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Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat

Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat 

Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat
Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat 



नया साल आते ही दुनियाभर में जश्न और खुशी का माहौल दिखाई देता है। लोग पार्टियाँ करते हैं, आतिशबाजी होती है, और नशा व बेकार के कामों में मशगूल हो जाते हैं। मगर मुसलमान होने के नाते हमें यह समझना जरूरी है कि इस्लाम ने हमें अपनी पहचान और तहज़ीब पर गर्व करने की तालीम दी है। नए साल की खुराफातों में शरीक होना हमारी दीन की असल रूह से दूर जाने के बराबर है। तो आइए Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat क्या हैं जाने और अपने ईमान और अमाल को दुरुस्त करें !
किसी ने क्या खूब कहा है :
एक और ईंट गिर गई दीवार ए हयात से
नादान कह रहे हैं नया साल मुबारक हो


    इंसान गलतियों का पुतला है, उससे गलतियां तो होंगी ही। किसी गलती का होना बुरा है, लेकिन उससे भी ज्यादा बुरा यह है कि उससे सबक न लिया जाए और वही गलती बार-बार दोहराई जाए।

    यह योजना बनाना, चाहे वह धार्मिक मामलों में हो या दुनियावी, दोनों के लिए जरूरी है। जैसा कि हदीस से पता चलता है। पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने फरमाया:
    पांच चीजों को पांच चीजों से पहले ग़नीमत समझो:
    • अपनी जवानी को बुढ़ापे से पहले।
    • अपनी सेहत को बीमारी से पहले।
    • अपनी दौलत को गरीबी से पहले।
    • अपने खाली समय को व्यस्तता से पहले।
    • अपनी जिंदगी को मौत से पहले।"**
    • (मिश्कातुल मसाबिह 2/441, किताबुर-रक़ायक़)
    आख़िरत (परलोक) की सफलता और असफलता इसी दुनिया के कर्मों पर निर्भर है। जैसा कि अल्लाह ने फरमाया:
    • "और इंसान के लिए वही है जो उसने कोशिश की, और उसकी कोशिश जल्द ही देखी जाएगी, फिर उसे पूरा-पूरा बदला दिया जाएगा।"(सूरह नज्म, आयत 39-41)
    • मुसलमानों का हर काम अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) के बताए हुए उसूलों के मुताबिक होना चाहिए। लेकिन अफ़सोस की दुनिया की चमक धमक में गुम होते जा रहे हैं और अपने दीन से दिन ब दिन दूर होते जा रहे हैं! और आज Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat को देख कर बहुत अफसोस होता है कि क्या यही वो दीन और मुसलमान हैं जिसे हमारे नबी ﷺ लेकर आये और हमे तालीम दी !

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     नए साल,31 दिसंबर की रात

    • [यह वह रात है जिसमें हर वो काम किए जाते हैं जिसे इस्लाम ने हराम क़रार दिया है]
    • [इस रात को जश्न मनाने से पहले एक बार अपनी कब्र की अंधेरी रात को ज़रूर याद कर लेना]
    • उल्टी सीधी हरकतें कर के नाच गाने के साथ दीगर गुनाह करके खुशियां मनाते हैं
    • 31 दिसंबर की ये रात जिस में शायद ही कोई गुनाह हो जो इस रात न होता हो
    • यह वो रात है जिस में भोली भाली लड़कियों की इज़्ज़त से खेला जाता है
    • ये वो रात है जिस में कुछ लोग हैं जो पहली बार शराब को मुंह से लगाते हैं और फिर धीरे धीरे इस के आदि हो जाते हैं
    • ये वो रात है जिस में जिस्म फरोशी के बाजार और जीना के दरबार सजाए जाते हैं
    • ये वो रात है जिस में बे हयाई,बे शर्म खुले आम की जाती है
    • मगर अफसोस के आज के कुछ मुसलमान इस को जश्न के तौर पर बड़ी फख्र से मनाते हैं

    ए अल्लाह! तू हर मुसलमान भाई बहनों को इस बे हयाई और be धर्मी वाली रात में गुनाहों से बचा, ए अल्लाह ! हमें हिदायत दे, जो काम तेरी नाराज़गी का सबब बने हमे उन कामों से बचाए रख. आमीन 

     नया साल और इस्लामी कैलेंडर:


    हमारा इस्लामी कैलेंडर चाँद के हिसाब से चलता है, और इसका पहला महीना मुहर्रम है। नए साल के जश्न का जो तरीका आज अपनाया जाता है, वह इस्लामी नहीं बल्कि पश्चिमी और गैर-इस्लामी तहज़ीब का हिस्सा है। इस्लाम ने हमें यह सिखाया है कि हम अपने मौकों को अल्लाह की याद और शुक्रगुज़ारी के साथ मनाएँ, न कि फुज़ूल खर्ची, गुनाहों और बेहूदगी में।

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    गैर-मुस्लिम रिवाजों की नक़ल

    नए साल का जश्न ईसाई तहज़ीब और पश्चिमी कल्चर का हिस्सा है, जो उनकी तारीख और रस्मों से जुड़ा हुआ है। इस्लाम हमें अपनी तहज़ीब और मज़हब की पहचान पर गर्व करने की सीख देता है। अल्लाह तआला क़ुरान में फरमाते हैं:
    "और तुम उनकी तरह मत बनो जिन्होंने अपने पैग़ाम को भुला दिया और अल्लाह ने उनके दिलों को सख्त कर दिया।"(सूरह अल-हदीद: 16)
    हदीस में रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
    "जो शख्स किसी कौम की नक़ल करेगा, वह उन्हीं में से होगा।" (अबू दाऊद)
    अगर हम नए साल के जश्न में शरीक होते हैं या उसकी नक़ल करते हैं, तो हम इस्लामी उसूलों से हटकर दूसरों की रिवायतों को अपनाने की गलती कर रहे होते हैं।

    इस्लामी साल की अहमियत को भूलना

    हमारा अपना इस्लामी कैलेंडर चाँद के हिसाब से चलता है, जो हिजरत की बुनियाद पर तय हुआ। इस्लामी तारीख़ का पहला महीना मुहर्रम है, जो खुद बहुत फज़ीलत और बरकत वाला महीना है। लेकिन नए साल का जश्न मनाने का मतलब यह होगा कि हम अपनी तारीखों और मजहबी शऊर को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं।
    कभी हमने यह सोचा कि हम इस्लामी साल के आगाज़ (मुहर्रम) पर ऐसा जश्न क्यों नहीं मनाते? क्योंकि हमारा मक़सद दुनिया की नक़ल करना नहीं, बल्कि अपने दीन को समझना और उस पर अमल करना है।

     फिजूलखर्ची और इस्लाम का नजरिया

    नए साल के जश्न में अक्सर बेहिसाब फिजूलखर्ची होती है, चाहे वह आतिशबाजी हो, पार्टियों पर खर्च हो, या दूसरी गैर-जरूरी चीज़ें। इस्लाम हमें फिजूलखर्ची से बचने की तालीम देता है। अल्लाह तआला फरमाते हैं:
     "और (खर्च करने में) बेवजह हाथ मत खोलो, और न ही इतना कंजूस बनो कि खुद को तकलीफ हो।"(सूरह इसरा: 29)
    नए साल के जश्न में शिरकत करना न सिर्फ हमारी दौलत की बर्बादी है, बल्कि यह अल्लाह की दी हुई नेमतों की नाशुक्री भी है।

     

    गुनाह और अल्लाह की नाफरमानी

    Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat
    Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat 



    नए साल के मौके पर जो काम आम तौर पर होते हैं, जैसे नाच-गाना, शराबखोरी, गैर-महरम का आपस में मिलना-जुलना, और दूसरी बेहूदगियाँ, ये तमाम चीजें इस्लाम में हराम हैं। यह सब कुछ अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) की नाफरमानी के दायरे में आता है।
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
     "जो शख्स किसी चीज़ को अल्लाह की नाफरमानी में बिताए, वह वक्त उस पर गुनाह बन जाएगा।" (मुसनद अहमद)

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    क्या करें नए साल पर:

    वक्त की एहमियत

    इस्लाम में वक्त को बहुत कीमती माना गया है। हर नई घड़ी, हर नया दिन, और हर नया साल हमारे लिए तौबा, इबादत, और नेकियों का मौका है। लेकिन नए साल के जश्न में वक्त को फुज़ूल और गुनाह में बर्बाद करना अल्लाह की इस नेमत को जाया करने जैसा है।
    इस्लाम हमें सिखाता है कि वक्त अल्लाह की नेमत है। इसे फुज़ूल कामों में बर्बाद करना और बेकार चीज़ों में लगाना जायज़ नहीं है।
     हज़रत मुहम्मद (ﷺ) ने फरमाया:
    "दो नेमतें ऐसी हैं, जिनकी लोग कदर नहीं करते: सेहत और फुर्सत का वक्त।"(सहीह बुखारी)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया:
     "कयामत के दिन इंसान से चार चीजों के बारे में पूछा जाएगा: उसने अपनी ज़िंदगी कैसे गुज़ारी, अपनी जवानी कैसे खर्च की, अपने माल को कहाँ से कमाया और कहाँ खर्च किया, और अपने इल्म पर कितना अमल किया।"(सहीह तिर्मिज़ी)

     अपनी पहचान कायम रखें:

     नए साल के जश्न में शरीक होना एक तरह से गैर-इस्लामी रस्मों को अपनाने जैसा है। अल्लाह ने हमें गैर-कौमों की नक़ल करने से मना किया है। हदीस में आता है:
    "जो शख्स किसी कौम की नक़ल करता है, वह उसी का हिस्सा बन जाता है।" (अबू दाऊद)

    इस्लामी तरीके से अपने साल का आगाज़ करें:

     एक बात याद रखें कि मुसलमानों के लिए इस्लामी महीना का आग़ाज़ मुहर्रम से होता है लेकिन अगर कुछ करना है जैसे कुरान की तिलावत, नफ़्ल नमाज़, और अपने पिछले गुनाहों पर तौबा कीजिए लेकिन इस अमल को नए साल से हरगिज़ न जोड़ें बल्कि ये अमल तो हर मुसलमान को हर रोज करना चाहिए!
    नए साल के मौके पर दुआ करें कि अल्लाह हमें नेकियों और अपनी राह पर चलने की तौफीक़ दे की हमारी जिंदगी के एक साल और कम हो गए और आगे की जिंदगी में और ज़्यादा नेकी करने और नेकी पर चलने की तौफीक़ आता फरमाए!

    फुज़ूल खर्ची और बेहूदा हरकतों से दूर रहें:

    अपने घर और बच्चों को दीन और तहज़ीब के साथ जोड़ें ताकि वह भी इन खुराफातों से बच सकें। और फ़िज़ूल खर्च,बेहूदा हरकत से मुतल्लिक़ उन्हें नबी ﷺ के फ़रमान और अल्लाह के कलाम सुनाएं ताकि उल्टी सीधी हरकतें ,गैर शरई रस्म ओ रिवाज को करने और अपनाने से बचे रहें!

     खुदा की नाफरमानी से बचना:

     नए साल के नाम पर होने वाली पार्टियों और जश्न में अक्सर नाच-गाना, शराब, और दूसरी हराम चीज़ें शामिल होती हैं। ये सब चीज़ें न सिर्फ अल्लाह की नाफरमानी है बल्कि मुसलमानों की इज़्ज़त और पहचान को भी नुकसान पहुंचाती हैं। क़ुरान कहता है:
    "और जिन लोगों ने जिहालत की वजह से गुनाह किए, फिर तौबा कर ली और अल्लाह की तरफ रुझू किया, तो यक़ीनन अल्लाह उनको माफ़ कर देगा।" (सूरह अन-निसा: 17)

     नए साल को लेकर जश्न

    इस्लाम में खुशी मनाना हराम नहीं है, लेकिन इसका तरीका इस्लामी उसूलों के मुताबिक होना चाहिए। अगर नए साल के मौके पर कोई मुसलमान:
    दुआ करता है
    अपने पिछले साल के आमाल का जायज़ा लेता है
    अगले साल के लिए नेक इरादे करता है
    तो इसमें कोई बुराई नहीं है।
    हालांकि, ऐसे तरीके अपनाना जो गैर-इस्लामी तहज़ीब से जुड़े हों, जैसे आतिशबाज़ी, फिजूलखर्ची, या नाच-गाना, इस्लाम में जायज़ नहीं हैं।
    क़ुरान में अल्लाह तआला फरमाते हैं:"إن المبذرين كانوا إخوان الشياطين"
    (बेशक फिजूलखर्च लोग शैतान के भाई हैं)।(सूरह अल-इसरा: 27)
    इसलिए, मुसलमानों को ऐसी खुशी मनाने के तरीके अपनाने चाहिए या ऐसे अमल करना चाहिए जो दीन और शरीयत के खिलाफ न हो।

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    उलमा ए कराम के फ़त्वे:

    नए साल की खुराफात और इस्लामी उसूलों के खिलाफ होने के बारे में कई उलमा-ए-किराम फ़तवे दिए हैं। यहां कुछ नामचीन उलमा के बयानात दिए जा रहे हैं:

    1. शेख अब्दुल अजीज बिन बाज (रहमतुल्लाह अलैह)

    सऊदी अरब के मशहूर मुफ्ती-ए-आज़म शेख बिन बाज (रह.) ने कहा:

    "गैर-मुस्लिमों के त्यौहार और रस्मों में शरीक होना, चाहे वह नए साल का जश्न हो या कोई और दिन, मुसलमान के लिए हराम है। क्योंकि यह न सिर्फ उनकी तहज़ीब को अपनाने जैसा है, बल्कि इस्लाम की तालीमात से सरासर खिलाफ भी है।"

    2. शेख इब्न उथैमीन (रहमतुल्लाह अलैह)

    शेख इब्न उथैमीन ने नए साल और दूसरे गैर-इस्लामी त्यौहारों के बारे में फरमाया:

    "नए साल का जश्न मनाना या इसमें किसी भी तरह शरीक होना इस्लाम में हराम है। यह अल्लाह की शरीअत और रसूलुल्लाह (ﷺ) की सुन्नत के खिलाफ है। मुसलमान को चाहिए कि वह अपने दीन और पहचान पर कायम रहे।"(फ़तावा इब्न उथैमीन, जिल्द 3)

    3. इमाम इब्न तैमिय्या (रहमतुल्लाह अलैह)

    इमाम इब्न तैमिय्या ने अपनी किताब "इक़्तिज़ा अस-सिरात अल-मुस्तक़ीम" में लिखा:
    > "गैर-मुस्लिमों की तहज़ीब और उनके त्यौहारों को अपनाना इस्लामी समाज को कमजोर करता है। यह न सिर्फ उनके तौर-तरीकों को मानने जैसा है, बल्कि उनकी नकल से मुसलमानों की पहचान मिटने लगती है।"

    4. दारुल उलूम देवबंद (भारत)

    दारुल उलूम देवबंद के फतवे में कहा गया है:

    "नए साल के जश्न में शरीक होना या इस मौके पर किसी तरह का खुशी का इज़हार करना गैर-इस्लामी रवायत को अपनाने के बराबर है। यह फुज़ूलखर्ची और गैर-महसूसी तौर पर दूसरे मज़ाहिब की नक़ल करने जैसा है, जो बिल्कुल नाजायज़ है।"

    5. जमीयत उलमा-ए-हिंद

    जमीयत उलमा-ए-हिंद के उलमा ने कहा:

     "मुसलमान को चाहिए कि वह गैर-मुस्लिमों के त्यौहारों और रस्मों से पूरी तरह अलग रहे। नए साल का जश्न, जो ईसाई कलेंडर पर आधारित है, हमारी इस्लामी तहज़ीब और पहचान के खिलाफ है।"

    6. मुफ्ती मुहम्मद शफी (रहमतुल्लाह अलैह)

    मुफ्ती शफी (रह.) ने अपनी किताब "मआरिक अल-फिक़्ह" में लिखा है:

     "मुसलमानों के लिए गैर-इस्लामी रस्मों और त्यौहारों में शरीक होना जायज़ नहीं है। यह इस्लामी तहज़ीब के कमजोर होने और गैर-मुस्लिम कल्चर की ताईद करने का जरिया बनता है।"

    7. शेख सालेह अल-फौज़ान

    शेख सालेह अल-फौज़ान ने फरमाया:

     "नए साल का जश्न मनाना गैर-मुस्लिमों की पहचान और उनकी रवायत को अपनाने जैसा है। मुसलमानों को चाहिए कि वह ऐसे हर मौके से दूर रहें, जो उनके ईमान और इस्लामी तालीमात को कमजोर कर सकता है।"

    अहम नुक्ता व नसीहत:

    उलमा-ए-किराम ने हमेशा इस बात पर ज़ोर दिया है कि मुसलमानों को अपने दीन, तहज़ीब, और पहचान पर फख्र करना चाहिए। गैर-इस्लामी रस्मों और जश्नों में शरीक होना न सिर्फ अल्लाह की नाराज़गी का सबब बनता है, बल्कि यह मुसलमानों को उनकी असलियत से भी दूर करता है।
    मुसलमानों को चाहिए कि वह उलमा की इन नसीहतों को समझें और अमल में लाएँ। नए साल के जश्न से बचकर, इस मौके को अल्लाह की याद, तौबा, और नेक इरादों के साथ गुजारें। यही इस्लामी रवैया है।

    Conclusion: 

    तो यह है Musalman Aur Naye Saal ki Khurafaat ! एक बात अच्छी तरह याद कर लें,हर नया साल, खुशी के बजाय एक सच्चे मोमिन को बेचैन कर देता है, क्योंकि उसे यह एहसास होता है कि उसकी उम्र धीरे-धीरे कम हो रही है और बर्फ की तरह पिघल रही है। वह किस बात पर खुशी मनाए? बल्कि, इससे पहले कि जिंदगी का सूरज हमेशा के लिए डूब जाए, कुछ कर लेने की तमन्ना उसे बेचैन कर देती है। उसके पास समय कम और काम ज्यादा होता है। आप खुद के बारे में सोचें कि आप क्या कर रहे हैं?
    हमारे लिए नया साल सिर्फ मौज-मस्ती का समय नहीं है, बल्कि बीते समय की कद्र करते हुए आने वाले पलों का सही इस्तेमाल करने का संकल्प लेने का मौका है। यह अपने इरादों को फिर से मजबूत करने और हौसले बुलंद करने का समय है।
    नए साल की खुराफात और गैर-इस्लामी रवायतों से दूर रहना हमारी पहचान और ईमान का तकाज़ा है। यह वक्त हमें अल्लाह से तौबा करने, अपने ईमान को मजबूत करने, और नेकियों की राह पर चलने का मौका देता है। मुसलमानों को चाहिए कि वह अपने वक्त, माल और इज्जत को फुज़ूल कामों में जाया करने के बजाय इसे अल्लाह की राह में लगाएँ। यही असली कामयाबी है।
    मुसलमानों को चाहिए कि वह अपनी तहज़ीब और इस्लामी पहचान को कायम रखें। नए साल के मौके पर खुशी मनाना हराम नहीं, लेकिन इसे इस्लामी अंदाज़ में मनाना ज़रूरी है। गैर-इस्लामी रिवाजों को अपनाने के बजाय अल्लाह की तरफ रुझू करें और अपनी ज़िंदगी में दीन की रौशनी फैलाएँ।

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    FAQs:


    सवाल 1: क्या मुसलमान नए 
    साल का जश्न मना सकते हैं?

    जवाब: नहीं, मुसलमानों को नए साल का जश्न मनाने से बचना चाहिए। यह जश्न गैर-इस्लामी तहज़ीब का हिस्सा है और इसमें शरीक होना इस्लामिक पहचान और तालीमात के खिलाफ है। मुसलमानों को अपनी तहज़ीब और इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक अपनी ज़िंदगी गुजारनी चाहिए।

    सवाल 2: अगर कोई मुसलमान सिर्फ खुशी के तौर पर नए साल का जश्न मनाए, तो क्या यह जायज़ है?

    जवाब: नए साल का जश्न, चाहे वह सिर्फ खुशी के इज़हार के लिए हो, इस्लामी उसूलों के खिलाफ है। इस तरह की रस्में और तहवार गैर-मुस्लिमों से जुड़ी हैं, और हदीस में रसूलुल्लाह (ﷺ) ने गैर-कौमों की नक़ल करने से मना फरमाया है। (अबू दाऊद)

    सवाल 3: क्या नए साल के दिन दुआ करना या नेक इरादे करना जायज़ है?

    जवाब: दुआ करना या नेक इरादे करना हर वक्त जायज़ और पसंदीदा है, लेकिन इसे नए साल से जोड़ना सही नहीं है। हमें हर दिन, हर वक्त अपने अमल की इस्लाह और तौबा का इरादा करना चाहिए, न कि किसी खास दिन पर गैर-इस्लामी रस्मों की नक़ल में।

    सवाल 4: क्या इस्लामी तारीख़ का नया साल मनाना जायज़ है?

    जवाब: इस्लामी तारीख़ के नए साल (मुहर्रम) के आगाज़ पर खुशी जाहिर करना, नेकियों का इरादा करना और अल्लाह से दुआ करना जायज़ है। लेकिन इसमें भी गैर-इस्लामी तरीके जैसे फुज़ूलखर्ची, नाच-गाना, या बेहूदा हरकतों से बचना चाहिए।

    सवाल 5: क्या गैर-मुस्लिम दोस्तों को नए साल की मुबारकबाद देना जायज़ है?

    जवाब: गैर-मुस्लिम दोस्तों को नए साल की मुबारकबाद देना एक ऐसा मामला है, जिसमें उलमा के बीच इख्तिलाफ है। कुछ उलमा इसे गैर-इस्लामी रस्मों को अपनाने जैसा मानते हैं और इसे नाजायज़ करार देते हैं। वहीं, कुछ इसे सिर्फ तहज़ीब का मामला मानते हैं। लेकिन बेहतर यह है कि मुसलमान अपनी तहज़ीब और मजहब पर कायम रहते हुए इस तरह की मुबारकबाद से परहेज़ करें।

    सवाल 6: क्या नए साल के मौके पर पार्टियों में शरीक होना जायज़ है, अगर उसमें कोई हराम काम न हो?

    जवाब: नए साल की पार्टियों में शरीक होना भी सही नहीं है, भले ही उसमें कोई हराम काम न हो। क्योंकि यह गैर-मुस्लिम तहवारों का हिस्सा है, और इसमें शरीक होना इस्लामी तालीमात और पहचान के खिलाफ है। मुसलमान को चाहिए कि वह हर ऐसी चीज़ से दूर रहे, जो उसे उसके दीन और ईमान से दूर कर सके।

    सवाल 7: नए साल के जश्न को बच्चों के लिए मनोरंजन के तौर पर मनाना कैसा है?

    जवाब: बच्चों को गैर-इस्लामी रवायतों से जोड़ना उनकी इस्लामी तरबियत को नुकसान पहुँचाता है। बच्चों को इस्लामिक तरीकों से खुशी और मनोरंजन सिखाना चाहिए, ताकि वह अपनी पहचान पर गर्व करें। उन्हें गैर-इस्लामी जश्नों में शरीक करना उनकी गलत सोच और आदतों को बढ़ावा देता है।

    सवाल 8: क्या मुसलमानों का नया साल भी 1 जनवरी से शुरू होता है?

    जवाब: मुसलमानों का नया साल इस्लामी कैलेंडर (हिजरी कैलेंडर) के मुताबिक मुहर्रम से शुरू होता है। 1 जनवरी का नया साल ईसाई ग्रेगोरियन कैलेंडर का हिस्सा है, जो मुसलमानों का नहीं है। हमें अपनी इस्लामी तारीखों और कैलेंडर को अपनाने पर जोर देना चाहिए।

    सवाल 9: क्या नए साल पर फिजूल खर्च करना इस्लाम में जायज़ है?

    जवाब: इस्लाम में हर तरह की फिजूलखर्ची हराम है। अल्लाह तआला ने कुरान में फिजूलखर्ची करने वालों को "शैतान के भाई" करार दिया है। (सूरह इसरा: 27) नए साल के नाम पर फिजूलखर्ची और गुनाह करना इस्लाम में बिल्कुल नाजायज़ है।

    सवाल 10: अगर कोई यह कहे कि नए साल पर खुशी मनाने से क्या फर्क पड़ता है, यह तो सिर्फ एक दिन है?

    जवाब: इस्लाम में हर काम नीयत और तरीका दोनों के मुताबिक होना चाहिए। नए साल पर खुशी मनाना गैर-इस्लामी तहवारों और तहज़ीब को अपनाने जैसा है। यह "सिर्फ एक दिन" नहीं है, बल्कि यह मुसलमान की पहचान और उसकी तहज़ीब पर सवाल खड़ा करता है। हदीस में रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया: "तुम उनकी तरह मत बनो, जो अपने तौर-तरीकों में अल्लाह को भुला चुके हैं।" (सही बुखारी)

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