बाप की खामोश मोहब्बत: (बलिदानों की अनकही कहानी)
एक बाप अपने परिवार के लिए हर संभव प्रयास करता है। वह अपने आराम, इच्छाओं और यहाँ तक कि अपनी खुशियों का भी त्याग कर देता है ताकि उसके बच्चे बेहतर जीवन जी सकें। माँ की तरह वह भी अपने बच्चों के लिए जीता है, लेकिन उसके प्यार की अभिव्यक्ति अलग होती है। वह बच्चों को जीवन की कठिनाइयों के लिए तैयार करता है, उन्हें अनुशासन सिखाता है, और उनके भविष्य को संवारने के लिए खुद को थका डालता है।
दुर्भाग्यवश, समाज में अक्सर पिता के इस योगदान को अनदेखा कर दिया जाता है। माँ बच्चों के करीब होती है, उनके हर छोटे-बड़े सुख-दुख की साथी होती है, लेकिन पिता एक छाया की तरह हमेशा उनके साथ होते हुए भी दूर नज़र आते हैं। यह लेख Baap ki khamosh mohabbat पिता की इसी मौन प्रेम और अनकही बलिदानों की कहानी को बयां करता है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हमने कभी अपने पिता की मेहनत और त्याग को समझने की कोशिश की है?
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पति पत्नी से माता पिता
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Baap ki khamosh mohabbat |
तुम और मैं कभी पति-पत्नी थे, एक-दूसरे के लिए जीते थे, एक-दूसरे की खुशी में अपनी खुशी ढूँढ़ते थे। हमारी दुनिया एक-दूसरे के इर्द-गिर्द घूमती थी, लेकिन फिर ज़िंदगी ने हमें माता-पिता बना दिया।
जिम्मेदारियों का बंटवारा
तुमने घर की ज़िम्मेदारियाँ सँभाल लीं, और मैंने आजीविका की चिंता कर ली। तुम बच्चों के लिए "घर सँभालने वाली माँ" बन गईं, और मैं "कमाने वाला पिता" बनकर रह गया।ममता और सख़्ती
जब बच्चे गिरे, तुमने प्यार से उन्हें गले लगाया, मैंने धैर्य से उन्हें समझाया। तुम उनके लिए कोमल बनी रहीं, और मैं उन्हें मज़बूत बनाने के लिए सख़्त बना रहा। धीरे-धीरे तुम "प्यार करने वाली माँ" बन गईं और मैं "समझाने वाला पिता"।पिता की सख़्ती, माँ की नरमी
जब बच्चों ने ग़लतियाँ कीं, तुमने उनका समर्थन किया, उन्हें सहारा दिया, और इस तरह तुम "समझदार माँ" के रूप में उनकी सबसे अच्छी दोस्त बन गईं। और मैं? उनकी नज़र में "ना समझने वाला पिता" बन गया।जब वे कोई शरारत करते, तुम कहतीं "पापा नाराज़ होंगे", और इस तरह तुम उनकी "Best Friend" बन गईं, और मैं सिर्फ़ गुस्सा करने वाला पिता रह गया।
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तुमने सारा दिन बच्चों के साथ प्यार और बातें करने में बिताया, उनके दिलों में अपनी जगह बनाई, उनके साथ अपना भविष्य सुरक्षित किया। और मैं? मैं उनके भविष्य को सँवारने के लिए अपना आज क़ुर्बान करता चला गया।
जब तुम रोतीं, तुम्हारी आँखों में माँ की ममता नज़र आती, और जब मैं चुप रहता, तो बच्चों की नज़रों में मैं एक "निर्दयी पिता" बनकर रह गया।
बलिदानों की अनदेखी कहानी
जब तुम रोतीं, तुम्हारी आँखों में माँ की ममता नज़र आती, और जब मैं चुप रहता, तो बच्चों की नज़रों में मैं एक "निर्दयी पिता" बनकर रह गया।
चाँद की चाँदनी, सूरज की तपिश
तुम चाँद की कोमल चाँदनी बन गईं, और मैं धूप की तरह जलता हुआ पिता बन गया।समय बीतता गया, तुम "दयालु और स्नेही माँ" बनती गईं, और मैं वही बोझ उठाने वाला पिता बनकर रह गया, जो सबके सुकून के लिए खुद को भूल चुका था।
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Conclusion:
यह एक कड़वी सच्चाई है...
Baap ki khamosh mohabbat और बलिदान को समझने की कोशिश हर औलाद करनी चाहिए !
बहुत कम ऐसी माताएँ होती हैं, जो अपने बच्चों को उनके पिता के बलिदानों के बारे में बताती हैं। जो यह समझाती हैं कि एक पिता अपने बच्चों के लिए अपनी हर खुशी त्याग देता है, अपने आराम को उनके भविष्य पर क़ुर्बान कर देता है।
वह यह नहीं बतातीं कि उनका पिता दिनभर मेहनत करने के बाद जब रात को थका-हारा घर आता है, तो उसके चेहरे की शांति सिर्फ़ अपनी संतान की ख़ुशहाली देखकर आती है।
बच्चों को तब तक यह बात समझ नहीं आती, जब तक वे खुद पिता नहीं बन जाते। और जब समझ आती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
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FAQs:
प्रश्न 1: पिता के प्रेम को मौन क्यों कहा जाता है?
उत्तर: पिता अपने प्रेम को शब्दों या भावनाओं में व्यक्त करने के बजाय जिम्मेदारियों, त्याग और सख़्ती के माध्यम से दिखाते हैं, जिसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
प्रश्न 2: माँ और पिता के प्रेम में क्या अंतर होता है?
उत्तर: माँ का प्रेम कोमल और स्पष्ट रूप से दिखने वाला होता है, जबकि पिता का प्रेम कठोर लेकिन गहरा होता है। माँ बच्चों की भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करती है, जबकि पिता उनके भविष्य की चिंता करते हुए उन्हें मज़बूत बनाते हैं।
प्रश्न 3: बच्चे आमतौर पर पिता के बलिदानों को कब समझते हैं?
उत्तर: बच्चे पिता के बलिदानों को तब समझते हैं जब वे खुद माता-पिता बनते हैं, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
प्रश्न 4: समाज पिता के बलिदानों को क्यों अनदेखा कर देता है?
उत्तर: क्योंकि पिता अपने प्रेम को खुले तौर पर व्यक्त नहीं करते और चुपचाप अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, इसलिए उनकी मेहनत और त्याग अक्सर पृष्ठभूमि में चला जाता है।
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