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Kaafir Kaun hai/काफ़िर कौन है?

"काफ़िर" शब्द एक ऐसा शब्द है जिसे लेकर हमारे यहां कई गलतफहमियाँ पाई जाती हैं। कुछ गैर-मुस्लिम यह मानते हैं कि यह शब्द केवल उन्हें संबोधित करने के लिए प्रयोग किया जाता है, जबकि यह धारणा पूरी तरह गलत है। असल में, "काफ़िर" शब्द किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि हर वह व्यक्ति जो अपने धर्म के अनुसार ईश्वर या ईश्वरीय संदेश को नहीं मानता वो काफ़िर है۔"

Kaafir Kaun hai/काफ़िर कौन है?


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Kaafir Kaun hai?


"काफ़िर" शब्द एक ऐसा शब्द है जिसे लेकर हमारे यहां कई गलतफहमियाँ पाई जाती हैं। वास्तव मे Kaafir Kaun hai ? कुछ गैर-मुस्लिम यह मानते हैं कि यह शब्द केवल उन्हें संबोधित करने के लिए प्रयोग किया जाता है, जबकि यह धारणा पूरी तरह गलत है। असल में, "काफ़िर" शब्द किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि हर वह व्यक्ति जो अपने धर्म के अनुसार ईश्वर या ईश्वरीय संदेश को नहीं मानता, उसे इस श्रेणी में रखा जा सकता है। इस लेख में हम इस्लाम और हिंदू धर्म के मूल ग्रंथों (वेद, उपनिषद, भगवद गीता, क़ुरआन और हदीस) के आधार पर "काफ़िर" शब्द और Kaafir Kaun hai? इस के सही अर्थ को समझने का प्रयास करेंगे।

    "काफ़िर" शब्द का सही अर्थ और इसकी धार्मिक संदर्भ में व्याख्या

    Kaafir Kaun hai/काफ़िर कौन है?
    Kaafir Kaun hai/काफ़िर कौन है?


    "काफ़िर" शब्द अरबी भाषा का है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है "सत्य को छुपाने वाला" या "इनकार करने वाला"। इस्लाम में यह उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो अल्लाह, इस्लाम की शिक्षाओं और क़ुरआन को स्वीकार नहीं करते। इसी प्रकार, हिंदू धर्म में भी "काफ़िर" के समानार्थी कई शब्द पाए जाते हैं, जिनका उपयोग सत्य, धर्म, और ईश्वर को अस्वीकार करने वालों के लिए किया गया है।
    "जो असत्य और मूर्तिपूजा के मार्ग पर चलते हैं, वे अंधकार में चले जाते हैं।"यजुर्वेद (40.9)  "जो सत्य धर्म का विरोध करता है और पाखंडी जीवन जीता है, वह दस्यु (असुर) कहलाता है।" ऋग्वेद (10.105.8)

    हिंदू धर्म में 'काफ़िर' की अवधारणा


     हिंदू धर्म में "काफ़िर" शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता। हालांकि, इसके समानार्थी कई शब्द मिलते हैं, जैसे – नास्तिक, असुर, अद्वेषी, पाखंडी, अधर्मी आदि। हिंदू धर्म में धर्म और अधर्म की अवधारणा स्पष्ट रूप से वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता में वर्णित है, जहाँ धर्म के विरोधियों को विभिन्न नामों से संबोधित किया गया है।

     वेदों से प्रमाण – अधर्मी और असुर कौन हैं?

    1. जो सत्य धर्म का विरोध करे, वह असुर है

    📖 ऋग्वेद (10.105.8) :  

    "अयमु ते तन्वं सं सृजे भगो, यस्ते नृमणो दृंहितं वि दस्यति।"अर्थ: जो सत्य धर्म का विरोध करता है और पाखंडी जीवन जीता है, वह दस्यु (असुर) कहलाता है।

    ✅ शिक्षा: हिंदू धर्म में "असुर" वे लोग होते हैं जो सत्य धर्म के मार्ग का विरोध करते हैं और अधर्म का समर्थन करते हैं।

    2. असत्य और मूर्तिपूजा के मार्ग पर चलने वाले अंधकार में जाते हैं

    📖 यजुर्वेद (40.9) :  

    "अंधं तमः प्रविशन्ति येऽसम्भूति-मुपासते।"अर्थ: जो असत्य और अधर्म के मार्ग पर चलते हैं, वे घोर अंधकार में चले जाते हैं।

    ✅ शिक्षा: हिंदू धर्म में असत्य, अधर्म और ईश्वर की सत्ता को अस्वीकार करने वालों को घोर अंधकार में बताया गया है।

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    भगवद गीता से प्रमाण – कौन अधर्मी और असुर हैं?

    1. अधर्म के मार्ग पर चलने वाले मूर्ख और नराधम होते हैं

    📖 भगवद गीता (7.15) :  

    "न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः।"अर्थ: जो अधर्म के मार्ग पर चलते हैं और सत्य को अस्वीकार करते हैं, वे मूर्ख और नराधम होते हैं।

    ✅ शिक्षा: जो लोग ईश्वर, सत्य और धर्म का इनकार करते हैं, वे गीता के अनुसार दुष्कर्मी और अज्ञानी माने गए हैं।

    2. संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं – दैवी और आसुरी

    📖 भगवद गीता (16.6) :  

    "द्वौ भूतसर्गौ लोकेऽस्मिन् दैव आसुर एव च।"अर्थ: इस संसार में दो प्रकार के लोग होते हैं – दैवी (ईश्वर भक्त) और आसुरी (धर्म के विरोधी)।

    ✅ शिक्षा: हिंदू धर्म में लोग दो श्रेणियों में विभाजित किए गए हैं –
    दैवी प्रवृत्ति के लोग ईश्वर, सत्य, करुणा और धर्म के मार्ग पर चलते हैं।
    आसुरी प्रवृत्ति के लोग अधर्म, असत्य और अन्याय का समर्थन करते हैं।

     निष्कर्ष – हिंदू धर्म में 'काफ़िर' की अवधारणा

    ✅हिंदू धर्म में "काफ़िर" शब्द का कोई प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं है, लेकिन इसके समानार्थी शब्द जैसे असुर, नास्तिक, अधर्मी, दस्यु आदि मिलते हैं।
    ✅वेदों और गीता में बताया गया है कि जो सत्य, धर्म और ईश्वर की सत्ता को अस्वीकार करता है, वह अंधकार में जाता है।
    ✅धर्म के मार्ग पर चलने वालों को दैवी, और धर्म के विरोधियों को आसुरी कहा गया है।

    अतः हिंदू धर्म में "काफ़िर" का निकटतम अर्थ असुर या अधर्मी हो सकता है, जो धर्म और ईश्वर के विरोधी होते हैं।


    "काफ़िर हर वह व्यक्ति है जो अल्लाह, उसके रसूल (ﷺ), और इस्लाम के मूल सिद्धांतों का इनकार करता है।


    इस्लाम में 'काफ़िर' की परिभाषा

    Naastik,adharmi
    Kaafir Kaun hai



    इस्लाम में "काफ़िर" शब्द उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो अल्लाह की एकता (तौहीद), 
    नबी मुहम्मद (ﷺ) की पैग़म्बरी, और क़ुरआन की सत्यता को अस्वीकार करते हैं। "कुफ़्र" का अर्थ होता है सत्य को छुपाना या उसका इनकार करना। जो लोग इस्लाम के मूल सिद्धांतों को नकारते हैं, उन्हें काफ़िर कहा जाता है।

     क़ुरआन से प्रमाण – काफ़िर किन्हें कहा गया है?

    1. काफ़िर वे हैं जो ईमान लाने से इनकार करें

    📖 सूरह अल-बक़रह (2:6-7) :
    "बेशक, जिन्होंने इनकार किया (कफ़रू), उनके लिए समान है कि आप उन्हें सचेत करें या न करें, वे ईमान नहीं लाएंगे।"

    ✅ अर्थ: जो लोग सत्य को पहचानने के बावजूद उसे अस्वीकार करते हैं, वे काफ़िर हैं।

    2. काफ़िर वे हैं जो अल्लाह के अलावा किसी और को ख़ुदा कहें

    📖 सूरह अल-माइदा (5:17) :
    "निश्चय ही वे काफ़िर हो गए जिन्होंने कहा कि मरयम का बेटा मसीह ही ख़ुदा है।"

    ✅ अर्थ: जो लोग अल्लाह के अलावा किसी और को ईश्वर मानते हैं, वे कुफ़्र के दायरे में आते हैं।

    3. काफ़िर वे हैं जो अल्लाह के कानून को न मानें

    📖 सूरह अल-माइदा (5:44) :
    "जो लोग अल्लाह के उतारे हुए क़ानून के अनुसार फ़ैसला न करें, वही काफ़िर हैं।"

    ✅ अर्थ: इस्लाम के अनुसार, जो व्यक्ति अल्लाह के दिए हुए नियमों को न मानकर अपने बनाए क़ानूनों पर चले, वह कुफ़्र कर रहा है।

    4. काफ़िर वे हैं जो अल्लाह को छोड़कर किसी और की इबादत करें

    📖 सूरह अल-माइदा (5:72) :
    "यक़ीनन वे काफ़िर हुए जिन्होंने कहा कि अल्लाह मरयम का बेटा मसीह ही है। हालाँकि मसीह ने कहा था कि ‘ऐ बनी-इसराईल, अल्लाह की बंदगी करो, जो मेरा रब भी है और तुम्हारा रब भी।’"

    ✅ अर्थ: अल्लाह के अलावा किसी और की इबादत (पूजा) करने को इस्लाम में कुफ़्र कहा गया है।

    5. काफ़िर वे हैं जो अल्लाह की आयतों का इनकार करें

    📖 सूरह अल-अंकबूत (29:47) :
    "और हमारी आयतों का इनकार सिर्फ़ काफ़िर ही करते हैं।"

    ✅ अर्थ: जो लोग क़ुरआन की सत्यता को नहीं मानते और उसकी आयतों का इंकार करते हैं, वे काफ़िर हैं।

    6. काफ़िर वे हैं जो अल्लाह की आयतों पर विवाद करें

    📖 सूरह मोमिन (40:4) :
    "अल्लाह की आयतों के बारे में बस वही लोग झगड़ते हैं, जो काफ़िर हैं।"

    ✅ अर्थ: अल्लाह की भेजी हुई शिक्षाओं को न मानना और उनके बारे में बहस करके उन्हें झुठलाना कुफ़्र है।

    7. काफ़िर वे हैं जो अल्लाह के साथ दूसरों को बराबर ठहराएं

    📖 सूरह अल-अंआम (6:1) :
    "सब प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने आकाशों और धरती को बनाया... फिर भी काफ़िर उसके बराबर दूसरों को ठहराते हैं।"

    ✅ अर्थ: जो लोग अल्लाह के अलावा किसी और को भी ईश्वरीय शक्ति का अधिकारी मानते हैं, वे कुफ़्र के दायरे में आते हैं।

    8. काफ़िर वे हैं जो ईमान लाने के बाद फिर कुफ़्र अपनाएं

    📖 सूरह आले-इमरान (3:86) :

    "कैसे हो सकता है कि अल्लाह उन लोगों को हिदायत दे, जिन्होंने ईमान की नेमत पा लेने के बाद फिर कुफ़्र (इनकार) अपना लिया, हालाँकि वे खुद इस बात पर गवाही दे चुके हैं कि यह रसूल (ﷺ) हक़ पर हैं और उनके पास रौशन निशानियाँ भी आ चुकी हैं?"

    ✅ अर्थ: जो पहले इस्लाम स्वीकार करके बाद में उससे फिर जाते हैं, वे भी काफ़िर हैं।

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    निष्कर्ष:

    काफ़िर वह व्यक्ति है जो:
    ✅ अल्लाह और उसके रसूल (ﷺ) का इनकार करे।
    ✅ अल्लाह के अलावा किसी और को पूज्य माने।
    ✅ क़ुरआन की आयतों को न माने या उन्हें झुठलाए।
    ✅ इस्लामी शरीयत के बजाय अपने बनाए नियमों पर चले।
    ✅ ईमान लाने के बाद फिर से कुफ़्र (इनकार) कर दे।

    ⚠ चेतावनी:

    "इस्लाम में किसी को "काफ़िर" कहने से पहले बहुत सावधानी बरतनी चाहिए। केवल क़ुरआन और हदीस की स्पष्ट दलील के आधार पर ही किसी व्यक्ति को काफ़िर कहा जा सकता है।۔"


    काफ़िर किसे कहते हैं? (हदीस की रोशनी में):

    इस्लामी दृष्टिकोण से "काफ़िर" उस व्यक्ति को कहा जाता है जो अल्लाह और उसके भेजे हुए संदेशों का इनकार करता है, इस्लाम को स्वीकार नहीं करता, या फिर जानबूझकर इस्लाम के मूल सिद्धांतों (तौहीद, रिसालत, और आखिरत) का खंडन करता है। नीचे कुछ हदीसों के प्रमाण दिए जा रहे हैं, जिनसे काफ़िर की पहचान और उसके अंजाम को स्पष्ट किया गया है।

    1. नमाज़ छोड़ने वाला कुफ़्र के करीब होता है

    सहीह मुस्लिम (हदीस: 93, 82, तिर्मिज़ी: 2620, अबू दाऊद: 4678)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    "आदमी और शिर्क (मूर्तिपूजा) तथा कुफ़्र के बीच फ़र्क़ (अंतर) यह है कि वह नमाज़ छोड़ दे।"

    ✅ शिक्षा:
    जो व्यक्ति जानबूझकर नमाज़ छोड़ देता है, वह कुफ़्र (अविश्वास) के करीब हो सकता है और इस्लाम से बाहर हो सकता है।

    2. किसी को बिना प्रमाण 'काफ़िर' कहना खतरनाक है

    सहीह बुखारी (हदीस: 385, 6104), सहीह मुस्लिम (हदीस: 61)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    "जिसने किसी मुसलमान को 'काफ़िर' कहा, और वह वास्तव में काफ़िर नहीं था, तो यह बात कहने वाला स्वयं काफ़िर हो जाता है।"

    ✅ शिक्षा:
    बिना प्रमाण किसी को काफ़िर कहना बहुत बड़ा गुनाह है, और ऐसा करने से यह शब्द कहने वाले पर लौट सकता है।

    3. इस्लाम में दाख़िल होने और उससे बाहर निकलने का पैमाना

    सहीह मुस्लिम (हदीस: 116, 94, 134, 128)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    "जो व्यक्ति यह गवाही दे कि अल्लाह के सिवा कोई सच्चा माबूद (पूज्य) नहीं और मुहम्मद (ﷺ) अल्लाह के रसूल हैं, और वह इस गवाही के अनुसार अमल करता है, तो वह जन्नत में जाएगा।"

    ✅ शिक्षा:
    जो इस गवाही (शहादा) को मानता है, वह मुसलमान है, और जो इसे नहीं मानता या इसका इनकार करता है, वह इस्लाम से बाहर माना जाता है।

    4. इस्लाम को ठुकराने वाला काफ़िर है

    सहीह बुखारी (हदीस: 385), सहीह मुस्लिम (हदीस: 114)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    "जिसने हमारे (इस्लाम के) धर्म के अलावा किसी और धर्म को अपनाया, वह स्वीकार नहीं किया जाएगा, और वह आख़िरत में घाटा उठाने वालों में से होगा।"

    ✅ शिक्षा:
    इस्लाम से हटकर कोई अन्य धर्म अपनाने वाला काफ़िर माना जाता है और उसकी आखिरत में कोई सफलता नहीं होगी।

    5. नमाज़ इस्लाम और कुफ़्र के बीच की पहचान है

    सहीह मुस्लिम (हदीस: 256)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    "हमारे और उनके (काफ़िरों) के बीच का अंतर नमाज़ है, जो इसे छोड़ दे, वह काफ़िर हो गया।"

    ✅ शिक्षा:
    नमाज़ इस्लाम और कुफ़्र के बीच का सबसे अहम फ़र्क़ है।

    6. बिना ईमान के मरने वाला काफ़िर है

    सहीह बुखारी (हदीस: 7508)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    "अल्लाह उस शख्स को हरगिज़ माफ़ नहीं करेगा जो दुनिया से कुफ़्र (अल्लाह का इनकार) लेकर जाए।"

    ✅ शिक्षा:
    अगर कोई व्यक्ति बिना ईमान लाए मर जाता है, तो उसके लिए अल्लाह की माफी नहीं है।

    7. काफ़िर की दोस्ती से बचने की ताकीद

    तिर्मिज़ी (हदीस: 2395)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    "आदमी का दीन उसी के दोस्त के दीन जैसा होता है, इसलिए देखो तुम किसे दोस्त बना रहे हो।"

    ✅ शिक्षा:
    काफ़िरों से नजदीकी दोस्ती करने से बचना चाहिए ऐसा इस लिए कहा गया है क्योंकि यह ईमान को प्रभावित कर सकती है।

    8. काफ़िर का आख़िरत में अंजाम

    सहीह बुखारी (हदीस: 476)
    रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फ़रमाया:
    "जो शख्स इस दुनिया से काफ़िर होकर जाएगा, उसके लिए जहन्नम की आग है, जहां वह हमेशा रहेगा।"

    ✅ शिक्षा:
    आख़िरत में काफ़िरों का ठिकाना जहन्नम है, और वे हमेशा वहां रहेंगे।



    इस्लाम में 'काफ़िर' के प्रकार:

    ➤मुशरिक : जो अल्लाह के साथ किसी और को पूजता है (शिर्क करता है)।

    ➤मुल्हिद (नास्तिक) : जो किसी भी ईश्वर को नहीं मानता।

    ➤मुनाफिक (मित्र-शत्रु) : जो ऊपर से मुस्लिम होने का दावा करता है, लेकिन अंदर से ईमान नहीं रखता।

    ➤अहलुल किताब : यहूदी और ईसाई, जो पहले ईश्वरीय ग्रंथों में विश्वास रखते हैं, लेकिन मुहम्मद (ﷺ) को नबी नहीं मानते।

    "हिंदू धर्म में मूर्ति-पूजा का समर्थन और विरोध दोनों दृष्टिकोण मिलते हैं। वेदों में ईश्वर को निराकार बताया गया है – "न तस्य प्रतिमा अस्ति" (उसकी कोई मूर्ति नहीं) – 📖यजुर्वेद (32.3)! जब ईश्वर निराकार है तो इसकी आकार अथवा मूर्ति कहां से आ गई!

    हिंदू धर्म और इस्लाम में 'काफिर' की तुलना

    1. परिभाषा:

    हिंदू धर्म: सत्य, ईश्वर और धर्म को न मानने वाला (असुर, नास्तिक, अधर्मी)। हिंदू ग्रंथों में "असुर" और "नास्तिक" शब्द का उपयोग उन व्यक्तियों के लिए किया गया है जो वेदों और धार्मिक सिद्धांतों को अस्वीकार करते हैं।

    स्लाम: "काफ़िर" शब्द अरबी भाषा का है, जिसका अर्थ है "इन्कार करने वाला"। इस्लाम में यह शब्द उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो अल्लाह, उसके नबी और क़ुरआन को स्वीकार नहीं करते।

    2. मुख्य शब्द:

    हिंदू धर्म: असुर, नास्तिक, पाखंडी, अधर्मी।

    इस्लाम: काफिर, मुशरिक (जो अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराता है), मुनाफिक (जो केवल दिखावे के लिए ईमान लाता है)।

    3. ईश्वर के इनकार पर दृष्टिकोण:

    हिंदू धर्म:
    ➤"नास्तिको वेदनिन्दकः" (जो वेदों का विरोध करता है, वह नास्तिक है) – मनुस्मृति (2.11)।

    बृहदारण्यक उपनिषद (4.4.19) में आत्मा और परमात्मा की एकता का उल्लेख मिलता है, जिसे अस्वीकार करने वाला अज्ञानता में माना जाता है।

    इस्लाम: 

    ➤"वलदीन कफरू फहुम लायुमिनून" (काफ़िर ईमान नहीं लाते) – 📖सूरह अल-बक़रह (2:6)।

    ➤इस्लामी मान्यता के अनुसार, जो व्यक्ति एकेश्वरवाद को नकारता है, वह काफ़िर कहलाता है।

    4. मूर्ति-पूजा (Idolatry) पर दृष्टिकोण:

    हिंदू धर्म:

    ➤हिंदू धर्म में मूर्ति-पूजा का समर्थन और विरोध दोनों दृष्टिकोण मिलते हैं। वेदों में ईश्वर को निराकार बताया गया है – "न तस्य प्रतिमा अस्ति" (उसकी कोई मूर्ति नहीं) – 📖यजुर्वेद (32.3)। लेकिन पुराणों और भक्ति परंपरा में मूर्ति-पूजा को ईश्वर भक्ति का एक माध्यम माना गया है।

    इस्लाम:
    ➤ईस्लाम में मूर्ति-पूजा को शिर्क कहा गया है, जिसे सबसे बड़ा पाप माना गया है – "इन्नल्लाहा ला यगफिरु अय्युशरक बिही" (अल्लाह शिर्क को माफ़ नहीं करेगा) 📖 सूरह अन-निसा (4:48)।

    5. आख़िरत (परलोक) में सज़ा:

    हिंदू धर्म:

    ➤हिंदू धर्म में पुनर्जन्म का सिद्धांत है। कर्मों के आधार पर आत्मा को नया जन्म मिलता है। उपनिषदों और गीता में मोक्ष की अवधारणा है, जहाँ आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।
    नरक की अवधारणा गरुड़ पुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णित है, लेकिन यह स्थायी नहीं मानी जाती।

    इस्लाम:

    ➤इस्लाम में जन्नत (स्वर्ग) और जहन्नम (नरक) की अवधारणा स्पष्ट है।
    "इन्नल्लज़ीना कफरू व मजदु फ़ी कुफ्रिहिम लं तुक़बल तौबतुहुम व उला-इकहुम ज़ाल्लून" (जो लोग काफ़िर हैं और अपने कुफ्र में बढ़ते जाते हैं, उनकी तौबा कबूल नहीं की जाएगी और वे भटक गए हैं) –📖 सूरह आले-इमरान (3:90)।

    इस्लाम में काफ़िर के लिए नरक की चेतावनी दी गई है।

    निष्कर्ष

    • काफिर" शब्द किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि हर वह व्यक्ति जो अपने धर्म के अनुसार ईश्वर या ईश्वरीय संदेश को नहीं मानता, उसे इस श्रेणी में रखा जा सकता है।
    • हिंदू धर्म में "काफिर" शब्द नहीं पाया जाता, लेकिन "नास्तिक", "असुर" और "अधर्मी" शब्दों का प्रयोग सत्य को न मानने वालों के लिए किया गया है।
    • इस्लाम में "काफिर" शब्द उन लोगों के लिए स्पष्ट रूप से प्रयुक्त हुआ है, जो अल्लाह, मुहम्मद (ﷺ) और क़ुरआन की सत्यता को अस्वीकार करते हैं।
    • दोनों धर्मों में "काफिर" का अर्थ सत्य को अस्वीकार करने वाला व्यक्ति ही है, लेकिन इसकी परिभाषा और सज़ा की अवधारणा भिन्न है।
    • हिंदू धर्म में पुनर्जन्म और मोक्ष की अवधारणा है, जबकि इस्लाम में सीधा स्वर्ग या नरक का निर्णय दिया जाता है।
    • ऐतिहासिक रूप से, हिंदू और इस्लामी समाजों ने "काफिर" या "नास्तिक" के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाए हैं।
    • इसलिए, "काफिर" शब्द को समझने के लिए हमें इसे केवल एक धार्मिक संदर्भ में देखने के बजाय इसके मूल अर्थ को समझना चाहिए।

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     "न तस्य प्रतिमा अस्ति।" अर्थ: उस ईश्वर की कोई प्रतिमा (मूर्ति) नहीं है।  यह वेद मंत्र स्पष्ट रूप से बताता है कि ईश्वर निराकार है और उसकी कोई भौतिक प्रतिमा नहीं बनाई जा सकती।۔""यजुर्वेद (32.3) ,न तस्य कश्चित् जनिता न चाधिपः।" अर्थ: उस ईश्वर का न कोई जन्मदाता है और न ही कोई उसका स्वामी है।

    हिंदू धर्म और इस्लाम में एक ईश्वर या एक अल्लाह की मान्यता और शिक्षा: 

    ishwar Ek hai
    Kaafir Kaun hai


    ईश्वर की एकता का सिद्धांत कई धर्मों में प्रमुख रूप से पाया जाता है। हिंदू धर्म में भी एकेश्वरवाद (Monotheism) की मान्यता मौजूद है, जिसका उल्लेख वेद, उपनिषद और भगवद गीता जैसे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। इसी तरह, इस्लाम में भी तौहीद (एकेश्वरवाद) का सिद्धांत सबसे महत्वपूर्ण है, जो क़ुरआन और हदीस में स्पष्ट रूप से वर्णित है। इस लेख में हम हिंदू धर्म और इस्लाम में ईश्वर की एकता की अवधारणा की तुलना करेंगे।

    वेदों में एकेश्वरवाद की शिक्षा

    हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद हैं, जिनमें ईश्वर की एकता का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। वेदों में ईश्वर को निराकार, सर्वशक्तिमान और अद्वितीय बताया गया है। वेदों के साथ-साथ उपनिषदों में भी एकेश्वरवाद (मोनोथीज़्म) की पुष्टि की गई है।



    (क) वेदों से प्रमाण – ईश्वर एक है

    1. सत्य एक ही है, लेकिन लोग उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं

    📖 ऋग्वेद (1.164.46) : 

    "एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति।"
    अर्थ: सत्य (ईश्वर) एक ही है, लेकिन ज्ञानी लोग उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं।
    ✅ शिक्षा: हिंदू धर्म में ईश्वर की एकता को स्वीकार किया गया है, लेकिन लोग उसे विभिन्न नामों से जानते और पूजते हैं।



    2. ईश्वर की कोई मूर्ति नहीं है

    📖 यजुर्वेद (32.3) :
    "न तस्य प्रतिमा अस्ति।"
    अर्थ: उस ईश्वर की कोई प्रतिमा (मूर्ति) नहीं है।
    ✅ शिक्षा: यह वेद मंत्र स्पष्ट रूप से बताता है कि ईश्वर निराकार है और उसकी कोई भौतिक प्रतिमा नहीं बनाई जा सकती।



    3. ईश्वर पवित्र, निराकार और सर्वोच्च है

    📖 यजुर्वेद (40.8) :
    "स अहमस्मि अदित्यो निरंजनः परः।"
    अर्थ: वह ईश्वर पवित्र, निराकार और सर्वोच्च है।

    ✅ शिक्षा: ईश्वर अद्वितीय है और किसी भी भौतिक स्वरूप से परे है।



    4. एक ही ईश्वर सभी प्राणियों में व्याप्त है

    📖 अथर्ववेद (13.4.16) :
    "एको देवः सर्वभूतेषु गूढः।"
    अर्थ: एक ही ईश्वर है, जो सभी जीवों में व्याप्त है।
    ✅ शिक्षा: ईश्वर सर्वव्यापी है, वह सभी प्राणियों में समाया हुआ है और सबका स्वामी है।

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    (ख) उपनिषदों से प्रमाण – ईश्वर अद्वितीय है

    1. ईश्वर का न कोई जन्मदाता है और न ही कोई उसका स्वामी

    📖 श्वेताश्वतर उपनिषद (6.9) :
    "न तस्य कश्चित् जनिता न चाधिपः।"
    अर्थ: उस ईश्वर का न कोई जन्मदाता है और न ही कोई उसका स्वामी है।

    ✅ शिक्षा: ईश्वर अजन्मा और स्वयंभू (स्वयं उत्पन्न) है, उसका कोई निर्माता या स्वामी नहीं है।



    2. ईश्वर अद्वितीय (अद्वैत) है और उसे जानना चाहिए

    📖 मांडूक्य उपनिषद (7) :
    "अद्वैतं चतुर्थं मन्यन्ते स आत्मा स विज्ञेयः।"
    अर्थ: वह आत्मा अद्वैत (अद्वितीय) है, जिसे जानना चाहिए।

    ✅ शिक्षा: ईश्वर अद्वैत (अद्वितीय) है, यानी उसका कोई दूसरा नहीं है। वह अकेला और अपार है।



    (ग) निष्कर्ष – हिंदू धर्म में एकेश्वरवाद की पुष्टि

    • वेदों और उपनिषदों में एक ईश्वर की स्पष्ट शिक्षा दी गई है।
    • ईश्वर को अद्वितीय (एक), सर्वव्यापी, अजन्मा और निराकार बताया गया है।
    • ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद में कहा गया है कि ईश्वर की कोई मूर्ति नहीं हो सकती और वह सभी में व्याप्त है।
    • श्वेताश्वतर और मांडूक्य उपनिषद में बताया गया है कि ईश्वर अद्वैत (अद्वितीय) और अजन्मा है।

    📌 हिंदू धर्म का मूल सिद्धांत यह है कि ईश्वर एक ही है, जिसे लोग अलग-अलग नामों से जानते हैं

    भगवद गीता में एक ईश्वर का उल्लेख


    भगवद गीता हिंदू धर्म का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट रूप से ईश्वर की एकता को समझाया है। गीता के श्लोकों में बताया गया है कि ईश्वर एक ही है, लेकिन अज्ञानी लोग अपनी इच्छाओं में फंसकर अन्य देवताओं की पूजा करने लगते हैं।



     भगवद गीता से प्रमाण – ईश्वर एक है

    1. जो सच्चे ईश्वर को नहीं समझते, वे अन्य देवताओं की पूजा करने लगते हैं

    📖 भगवद गीता (7.20) :
    "जो लोग इच्छाओं में फंसे हुए हैं, वे अन्य देवताओं की पूजा करते हैं।"

    ✅ शिक्षा: जो लोग सच्चे ईश्वर के स्वरूप को नहीं समझते, वे भौतिक इच्छाओं में फंसकर अन्य देवी-देवताओं की पूजा करने लगते हैं।


    2. ईश्वर अजन्मा और सर्वोच्च भगवान है

    📖 भगवद गीता (10.3) :
    "यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्।"
    अर्थ: जो मुझे अजन्मा और सर्वोच्च भगवान के रूप में जानता है, वह भ्रम से मुक्त हो जाता है।
    ✅ शिक्षा: ईश्वर अजन्मा और अनादि (शुरुआत रहित) है। उसे जानने से ही मोक्ष प्राप्त होता है।



    हिंदू धर्म में मूर्तिपूजा और एकेश्वरवाद


    हिंदू धर्म में कई देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, लेकिन इसकी गहरी समझ "एकेश्वरवाद" (Monotheism) और "हिनोथीज़्म" (Henotheism) के सिद्धांतों से जुड़ी है।

    ➤एकेश्वरवाद: भगवद गीता और वेदों में ईश्वर को एक बताया गया है, जो निराकार और सर्वशक्तिमान है।

    ➤हिनोथीज़्म: हिंदू धर्म में एक सर्वोच्च ईश्वर की मान्यता है, लेकिन अन्य देवी-देवताओं को उसी ईश्वर की विभिन्न शक्तियों या रूपों के रूप में देखा जाता है।

    ✅ उदाहरण:

    ➤शिव, विष्णु, देवी, गणेश, आदि को एक ही ब्रह्म (परमेश्वर) के विभिन्न स्वरूप माना जाता है।

    ➤भक्त अपनी श्रद्धा और आवश्यकताओं के अनुसार किसी विशेष देवता की पूजा कर सकते हैं, लेकिन अंततः सभी देवता एक ही परमेश्वर के अंग हैं।



    (निष्कर्ष)

    ➤भगवद गीता के अनुसार, ईश्वर केवल एक है, वह अजन्मा और अनादि है।

    ➤जो लोग सच्चे ईश्वर को नहीं पहचानते, वे भौतिक इच्छाओं में फंसकर अन्य देवताओं की पूजा करने लगते हैं।

    ➤हिंदू धर्म में मूर्तिपूजा का आधार "हिनोथीज़्म" है, जिसमें एक सर्वोच्च ईश्वर की मान्यता होती है, और अन्य देवी-देवताओं को उसी ईश्वर की शक्तियाँ माना जाता है।
    📌 अतः गीता और वेदों के अनुसार, हिंदू धर्म मूल रूप से एकेश्वरवादी है, लेकिन समय के साथ भक्ति परंपराओं के कारण बहुदेववाद की धारणा विकसित हुई।


    इस्लाम में एकेश्वरवाद (तौहीद) की शिक्षा

    इस्लाम का मूल सिद्धांत "तौहीद" (एकेश्वरवाद) है, जिसका अर्थ है कि केवल एक ही ईश्वर (अल्लाह) की उपासना की जाए। इस्लाम में किसी को भी अल्लाह का भागीदार बनाना सबसे बड़ा पाप (शिर्क) माना जाता है। क़ुरआन और हदीस में तौहीद की स्पष्ट व्याख्या की गई है।



    (क) क़ुरआन से प्रमाण – अल्लाह एक ही है

    1. अल्लाह अकेला और अद्वितीय है

    📖 सूरह इख़लास (112:1-4) :
    "कुल हुवल्लाहु अहद, अल्लाहुस-समद, लम यलिद व लम यूलद, व लम यकुल्लहू क़ुफ़ुवन अहद।"

    ✅ अर्थ:

    1. कह दो: वह अल्लाह एक है।
    2. अल्लाह बेनियाज़ (न किसी का मोहताज और न किसी पर निर्भर) है।
    3. न उसने किसी को जन्म दिया और न वह स्वयं जन्मा।
    4. और न कोई उसके समान है।

    📌 शिक्षा: इस सूरह में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि अल्लाह अकेला, निराकार और सर्वोच्च सत्ता है, जिसका कोई तुल्य नहीं।

    2. अल्लाह के अलावा कोई ईश्वर नहीं

    📖 सूरह अल-बक़रह (2:255) – आयतुल कुर्सी :
    "अल्लाह ही वह है, जिसके सिवा कोई माबूद (पूज्य) नहीं, वह ज़िंदा है, सबको संभालने वाला है..."
    ✅ शिक्षा: अल्लाह ही सृष्टि का रचनाकार और पालनहार है, और केवल उसी की इबादत की जानी चाहिए।



    3. यदि दो ईश्वर होते, तो सृष्टि में अराजकता होती

    📖 सूरह अल-अंबिया (21:22) :

    "अगर आकाश और धरती में अल्लाह के अलावा और भी ईश्वर होते, तो उनमें बिगाड़ हो जाता।"
    ✅ शिक्षा: एक से अधिक ईश्वर होने की स्थिति में सृष्टि में अराजकता और टकराव होता, लेकिन चूँकि सृष्टि सुव्यवस्थित है, इसलिए यह प्रमाणित करता है कि केवल एक ही ईश्वर है।



    (ख) हदीस से प्रमाण – केवल अल्लाह की इबादत करें

    1. अल्लाह का हक़ यह है कि सिर्फ उसी की इबादत की जाए

    📖 सहीह बुखारी (हदीस 2856) :
    "मुआज़ बिन जबल (रज़ि.) से रिवायत है कि मैंने नबी (ﷺ) से पूछा: 'अल्लाह का अपने बंदों पर क्या हक़ है?'
    आप (ﷺ) ने फ़रमाया: 'यह कि वे सिर्फ उसी की इबादत करें और उसके साथ किसी को शरीक न करें।
    ✅ शिक्षा: इस्लाम में केवल अल्लाह की उपासना का आदेश दिया गया है और किसी अन्य को पूजना शिर्क (सबसे बड़ा पाप) है।



    2. नबी (ﷺ) ने तौहीद का पैग़ाम दिया

    📖 सहीह मुस्लिम (हदीस 30) :
    "रसूलुल्लाह (ﷺ) ने फरमाया: 'जो इस बात की गवाही दे कि अल्लाह के अलावा कोई माबूद (ईश्वर) नहीं और मैं उसका रसूल हूँ, वह जन्नत में दाख़िल होगा।'"
    ✅ शिक्षा: इस्लाम में जन्नत की कुंजी तौहीद है।

    3. तौहीद के बिना पर गुनाहों की माफ़ी 

    📖सहीह बुख़ारी (हदीस नंबर: 7370)  

    "अल्लाह फ़रमाता है: आदम के बेटे, अगर तुम धरती भर गुनाह लेकर आओ, लेकिन मेरे साथ किसी को शरीक न ठहराओ, तो मैं तुम्हें उससे भी बड़ी माफ़ी देकर मिलूंगा।"
    ✅ शिक्षा: जितने भी गुनाह हो अगर तौहीद है , शिर्क न किया हो तो अल्लाह माफ़ कर देगा !



    (ग) निष्कर्ष – इस्लाम का मूल संदेश तौहीद है

    इस्लाम में "तौहीद" (एकेश्वरवाद) को सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत माना गया है।
    क़ुरआन और हदीस में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अल्लाह अकेला, सर्वशक्तिमान और निराकार है।

    किसी को भी अल्लाह के बराबर ठहराना (शिर्क) इस्लाम में सबसे बड़ा पाप है।
    📌 अतः, इस्लाम का मुख्य संदेश यह है कि केवल एक अल्लाह की उपासना की जाए, क्योंकि वह अकेला, अनादि और सर्वशक्तिमान है।

     वेदों और इस्लाम में समानताएँ

    1. ईश्वर की एकता:

    वेद: "एको देवः" (एक ही ईश्वर है) – अथर्ववेद (13.4.16)।
    इस्लाम: "कुल हुवल्लाहु अहद" (कह दो: वह अल्लाह एक है) – सूरह इख़लास (112:1)।

    2. ईश्वर की प्रतिमा नहीं (निराकार ईश्वर):

    वेद: "न तस्य प्रतिमा अस्ति" (उस ईश्वर की कोई मूर्ति नहीं) – यजुर्वेद (32.3)।
    इस्लाम: "लैस कमिस्लिही शय्युन" (उसके समान कुछ भी नहीं) – सूरह शूरा (42:11)।

    3. ईश्वर का जन्म नहीं:

    वेद: "न तस्य कश्चित् जनिता न चाधिपः" – श्वेताश्वतर उपनिषद (6.9)।
    (उस ईश्वर का न कोई जन्मदाता है और न ही कोई उसका स्वामी है।)
    इस्लाम: "लम यलिद व लम यूलद" (न उसने किसी को जन्म दिया और न वह जन्मा) – सूरह इख़लास (112:3)।

    4. एकमात्र पूजनीय सत्ता:

    वेद: "तमेकं जन्‍यं प्रणिपत्य" (उस एक परमेश्वर को प्रणाम करो) – ऋग्वेद (10.48.5)।
    इस्लाम: "वअ'बुदिल्लाह व ला तुशरिक बिही शय्य़ा" (अल्लाह की इबादत करो और उसके साथ किसी को शरीक मत करो) – सूरह निसा (4:36)।

     Read This Also: Tauheed Aur Shirk part:2


     (Conclusion): 

    • हिंदू धर्म के मूल ग्रंथों (वेदों और उपनिषदों) में एक ईश्वर की स्पष्ट मान्यता है।
    • इस्लाम भी एकेश्वरवाद की शिक्षा देता है, जैसा कि क़ुरआन और हदीस से स्पष्ट होता है।
    • दोनों धर्म सिखाते हैं कि ईश्वर एक है, वह निराकार है, उसका कोई समकक्ष नहीं, और केवल वही पूजनीय है।
    • इस्लाम में तौहीद (एक ईश्वर की उपासना) को सर्वोच्च दर्जा दिया गया है और इसे जन्नत में जाने की शर्त बताया गया है।
    • समय के साथ हिंदू धर्म में बहुदेववाद की प्रवृत्ति बढ़ी, जबकि इस्लाम ने तौहीद को स्पष्ट और विशुद्ध रूप में रखा।
    • अंततः, दोनों धर्मों की मूल शिक्षा एकेश्वरवाद पर आधारित है, और यह सिद्ध करता है कि सच्चे ईश्वर की पहचान और उसकी उपासना ही मोक्ष और उद्धार का मार्ग है।


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    FAQs:


    सवाल 1: क्या हिंदू धर्म और इस्लाम दोनों ही एक ईश्वर में विश्वास रखते हैं?
    जवाब: हां, हिंदू धर्म के वेदों और उपनिषदों में एक ईश्वर की अवधारणा पाई जाती है, जबकि इस्लाम में तौहीद (एकेश्वरवाद) को सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत माना जाता है।

    सवाल 2: क्या हिंदू धर्म में मूर्तिपूजा अनिवार्य है?
    जवाब: हिंदू धर्म के मूल ग्रंथ वेद और उपनिषद मूर्तिपूजा का समर्थन नहीं करते, बल्कि एक निराकार परमेश्वर की उपासना पर जोर देते हैं। हालांकि, समय के साथ मूर्तिपूजा एक परंपरा के रूप में विकसित हुई।

    सवाल 3: इस्लाम में ईश्वर (अल्लाह) के बारे में क्या शिक्षा दी गई है?
    जवाब: इस्लाम सिखाता है कि अल्लाह एक है, निराकार है, उसका कोई समकक्ष नहीं और केवल वही इबादत के योग्य है। यह शिक्षा क़ुरआन और हदीस में स्पष्ट रूप से दी गई है।

    सवाल 4: क्या वेदों में मूर्तिपूजा का खंडन किया गया है?
    जवाब: हां, वेदों में कई श्लोक ऐसे हैं जो स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ईश्वर की कोई प्रतिमा या मूर्ति नहीं है, जैसे यजुर्वेद (32.3) में कहा गया है – "न तस्य प्रतिमा अस्ति" (उस ईश्वर की कोई मूर्ति नहीं है)।

    सवाल 5: क्या हिंदू धर्म और इस्लाम के ईश्वर के बीच कोई समानता है?
    जवाब: हां, दोनों धर्मों में ईश्वर को एक, सर्वशक्तिमान, निराकार और अद्वितीय माना गया है। वेद और क़ुरआन दोनों ही कहते हैं कि ईश्वर का कोई जन्म नहीं हुआ और न ही उसकी कोई प्रतिमा बनाई जा सकती है।

    सवाल 6: क्या भगवद गीता में भी एक ईश्वर की बात कही गई है?
    जवाब: हां, भगवद गीता (7.20) में कहा गया है कि जो लोग इच्छाओं में फंसे हुए हैं, वे अन्य देवताओं की पूजा करते हैं। इसका अर्थ है कि वास्तविक ईश्वर एक ही है।

    सवाल 7: इस्लाम में तौहीद का क्या महत्व है?
    जवाब: इस्लाम में तौहीद (अल्लाह की एकता) सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इसे मानने वाला व्यक्ति सच्चा मुसलमान कहलाता है, और इसे न मानने वाले को इस्लाम में शिर्क (अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराना) का दोषी माना जाता है।

    सवाल 8: क्या हिंदू धर्म और इस्लाम के मूल ग्रंथ एक ईश्वर की उपासना का आदेश देते हैं?जवाब: हां, वेद, उपनिषद और भगवद गीता एक ईश्वर की उपासना पर जोर देते हैं, और इस्लाम में भी एकमात्र अल्लाह की उपासना का आदेश दिया गया है।

    सवाल 9. "काफ़िर" शब्द का क्या अर्थ है और यह इस्लाम में किसके लिए प्रयुक्त होता है?
    जवाब: "काफ़िर" शब्द अरबी भाषा का है, जिसका अर्थ होता है "इनकार करने वाला" या "सत्य को ढंकने वाला"। इस्लाम में यह उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो अल्लाह, उसके नबी मुहम्मद (ﷺ) और क़ुरआन को नहीं मानते।

    सवाल 10. क्या हिंदू धर्म में "काफ़िर" शब्द का कोई समानार्थी शब्द है?
    जवाब: हिंदू धर्म में "काफ़िर" शब्द नहीं पाया जाता, लेकिन "नास्तिक", "असुर" और "अधर्मी" शब्दों का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जो वेदों, ईश्वर या धार्मिक सत्य को अस्वीकार करते हैं।

    सवाल 11. हिंदू धर्म में किसे नास्तिक कहा गया है?
    जवाब: हिंदू धर्म में "नास्तिक" उसे कहा गया है जो वेदों और ईश्वर में विश्वास नहीं करता। मनुस्मृति (2.11) में कहा गया है – "नास्तिको वेदनिन्दकः", अर्थात् जो वेदों की निंदा करता है, वह नास्तिक है।

    सवाल 12. इस्लाम और हिंदू धर्म में मूर्तिपूजा पर क्या दृष्टिकोण है?
    जवाब: इस्लाम: मूर्तिपूजा (Idolatry) को "शिर्क" कहा जाता है, जिसे इस्लाम में सबसे बड़ा पाप माना गया है।

    हिंदू धर्म: कुछ हिंदू ग्रंथों में मूर्तिपूजा को धार्मिक उपासना का एक रूप माना गया है, जबकि अन्य ग्रंथों में इसे अस्वीकार किया गया है।

    सवाल 13. इस्लाम में "काफ़िर" और "मुशरिक" में क्या अंतर है?
    जवाब: "काफ़िर" वह व्यक्ति होता है जो इस्लाम के मूल सिद्धांतों को अस्वीकार करता है।
    "मुशरिक" वह व्यक्ति होता है जो अल्लाह के साथ किसी और को ईश्वर मानता है या उसकी पूजा करता है।

    सवाल 14. हिंदू धर्म और इस्लाम में काफ़िरों/नास्तिकों के लिए परलोक (आख़िरत) की सज़ा क्या है?
    जवाब: हिंदू धर्म: पुनर्जन्म की अवधारणा के अनुसार, अच्छे कर्म करने वाले को अच्छे जन्म मिलते हैं और पाप करने वाले को निचले योनि में जन्म लेना पड़ता है।

    इस्लाम: इस्लाम के अनुसार, जो व्यक्ति अल्लाह और उसके नबी को नहीं मानता, वह जहन्नम (नरक) में जाएगा।

    सवाल 15. क्या इस्लाम में काफ़िर के लिए कोई क्षमा (माफी) का प्रावधान है?
    जवाब: हां, अगर कोई व्यक्ति ईमान (इस्लाम) कबूल कर ले, तो उसके पहले के सारे गुनाह माफ़ कर दिए जाते हैं। हदीस में कहा गया है:"अल्लाह फ़रमाता है: अगर तुम धरती भर गुनाह लेकर आओ, लेकिन मेरे साथ किसी को शरीक न ठहराओ, तो मैं तुम्हें उससे भी बड़ी माफ़ी देकर मिलूंगा।" (सहीह बुख़ारी – 7370)


    सवाल 16. हिंदू धर्म और इस्लाम में सत्य के इनकार (काफ़िर/नास्तिक) को लेकर मूलभूत अंतर क्या है?
    जवाब
    : हिंदू धर्म में सत्य को न मानने वाले को नास्तिक कहा जाता है, लेकिन उसे अलग-अलग संप्रदायों में अलग दृष्टि से देखा जाता है।

    इस्लाम में "काफ़िर" उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो इस्लाम की मूल शिक्षाओं को अस्वीकार करते हैं, और उनके लिए जहन्नम की चेतावनी दी गई है।


    सवाल 17. क्या हिंदू धर्म और इस्लाम में धार्मिक सहिष्णुता की बातें कही गई हैं?
    जवाब: हिंदू धर्म: "एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति" (सत्य एक है, लेकिन ज्ञानी लोग उसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं) – ऋग्वेद (1.164.46)।

    इस्लाम: "ला इकराहा फिद्दीन" (धर्म में कोई बाध्यता नहीं) – सूरह अल-बक़रह (2:256)।

    सवाल 18. क्या दोनों धर्मों में "काफ़िर" या "नास्तिक" के लिए सुधार का कोई मार्ग है?
    जवाब
    : हिंदू धर्म: नास्तिक व्यक्ति यदि धर्म और ईश्वर में आस्था रखे और अच्छे कर्म करे, तो उसे पुनः धार्मिक व्यक्ति माना जा सकता है।

    इस्लाम: अगर कोई काफ़िर तौबा (प्रायश्चित) कर ले और इस्लाम कबूल कर ले, तो उसे क्षमा कर दिया जाता है और जन्नत का पात्र माना जाता है।


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    1 Comments

    1. Galtfahmi ke shikaar hain hamare gair muslim bhai aur unhe ghalt matlab bataya gaya hai nafrat failane ke liye

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    please do not enter any spam link in the comment box.thanks