Qayamat Ek Faisale ka Din (Part:1)
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Qayamat Ek Faisale ka Din |
क़यामत,एक ऐसा दिन, जिस का आना निश्चय है ! अगर एक मोमिन Qayamat Ek Faisale ka Din इस से मुतल्लिक़ कुरआन की आयतों को पढ़ ले तो लरज़ उठे, ख़ौफ़ ज़दह हो जाएगा।यह वह दिन है, जब ज़मीन और आसमान अपनी हदें पार कर देंगे, पहाड़ रेत की तरह बिखर जाएंगे, समंदर उफान पर होंगे, और सूरज अपनी जगह से हट जाएगा। इंसान अपनी करनी का हिसाब देते हुए खड़ा होगा, जहाँ न कोई दोस्त मदद करेगा और न रिश्ते पहचान में आएंगे। यह दिन इंसान की आख़िरी मंज़िल का फ़ैसला करेगा – जन्नत या जहन्नुम। क़यामत का ये मंज़र दिल को दहला देने वाला होगा, जो हमें अपनी ज़िंदगी पर ग़ौर करने और अपने कर्म सुधारने की नसीहत देता है।
Note: Qayamat Ek Faisale ka Din यह कोई काल्पनिक, बनावटी कहानी नहीं है बल्कि हक़ीक़त है जो हो कर रहेगी क्यूं कि अल्लाह का ये फरमान और वादह है और अल्लाह का वादह झूठा नहीं है
सूरह अल-इंशिक़ाक़ में क़यामत के मंज़र
सूरह अल-इंशिक़ाक़ मक्की सूरह है और इसमें कुल 25 आयतें हैं। यह सूरह Qayamat Ek Faisale ka Din के भयानक दृश्यों और इंसान के कर्मों के हिसाब-किताब को बयान करती है। इसका मकसद इंसान को आख़िरत की याद दिलाना और अल्लाह के सामने जवाबदेही का एहसास दिलाना है।1. क़यामत का दृश्य (1-5 आयतें)
यह वह दिन है, जब ज़मीन और आसमान अपनी हदें पार कर देंगे, पहाड़ रेत की तरह बिखर जाएंगे, समंदर उफान पर होंगे, और सूरज अपनी जगह से हट जाएगा।आसमान फट जाएगा और अपने पालनहार के आदेश का पालन करेगा।
धरती फैलाई जाएगी और अपने अंदर के सब राज़ों को उजागर कर देगी।
हर चीज़ अल्लाह के हुक्म के मुताबिक होगी।
2. इंसान का हिसाब-किताब (6-12 आयतें)
इंसान अपनी मेहनत का परिणाम पाएगा।
जिनका हिसाब आसान होगा, वे खुशहाल होंगे।
जिनका हिसाब कठिन होगा, वे अफसोस और दुख में होंगे।
3. क़ुरआन का संदेश और नसीहत (13-15 आयतें)
काफिर लोग अल्लाह की निशानियों को झुठलाते हैं।
उन्हें अंजाम के दिन का यकीन नहीं है।
4. अल्लाह की कुदरत और निशानियाँ (16-18 आयतें)
सूरज, चांद, रात और दिन अल्लाह की शक्ति की निशानियाँ हैं।
ये सभी उसकी बनाई व्यवस्था के अनुसार चलते हैं।
5. आख़िरत का इनाम और सज़ा (19-25 आयतें)
हर इंसान को उसके कर्मों के अनुसार बदला दिया जाएगा।
नेकी करने वालों के लिए जन्नत और इनकार करने वालों के लिए जहन्नम है।
सूरह अल-इंशिक़ाक़ का तर्जुमा और वजाहत
आयत
1-2:
"إِذَا السَّمَاءُ انشَقَّتْ وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ"
आयत 3-4:
"وَإِذَا الْأَرْضُ مُدَّتْ وَأَلْقَتْ مَا فِيهَا وَتَخَلَّتْ"
आयत 5:
"وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ"
आयत 6:
"يَا أَيُّهَا الْإِنسَانُ إِنَّكَ كَادِحٌ إِلَىٰ رَبِّكَ كَدْحًا فَمُلَاقِيهِ"
आयत 7-9:
"فَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ فَسَوْفَ يُحَاسَبُ حِسَابًا يَسِيرًا وَيَنقَلِبُ إِلَىٰ أَهْلِهِ مَسْرُورًا"
आयत 10-12:
"وَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ وَرَاءَ ظَهْرِهِ فَسَوْفَ يَدْعُو ثُبُورًا وَيَصْلَىٰ سَعِيرًا"
आयत 13-15:
"إِنَّهُ كَانَ فِي أَهْلِهِ مَسْرُورًا إِنَّهُ ظَنَّ أَن لَّن يَحُورَ بَلَىٰ إِنَّ رَبَّهُ كَانَ بِهِ بَصِيرًا"
आयत 16-18:
"فَلَا أُقْسِمُ بِالشَّفَقِ وَاللَّيْلِ وَمَا وَسَقَ وَالْقَمَرِ إِذَا اتَّسَقَ"
"لَتَرْكَبُنَّ طَبَقًا عَن طَبَقٍ"
आयत 20-21:
"فَمَا لَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ وَإِذَا قُرِئَ عَلَيْهِمُ الْقُرْآنُ لَا يَسْجُدُونَ"
आयत 22-25:
"بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا يُكَذِّبُونَ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُوعُونَ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ"
यह सूरह इंसान को उसकी असलियत, दुनिया की अस्थाई प्रकृति, और क़यामत के दिन की सच्चाई पर ध्यान देने की शिक्षा देती है।Qayamat Ek Faisale ka Din है ,अल्लाह ने क़यामत के भयानक दृश्यों, हिसाब-किताब की प्रक्रिया, और नेक व बुरे इंसानों के अंजाम को स्पष्ट रूप से बयान किया है। यह हमें अल्लाह की आज्ञा का पालन करने, नेक अमल करने, और आख़िरत की तैयारी करने की प्रेरणा देती है।
Qayamat Ek Faisale ka Din है! यह सूरह हमें क़यामत के भयानक दृश्यों, इंसान की ज़िंदगी के विभिन्न चरणों, और उसके कर्मों के आधार पर होने वाले अंजाम की याद दिलाती है। यह सूरह इंसान को यह सोचने पर मजबूर करती है कि दुनिया में उसकी मेहनत और मशक्कत का असली मकसद क्या है, और यह कि उसे अल्लाह के सामने अपने कर्मों का हिसाब देना है। अच्छे कर्मों का इनाम जन्नत की हमेशा रहने वाली खुशियां हैं, जबकि बुरे कर्मों का अंजाम जहन्नम का अज़ाब है।
"إِذَا السَّمَاءُ انشَقَّتْ وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ"
जब आसमान फट जाएगा और अपने रब के हुक्म को मान लेगा और उसके लिए यही सही है।
वजाहत:
क़यामत के दिन आसमान में दरारें पड़ जाएंगी, वह टूटकर बिखर जाएगा और अल्लाह के हुक्म को मानने के लिए पूरी तरह तैयार होगा। यह अल्लाह की ताकत और उसके आदेश के आगे उसकी मख़लूक़ (सृष्टि) की आज्ञाकारिता को दर्शाता है।
आयत 3-4:
"وَإِذَا الْأَرْضُ مُدَّتْ وَأَلْقَتْ مَا فِيهَا وَتَخَلَّتْ"
और जब ज़मीन फैला दी जाएगी और जो कुछ उसमें है, उसे बाहर निकाल देगी और खाली हो जाएगी।
वजाहत:
इस दिन ज़मीन समतल कर दी जाएगी। उसमें जो कुछ दफ्न है—इंसान, खज़ाने, और अन्य चीज़ें—सबको बाहर निकाल दिया जाएगा। ज़मीन अपने अंदर कुछ भी छुपाकर नहीं रखेगी। यह इंसान को उसके कर्मों का हिसाब दिलाने की तैयारी है।
आयत 5:
"وَأَذِنَتْ لِرَبِّهَا وَحُقَّتْ"
और अपने रब के हुक्म को मान लेगी और यह उसके लिए लाज़िम है।
वजाहत:
ज़मीन भी अल्लाह के आदेश का पालन करेगी, क्योंकि वह उसी की मख़लूक़ है। यह इंसान को याद दिलाता है कि क़यामत के दिन अल्लाह के हुक्म के आगे सब झुक जाएंगे।
आयत 6:
"يَا أَيُّهَا الْإِنسَانُ إِنَّكَ كَادِحٌ إِلَىٰ رَبِّكَ كَدْحًا فَمُلَاقِيهِ"
ऐ इंसान! तू अपने रब की तरफ मेहनत और मशक्कत करता हुआ जा रहा है, और आखिरकार उससे मिल जाएगा।
वजाहत:
यह आयत इंसान को उसकी ज़िंदगी की सच्चाई याद दिलाती है। यह दुनिया मेहनत, संघर्ष, और परीक्षाओं का स्थान है। आख़िरकार हर इंसान को अल्लाह के सामने खड़ा होना है और अपने कर्मों का हिसाब देना है।
आयत 7-9:
"فَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ بِيَمِينِهِ فَسَوْفَ يُحَاسَبُ حِسَابًا يَسِيرًا وَيَنقَلِبُ إِلَىٰ أَهْلِهِ مَسْرُورًا"
फिर जिसे उसका नाम-ए-अमाल (कर्म-पत्र) उसके दाएं हाथ में दिया जाएगा, तो उससे आसान हिसाब लिया जाएगा। और वह खुशी-खुशी अपने घरवालों की तरफ लौटेगा।
वजाहत:
नेक लोगों को उनके अच्छे कर्मों के बदले में उनका नाम-ए-अमाल उनके दाएं हाथ में दिया जाएगा। उनके साथ नरमी से हिसाब किया जाएगा और वे जन्नत में अपने परिवार के साथ खुशहाल जीवन बिताएंगे।
आयत 10-12:
"وَأَمَّا مَنْ أُوتِيَ كِتَابَهُ وَرَاءَ ظَهْرِهِ فَسَوْفَ يَدْعُو ثُبُورًا وَيَصْلَىٰ سَعِيرًا"
और जिसे उसका नाम-ए-अमाल उसकी पीठ के पीछे से दिया जाएगा, वह तबाही को पुकारेगा और जलती हुई आग में जाएगा।
वजाहत:
जो लोग बुरे कर्म करते रहे और अल्लाह की नाफरमानी में जिंदगी गुजारते रहे, उनका नाम-ए-अमाल उनकी पीठ के पीछे से दिया जाएगा। वे अपनी तबाही को पुकारेंगे और जहन्नम के भयानक अज़ाब में झोंक दिए जाएंगे।
आयत 13-15:
"إِنَّهُ كَانَ فِي أَهْلِهِ مَسْرُورًا إِنَّهُ ظَنَّ أَن لَّن يَحُورَ بَلَىٰ إِنَّ رَبَّهُ كَانَ بِهِ بَصِيرًا"
वह अपने घरवालों के बीच खुश रहता था। उसने यह समझ रखा था कि उसे कभी लौटना नहीं होगा। क्यों नहीं! उसका रब उसे देख रहा था।
वजाहत:
यह आयत उन लोगों की मानसिकता को बयान करती है जो आख़िरत को भूलकर दुनिया की खुशियों में मशगूल रहते हैं। वे सोचते हैं कि उन्हें कभी हिसाब-किताब के लिए वापस नहीं आना होगा। लेकिन अल्लाह उनकी हर हरकत को देख रहा है।
आयत 16-18:
"فَلَا أُقْسِمُ بِالشَّفَقِ وَاللَّيْلِ وَمَا وَسَقَ وَالْقَمَرِ إِذَا اتَّسَقَ"
फिर मैं शफक (संध्या के समय) की कसम खाता हूँ, और रात की और जो कुछ वह समेटती है, और चांद की जब वह पूरा हो जाता है।
वजाहत:
अल्लाह ने अपनी कुदरत की बड़ी निशानियों—शफक (संध्या), रात, और पूर्ण चंद्रमा—की कसम खाई है। यह आयत इंसान को इन कुदरती घटनाओं पर गौर करने और अल्लाह की महानता को समझने के लिए प्रेरित करती है।
आयत 19:
"لَتَرْكَبُنَّ طَبَقًا عَن طَبَقٍ"
तुम ज़रूर एक हाल से दूसरे हाल में गुज़रोगे।
वजाहत:
इंसान की ज़िंदगी कई चरणों से होकर गुजरती है—बचपन, जवानी, बुढ़ापा, मौत, और आखिरकार क़यामत का दिन। हर इंसान को यह सफर तय करना है।
आयत 20-21:
"فَمَا لَهُمْ لَا يُؤْمِنُونَ وَإِذَا قُرِئَ عَلَيْهِمُ الْقُرْآنُ لَا يَسْجُدُونَ"
तो इन्हें क्या हो गया है कि ये ईमान नहीं लाते? और जब इन पर कुरआन पढ़ा जाता है तो ये सज्दा नहीं करते?
वजाहत:
यह आयत उन लोगों की नाफरमानी पर अफसोस जाहिर करती है जो अल्लाह के निशानों और कुरआन को सुनने के बावजूद ईमान नहीं लाते और अल्लाह के आगे झुकते नहीं।
आयत 22-25:
"بَلِ الَّذِينَ كَفَرُوا يُكَذِّبُونَ وَاللَّهُ أَعْلَمُ بِمَا يُوعُونَ فَبَشِّرْهُم بِعَذَابٍ أَلِيمٍ إِلَّا الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ لَهُمْ أَجْرٌ غَيْرُ مَمْنُونٍ"
बल्कि जो काफिर हैं, वे झुठलाते हैं। और अल्लाह उनके दिलों के भेद जानता है। उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खबर दो। लेकिन जो ईमान लाए और नेक काम किए, उनके लिए कभी न खत्म होने वाला इनाम है।Read This Also: Be namazi ka anjaam
वजाहत:
यह आयत काफिरों के अंजाम और मोमिनों के इनाम का जिक्र करती है। काफिरों को उनके झूठ और नाफरमानी के कारण जहन्नम का अज़ाब दिया जाएगा। जबकि जो ईमान और नेक अमल करेंगे, उन्हें जन्नत में कभी खत्म न होने वाला इनाम दिया जाएगा।
Conclusion:
यह सूरह इंसान को उसकी असलियत, दुनिया की अस्थाई प्रकृति, और क़यामत के दिन की सच्चाई पर ध्यान देने की शिक्षा देती है।Qayamat Ek Faisale ka Din है ,अल्लाह ने क़यामत के भयानक दृश्यों, हिसाब-किताब की प्रक्रिया, और नेक व बुरे इंसानों के अंजाम को स्पष्ट रूप से बयान किया है। यह हमें अल्लाह की आज्ञा का पालन करने, नेक अमल करने, और आख़िरत की तैयारी करने की प्रेरणा देती है।
Qayamat Ek Faisale ka Din है! यह सूरह हमें क़यामत के भयानक दृश्यों, इंसान की ज़िंदगी के विभिन्न चरणों, और उसके कर्मों के आधार पर होने वाले अंजाम की याद दिलाती है। यह सूरह इंसान को यह सोचने पर मजबूर करती है कि दुनिया में उसकी मेहनत और मशक्कत का असली मकसद क्या है, और यह कि उसे अल्लाह के सामने अपने कर्मों का हिसाब देना है। अच्छे कर्मों का इनाम जन्नत की हमेशा रहने वाली खुशियां हैं, जबकि बुरे कर्मों का अंजाम जहन्नम का अज़ाब है।
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FAQs:
सवाल 1: सूरह अल-इंशिक़ाक़ का मुख्य विषय क्या है?जवाब: सूरह अल-इंशिक़ाक़ का मुख्य विषय क़यामत के दिन के दृश्य, इंसान के कर्मों का हिसाब, और अच्छे व बुरे लोगों के अंजाम को बयान करना है।
सवाल 2: क़यामत के दिन आसमान और ज़मीन के साथ क्या होगा?
जवाब: क़यामत के दिन आसमान फट जाएगा और ज़मीन अपनी सारी चीज़ों को बाहर निकाल देगी और समतल कर दी जाएगी।
सवाल 3: जिन्हें उनका कर्म-पत्र (नाम-ए-अमाल) दाएं हाथ में दिया जाएगा, उनका अंजाम क्या होगा?
जवाब: जिन्हें उनका कर्म-पत्र दाएं हाथ में दिया जाएगा, उनका हिसाब आसान होगा और वे जन्नत में अपने घरवालों के साथ खुश रहेंगे।
सवाल 4: जिन्हें उनका कर्म-पत्र उनकी पीठ के पीछे से दिया जाएगा, उनके साथ क्या होगा?
जवाब: जिन्हें उनका कर्म-पत्र उनकी पीठ के पीछे से दिया जाएगा, वे विनाश को पुकारेंगे और जलती हुई आग (जहन्नम) में दाखिल होंगे।
सवाल 5: काफ़िरों के इनकार पर अल्लाह ने क्या फ़रमाया?
जवाब: अल्लाह ने फरमाया कि काफ़िर कुरआन को झुटलाते हैं और अल्लाह उनके दिलों के भेद (राज़) जानता है। उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खबर दी गई है।
सवाल 6: मोमिनों के लिए क्या खुशखबरी दी गई है?
जवाब: मोमिनों को खुशखबरी दी गई है कि उनके ईमान और नेक कर्मों के बदले उन्हें हमेशा का इनाम, यानी जन्नत दी जाएगी।
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