Shauhar ki Naqadri (Ek Naseehat)/शौहर की नाक़दरी
ज़िंदगी हमेशा वैसी नहीं होती जैसी हम चाहते हैं। कई बार क़िस्मत ऐसे फ़ैसले लेती है जो हमें पसंद नहीं आते, लेकिन वक़्त के साथ हमें उनकी अहमियत समझ में आने लगती है। ये कहानी एक ऐसी लड़की की है जो अपनी शादी से नाखुश थी, मगर ज़िंदगी ने उसे ऐसा सबक सिखाया कि उसकी सोच ही बदल गई।
एक अनपढ़ इंसान से शादी
मेरा नाम शहज़ादी है, और सच कहूँ तो मेरा सपना था कि मेरी शादी किसी पढ़े-लिखे और अच्छे कमाने वाले इंसान से हो। मगर क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। हालात की मज़बूरी ने मुझे उमर के साथ जोड़ दिया, जो ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था।
मुझे उमर से सख़्त नफ़रत थी। उसकी बातें, उसकी आदतें, यहाँ तक कि उसके पास जाने से भी मुझे झिझक होती थी। मैं उसे हर वक़्त बेइज़्ज़त करती, उसकी बेज़्ज़ती करती और हर दिन दुआ करती कि या तो मुझे उससे छुटकारा मिल जाए या फिर वो दुनिया से चला जाए।
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उमर की मोहब्बत, मेरी नफ़रत
उमर मुझसे बेइंतहा मोहब्बत करता था, लेकिन मैं उसकी मोहब्बत की क़दर नहीं करती थी। वो मुझसे हमेशा नरमी और प्यार से पेश आता। कभी ख़ामोश रहता, तो कभी ग़ुस्से में घर से बाहर चला जाता। लेकिन मैंने कभी उसकी इज़्ज़त नहीं की।
एक दिन मैंने लड़कर मायके जाने का फ़ैसला किया और ज़िद पकड़ ली कि अब मुझे तलाक़ चाहिए। माँ-बाप ने बहुत समझाया, लेकिन मैं अपने फ़ैसले पर अड़ी रही। मैंने झूठ बोला कि उमर मुझे पैसे नहीं देता। माँ-बाप ने उमर को बुलाया, और उसका सामना मेरे साथ हुआ।
30 हज़ार की शर्त
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Shauhar ki Naqadri (Ek Naseehat) |
पापा ने पूछा, "उमर, तुम शहज़ादी को पैसे क्यों नहीं देते?"
उमर ने सिर झुकाकर जवाब दिया, "अंकल, जो कमाता हूँ, घर के ख़र्चे निकालकर सब शहज़ादी को ही दे देता हूँ।"
मैंने ताना मारते हुए कहा, "मुझे हर महीने 30 हज़ार चाहिए, तभी मैं इसके साथ रहूँगी!"
उमर कुछ पल ख़ामोश रहा, फिर मेरी तरफ़ देखा और गहरी साँस लेते हुए कहा, "ठीक है, मैं शहज़ादी को 30 हज़ार दूँगा।"
मेरे दिल में आया, अब देखो! मैं तुम्हें जीने नहीं दूँगी!
उमर आख़िर करता क्या था?
मैंने कभी नहीं पूछा था कि उमर क्या काम करता है। बस इतना पता था कि वो किसी सरकारी ऑफ़िस में काम करता था।
हर महीने, वो मुझे 30 हज़ार देता और मैं उसे और ज़्यादा परेशान करने के नए-नए बहाने ढूँढती। आए दिन कोई न कोई माँग रख देती। एक दिन मैंने कहा, "मुझे आईफोन चाहिए!"
उमर मुस्कुराया, मेरे क़दमों में बैठ गया और बोला, "ले दूँगा, शहज़ादी! बस मुझे छोड़ने की बात मत किया करो!"
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ज़िंदगी का सबसे बड़ा झटका
एक दिन मैं अपनी सहेली के साथ शहर के सबसे बड़े मॉल जा रही थी। जब हम बस स्टॉप के पास पहुँचे, तो मैंने एक ऐसा मंज़र देखा जिसने मेरी रूह हिला दी।
मेरी आँखों के सामने वो उमर था, जिससे मैं नफ़रत करती थी...
जिसे मैंने हमेशा अनपढ़ और गँवार समझा...
जिसे कभी प्यार से खाना तक नहीं दिया...
जिसका कभी हाल तक नहीं पूछा...
जिसे कभी अपनाया ही नहीं...
वो उमर सिर पर भारी बोझ उठाए, किसी का सामान बस में चढ़ा रहा था।
उसकी टाँगें काँप रही थीं।
उसके बदन से पसीना बह रहा था।
उसने पुराने कपड़े पहने थे, और उसकी चप्पल टूटी हुई थी।
एक हाथ में सूखी रोटी थी, जिसे जल्दी-जल्दी खा रहा था, और दूसरे हाथ से बोझ उठा रहा था।
ये देख मेरा दिल बैठ गया। या अल्लाह! मैं क्यों नहीं मर गई?
ये इंसान मेरी ख़ुशी के लिए इतनी मेहनत कर रहा था, और मैं इसे ज़ालिम समझ रही थी?
एहसास का लम्हा
घर जाकर मैं बहुत रोई। उस दिन मुझे उमर की सच्ची मोहब्बत का अहसास हुआ !पहली बार मैंने उमर के लिए दिल से कुछ किया—उसके लिए पुलाव बनाया, जो उसकी पसंदीदा डिश थी।
उमर घर आया, खाने की ख़ुशबू महसूस की और ख़ुश होकर बोला, "शहज़ादी, आज तो कमाल कर दिया! एक साल बाद पुलाव खाने को मिल रहा है!"
खाने के बाद, उसने अपनी जेब से 30 हज़ार निकाले और मेरे हाथ में रख दिए। मैं फूट-फूटकर रो पड़ी, उसके क़दमों में बैठ गई, और कहा, "उमर, मुझे कुछ नहीं चाहिए, बस तुम्हारा साथ चाहिए!"
अब उमर ही मेरी दुनिया है
उमर हैरान रह गया। उसकी आँखों में मासूमियत थी। उसने कहा, "शहज़ादी, अगर ये पैसे कम हैं, तो और ला दूँगा। बस मुझे छोड़कर मत जाना!"
उस दिन मुझे एहसास हुआ कि पैसा सबकुछ नहीं होता।
मैंने पहली बार ज़िंदगी में वो सुकून महसूस किया, जो किसी बड़ी गाड़ी, घर या क़ीमती गिफ़्ट में नहीं था
कुछ ख़ास नसीहतें:-
पति की मेहनत की क़द्र करें – कई बार औरतें अपने शौहर की मेहनत और संघर्ष को नज़रअंदाज़ कर देती हैं। यह ज़रूरी है कि हम उनके काम और कुर्बानियों की क़द्र करें और उन्हें इज़्ज़त दें।
दौलत से ज़्यादा मोहब्बत की अहमियत समझें – पैसा ज़िंदगी की ज़रूरत है, मगर यह सब कुछ नहीं है। सच्ची खुशी प्यार, इज़्ज़त और आपसी समझ से मिलती है, न कि सिर्फ़ दौलत से।
शादी एक समझौता नहीं, बल्कि एक रिश्ता है – शादी का रिश्ता सिर्फ़ ज़रूरतों की पूर्ति के लिए नहीं होता, बल्कि एक-दूसरे का साथ निभाने और मुश्किल वक़्त में हौसला देने के लिए होता है।
दूसरों की ज़िंदगी को मत कोसें, अपनी तक़दीर को अपनाएं – हर किसी की ज़िंदगी उसके नसीब के हिसाब से चलती है। दूसरों की ज़िंदगी देखकर अपनी तक़दीर को बुरा मत समझें, बल्कि उसमें ख़ुश रहना सीखें।
शिकायत कम करें, शुक्र ज़्यादा अदा करें – अगर हम हर छोटी बात पर शिकायत करने के बजाय जो कुछ हमारे पास है उसके लिए अल्लाह का शुक्र अदा करें, तो ज़िंदगी में सुकून और बरकत आ जाएगी।
इंसान की पहचान सिर्फ़ उसकी तालीम या दौलत से नहीं होती – एक अच्छा इंसान वही होता है जो सच्चा, मेहनती और वफ़ादार हो। इसलिए अपने शौहर की अच्छाइयों को देखें, न कि सिर्फ़ उसकी कमज़ोरियों को।
ग़लतियों को सुधारने में कभी देर न करें – जब हमें अपनी ग़लती का एहसास हो जाए, तो उसे सुधारने में देर नहीं करनी चाहिए। रिश्तों को बचाने और संवारने के लिए हमें अहंकार छोड़कर आगे बढ़ना चाहिए।
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Conclusion:
इसी लिए कहा जाता है कि जो मिले उसी में अपने रब की शुक्र अदा करें ! Shauhar ki Naqadri न करें, उसकी क़दर करें, उसे इज्ज़त दें और ऐसा करने से आप की खुशियां बढ़ेगी ,घटेगी नहीं !
हम औरतें अक्सर अपने शौहर की मेहनत और कुर्बानियों को नहीं देखतीं। हम सिर्फ़ उनके पैसे से उनकी क़दर करते हैं।
कई बार हम कह देती हैं, "जब कमा नहीं सकते, तो शादी क्यों की?"
हम झगड़े करते हैं, ताने देते हैं, लेकिन कभी उनके हालात नहीं समझते।
कभी अपने शौहर का वो चेहरा देखो, जो मैंने उमर का देखा था…
ख़ुदा की क़सम, हम एक सांस भी न ले सकें उस माहौल में, जिसमें हमारे शौहर हमें पालने के लिए ख़ुद को कुर्बान कर देते हैं।
जो कुछ भी हमारा शौहर हमें दे सकता है, उसी में ख़ुश रहो… क्योंकि पैसा सबकुछ नहीं होता।
"अब मैं सिर्फ़ उमर की शहज़ादी हूँ!"
(शायद ये कहानी Shauhar ki Naqadri (Ek Naseehat) किसी औरत की सोच बदल दे और वो अपने शौहर की क़दर करना सीख जाए!)
कई बार हम कह देती हैं, "जब कमा नहीं सकते, तो शादी क्यों की?"
हम झगड़े करते हैं, ताने देते हैं, लेकिन कभी उनके हालात नहीं समझते।
कभी अपने शौहर का वो चेहरा देखो, जो मैंने उमर का देखा था…
ख़ुदा की क़सम, हम एक सांस भी न ले सकें उस माहौल में, जिसमें हमारे शौहर हमें पालने के लिए ख़ुद को कुर्बान कर देते हैं।
जो कुछ भी हमारा शौहर हमें दे सकता है, उसी में ख़ुश रहो… क्योंकि पैसा सबकुछ नहीं होता।
"अब मैं सिर्फ़ उमर की शहज़ादी हूँ!"
(शायद ये कहानी Shauhar ki Naqadri (Ek Naseehat) किसी औरत की सोच बदल दे और वो अपने शौहर की क़दर करना सीख जाए!)
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FAQs:
1. शहज़ादी उमर से शादी के बाद क्यों नाखुश थी?
जवाब: शहज़ादी का सपना था कि उसकी शादी किसी पढ़े-लिखे और अच्छे कमाने वाले इंसान से हो, लेकिन हालात की मजबूरी में उसकी शादी उमर से हो गई, जो ज़्यादा पढ़ा-लिखा नहीं था। इसलिए वह उससे नफ़रत करती थी और उसे नीचा दिखाने की कोशिश करती थी।
2. उमर शहज़ादी से कैसा व्यवहार करता था?
जवाब: उमर शहज़ादी से बहुत प्यार करता था। वह उसकी हर ज़िद पूरी करने की कोशिश करता था, उसे समझाने की कोशिश करता था, और जब वह बहुत ग़ुस्सा करती थी तो चुप हो जाता था या घर से बाहर चला जाता था।
जवाब: उमर शहज़ादी से बहुत प्यार करता था। वह उसकी हर ज़िद पूरी करने की कोशिश करता था, उसे समझाने की कोशिश करता था, और जब वह बहुत ग़ुस्सा करती थी तो चुप हो जाता था या घर से बाहर चला जाता था।
3. शहज़ादी ने उमर के सामने कौन-सी शर्त रखी?
जवाब: शहज़ादी ने शर्त रखी कि अगर उमर उसे हर महीने 30 हज़ार रुपये देगा, तभी वह उसके साथ रहेगी।
जवाब: शहज़ादी ने शर्त रखी कि अगर उमर उसे हर महीने 30 हज़ार रुपये देगा, तभी वह उसके साथ रहेगी।
4. उमर पैसे देने के लिए क्या करता था?
जवाब: उमर सरकारी दफ़्तर में काम करता था, लेकिन अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए वह भारी बोझ उठाने और मज़दूरी करने लगा ताकि शहज़ादी की माँगें पूरी कर सके।
जवाब: उमर सरकारी दफ़्तर में काम करता था, लेकिन अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए वह भारी बोझ उठाने और मज़दूरी करने लगा ताकि शहज़ादी की माँगें पूरी कर सके।
5. शहज़ादी को अपनी ग़लती का एहसास कब हुआ?
जवाब: जब उसने उमर को एक बस स्टॉप पर भारी सामान उठाते, पुराने कपड़ों में, टूटी हुई चप्पल पहने और सूखी रोटी खाते देखा, तो उसे एहसास हुआ कि उमर उसके लिए कितनी मेहनत कर रहा था और उसने कभी उसकी क़दर नहीं की।
जवाब: जब उसने उमर को एक बस स्टॉप पर भारी सामान उठाते, पुराने कपड़ों में, टूटी हुई चप्पल पहने और सूखी रोटी खाते देखा, तो उसे एहसास हुआ कि उमर उसके लिए कितनी मेहनत कर रहा था और उसने कभी उसकी क़दर नहीं की।
6. एहसास होने के बाद शहज़ादी ने क्या किया?
जवाब: शहज़ादी ने पहली बार उमर के लिए पुलाव बनाया और जब उमर ने उसे पैसे देने चाहे, तो वह फूट-फूटकर रो पड़ी और कहा कि अब उसे कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ़ उमर का साथ चाहिए।
जवाब: शहज़ादी ने पहली बार उमर के लिए पुलाव बनाया और जब उमर ने उसे पैसे देने चाहे, तो वह फूट-फूटकर रो पड़ी और कहा कि अब उसे कुछ नहीं चाहिए, सिर्फ़ उमर का साथ चाहिए।
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