िर तुम 'नसीहत' क्यों नहीं हासिल करते, दरियाफ़्त किजिये के सातों असमानों का और बहुत बाअज़मत 'अर्श' का रब कौन है? वो लोग जवाब देंगे के अल्लाह ही है, कह दीजिये के फ़िर तुम क्यों नहीं डरते? पुछिये के तमाम चीज़ो का इख़्तियार किस हाथ में है? वो पनाह देता है और जिसके मुक़ाबले में कोई पनाह नहीं दिया जाता, अगर तुम जानते हो, तो बतला दो? यही जवाब देंगे के अल्लाह ही है, कहिए फिर तुम किधर से जादू कर दिए जाते हो?"(सुरह मोमिनून, आयत 84-89)
    “अगर आप उनसे पूछे के आसमान और ज़मीन को किसने पैदा किया है? तो यक़ीनन वो यहि जवाब देंगे के अल्लाह ने, आप उनसे कहिए के अच्छे ये तो बताओ, जिन्हे तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो, अगर अल्लाह तआला मुझे नुक़सान पहंचाना चाहे तो क्या यह उसके नुक़सान को हटा सकते हैं? या अल्लाह तआला मुझ पर महेरबानी का इरदा करे, तो क्या ये उसकी महेरबानी को रोक सकते हैं? आप कह दें के अल्लाह मुझे काफ़ी है, तवक्कल करने वाले उसी पर तवक्कल करते हैं।”
    (सुरह ज़ुमर, आयत 38)


    अल्लाह को मानने के बावजुद वो मुशरिक क्यूं

    अब सवाल ये पैदा होता है के अल्लाह को मानने के बावजुद वो मुशरिक क्यूं क़रार पाए?
    हक़ीक़त ये है के मुशरिकीन ए अरब ने अल्लाह तआला के सिवा जिन-जिन को माबूद और मुश्किल कुशा बना रखा था, वो उनको अल्लाह तआला की मख़लूक, उसका ममलूक और 'बंदा' ही जानते थे, फिर भी वो जाहिल, आज के क़ब्र परस्तों की तरह ये समझते थे के ये लोग अल्लाह के नबी, वली और नेंक बंदे थे, अल्लाह के यहां उन्हे ख़ास मुक़ाम हासिल है, इस बिना पर वो भी कुछ इख़्तियारत अपने पास रखते हैं, और हम उनके ज़रिये से अल्लाह का तक़र्रूब हासिल करते हैं, उनकी सिफ़रिशों से हमारी ज़रूरतें पूरी होती है।
    वो मुशरिकीन भी अपने माबूदों के इख़्तियारात "अतायी" समझते थे, और वो यही अक़ीदा रखते थे के इन माबूदों की ये जो ताक़त ओ-क़ुव्वत और जो इख़्तियारात और तस्सरुफ़ात है, ये अतायी है, अल्लाह ने इन्हें अता किया है, ज़ाती तौर पर वो इसके मालिक नहीं है,
    मुशरिकीन हज में ये तलबिया पढ़ा करते थे
    "ऐ अल्लाह हम हाज़िर है, तेरा कोई शरीक नहीं सिवाय उस शरीक के जो तेरा ही है, तू उसका मालिक है, जिन पर उसकी मिल्कियत और हुकुमत है उसका मालिक भी तू ही है"
    (सही मुस्लिम, किताबुल हज)
    यानि वो अपनी ज़ात का भी मालिक नहीं है, ये कहावतें और ये इख़्तियारत तूने ही उसे अता किया है, और जिन पर उसकी मिल्कियत है, जिन चीज़ों का वो मालिक है, उनका मालिक भी तू ही है, तूने ही उसे अता किया है तेरे ही दिए से वो सबको बांट रहे हैं, 
    आज के क़ब्र परस्तों का भी कुछ यही हाल है !यह भी अल्लाह के साथ शिर्क करके यहीं कहते हैं के हम इन नेंक बंदों को अल्लाह समझ कर नहीं पुजते और उन्हें सज्दा, नज़रो-नियाज़ और मन्नत आदि अल्लाह समझ कर नहीं माँगते, बल्कि ये इख़्तियारत अल्लाह ने उन्हे अता किया है, हम तो उनके ज़रिये से अल्लाह का तक़र्रुब हासिल करते हैं और बतोर वसीला और सिफ़रिश उनको पुकारते हैं, सब कुछ तो अल्लाह देने वाला है ये तो दिलाने वाले हैं !
    और जब इन क़ब्र परस्तों को कोई क़ुरआन की आयत बताते हैं और तौहीद की दावत देते हैं, तो कहते हैं के ये आयतें तो बुतों (मूर्तियों) के लिए है
    याद रखिये के मुशरिकीन जिनके बुत (मूर्ति) और क़ब्रें बनाकर पुजते और मदद के लिए पुकारते थे, वो भी नबी, वली, सालेहींन ही थे, जिनके मरने के बाद लोग उनके बुत और क़ब्रें बना कर पूजना शुरू कर देते थे। जैसे सुरह नूह में पांच (5) बुतों का ज़िक्र है जिन्हें नुह अलैहिस्सलम की क़ौम पूजती थी, जैसे "वध, सवा, याग़ूस, या'उक और नस्र" और सही बुख़ारी में सुरह नूह की तफ़सीर है, के ये पांचो हज़रात नुह की क़ौम के सालेहींन और 'नेक' लोगों के नाम थे, जब उनकी मौत हो गयी तो शैतान ने उनके दिल में डाला के अपनी मजलिसों में जहां वो बैठते थे, उनके बुत क़ायम करले और उन बुतों के नाम अपने नेक लोगों के नाम पर रख लें, चुनांचह उन लोगों ने ऐसा ही किया,
    उस वक़्त उन बुतों की पूजा नहीं होती थी लेकिन जब वो लोग भी मर गए जिन्होने 'बुत' क़ायम किए थे और इल्म लोगों में ना रहा तो उनकी पूजा होने लगी''(सही बुख़ारी : 4920)
    हज़रत इब्न अब्बास रज़ि ने कहा के 'लात' एक शख़्स को कहते थे जो हाजियों के लिए सत्तू घोलता था"
    (सही बुख़ारी :4859)

    मक्का में बुत:

    और मुशरिकीन ए मक्का बैतुल्लाह में हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम और हज़रत इस्माइल अलैहिस्सलाम के बुत भी रख कर पूज रहे थे, जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मक्का में दाख़िल हुए तो बैतुल्लाह के चारो तरफ़ 360 बुत थे। रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक 'छड़ी' (लकड़ी) से जो हाथ में थी, मारते जाते थे और इस आयत की तिलावत करते जाते के "हक़ क़ायम हो गया और बातिल मग़लूब हो गया, हक़ क़ायम हो गया और बातिल से ना शुरू में कुछ हो सका है ना आइन्दा कुछ हो सकता है" (42:87)
    और रसूल अल्लाह (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) बैतुल्लाह में उस वक़्त तक दाख़िल नहीं हुए जबतक उसमे बुत मौजुद रहे बल्कि आपने हुक्म दिया और बुतों को बाहर निकाल दिया गया, उन्हीं में एक तस्वीर हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की भी थी "
    (सही बुख़ारी : 4288)
    हज़रत आयशा (रज़ि अल्लाहु अन्हा) ने बयान किया के "जब नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बीमार हुए तो आपकी बाज़ बिवियों ने एक 'गिरजे' का ज़िक्र किया, जिसे उन्होने हब्शा में देखा था, जिसका नाम मारया था, उम्मे सल्लम और उम्मे हबीबा (रज़ि अल्लाहु अन्हा) दोनों हब्शा गई थीं, उन्होने उसकी ख़ूबसूरती और उस में रखी हुई "तस्वीर" का भी ज़िक्र किया, उसपर रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने सर मुबारक उठा कर फ़रमाया के
     "ये वो लोग है के जब उन में कोई 'नेक' शख़्स मर जाता तो उसकी क़ब्र पर मस्जिद तामीर कर देते फिर उसकी 'मूर्त' (मूर्ति) उस में रखते, अल्लाह के नज़दीक ये लोग सारी मख़लूक़ में बदतरीन है''
    (सही बुख़ारी : 1341)
    "बेशक जिन्हे तुम अल्लाह को छोड़ कर पुकारते हो वो तुम्हारे ही जैसे बंदे है तो अगर तुम सच्चे हो तो उन्हे पुकारो फिर उन्हे चाहिए के तुम्हें जवाब दे"
    (सूरह आराफ़, आयत 194)
    यहूद ओ नसारा ने अपने नबियों की क़ब्रों को सज्दागाह बना लिया था, इसी क़ब्र परस्ती में मुब्तला होकर वो अल्लाह ताआला की लानत का शिकार हुए, जिस तरह आज के मर्दुद क़ब्र परस्त अल्लाह की लानत के शिकार हो रहे हैं

    नबी ﷺ की क़ब्र हुजरे में क्यूं 

    Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (Part:4)
    Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क



    हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहू अन्हा से रिवायत है के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मरज़ुल मौत में फ़रमाया “यहूद और नसारा पर अल्लाह की लानत हो, उन्होने अपने अंबिया की क़ब्रों को इबादत गाह बना लिया, हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहू अन्हा ने कहा के अगर ऐसा डर ना होता तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्र खुली रहती, क्योंकि मुझे डर इसका है के कहीं आप की क़ब्र भी सजदागाह न बना ली जाए" (सही बुख़ारी : 1330)
    और आजका ये "लानती" क़ब्र परस्त भी उसी तरह के उल्टे जवाब देता है, जिस तरह मुशरिक नबियों को देते थे, जैसे हम उन्हे अल्लाह नहीं समझते, न ही अल्लाह के बराबर समझते हैं बल्कि उनकी क़ब्र को ऊंचा करके उसपर उर्स, मेला, चादर, झंडा, कव्वाली नृत्य, संगीत, सज्दा, चिराग़, नज़रो-नियाज़, जानवर ज़िबाह, इबादत नमाज़ वा तिलावत आदि और उनसे मन्नत और वास्ता-वसीला लेते हैं और तरह-तरह के शिरकिया अमल इसलिये करते हैं ताकि ये औलिया और नेक लोग, हमको अल्लाह के 'क़रीब' पहूँचा दें और हमको अल्लाह का क़ुर्ब हासिल हो जाये या अल्लाह के यहां हमारी सिफ़ारिश करदे, इसी 'अमल' को अल्लाह तआला ने "शिर्क" और इबादत-ए-ग़ैरूल्लाह क़रार दिया है

    Read This: Dua Sirf Allah se

    क़ुरआन में मुशरिकों के अक़्वाल

    अल्लाह ने सुरह ज़ुमर में फ़रमाया :-
    "ख़बरदार! अल्लाह तआला ही के लिए ख़ालिस इबादत करना है और जिन लोगों ने उसके सिवा "औलिया" बना रखे हैं और कहते हैं के हम उनकी इबादत सिर्फ़ इसलिये करते हैं के हम को ये (बुज़ुर्ग), अल्लाह के क़रीब पहुँचा दें"
    (सुरह ज़ुमर - आयत 3)
    "और ये लोग अल्लाह को छोड़ कर ऐसी चीज़ो की इबादत करते हैं, जो उनको ना नफ़ा पाहुंचा सकते और न नुक़सान और कहते हैं के ये अल्लाह के पास हमारे "सिफ़ारशी" हैं, आप कह दीजिये के क्या तुम अल्लाह को ऐसी चीज़ की ख़बर देते हो, जो अल्लाह तआला को मालुम नहीं, ना आसमान में और ना ज़मीन में, वो पाक और बरतर है उन लोगों के शिर्क से”(सुरह यूनुस, आयत 18)
    यानि वो जानते थे के नफ़ा और नुक़सान पहंचाने वाला सिर्फ़ एक अल्लाह ही है, लेकिन इन बुज़ुर्गो की सिफ़रिश से अल्लाह हमारी ज़रुरते पूरी करता है, हमारी बिगड़ी बना देता है, इनके ज़रिया से अल्लाह का क़ुर्ब हासिल होता है, यानी वो जिनकी पूजा करते थे उन्हें अपने और अल्लाह के दरमियान वास्ता-वसीला समझते थे, ना के उन्हीं को ख़ालिक ओ मालिक समझते थे, बल्कि वो हर चीज का ख़ालिक ओ मलिक सिर्फ़ अल्लाह ही को मानते थे, और बहुत से अमल करते थे जैसे उन्हें मदद के लिए पुकारना, सज्दा करना, दरबार का मुजावर बनकर बैठना, जानवर ज़िबाह करना, चढ़वा-चढ़ाना, नज़रो नियाज़ आदि
    और यही सब काम उनका शिर्क था, इसी वजह से वो काफ़िर क़रार पाए, उन्हे क़त्ल किया गया, क़ैदी बनाया गया, उनसे जंगे लड़ी गई और उन्हें 'जहन्नुमी' क़रार दिया गया

    मरज़ुल मौत के वक्त नबी ﷺ के फ़रमान 

    बिल्कुल यही अक़ीदे आज के क़ब्र परस्त मुशरिकों के हैं,

    हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहू अन्हा से रिवायत है के नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मरज़ुल मौत में फ़रमाया "यहूद और नसारा पर अल्लाह की लानत हो, उन्होने अपने अंबिया की क़ब्रों को इबादत गाह बना लिया" (सही बुख़ारी)
    रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "मुझ को हद से ना बढ़ाना, जिस तरह ईसाइओं ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को हद से बड़ा दिया, मैं सिर्फ़ एक बंदा हूं, मुझे तुम सिर्फ़ अल्लाह का "बंदा" और उसका रसूल कहना"(बुख़ारी और मुस्लिम)
    हज़रत जाबिर रज़ि अल्लाहू अन्हु कहते हैं के मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने "क़ब्र को छूने से पुख़्ता करने, उसपर बैठने और उसपर इमारत बनाने से मना फ़रमाया है"
    (सही मुस्लिम)
    और नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "या अल्लाह! मेरी क़ब्र को 'बुत' न बनने देना, जिसकी पूजा की जाए''(मुसनद अहमद)
    रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया "मेरी बात ग़ौर से सुनो! तुम से पहले लोग अपने अंबिया की क़ब्रों को इबादत गाह ही तस्व्वुर करते थे, ख़बरदार! तुम ऐसी ग़लती मत करना, में तुमको ऐसा करने से सख़्ती से मना करता हूं” ।(सही मुस्लिम)
    लेकिन इन क़ब्र परस्तों ने, आज रसूल अल्लाह ﷺ  की नाफ़रमानी करते हुए, ऊँची क़बरों को तोड़ने के बजाये उल्टा अपने बुज़ुर्गों की क़ब्रों को ऊंचा कर के उन्हें इबादत गाह बना लिया है, वहाँ नमाज़, तिलावत, हज, सज्दा, जानवर ज़िबाह, नज़र ओ नियाज़, चढ़वा-चढ़ाना, क़व्वाली, संगीत बाजा, नृत्य, और तरह-तरह की अय्याशियां हो रही हैं, अल्लाह इन मर्दूदों को हिदायत अता करे अमीन
    और ये क़ब्र परस्त, मुशरिकीन ए मक्का से भी बत्तर है, क्योंकि वो मुसीबत में अल्लाह को पुकार लिया करते थे, लेकिन ये क़ब्र परस्त मुसीबत में भी ग़ैरुल्लाह को पुकारते हैं।
    "जब ये लोग" कश्तियों " में सवार होते हैं, तो अल्लाह तआला ही को पुकारते हैं, उसके लिए इबादत को 'ख़ालिस' कर के, फिर जब वो उन्हे "ख़ुश्की" की तरफ़ बचा लाता है, तो उसी वक़्त शिर्क करने लगते हैं”। (सुरह अंकबूत, आयत 65)

    शिर्क की माफ़ी नहीं

    याद रखिये शिर्क इतना बड़ा गुना है के अल्लाह माफ़ नहीं करेगा, अल्लाह फरमाता है :
    "अल्लाह के यहाँ शिर्क की बख़्शिश ही नहीं उसके सिवा और सब कुछ माफ़ हो सकता है जिसे वो माफ़ करना चाहे"(सूरह निसा, आयत 116)
    “ऐ नबी! तुम्हारी तरफ़ और तुम से पहले गुज़रे हुए अंबिया की तरफ़ ये "वहि" भेजी जा चुकी है के अगर तुमने शिर्क किया तो तुम्हारे भी 'आमाल' बर्बाद हो जाएंगे और तुम ख़सारा पाने वाले में से हो जाओगे (सुरह ज़ुमर, आयत 65)
    "जिसने अल्लाह के साथ शिर्क किया उसपर अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है और उसका ठिकाना जहन्नुम है"(सुरह मायदा, आयत 72)
    "सुनो, अल्लाह के साथ शरीक करना वाला, गोया आसमान से 'गिर' पड़ा, अब या तो "परिंदे" ऊंचा ले जाएंगे, या हवा किसी दूर दराज़ की जगह फ़ेक देगी"
    (सुरह हज, आयत 31)
    “ऐ नबी! अल्लाह के साथ किसी दूसरे माबुद को न पुकारो, वरना तुम भी 'सज़ा' पाने वालों में शामिल हो जाओगे''(सुरह शुआरा, आयत 213)
    तमाम अंबिया ने अपनी उम्मत को यही दावत दी है के अल्लाह ही की इबादत करो, उसके सिवा तुम्हारा कोई इलाह नहीं,

    तमाम नबियों की एक ही दावत "तौहीद"

    अल्लाह ने शिर्क को मिटाने के लिए नबियों को भेजा, लेकिन मर्दूदों ने उल्टा नबियों ही की इबादत करनी शुरू करदी,
    "किसी ऐसे इंसान को, जिसे अल्लाह तआला किताब व हिकमत और नबुवत दे, ये लायक़ नहीं के फ़िर भी वो लोगों से कहे के तुम अल्लाह ताआला को छोड़ कर मेरे 'बंदे' बन जाओ, बल्कि वो तो कहेगा के तुम सब रब के हो जाओ, तुम्हारे किताब सिखाने के बाईस और तुम्हारे किताब पढ़ने के सबब, और ये नहीं (हो सकता) के वो तुम्हें, फ़रिश्तों और नबियों को रब बना लेने का हुक्म करे, क्या वो तुम्हारे मुस्लमान होने के बाद भी तुम्हें कुफ्र का हुक्म देगा 
    (सुरे आले इमरान, आयत 79-80)
    "बेशक में ही अल्लाह हूं, मेरे सिवा इबादत के लायक़ और कोई नहीं, पस तू मेरी ही इबादत कर, और मेरी याद के लिए नमाज़ क़ायम रख"(सुरह ताहा, आयत 14)
    "और वो दिन भी क़ाबिल ए ज़िक्र है, जिस रोज़ हम उन सबको जमा करेंगे, फिर मुशरिकिन से कहेंगे के तुम और तुम्हारे 'शरीक' अपनी अपनी जगह ठहरो, फ़िर हम उनके आपस में फूट डाल देंगे (यानी उनके अक़ीदते, अदावत मैं तब्दील हो जायेगी) और उनके वो शूरका (जिनकी इबादत करते थे) कहेंगे के तुम हमारी इबादत नहीं करते थे, लिहज़ा हमारे और तुम्हारे दरमियान अल्लाह काफ़ी है 'गवाह' के तोर पर, के हम को तुम्हारी इबादत की ख़बर भी ना थी वहाँ हर शख़्स जान लेगा के उसने अपनी ज़िंदगी में क्या कुछ किया था, और वो अल्लाह तआला की तरफ़ जो उनका हक़ीक़ी मालिक है लौटाये जाएंगे और जो कुछ झूठ बांधा करते थे सब उनसे (उनके ज़हन से) ग़ायब हो जायेगा"
    (सुरह यूनुस, आयत 28-30)

    गैरुल्लाह को पुकारने वाले

    अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला ग़ैरुल्लाह को पुकारने वालों से मुतल्लिक फरमाता है:
    “और जो लोग अल्लाह तआला के सिवा जिन ग़ैरुल्लाह को मदद के लिए पुकारते हैं, वो किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते हैं, बल्कि वो ख़ुद पैदा किए हुए है, मुर्दा है, ज़िंदा नहीं है और उन्हें ख़बर नहीं है के वो ख़ुद (अपनी क़ब्रों से) कब उठाए जायेंगे”
    (सुरह नहल, आयत 20-21)
    "सुनो! जिन जिन की तुम अल्लाह तआला के सिवा इबादत (पूजा पाठ) कर कहे हो, वो तो तुम्हारी "रोज़ी" के मालिक नहीं, पस तुम्हे चाहिए के तुम अल्लाह ताआला ही से रोज़िया तलब करो, और उस की इबादत करो और उसी की शुक्र गुज़ारी करो, और उसी की तरफ़ तुम लौटाये जाओगे"(सुरेह अंकबूत, आयत 17)
    अल्लाह के सिवा कोई नबी या वली नफ़ा और नक़सान का इख़्तियार नहीं रखते, बल्कि वो ख़ुद अल्लाह को पुकारते हैं
    "आप कह दीजिये के में तो सिर्फ़ अपने रब ही को पुकारता हूं और उसके साथ किसी को शरीक (साझा) नहीं करता, कह दीजिए के में तुम्हारे लिए, न किसी नुक़सान का इख़्तियार रखता हूं और न किसी भलाई का, कह दीजिए कह मुझे हरगिज़ कोई अल्लाह से बचा नहीं सकता और मैं हरगिज़ कोई उसके सिवा जायें-पनाह भी पा नहीं सकता”
    (सुरेह जिन्न, आयत 20-22)
    और ना ही अल्लाह के सिवा कोई तकलीफ़ और मुसीबत को दूर कर सकता है !
    "और अगर तुझ को अल्लाह तआला कोई तकलीफ़ पहुंचाये तो उसे दूर करने वाला सिवा अल्लाह ताआला के और कोई नहीं और अगर तुझ को अल्लाह तआला कोई" नफ़ा "पहूँचाये तो वो हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत रखने वाला है"
    (सुरह अनाम, आयत 17)

    Read This: Eid Milad un Nabi ki Haqeeqat

    सारी बादशाहत अल्लाह ही की है:

    Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (Part:4)
    Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क


    और जिन-जिन को लोग अल्लाह तआला के सिवा इबादत करते हैं और मदद के लिए पुकारते हैं, उन्होने आसमान व ज़मीन मैं कौन-सी चीज़ 'पैदा' की है? कोई एक चीज़ तो बतलाओ?
    "उसने आसमान को बग़ैर सुतून के पैदा किया है, तुम उन्हे देख रहे हो और उसने ज़मीन मैं पहाड़ों को डाल दिया, ताकि वो तुम्हें जुम्बिश ना दे सकें, और हर तरह के जान्दार ज़मीन में फैला दिये और हमने आसमान से "पानी" बरसा कर ज़मीन मैं हर क़िस्म के नफ़ीस जोड़े उगा दिए, ये है अल्लाह की मख़लूक़, अब तुम मुझे उसके सिवा दुसरे किसी की कोई 'मख़लूक़' तो दिखाओ? (कुछ नहीं) बल्कि ये 'ज़ालिम' खुली गुमराही मैं है''
    (सुरह लुक़मान, आयत 10-11)
    "कह दिजिये! के अल्लाह के सिवा जिन का तुम्हें ग़ुमान है, सबको पुकारो, वो आसमानों और ज़मीनों में ज़र्रा बराबर भी इख़्तियार नहीं रखते, और ना उनका, उन दोनो में कोई हिस्सा है, और ना उन में से कोई अल्लाह का मददगर ही है”
    (सुरह सबा, आयत 22)
    Note: जब हर चीज़ का ख़ालिक़ सिर्फ़ और सिर्फ़ अल्लाह है, तो इबादत का मुस्तहिक़ भी सिर्फ़ वही है, उसके सिवा कायनात मैं कोई हस्ती इस लायक़ नहीं के उसकी इबादत की जाए और मदद के लिए पुकारा जाए !
    सूरह अल फातिहा में नेक और सलीहीन से मुतल्लिक़ ज़िक्र है कि वो ख़ालिस अल्लाह को पुकारा करते थे
    "हम सिर्फ़ तेरी ही इबादत करते हैं और सिर्फ़ तुझ ही से मदद मांगते हैं"
    (सुरह फातिहा, आयत 5)
    Note: गौर करने वाली बात है कि आज के क़ब्र परस्त, बुज़ुर्ग परस्त नमाज़ में तो 
    " ईय्याक नआ बुदू व ईय्याक नस तईन" पढ़ते हैं यानी "हम सिर्फ़ तेरी ही इबादत करते हैं और सिर्फ़ तुझ ही से मदद मांगते हैं" और जैसे ही नमाज़ से फारिग या मस्जिद से बाहर होते हैं तो दूसरे को मदद के लिए पुकारने शुरू कर देते हैं! अल्लाह को छोड़ कर दुःख परेशानी में पीरो ,मजारों और दरबारों का चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं! ये कैसी मोहब्बत है अल्लाह से, यह शिर्क नहीं तो क्या है !

    इस नुक़्ते पर मज़ीद गुफ्तगूं इन्शाअल्लाह अगले पार्ट Tauheed aur shirk (part:5) में पेश की जायेगी। इन शा अल्लाह

    Conclusion:

    अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हमे बिदअत और शिर्क से बचाए और वही दींन पर अमल करने की तौफ़ीक अता करे जो दींन रसूल अल्लाह छोड़ कर गए थे, आमीन।


     👍🏽          ✍🏻          📩      📤      🔔

              Like comment save share subscribe 



    FAQs:

    Que: शिर्क और बुत परस्ती की बुनियाद क्या है ?
    Ans: नेक लोगो से मुहब्बत और तारीफ़ में गुलू करना यानी हद से बढ़ना एक बुनियाद होती है शिर्क और बुत-परस्ती की।

    Que: सबसे बदतरीन मख़लूक़ किन्हें कहा गया है ?
    Ans: नबी ﷺ ने फरमाया: सबसे बदतरीन मख़लूक़ वो हैं जब इन लोगो मे से कोई नेक बंदा मर जाता है, तो ये लोग उनकी क़ब्र पर इबादत की जगह बना लेते हैं और रंग (पेंट) देते हैं उसको कुछ तस्वीरों से। ये अल्लाह के नज़दीक़ सबसे बदतरीन मख़लुक़ हैं।{सहीह अल बुख़ारी-427

    Que: क्या नबी ﷺ की वफ़ात के बाद सहाबा उनकी क़ब्र पर मदद हासिल करने आते थे?
    And: जब रसूलअल्लाह ﷺ की वफ़ात हो गयी तो सहाबा कभी नबी ﷺ की क़बर पर मदद के लिए नहीं गए बल्कि उनके चाचा से दुआ करने को कहते थे! और यह हदीस और वज़ाहत करती है : जब एक ख़ातून आप ﷺ के पास आई और वापस आने का हुक्म दिया था। ख़ातून ने फ़रमाया अगर आप नही हुए तो, जैसे वो कहना चाहता हो की अगर आप फौत हो गए तो? "रसूलअल्लाह ﷺ ने फ़रमाया की अगर तुम मुझे न पाना तो अबू बक्र के पास जाना।”
    सही बुख़ारी (वॉल्यूम 5, किताब 57, हदीस 11)

    Que: आज के क़ब्र परस्तों का क्या अकीदः है ?
    Ans: आज के क़ब्र परस्त कहते हैं के हम "क़ब्रों" की इबादत नहीं करते और न हम उन क़ब्र वालों को अल्लाह समझते, उन्हे ख़ालिक और मलिक नहीं समझते, और ना ही उन्हें अल्लाह समझ कर उनसे "मदद" मांगते हैं, बल्कि यह अल्लाह के 'नेक' बंदे हैं, इन्हे भी अल्लाह तआला ने कुछ इख्तियारत दे रखे हैं और हम इनके ज़रीये से अल्लाह का 'क़ुर्ब' हासिल करते हैं

    Que: नबी ﷺ की क़ब्र हुजरे में क्यूं ?
    Ans: हज़रत आयशा रज़ि अल्लाहू अन्हा ने कहा के अगर ऐसा डर ना होता तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की क़ब्र खुली रहती, क्योंकि मुझे डर इसका है के कहीं आप की क़ब्र भी सजदागाह न बना ली जाए" (सही बुख़ारी : 1330)

    Que: मरज़ुल मौत के वक्त नबी ﷺ ने क्या फ़रमाया ?
    Ans: नबी ﷺ ने फ़रमाया: 
    1. यहूद और नसारा पर अल्लाह की लानत हो, उन्होने अपने अंबिया की क़ब्रों को इबादत गाह बना लिया" (सही बुख़ारी)
    2. मुझ को हद से ना बढ़ाना, जिस तरह ईसाइओं ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को हद से बड़ा दिया,
    3. क़ब्र को पुख़्ता करने, उसपर बैठने और उसपर इमारत बनाने से मना फ़रमाया है"
    4.  "या अल्लाह! मेरी क़ब्र को 'बुत' न बनने देना, जिसकी पूजा की जाए''(मुसनद अहमद)
    5. मेरी बात ग़ौर से सुनो! तुम से पहले लोग अपने अंबिया की क़ब्रों को इबादत गाह ही तस्व्वुर करते थे, ख़बरदार! तुम ऐसी ग़लती मत करना, में तुमको ऐसा करने से सख़्ती से मना करता हूं” ।(सही मुस्लिम)

    Post a Comment

    0 Comments