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ibrahim ad'ham ki naseehatein/ इब्राहिम अदहम की नसीहतें

"यह दुनिया एक परीक्षा की जगह है, और हर इंसान से कभी न कभी गुनाह हो जाता है। लेकिन सबसे अच्छा इंसान वही है जो अपनी गलतियों को माने, अल्लाह से माफी मांगे और आगे नेकी के रास्ते पर चले"

Ibrahim ad'ham ki naseehatein/ इब्राहिम अदहम की नसीहतें 

Buzurgon ki Naseehat
Ibrahim ad'ham ki naseehatein


यह लेख ibrahim ad'ham ki naseehatein ज़रूर पढ़ें ताकि आप को भी कुछ नसीहतें हासिल हो और आप भी गुनाहों से बचें और तौबह कर लें! 
हर इंसान जिंदगी में गुनाह करता है, मगर सबसे बेहतरीन इंसान वही है जो गुनाह के बाद अल्लाह की तरफ रुजू करे, माफी मांगे और सही रास्ते पर चलने की कोशिश करे। यही पैगाम शेख इब्राहीम बिन अदहम ने एक बूढ़े शख्स को दिया, जो अपने गुनाहों से छुटकारा पाना चाहता था।

पहली नसीहत: अगर गुनाह करना चाहते हो, तो अल्लाह का रिज़्क़ छोड़ दो

एक बूढ़े व्यक्ति ने शेख इब्राहिम अधम की सेवा में अर्ज़ की कि मैं बहुत गुनहगार और बदकिरदार हूँ। लाख चाहता हूँ कि गुनाह न करूँ, मगर अपने नफ्स पर क़ाबू नहीं रहता। मेहरबानी फरमा कर मुझे कोई ऐसी नसीहत कीजिए कि इससे मेरा दिल नरम पड़ जाए और मेरी यह बुरी आदत जाती रहे।

बूढ़े शख्स ने जब अपनी कमजोरी बयान की तो शेख इब्राहीम अदहम ने फरमाया:
"जब तुम गुनाह करने का इरादा करो, तो तय कर लो कि अब अल्लाह का रिज़्क़ नहीं खाओगे।"

Naseehat aur Hikmat
Ibrahim ad'ham ki naseehatein



यह सुनकर बूढ़े ने हैरान होकर कहा:
"अगर अल्लाह का रिज़्क़ न खाऊं, तो फिर क्या खाऊं?"

शेख ने जवाब दिया:
"फिर यह कितनी बुरी बात है कि तुम अल्लाह का रिज़्क़ खाओ और उसके अहकाम की नाफरमानी करो!"

यह ibrahim ad'ham ki naseehatein हमें याद दिलाती है कि हम जो भी खाते-पीते हैं, वह सब अल्लाह का दिया हुआ है। इसके बावजूद, अगर हम उसकी नाफरमानी करें, तो क्या यह नाशुक्री नहीं?

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दूसरी नसीहत: अगर गुनाह करना चाहते हो, तो अल्लाह की ज़मीन छोड़ दो

बूढ़े ने कहा कि एक और नसीहत कीजिए !
शेख ने फरमाया:
"जब गुनाह का इरादा करो, तो अल्लाह की ज़मीन से बाहर निकल जाओ!"

बूढ़े ने हैरत से पूछा:
"यह कैसे मुमकिन है? अगर मैं अल्लाह की ज़मीन से बाहर न जाऊं, तो कहां जाऊं?"

शेख ने जवाब दिया:
"फिर यह कितनी बुरी बात है कि तुम अल्लाह की ज़मीन में रहो और उसके हुक्म की खिलाफ़वर्जी करो!"

अल्लाह फ़रमाता है 
وَأَرْضُ اللَّهِ وَاسِعَةٌ ۗ إِنَّمَا يُوَفَّى الصَّابِرُونَ أَجْرَهُم بِغَيْرِ حِسَابٍ
(और अल्लाह की ज़मीन व्यापक
 है, सब्र करने वालों को उनका इनाम बिना हिसाब दिया जाएगा।)— (सूरत अज़-ज़ुमर 39:10)

هُوَ ٱلَّذِى جَعَلَ لَكُمُ ٱلْأَرْضَ ذَلُولًۭا فَٱمْشُوا۟ فِى مَنَاكِبِهَا وَكُلُوا۟ مِن رِّزْقِهِۦ ۖ وَإِلَيْهِ ٱلنُّشُورُ
(वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को वशीभूत कर दिया, इसलिए तुम इसके रास्तों पर चलो और इसके रिज़्क़ में से खाओ, और उसी की ओर (तुम्हें) लौटकर जाना है।)— (सूरत अल-मुल्क 67:15)
यह नसीहत हमें यह सिखाती है कि हम जहां भी जाएं, अल्लाह की हुकूमत और कब्ज़े से बाहर नहीं जा सकते। फिर क्यों न उसी की इताअत करें?

"जब तुम गुनाह करने का इरादा करो, तो तय कर लो कि अब अल्लाह का रिज़्क़ नहीं खाओगे।"अल्लाह की ज़मीन में नहीं रहोगे" और ऐसी जगह गुनाह करोगे जहां अल्लाह तुम्हे देख न सके!

तीसरी नसीहत: अगर गुनाह करना चाहते हो, तो ऐसी जगह करो जहां अल्लाह न देख सके

Gunahon se taubah
Ibrahim ad'ham ki naseehatein



बूढ़े ने एक और नसीहत की गुजारिश की, तो शेख ने फरमाया:
"अगर गुनाह करना है, तो ऐसी जगह करो जहां अल्लाह तुम्हें न देख सके!"

बूढ़े ने फौरन जवाब दिया:
"यह तो नामुमकिन है! अल्लाह हर चीज़ को देखता है!"

शेख ने फरमाया:
"फिर यह कितनी बुरी बात है कि तुम उसका रिज़्क़ खाते हो, उसकी ज़मीन पर रहते हो, और जानते-बूझते हुए गुनाह करते हो, जबकि वह तुम्हें देख रहा है!"

कुरआन करीम में अल्लाह फरमाता है:

"إِنَّ اللَّـهَ كَانَ عَلَيْكُمْ رَقِيبًا" (अन-निसा: 1)
"बेशक अल्लाह तुम्हारा निगेहबान है।"


यह आयत हमें याद दिलाती है कि हम जहां भी जाएं, जो भी करें, अल्लाह हमें देख रहा है।


चौथी नसीहत: मौत के वक्त मोहलत मांग लेना

बूढ़े ने कहा अब चौथी नसीहत क्या है ?
शेख ने फरमाया:
"जब मौत का फरिश्ता (मलिकुल मौत) तुम्हारे पास आए, तो उससे कहना कि मुझे थोड़ा वक्त दे दो ताकि मैं तौबा कर लूं!"

बूढ़े ने अफसोस के साथ कहा:
"यह कैसे मुमकिन है? मौत का फरिश्ता मुझे मोहलत नहीं देगा!"

शेख ने फरमाया:
"फिर यह कितनी बुरी बात है कि तुम अपनी ज़िंदगी में तौबा का वक्त ज़ाया कर रहे हो, जबकि तुम्हें पता है कि मौत कभी भी आ सकती है!"


कुरआन में अल्लाह फरमाता है:

"حَتَّىٰ إِذَا جَاءَ أَحَدَهُمُ الْمَوْتُ قَالَ رَبِّ ارْجِعُونِ (99) لَعَلِّي أَعْمَلُ صَالِحًا فِيمَا تَرَكْتُ كَلَّا إِنَّهَا كَلِمَةٌ هُوَ قَائِلُهَا" (अल-मुमिनून: 99-100)
"यहां तक कि जब उनमें से किसी के पास मौत आती है, तो वह कहता है: ऐ मेरे रब! मुझे वापस भेज दे, ताकि मैं नेक अमल कर लूं। हरगिज़ नहीं! यह सिर्फ एक बात है जो वह कह रहा है।"

तौबा का दरवाज़ा हमेशा खुला है


यह नसीहतें सुनने के बाद बूढ़ा शख्स हिदायत की रोशनी में आ गया और नेक लोगों में शामिल हो गया। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि हम सब इंसान हैं, और हम सब गलतियां करते हैं। मगर सबसे बेहतरीन इंसान वह है जो गुनाह के बाद अल्लाह की तरफ रुजू करे और तौबा करे।

अल्लाह तआला फरमाता है:

"قُلْ يَا عِبَادِيَ الَّذِينَ أَسْرَفُوا عَلَىٰ أَنفُسِهِمْ لَا تَقْنَطُوا مِن رَّحْمَةِ اللَّـهِ ۚ إِنَّ اللَّـهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا" (अज़-ज़ुमर: 53)
"ऐ मेरे बंदों! जिन्होंने अपनी जानों पर ज़ुल्म किया है, अल्लाह की रहमत से मायूस न हो जाओ, बेशक अल्लाह तमाम गुनाहों को माफ कर देता है।"


अल्लाह तआला हमें हमेशा तौबा करने और नेक अमल करने की तौफीक अता फरमाए। आमीन!



"अगर कभी गुनाह हो जाए, तो उस पर डटे रहने के बजाय फौरन अल्लाह की तरफ लौटें। अल्लाह की रहमत बहुत ही वसीह (विशाल) है, और वह हर समय अपने बंदों की तौबा कबूल करने के लिए तैयार रहता है।"



Conclusion:

यह दुनिया एक परीक्षा की जगह है, और हर इंसान से कभी न कभी गुनाह हो जाता है। लेकिन सबसे अच्छा इंसान वही है जो अपनी गलतियों को माने, अल्लाह से माफी मांगे और आगे नेकी के रास्ते पर चले। शेख ibrahim ad'ham ki naseehatein से हमें यही सीख देती हैं कि अगर हम अल्लाह के दिए हुए रिज़्क़ पर पल रहे हैं, उसी की ज़मीन पर रह रहे हैं और उसकी निगाहों से बच नहीं सकते, तो हमें चाहिए कि उसके अहकाम की पैरवी करें और गुनाहों से बचने की कोशिश करें।
कुरआन मजीद में अल्लाह फरमाता है:
"وَالَّذِينَ إِذَا فَعَلُوا فَاحِشَةً أَوْ ظَلَمُوا أَنفُسَهُمْ ذَكَرُوا اللَّـهَ فَاسْتَغْفَرُوا لِذُنُوبِهِمْ" (आल-इमरान: 135)

"और जब वे कोई बुराई कर बैठते हैं या अपनी जानों पर ज़ुल्म कर लेते हैं तो फौरन अल्लाह को याद करते हैं और अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं।"
इसलिए, अगर कभी गुनाह हो जाए, तो उस पर डटे रहने के बजाय फौरन अल्लाह की तरफ लौटें। अल्लाह की रहमत बहुत ही वसीह (विशाल) है, और वह हर समय अपने बंदों की तौबा कबूल करने के लिए तैयार रहता है।

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FAQs:


प्रश्न 1: अगर कोई इंसान बार-बार गुनाह करता है और फिर तौबा करता है, तो क्या अल्लाह उसे माफ करेगा?
उत्तर: जी हां! अल्लाह बहुत रहम करने वाला है और जब तक इंसान सच्चे दिल से तौबा करता रहेगा, अल्लाह उसकी तौबा कबूल करता रहेगा। नबी ए करीम ﷺ ने फरमाया:"जो व्यक्ति सच्चे दिल से तौबा करता है, अल्लाह उसे माफ कर देता है, चाहे वह बार-बार गुनाह करे।" (मुस्लिम)

प्रश्न 2: क्या इंसान को यह पता चल सकता है कि उसकी तौबा कबूल हुई या नहीं?
उत्तर: नहीं, इंसान को यह नहीं पता चल सकता, लेकिन अगर वह दिल से तौबा करता है और फिर गुनाह की तरफ वापस नहीं जाता, तो यह तौबा की कबूलियत की निशानी हो सकती है। कुरआन में अल्लाह फरमाता है:"إِنَّ اللَّـهَ يَغْفِرُ الذُّنُوبَ جَمِيعًا" (अज़-ज़ुमर: 53)"बेशक अल्लाह सभी गुनाहों को माफ कर देता है।"

प्रश्न 3: गुनाहों से बचने के लिए क्या तरीके अपनाने चाहिए?
उत्तर: गुनाहों से बचने के लिए निम्नलिखित पांच उपाय अपनाने चाहिए:
अल्लाह का डर अपने दिल में रखें कि वह हमें हर समय देख रहा है।
अच्छे लोगों की संगति में रहें, जो नेकी की तरफ ले जाएं।
नमाज़ और अल्लाह का ज़िक्र करें, क्योंकि यह दिल को पाक करता है।
गुनाहों के कारणों से दूर रहें यानी बुरी संगति और बुरे माहौल से बचें।

हमेशा तौबा करते रहें क्योंकि इंसान कमजोर है और अल्लाह की मदद के बिना गुनाहों से नहीं बच सकता।

"अल्लाह तआला हमें सभी गुनाहों से महफूज़ रखे और सच्ची तौबा की तौफीक अता फरमाए। आमीन۔"

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