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Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (part:5)

Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (part:5)

Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (part:5)
Tauheed aur shirk



हमने पिछले भाग में जाना की Tauheed Aur Shirk क्या है ?और यह भी पढ़ा कि किसी की मुहब्बत में गुलू करना कितना खतरनाक है ,की मोहब्बत में हद से अधिक बढ़ना उसे शिर्क तक पहुंचा देता है ! एक मोमिन के लिए तौहीद की बहुत बड़ी अहमियत है ! अब Tauheed Aur Shirk part:5 की तरफ चलते हैं की शिर्क करने से और क्या क्या हम नुकसान उठाने वाले हैं ?

    अल्लाह तआ़ला फ़रमाता हैं :बेशक अल्लाह नहीं बख़्शेगा की उस के साथ शिर्क किया जाए और बख़्श देगा जो इस के इलावा होगा, जिसे वो चाहेगा। और जो कोई अल्लाह के साथ शिर्क करे, तो वो गुमराही मे बहुत दूर निकल गया!(सूरह निसा: 116)
    जिसने अल्लाह के साथ किसी को शरीक किया, अल्लाह ने उसपर ज़न्नत हराम कर दिया उसका ठिकाना जहन्नम है और जालिमो का कोई मददगार न होगा (सुरह् अलमईदा:72)

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    सिर्फ़ अल्लाह ही से मदद क्यू??




    अबू ज़र (रज़ि) से रिवायत है की उन्होन रसूलुल्लाह ﷺ से सुना कि अल्लाह सुबहानहु ने फ़रमाया : 

    1. "ऐ मेरे बंदो मैंने ज़ुल्म को अपने ऊपर हराम किया है और तुम पर भी हराम किया... तो एक दूसरे पर ज़ुल्म न किया करो"
    2. "ऐ मेरे बंदो तुम सब गुमराह हो सिवा उसके जिसे मैंने हिदायत दी.. तुम मुझसे हिदायत मांगो मैं तुम्हें हिदायत दूंगा"
    3. "ऐ मेरे बंदो तुम सब भूखे हो सिवा उसके जिसे मैं ने खाना खिलाया... तुम मुझसे खाना मांगो।मैं तुम्हें खाना दूंगा.."
    4. "ऐ मेरे बंदो तुम सब नंगे हो सिवा उसके जिसे मैंने लिबास पहनाया..तुम मुझसे लिबास मांगो।मैं तुम्हें लिबास दूंगा"
    5. "ऐ मेरे बंदो तुम रात दिन गुनाह करते हो और मैं सब गुनाहों को माफ़ करता हूं... तो मुझ से मग़फिरत माँगो मैं तुम्हारे गुनाह माफ़ करूँगा"
    6. “ऐ मेरे बंदो तुम मेरा कुछ नुक़सान नहीं कर सकते और न मुझे फ़ायदा पहुंचा सकते हो।
    7. ऐ मेरे बंदो अगर तुम्हारे अगले और पिछले और आदमी और जिन्नात सब ऐसे हो जाएं जैसे तुम मैं का इन्तेहाई मुत्तक़ी (बड़ा परहेजग़ार) तो मेरी सल्तनत मैं कोई इज़ाफ़ा (Addition) नही हो सकता ।
    8. "मेरे बंदों अगर तुम्हारे अगले और पिछले और आदमी और जिन्नात सब मिलकर ऐसे हो जाएं जैसे ज़मीन के फ़ाजिर आदमी के दिल के मुताबिक़ (बड़ा बदकार शख़्स) तो मेरी सल्तनत मैं से कुछ कमी ना होगी "
    9. "ऐ मेरे बंदो अगर तुम्हारे अगले, पिछले और आदमी और जिन्नात सब एक मैदान में खड़े हों फिर मुझसे मांगना शुरू करे और मैं हर एक को जितना मांगे दे दू तब भी मेरे पास जो कुछ है वो कम ना होगा मगर इतना जैसे दरिया मैं सुईं डाल कर निकल लो।”
    10. "ऐ मेरे बंदो ये तुम्हारे ही आमाल हैं जिनको तुम्हारे लिए शूमार करता रहता हूं फिर तुमको इन आमाल का पूरा बदला दूंगा ... तो जो शख़्स बेहतर बदला पाए उसे चाहिये की अल्लाह सुबहानहु का शुक्र करे की उसकी कमाई बेकार नहीं गयी और जो बुरा बदला पाए तो अपने ही आपको बुरा समझे।”

    हज़रत सईद रज़ि अल्लाहु अन्हु ने कहा की अबू इदरीस जब ये हदीस ब्यान करते तो अपने घुटनो के बल गिर पड़ते।(सहीह मुस्लिम, 6572 )


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    क्या अल्लाह हमारे लिए काफ़ी नहीं??

    Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (part:5)
    Tauheed aur shirk



    क़ुरआन में अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान है कि:
    1. “वाक़ई, तुम अल्लाह को छोड़ कर जिन को पुकारते हो, वो भी तुम्हारी तरह अल्लाह के बंदे हैं, तो तुम इनको पुकारो! फिर इन्हे भी चाहिए के तुम्हारा जवाब दे, अगर तुम सच्चे हो।”[सुरह आराफ़, आयत 194]
    2. और अगर अल्लाह तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे तो इस के सिवा उसे कोई दूर करने वाला नहीं या अगर वो तुम्हारे साथ भलाई का इरादा करे तो कोई उस के फ़ज़ल को रद करने वाला नहीं वो अपने बंदों में से जिसे चाहता है अपना फ़ज़ल पहुँचाता है और वो बड़ा बख्शने वाला निहयत मेहरबान है।[सुरह यूनुस आयत 107]
    3. "जिन जिन को ये लोग अल्लाह के सिवा पुकारते हैं, वो (लोग) किसी चीज़ को पैदा नहीं कर सकते, बल्कि वो तो ख़ुद पैदा किए गए हैं, (और वो) मुर्दे हैं, ज़िंदा नहीं, उन्हें तो ये भी ख़बर नहीं के ( अपनी क़ब्रों) से कब उठाए जायेंगे।(सुरह अल नहल 20-21)
    4. ये लोग आपको अल्लाह के सिवा औरों से डरा रहे हैं, जिसे अल्लाह गुमराह कर दे उसकी रहनुमाई करने वाला कोई नहीं।[सुरह-ज़ुमर, आयत-नं 35]

    और अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला का फ़रमान की अल्लाह हर एक के लिए काफ़ी है 

    1. "और अल्लाह-तआला पर जो भरोसा रखता है उसके लिए अल्लाह ही काफ़ी है"[सुरह अत तलाक़, आयत-नं 03]
    2. और उससे बढ़कर गुमराह कौन है जो अल्लाह के अलावा ऐसो को पुकारे जो उसका क़यामत तक जवाब नई दे सकते, बल्कि वो तो ग़ाफ़िल है उनकी पुकार से।[सुरह अल-अहक़ाफ़ 46:5]

     चलिये देखते हैं उन हस्तियों यानी पीरो ,बुजुर्गों से मुतल्लिक़ जिनसे कुछ मुस्लिम अपनी मुरादे मांगते हैं..क़यामत के दिन वो क्या जवाब देंगे:


     

    1. “और जिस दिन अल्लाह तआला इन्हें और अल्लाह के अलावा जिनकी ये इबादत करते हैं उन्हें जमा करेगा के किया मेरे इन बंदों को तुम ने गुमराह किया या ये ख़ुद ही राह से गुमराह हो गए। वो जवाब देंगे के तू पाक ज़ात है ख़ुद हमें ही ये ज़ैबा ना था के तेरे सिवा औरों को अपना मददगार (औलिया) बनाते। बात ये है के तू ने इन्हें और इनके बाप-दादों को आसूदगियां अता फरमाई यहां तक के वो नसीहत भुला बैठे ये लोग थे ही हलाक होने वाले।
    2. तो इन्होंने तो तुम्हें तुम्हारी तमाम बातों में झूठलाया अब ना तो तुम में अज़ाबो के फ़ेरने की ताक़त है ना मदद करने की तुम मैं से जिस जिस ने ज़ुल्म किया है हम उसे बड़ा अज़ाब चखायेंगे।”[सुरह 25, आयत 17-19]
    3. ऐ नबी ﷺ  कह दिजिये इन्सानों से के तुम्हारा नफ़ा और नुक़सान का इख़्तियार सिर्फ़ अल्लाह के पास है।(सुरह जिन:21)
    4. ऐ लोगो! तुम सिर्फ़ मेरे दर के फ़कीर हो।(सुरह फातिर:15)
    5. और तुम्हारे रब का फ़रमान है की मुझसे माँगो मैं तुम्हारी दुआओ को क़ुबूल करुंगा।(सुरह मोमिन:60)
    और अल्लाह सुबहा़न व तआ़ला फ़रमाता है:लोगो! बन्दगी इख़्तियार करो अपने उस रब की जो तुम्हारा और तुमसे पहले जो लोग हो गुज़रे हैं उन सबका पैदा करनेवाला है, तुम्हारे बचने की उम्मीद इसी सूरत से हो सकती है।

    1. “यही तुम्हारा रब है इसी की हुकुमत है और जिनको तुम अल्लाह के इलावा पुकारते हो वह खजूर की गुठली (बीज) के बराबर भी इख़्तियार नहीं रखते, अगर तुम उनको पुकारो तो वे तुम्हारी सुनेंगे भी नहीं और अगर सुन भी लें तो तुम्हारा कुछ भी ना कर सकेंगे और क़ियामत के दिन तुम्हारे इस शिर्क का साफ़ इंकार कर जायेंगे आप को कोई भी हक़ तआला जैसा ख़बरदार ख़बरे ना देगा”[सुरह फ़ातिर 13,14]
    2. "आप कह दिजिये तुमने अपने ख़ुदाई शरिकों के हाल पर भी नज़र की है जिन्हे तुम अल्लाह के सिवा पुकारते हो ज़रा मुझे भी बताओ की उन्होंने ज़मीन का कौन-सा हिसा (पार्ट) बनाया है या उनका आसमान मैं कुछ साझा है या हमने उनको किताब दी है कि ये उसी दलील पर क़ायम हैं?"[सुरह फ़ातिर - 40] 


    और ज़्यादा ताक़ीद करते हुए अल्लाह ने फ़रमाया :

    1. "और जिनको तुम अल्लाह के इलावा पुकारते हो वह ना तो तुम्हारी ही मदद कर सकते हैं और न अपनी मदद कर सकते हैं"[सुरह आराफ़ - 197]
    2. "और तुम्हारा अल्लाह के इलावा कोई भी न कारसाज़ है और न मददगार"[सुरह अश शूरा - 31]
    3. "कह! भला बताओ तो अल्लाह के इलावा तुम जिनको पुकारते हो अगर अल्लाह मुझे कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे तो क्या ये उसकी दी हुई तकलीफ़ को दूर कर सकते हैं या अल्लाह मुझ पर इनायत करना चाहे तो ये उसकी इनायत को रोक सकते हैं"[सुरह ज़ुमर - 38]
    4. “वह जो सब बेक़रार की फ़रियाद सुनता है जब वह उसे पुकारता है और मुसीबत को दूर करता है और तुमको ज़मीन में तसर्रुफ़ वाला बनाता है क्या अल्लाह के इलावा और कोई भी इलाह है? तुम लोग बहुत कम ही ग़ौर करते हो”[सुरह नमल - 62]
    5. "कह दिजिये कि तो क्या तुमने (फ़िर भी) उसके इलावा और कारसाज़ क़रार दे लिए हैं जो अपनी ही ज़ात के लिए नफ़ा वा नुक़सान का इख़्तियार नहीं रखते"[सुरह राद - 16]
    6. "और उससे बढ़कर गुमराह कौन होगा जो अल्लाह के इलावा औरों को पुकारे जो क़ियामत तक भी उसकी बात न सुने बल्कि उनके पुकारने की ख़बर तक ना हो"[सुरह अहक़ाफ - 5]
    7. "ऐ नबी सल्लल्लाहु अलैही वसल्लम! आपको और और आपके पैरोकार अहले ईमान को बस अल्लाह ही काफ़ी है”।[सुरह अनफ़ाल - 64]
    8. मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
    9. "अल्लाह उस से नराज़ होता है जो अल्लाह से नहीं मांगते"।[सुनन तिर्मिज़ी (पुस्तक 48, हदीस 4)]
    10. "(ऐ मुहम्मद ﷺ) और जब आप से ये मेरे बंदे मेरे बारे में पुछा करें तो उनसे कह दो की मैं क़रीब ही हूं, पुकारने वाले की पुकार को सुनता हूँ और क़ुबूल करता हूं जब कभी भी वो मुझे पुकारे तो (लोगो को) भी चाहिये की मेरे अहकामों को मानें और मुझपर ईमान लाएं ताकी वो हिदायत पा जाएं"।[सुरह बक़राह - 186]


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    इस्लाम में मज़ार का तसौव्वर 




    हमारे मआशरे में एक और शिर्क देखने को मिलता है जो एक ख़ास तबक़े के अंदर कुछ ज़्यादा ही है और वो है ... मज़ार पे कसरत के साथ जाना, वहां रौशनी करना, वहां सजदे करना और फिर मज़ार वालों से मन्नतें मांगना, उनसे अपनी हाजतें बयान करना और उनके सामने झोली फैला कर माँगना जैसा के वो ही अल्लाह हों, फिर मन्नत पूरी हो जाने की सूरत में उनकी क़ब्र पे चादर चढ़ाना, वहाँ उन मज़ार वालों की तारीफ़ में क़व्वालियां पढ़ना वग़ैराह वग़ैराह....
    ये कहाँ तक सही है और क़ुरआन और हदीस में इसका क्या हुक्म है ?
    जब आप उन लोगों से सवाल करें के क्यों आप क़ब्र वालों से, मज़ार वालों से मांगते हो तो ये कहते हैं के हम उनसे नहीं मांगते, हम तो उनको वसीला बनाते हैं के वो (क़ब्र वाले) अल्लाह के नज़दीकी हैं इसलिए वो हमारी बात उन तक पहुंचाएंगे तो अल्लाह हमारी दुआ क़ुबूल करेगा।
    मगर अल्लाह फ़रमाता है :
    देखो, इबादत ख़ालिस अल्लाह ही के लिए हैं और जिन लोगों ने उसके सिवा औलिया बनाए हैं वो कहते हैं के हम इनको इसलिए पूजते हैं की ये हमको अल्लाह के नज़दीकी मर्तबा तक हमारी सिफ़ारिश कर दें, तो जिन बातों में ये इख़्तेलाफ़ करते हैं अल्लाह उनमे इनका फ़ैसला कर देगा, बेशक अल्लाह झूटे और नाशुक्रे लोगों को हिदायत नहीं देता।
    (सुरह ज़ुमर, आयत नंबर 3)

    ग़ौर करने की बात है की हमारी दुआओं को अल्लाह के सिवा कोई क़ुबूल करने वाला नहीं, बस अल्लाह ही हमारा माबूद है, फिर कुछ नाशुक्रे लोग अल्लाह को भूल कर उनके बनाए हुए इंसानो से फ़रियाद करते हैं और उनसे भी जो के क़ब्र के अंदर है अपनी हाजत बयान करते हैं।
    जबकि अल्लाह फ़रमाता है:
    भला कौन बेक़रार की इल्तिजा क़ुबूल करता है, और कौन उसकी तकलीफ़ को दूर करता है,और कौन तुमको ज़मीन में जानशीन बनाता है, (ये सब कुछ अल्लाह करता है) तो क्या अल्लाह के सिवा कोई और भी माबूद है (हरगिज़ नहीं ) मगर तुम बहुत कम ग़ौर करते हो.
    (सुरह अल-नमल , आयत नंबर 62)

    अल्लाह के सिवा कोई हमे नफ़ा या नुक़सान पहुंचने वाला नहीं है, फिर क़ब्र वाले हमे क्या नफ़ा पंहुचा सकते हैं, फिर कुछ नासमझ लोग क़ब्र वालों से ही उम्मीद लगाए बैठे हैं और उन्ही से माँगना जायज़ समझते हैं जो की सरासर शिर्क है।देखें इस video में 



    जाबिर (रज़ि) रिवायत करते हैं कि नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने क़ब्रों पर बैठना, क़ब्र का पक्का करवाना और क़ब्र पर इमारत बनवाना मना फ़रमाया था।
    [सहीह मुस्लिम, किताबुल जनाज़ा, किताब-4, हदीस - 2116]
    सैय्यदना अली ब्यान करते हैं के मुझे रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हुक्म दिया के मैं हर तस्वीर मिटा दूँ और हर ऊँची क़ब्र बराबर कर दूं। [सहीह मुस्लिम: अल जनाज़ा 969]
    सैयदा आयशा (रज़ि अन्हा) रिवायत करती है के एक दफ़ा उम्मत-उल-मोमिन सैयदा उम्मेह सलमा (रज़ि अन्हा) या सईदा उम्मेह हबीबा (रज़ि अन्हा) ने रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से ज़िक्र किया जो उन्होन (हबशा) में देखा था या उसे (मरिया) कहा जाता था, उन्होंने उस गिरजे में लटकी हुई तस्वीर का ज़िक्र भी आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने किया तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
    "ये लोग ऐसे थे के, जब उन में से कोई नेक आदमी मर जाता था तो उसकी क़ब्र पर इबादतगाह बना लेते और फ़िर उस में उसकी तस्वीरें लटका देते, क़यामत के दिन ये अल्लाह के नज़दीक बदतरीन मख़लुक़ मैं से होगें"।
    [सही-बुखारी: 1341]

    नबी ﷺ का क़बर को बुत ना बनने के लिए अल्लाह से दुआ 

    रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया :
    "ऐ अल्लाह मेरी क़ब्र को बुत ना बनाना जिसकी इबादत की जाए। अल्लाह का उस क़ौम पर गज़ब नाज़िल होता है जो अपने नबियो की क़ब्रों को इबादत गाह बना लेते हैं"।
    [मुवत्ता इमाम मलिक 9:88]
    मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया : आग़ाह रहना उन लोगो से जिन्होने अपने नबी और नेक बुज़ुर्गो की क़ब्रों को इबादत की जगह ले लिया है लेकिन तुम मैं से ऐसा कोई मत करना मैं तुम्हें मना फ़रमाता हूँ इस चीज़ से ।
    [साहिह अल बुखारी, (004:1083)]
    रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन लोगो के ऊपर लानत की है, जो लोग क़ब्रों पर जाकर चिराग़ जलाते हैं।
    [सुनन अबू दाऊद, हदीस-3230]
    नोट: बहुत से लोग कहते हैं कि हम बाबा की इबादत कहा करते हैं लेकिन हम तो सिर्फ़ उनसे दुआ मांगते हैं तो उनके इल्म के इज़ाफ़ा के लिए बता दूं की हज़रत-नौमांन-बिन-बशीर (रज़ि अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया दुआ एक इबादत है।
    [जामे तिर्मिज़ी, वॉल्यूम - नंबर: 2,किताब: (किताब-उल-दुआ), हदीस-नं: 1297]

    दुआ एक इबादत है....!! 

    ‘दुआ‘ और ‘पुकार‘ का 'इबादत होना'

    Tauheed aur shirk/तौहीद और शिर्क (part:5)
    Tauheed aur shirk


    आज के मुशरिकीन कहता हैं के मैं सिवाए अल्लाह के किसी की इबादत नहीं करता और नेक लोगों की पनाह लेना और तंगी व तकलीफ़ में मुश्किल कुशाई के लिए उन्हे पुकारना कोई इबादत तो नहीं।
    जवाब :
    हज़रत-नौमांन-बिन-बशीर (रज़ि अल्लाहु अन्हु) से रिवायत है रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया दुआ एक इबादत है। फ़िर आपने सुरह मोमिन की आयत नं 60 पढ़ी, तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रमाया मुझे पुकारो मैं तुम्हारी दुआ क़बूल करूँगा और जो लोग मेरी दुआ से तकब्बुर करते हैं वो ज़लील ओ ख़्वार होकर जहन्नुम मैं दाख़िल होंगे ।
    [जामे तिर्मिज़ी, वॉल्यूम - नंबर: 2,(किताब-उल-दुआ), हदीस-नं: 1297]

    मफ़हूम ऐ हदीस:-

      हजरत अब्दुल्लाह इब्न अब्बास (रज़ि0) का बयान है कि एक दिन मैं अल्लाह के रसूल मुहम्मद (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) के पीछे सवारी पर बैठा था कि आपने फऱमायाः
    तुम अल्लाह के अहकाम की हिफ़ाज़त करो, वह तुम्हारी हिफ़ाज़त फ़रमाए गा, तो अल्लाह के हक़ूक़ का ख़्याल रखो उसे तुम अपने सामने पाओगे, जब तुम कोई चीज़ माँगो तो सिर्फ़ अल्लाह से माँगो, जब तुम मदद चाहो तो सिर्फ़ अल्लाह से मदद तलब करो और यह बात जान लो के अगर सारी उम्मत भी जमा होकर तुम्हें कुछ नफ़ा पहुंचाना चाहे तो तुम्हें उससे ज़्यादा कुछ भी नफ़ा नहीं पहुँचा सकती जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है और अगर वह तुम्हें कुछ नुक़सान पहुँचाने के लिए जमा हो जाए तो उससे ज़्यादा कुछ नुक़सान नहीं पहुँचा सकते जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दिया है, क़लम उठा लिए गए और (तक़दीर के) सहीफ़े ख़ुश्क़ हो गए हैं।[तिर्मिज़ी : 2516]
    नोट:- मज़ारों पर चादर चढ़ाना और क़ब्र परस्ती की हक़ीक़त से मुतल्लिक पोस्ट पढ़ने के लिए दर्जे जील लिंक पर click करें...

    दूसरी एक हदीस में आता है कि –
    प्यारे नबी (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने फ़रमाया: “दुआ इबादत है”, फिर नबी (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने ये आयत पढ़ी-
    “और तुम्हारा परवरदिगार इर्शाद फ़रमाता है- “तुम मुझसे दुआएं माँगों मैं तुम्हारी (दुआ) क़ुबूल करूँगा, बेशक जो लोग हमारी इबादत से तकब्बुर करते (अकड़ते) हैं वह अनक़रीब ही ज़लील व ख़्वार हो कर यक़ीनन जहन्नुम मे दाख़िल होंगे”
    (सुरह ग़ाफ़िर आयत 60),(जामे तिर्मिज़ी - 3555)

    Read This:  Tauheed aur shirk part 1

     

    Conclusion

    अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक़ नही और दुआ इबादत है , और जब दुआ इबादत है तो इबादत के तमाम तरीक़े नबी (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने अपनी उम्मत को बता दिए है.... लिहाज़ा अगर हम दुनिया और आख़िरत की हक़ीक़ी कामयाबी चाहते है तो इबादत में वोही अमल करे जिसकी तालीम नबी (सलाल्लाहो अलैहि वसल्लम) ने हमे दी है, जो कुरानो सुन्नत से साबित हो ,..

    अल्लाह तआला से दुआ है की:
     पोस्ट लिखने में जो ग़लती हुईं हो, उस पर मेरी पकड़ ना करना, अल्लाह से दुआ है कि: ऐ अल्लाह 
     हमे कहने सुनने से ज़्यादा अमल की तौफ़ीक अता फ़रमा
     हम सबको दींन की सही समझ अता फरमा
    जब तक हमे ज़िन्दा रख, इस्लाम और ईमान पर ज़िन्दा रख
     ख़ात्मा हमारा ईमान पर हो
    अल्लाह से दुआ है कि अल्लाह हमे बिदअत और शिर्क से बचाए और वही दींन पर अमल करने की तौफ़ीक अता करे जो दींन रसूल अल्लाह छोड़ कर गए थे, आमीन।
    वा आख़िरू दावाना अल्लिह्मुद्लिल्लाही रब्बिल आलमीन !!!
    जज़ाक अल्लाह खैरन कसीरन....

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    FAQs:

    सवाल 1: तौहीद का क्या मतलब है?
    जवाब: तौहीद का मतलब है "अल्लाह की एकता में विश्वास रखना," यानी यह मानना कि अल्लाह एक है, उसका कोई साझीदार नहीं है, और वही पूरी कायनात का मालिक और पालनहार है।

    सवाल 2: तौहीद का इस्लाम में क्या महत्व है?
    जवाब: तौहीद इस्लाम की बुनियाद है और हर मुसलमान के ईमान का आधार है। तौहीद का मतलब अल्लाह को एक मानना और उसके सिवा किसी और की इबादत न करना है।

    सवाल 3: शिर्क क्या होता है?
    जवाब: शिर्क का मतलब है "अल्लाह के साथ किसी और को साझीदार ठहराना" या उसकी जगह किसी और की इबादत करना। इस्लाम में शिर्क सबसे बड़ा गुनाह माना गया है।

    सवाल 4: शिर्क क्यों इतना बड़ा गुनाह है?
    जवाब: शिर्क अल्लाह की एकता का इनकार करता है और अल्लाह के बराबर किसी और को ठहराता है। कुरआन में इसे बहुत ही बुरा और मना किया गया है, क्योंकि यह इस्लाम के बुनियादी विश्वासों के खिलाफ है।

    सवाल 5: इस्लाम में शिर्क की सज़ा क्या है?
    जवाब: अल्लाह का फ़रमान है कि:और जान रखो कि जो शख़्स अल्लाह के साथ शिर्क करेगा अल्लाह उस पर जन्नत को ह़राम कर देगा और उसका ठिकाना दोजख़ है और ज़ालिमों का कोई मददगार नहीं।

    सवाल: क्या अल्लाह हमारे लिए काफ़ी नहीं?
    जवाब: बेशक ! अल्लाह हमारे लिए काफ़ी है ! सूरह युनुस में अल्लाह का फ़रमान है कि : "अगर अल्लाह तुम्हें कोई तकलीफ़ पहुंचाना चाहे तो इस के सिवा उसे कोई दूर करने वाला नहीं या अगर वो तुम्हारे साथ भलाई का इरादा करे तो कोई उस के फ़ज़ल को रद करने वाला नहीं "

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